
प्रकाश कुमार यादव
रायपुर/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)।
बोलों तो दहशत है
न बोलें तो मजबूरी।
कैसी ये सियासत है
गिरगिट से ली विरासत है।
पल-पल में तो धोखा है
एक ओर कुआँ,तो एक ओर खाई है।
यहाँ तो जंगलराज चलता है़ ……..
अगर तुम हो सच्चे भी
तो झूठा तुम्हें बना देंगे
अपने हर पाप में शामिल तुम्हें करा देगें
यहाँ चारों ओर घिरे हो तुम चोरों और मक्कारों से।
ईमान बेच कर पापी तुम्हें बना देंगे।
यहाँ तो जंगलराज चलता है….
यहा कविता इनदिनों छत्तीसगढ़ में वन विभाग पर सटीक बैठती है जंहा सुप्रीम कोर्ट के स्पस्ट आदेश के अवहेलना कर फुल रेंजरों को पंगु बनाकर अपने कमाऊ पूत डिप्टी रेंजरों को रेंजर बना दिया जा रहा हैं और जो फुल रेंजर हैं उन्हें पंगु बना दिया गया हैं।या ए कन्हे की ताबदला उद्योग के साथ अघोषित पद उन्नति का खुल्ला खेल चल रहा हैं हालांकि अब ताबदला उद्योग उतना टिकाऊ नही रहा हैं इसे वन विभाग के अधिकारी भी चाइना का माल की तरह टिकाऊ नही मान रहें हैं इस बजह से अब जो जंहा बैठा हैं बो वंही बैठा रहना चाहता हैं।ज्ञातव्य हो कि सुशासन से तात्पर्य किसी सामाजिक-राजनैतिक ईकाई (जैसे नगर निगम,राज्य सरकार आदि) को इस प्रकार चलाना कि वह वांछित परिणाम दे। सुशासन के अन्तर्गत बहुत सी चीजें आतीं हैं जिनमें अच्छा बजट,सही प्रबन्धन,कानून का शासन, सदाचार आदि।इसके विपरीत पारदर्शिता की कमी या सम्पूर्ण अभाव,जंगल राज,लोगों की कम भागीदारी,भ्रष्टाचार का बोलबाला आदि दुःशासन के लक्षण हैं।’शासन’ शब्द में ‘सु’ उपसर्ग लग जाने से ‘सुशासन’ शब्द का जन्म होता है।’सु’ उपसर्ग का अर्थ शुभ, अच्छा,मंगलकारी आदि भावों को व्यक्त करने वाला होता है। राजनीतिक और सामाजिक जीवन की भाषा में सुशासन की तरह लगने वाले कुछ और बहुप्रचलित-घिसेपिटे शब्द हैं जैसे – प्रशासन, स्वशासन,अनुशासन आदि। इन सभी शब्दों का संबंध शासन से है। ’शासन’ आदिमयुग की कबीलाई संस्कृति से लेकर आज तक की आधुनिक मानव सभ्यता के विकासक्रम में अलग-अलग विशिष्ट रूपों में प्रणाली के तौर पर विकसित और स्थापित होती आई है। इस विकासक्रम में परंपराओं से अर्जित ज्ञान और लोककल्याण की भावनाओं की अवधारणा प्रबल प्रेरक की भूमिका में रही है। इस अर्थ में शासन की सभी प्रणालियाँ कृत्रिम हैं। इस प्रकार हम कह सकते है कि सुशासन व्यक्ति को भ्रस्टाचार एवं लालफीताशाही से मुक्त कर प्रशासन को स्मार्ट,साधारण,नैतिक,उत्तरदायी,जिम्मेदारियोग्य,पारदर्शी बनाता है ।गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद सत्ता का परिवर्तन तो हो गया लेकिन परिर्वतन के ढाई साल बीतने के बाद भी व्यवस्था में परिवर्तन अब भी नहीं आ सका है।छत्तीसगढ़ वन विभाग में प्रभारवाद अब भी सर चढ़ कर बोल रहा है।यंहा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर प्रभारवाद का और तबादला उद्योग और अघोषित पदौन्नति बोलबोला है।सालों से यहां नियमों को ताक पर रख डिप्टी रेंजर व फॉरेस्टर को रेंज अफसर बना कर बिठाने का खुल्ला नग्गा नाच होते चला आया हैं जो निरन्तर जारी हैं,बता दें कि वर्ष 2014 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव ने प्रदेश के समस्त विभागों के सचिवों व विभागाअध्यक्ष को एक आदेश जारी किया था जिसमे इसमें स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी विभाग में कोई भी कनिष्ठ कर्मी को वरिष्ठ के पद पर न रखा जाए,अगर ऐसा प्रभार कहीं दिया गया है तो विभागाध्यक्ष तत्काल उसे हटाए।लेकिन छत्तीसगढ़ के वन विभाग में इस आदेश के विपरीत नियमों को ताक पर रख वन विभाग में प्रभारवाद का खेल सालों से खेला जा रहा है।बताना लाजमी होगा कि जिला गरियाबंद में वर्षों से डिप्टी रेंजरो को रेंज का प्रभार देने की परंपरा को तोड़ने के लिए रेंजर एसोसिएशन आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में दिखाई पड़ रहा था।क्योंकि गरियाबंद जिला समेत प्रदेश में ऐसे कई जगह है जहां फुल फ्लैश रेंजर को हटाकर डिप्टी रेंजर को प्रभार देकर शासन की राशि की लूट मचाई जा रही हैं। जिससे नाराज रेंजर एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री मंत्री सहित शीर्ष अधिकारियों को कार्यवाही के लिए अवगत करा चुका हैं लेकिन अब तक परिणाम संतोषजनक नहीं मिल पाया है ।उल्लेखनीय हाे की गरियाबंद जिला के वन परिक्षेत्र अधिकारी मैनपुर संजीत मरकाम व वन परिक्षेत्र अधिकारी नवागढ़ तुलाराम सिंन्हा,वन परिक्षेत्र इंदागाँव में चंद्रबली ध्रुव सहित पूरे छत्तीसगढ़ के वन विभाग में करीब 100 डिप्टी रेंजराे को वन अधिनियम की धज्जियां उड़ा कर बेधड़क रेंज का प्रभार दिया गया हैं। कुछ डिप्टी रेंजर तो तगड़ी सेटिंग कर फुल फ्लैश रेंजर को रेंज से हटाकर स्वयं पदस्थ हुए हैं। जिसके चलते वरिष्ठ और कनिष्ठ वन अधिकारियों के बीच मतभेद देखने को मिलता है ।और विभागीय कार्यों में असमंजस्य भी उत्पन्न होती है। बावजूद इसके प्राथमिकता के साथ डिप्टी रेंजर को रेंज का चार्ज दिया जा रहा है। जिसे लेकर वन अधिकारियों मे काफी ज्यादा रोष दिखाई पड़ रहा है। तभी लगातार मंत्री अधिकारियों के दरवाजा खटखटाने काे मजबूर है। बकायदा रेंजर एसोसिएशन ने प्रदेश स्तर तक अपनी आपत्ती दर्ज कराया है। मगर अब तक किसी कार्यवाही देखने को नहीं मिल रहा है। सबसे मजेदार बात तो यह है कि वन अधिनियम के तहत रेंज का प्रभार पूरा अधिकार के साथ डिप्टी रेंजर काे नहीं दिया जा सकता बावजूद इसके उच्च अधिकारी किस तरह एवं किस नियम के तहत डिप्टी रेंजर को पूरा प्रभार दे रहे हैं। यह रेंजरो के समझ से बाहर है। इसलिए पूरे प्रदेश में सभी डिप्टी रेंजर की पूरी दस्तावेज मंगाई जा रहा है। ताकि न्यायालय की लड़ाई लड़ी जाए। और नियमानुसार रेंजरो को वन अधिनियम के तहत हक और अधिकार मिल पाए हालांकि इसके लिए रेंजर एसोसिएशन को काफी मशक्कत करनी पड़ रही हैं क्योंकि संविधानिक पदों पर आसीन नेताओं के अलावा उच्च अधिकारियों को भी अवगत कराया गया। लेकिन अब तक किसी प्रकार कार्यवाही नहीं हो पाई है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर दिया जाता हैं डिप्टी रेंजर को फुल रेंजर का चार्ज
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट शब्दों में आदेश है कि किसी भी टैरिटोरियल रेंज (सामान्य वन क्षेत्र)का चार्ज सिर्फ फुल रेंजर को ही सौंपा जाएगा।कोर्ट के इस नियम की अवहेलना एक नहीं छत्तीसगढ़ की कई रेंजों में डिप्टी रेंजर या फिर फॉरेस्टर को चार्ज देकर की जा रही है।क्योंकि की इसके बदले उन्हें ज्यादा कुछ नही करना होता हैं सिर्फ आपने आकाओं को खुश करना होता हैं।विस्वास्थ सूत्र बताते हैं कि चार्ज लेने के लिये 5 से 7 लाख रुपये देने होते हैं साथ ही विभिन्न योजनाओं से स्वीकृत कार्यो का एक मोटा कमीशन अपने आकाओं के माध्यम से रायपुर तक भेजना होता हैं।और उनकी रेंज के लिये कई कार्य स्वीकृत भी होते हैं जो इस सिस्टम से दूर होता हैं उन्हें जिला मुख्यालय में व्यवस्था देखनी होती जिसे सीधी भाषा मे लुकलाइन कहा जाता हैं

