जनम से लेकर मरण तक इंसान सिर्फ एक ही चीज पाने के लिए संघर्ष करता है।सोचिए क्या?….धन.. सम्मान… स्वास्थ्य….!!जी! सही समझे आप!इसका सही जवाब है सुख। इंसान सिर्फ सुख पाना चाहता है।

रीझे यादव की कलम से

सुख पाने के तौर तरीके और नजरिया भिन्न भिन्न हो सकते हैं।एक ही तरीका किसी के लिए सही तो किसी के लिए गलत हो सकता है।चोर चोरी करके सुख पाता है। पुलिस चोर को पकड़ कर सुख पाता है।शेर हिरण का शिकार करके सुख पाता है तो वही हिरण शेर से अपने प्राण बचाकर सुख पाता है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सुख के अपने अपने मायने है। पिछले दिनों एक अच्छी सोच वाले व्यक्ति से मुलाकात हुई।डेली नीड्स का दुकान चलाते हैं।खाने पीने की कई प्रकार की चीजें रखते हैं। खासकर बच्चों की मनपसंद चीजें केक,चाकलेट्स, बिस्कुट आदि। चूंकि दुकानदार है इसलिए मुनाफे की बात का हमेशा ध्यान रखते हैं।लेकिन बच्चों को लेकर उनका नजरिया थोड़ा अलग है। उन्होंने बताया कि वे बच्चों को कभी भी निराश नहीं करते।चाहे उनके पास पसंद की चीजें खरीदने लायक पैसे हों या नहीं।वो बताते हैं कि कभी बच्चे शौक से केक खरीदने आते हैं जो आमतौर पर डेढ़ सौ के आसपास की कीमत की रहती है। बच्चों के हाथ में सिक्के देखकर समझ जाता हूं कि पैसे पर्याप्त नहीं है।फिर भी पूछता हूं कितने हैं। बच्चे सकुचाते हुए बताते हैं कि 90 हैं या 100 है।फिर मैं बिना गिने उनसे पैसे लेकर गल्ले में डाल देता हूं।चाहे 90 हो या 100…। उन्होंने बताया कि बच्चों को केक बेचकर खुद का 20-30 का नुक़सान हमेशा होता है। लेकिन उनके चेहरों पर केक खरीदकर जो खुशी देखता हूं उससे मुझे सुख मिलता है।उन नन्हें ग्राहकों से हुई नुकसान की भरपाई मैं किसी दूसरे ग्राहक के मुनाफे से कर लेता हूं।

एक दूसरे सज्जन बताते हैं कि वो कभी भी किसी की मदद के लिए तैयार रहते हैं।इसमें उनको सुख मिलता है। बड़ी अजीब बात ये भी है कि किसी किसी व्यक्ति को किसी दूसरे को सताकर भी सुख मिलता है।दूसरों की पीड़ा ऐसे लोगों को सुखानुभूति कराती है।

मजेदार बात ये है कि सुख को इकट्ठा करके नहीं रखा जा सकता।सुख आकस्मिक निधि है।इसे चिरस्थाई रुप से नहीं रखा जा सकता।सुख पाने के यत्न किए जा सकते हैं। लेकिन आपके यत्न से सुख मिलेगा ही इसकी कोई भी गारंटी नहीं है।कुछ लोग सुविधा को सुख मानकर गलतफहमी में पड़े रहते हैं।अमीर आदमी गरीब के पास सुख की कल्पना करता है।गरीब आदमी ये समझता है कि धनवान सुखी है।अमीर आदमी के आंखों में जब नींद नहीं आती तो उसके लिए नींद ही सुख है।गरीब आदमी के पास नींद होती है तो सोने के लिए ठीकठाक व्यवस्था नहीं होती। उसके नजरिए से सोफे और गद्दे मिले तो उसे सुख मिले।भूखे के लिए भोजन में सुख है तो पाचन संबंधी समस्या झेल रहे बीमार के लिए भोजन से दूरी बनाने में सुख है।किसी को हंसाने में सुख मिलता है तो किसी को रुलाने में सुख मिलता है।कोई फटेहाल रहकर भी सुखी है तो कोई मालामाल होकर भी सुख के लिए मरा जा रहा है।मुझे लिखकर सुख मिल रहा है…आपको पढ़कर…कुल जमा मतलब ये है कि सारा दौड़ भाग केवल और केवल सुख पाने के लिए होता है। लेकिन इतना करने पर भी ज्यादातर मायूसी ही हाथ लगती है।सुख केवल स्वप्न जान पड़ता है। हालांकि ईश्वर की बनाई सारी चीजें सुखदाई है केवल उसके प्रयोग कि विधि के ऊपर निर्भर करता है कि वो चीज उपयोग कर्ता के लिए सुख का कारण बनेगा या दुख का। 

कोशिश और कामना हमेशा शुभ की होनी चाहिए।सुख के लिए साधन होना अनिवार्य नहीं है। परिस्थितयों के अनुसार अपने आपको ढालकर भी सुख की प्राप्ति संभव है।उद्देश्य पवित्र होने चाहिए।फिर सर्वत्र सुख ही सुख है।वैसे सुख की कामना मृगतृष्णा के समान है जो शायद ही किसी प्राणी की पूर्ण होती हो।किसी संत के भजन की पंक्ति क्या खूब है…

निर्धन कहे धनