CGNEWS:रायपुर में ‘सुशासन तिहार’ बना ‘मौजमस्ती महोत्सव’! आंगनबाड़ी केंद्रों में घोर लापरवाही, योजनाएं ठप, जनता बेहाल

रायपुर (गंगा प्रकाश)। रायपुर में सुशासन तिहार की गूंज है — कहीं स्वास्थ्य शिविर तो कहीं योजनाओं का लाभ वितरण — तब राजधानी रायपुर के शहरी क्षेत्र में कुछ कर्मचारी इसे ‘मौजमस्ती तिहार’ मान बैठे हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग के अंतर्गत आने वाले श्याम नगर ब्लॉक के कई आंगनबाड़ी केंद्रों में हालात ऐसे बन चुके हैं कि न तो कर्मचारी उपस्थित हैं, न सेवाएं जारी हैं, और न ही शासन की मंशा का कोई सम्मान बचा है।

इस सबके बीच आज सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है — क्या सरकार की सबसे प्राथमिक योजनाएं भी राजधानी में गंभीरता से लागू नहीं हो रहीं? और यदि नहीं, तो फिर बाकी जिलों की स्थिति की कल्पना ही डराने वाली है।

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सरकारी कार्यक्रम की धज्जियां उड़ाईं, कर्मचारी मस्त-मौला

सूत्रों की मानें तो श्याम नगर क्षेत्र के कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाएं पिछले कुछ दिनों से अपने कर्तव्यों से पूरी तरह गायब हैं। जबकि 20 मई को “सुशासन तिहार” के अंतर्गत विशेष शिविर आयोजित किया जाना था, जिससे सैकड़ों महिलाओं और बच्चों को पोषण, स्वास्थ्य, और परामर्श जैसी सेवाओं का लाभ मिलना था।

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परंतु हकीकत यह है कि जिन केंद्रों पर ये शिविर लगने थे, वहाँ ताले लटके हुए हैं। कुछ कार्यकर्ता छुट्टी पर हैं, तो कुछ ने अपने नंबर तक बंद कर दिए हैं। इन केंद्रों में पोषण आहार वितरण, बच्चों का नियमित टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की जांच, और स्वास्थ्य परामर्श जैसी अत्यावश्यक सेवाएं ठप पड़ी हैं।

कलेक्टर की नाक के नीचे हो रहा सब कुछ, फिर भी सन्नाटा

यह लापरवाही और भी चिंताजनक तब बन जाती है जब हम यह देखें कि यह सब कुछ रायपुर कलेक्टर कार्यालय की सीधी निगरानी में हो रहा है। राजधानी के प्रशासनिक तंत्र का यह रवैया सरकार की नीतियों को मज़ाक बना रहा है।

कई बार देखा गया है कि छोटे जिलों में ज़रा सी चूक पर तुरंत नोटिस जारी होता है, लेकिन राजधानी में सब कुछ होते हुए भी ना कोई चेतावनी, ना कोई कार्रवाई — आखिर क्यों?

स्थानीय जनता में गहरा आक्रोश

श्याम नगर की एक स्थानीय महिला, संगीता वर्मा, बताती हैं, “तीन दिन से पोषण आहार के लिए आ रही हूं। हर दिन यही कहा जाता है कि दीदी छुट्टी पर हैं। मेरा बच्चा कुपोषित है, डॉक्टर ने निर्देश दिया है कि नियमित पोषण दिया जाए, लेकिन केंद्र ही बंद है तो कहां जाएं?”

एक अन्य बुज़ुर्ग ने नाराजगी जताते हुए कहा, “सरकार के लिए सुशासन तिहार शायद फोटो खिंचवाने का मौका है, लेकिन ज़मीन पर हकीकत कुछ और ही है। ये कर्मचारी जनता के हक को मज़ाक बना रहे हैं।”

कर्मचारी-अधिकारियों की मिलीभगत?

एक बड़ी आशंका यह भी जताई जा रही है कि इन छुट्टियों और गैरहाजिरियों में कहीं विभागीय अधिकारियों की मूक सहमति तो नहीं? आखिर कैसे संभव है कि एक साथ इतने केंद्रों के कर्मचारी बिना किसी कार्यवाही के गैरहाजिर रह सकते हैं? यह लापरवाही केवल कर्मचारियों की नहीं बल्कि प्रशासनिक चुप्पी की भी पोल खोलती है।

सरकार की योजनाओं को लगा झटका

महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाएं — विशेष रूप से प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, सुपोषण अभियान, और मिशन सक्षम — का सीधा असर बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है। रायपुर जैसे शहर में यदि ये सेवाएं ही रुक जाएं, तो दूरदराज के आदिवासी इलाकों की कल्पना ही की जा सकती है।

अब क्या होगी कार्रवाई?

प्रश्न यह है कि क्या रायपुर जिला प्रशासन इन ग़ैरजिम्मेदार कर्मचारियों पर दंडात्मक कार्रवाई करेगा? क्या विभागीय जांच शुरू होगी? क्या कलेक्टर स्वयं इन केंद्रों का निरीक्षण करेंगे या यह मामला भी अन्य फाइलों की तरह धूल फांकता रह जाएगा?

इस संदर्भ में जब महिला एवं बाल विकास विभाग के एक अधिकारी से नाम न छापने की शर्त पर पूछा गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ शिकायतें मिली हैं और जांच की जा रही है। परंतु यह जवाब भी उतना ही औपचारिक है जितना इन कर्मचारियों का कामकाज।

निष्कर्ष: जनता को जवाब चाहिए, न कि आश्वासन

जब जनता शासन के भरोसे रहती है, तब प्रशासन का यह दायित्व होता है कि योजनाएं सिर्फ फाइलों में न रहें, बल्कि ज़मीनी स्तर तक पहुंचें। रायपुर की इस लापरवाही ने सरकार की सुशासन छवि पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है। अब देखना यह होगा कि क्या राज्य सरकार और प्रशासन इस पर सख्त कदम उठाएंगे, या फिर राजधानी में भी जवाबदेही केवल शब्दों तक ही सीमित रह जाएगी?

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