‘हां यह सच है कि छत्तीसगढ़ वन विभाग में भी दो रेंज का चार्ज एक ही रेंजर के पास है।जबकि कार्यालय में अतिरिक्त रेंजर हैं। हर विभाग की कुछ अंदरूनी परिस्थितियां होती हैं।उसी के तहत ऐसा हुआ है।उच्च अधिकारियों को समय-समय पर इन स्थिति-परिस्थितियों से अवगत कराया जाता है किन्तु कुशासन के चलते वो भी गांधारी की तरह अपनी आंख में पट्टी बांध लेते हैं और सिस्टम की दुहाई देकर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह फेर लेते हैं।जबकि डिप्टी रेंजर को कम से कम 5 साल अपने पद पर कार्यरत रह कर अनुभव प्राप्त कर रेन्जर की डीपीसी के लिए योग्य माना जाता है।यहां आलम यह है कि डिप्टी रेंजर में पद्दोन्ति मिलते ही रेन्जर का प्रभार ले रहे है यह सोचनीय है।

डिप्टी रेंजर की सरकारी नौकरी का कैसे होता है चयन और कहां मिलेती हैं नौकरी?
डिप्टी रेंजर का पद केंद्र और राज्य सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधीन वनों के क्षेत्र में कार्य करने वाले विभागों, आदि में होता है।सरकारी संगठनों में डिप्टी रेंजर का पद ग्रुप ‘सी’ स्तर का पद होता है।डिप्टी रेंजर के पदों पर नियुक्ति के लिए चयन केंद्र सरकार के अधीन विभागों या संगठनों के लिए कर्मचारी चयन आयोग द्वारा और राज्यों के मामलों में सम्बन्धित राज्य के कर्मचारी अधीनस्थ सेवा चयन आयोगों द्वारा की जाती है।डिप्टी रेंजर का कार्य होता है कि वह तैनाती के क्षेत्र में वनों में पेड-पौधों,मृदा,नमी,वन्य जीवों के संरक्षण के लिए अपने सहयोगी कर्मचारियों के साथ कार्य करे. डिप्टी रेंजर प्रोन्नति के बाद रेंज ऑफिसर (एफआरओ) के पद पर तैनात किये जाते हैं जो कि सर्किल इंस्पेक्टर (थ्री स्टार रैंक्ड गजटेड ऑफिसर) का पद होता है।वहीं, डिप्टी रेंजर एसआई (टू-स्टार रैंक्ड) के समकक्ष माना जाता है।

डिप्टी रेंजर के लिए कितनी होनी चाहिए योग्यता?
डिप्टी रेंजर बनने के लिए जरूरी है कि उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या बोर्ड से हायर सेकेंड्री उत्तीर्ण हों,साथ ही,वन सर्वेक्षण के क्षेत्र में या किसी राज्य के वन विभाग में वन स्रोत सर्वेक्षण के क्षेत्र में कम से कम दो वर्ष का कार्य-अनुभव होना चाहिए।
डिप्टी रेंजर के लिए कितनी है आयु सीमा?
डिप्टी रेंजर बनने के लिए जरूरी है कि उम्मीदवार की आयु 18 वर्ष से 27 वर्ष के बीच हो,आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अधिकतम आयु सीमा सरकार के नियमानुसार छूट दी जाती है।
डिप्टी रेंजर के लिए चयन प्रक्रिया
डिप्टी रेंजर के पद पर कर्मचारी चयन आयोग द्वारा उम्मीदवारों का चयन आमतौर पर कंप्यूटर आधारित लिखित परीक्षा के आधार पर किया जाता है।लिखित परीक्षा कंप्यूटर आधारित बहुविकल्पीय प्रकृति की होती है जिसमें जनरल इंटेलीजेंस, जनरल अवेयरनेस,क्वांटिटेटिव एप्टीट्यूड और इंग्लिश लैंग्वेज से सम्बन्धित प्रश्न होते हैं,लिखित परीक्षा में (0.50 अंक) की निगेटिव मार्किंग भी होती है।कंप्यूटर आधारित लिखित परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों को न्यूनतम 35% अंक अर्जित करने होते हैं।लिखित परीक्षा के अंकों के आधार पर तैयार मेरिट लिस्ट के अनुसार उत्तीर्ण उम्मीदवारों को दस्तावेज सत्यापन के लिए आमंत्रित किया जाता है।

गंगा प्रकाश


डिप्टी रेंजर को कहां मिलेगी सरकारी नौकरी?
डिप्टी रेंजर का पद केंद्र और राज्य सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधीन वनों के क्षेत्र में कार्य करने वाले विभागों, आदि में होता है।इन विभागों या संगठनों के लिए कर्मचारी चयन आयोग द्वारा और राज्यों के मामलों में सम्बन्धित राज्य के कर्मचारी अधीनस्थ सेवा चयन आयोगों द्वारा की जाती है।इन सभी रिक्तियों के बारे में अधिसूचना समय-समय पर आयोगों द्वारा निकाली जाती हैं।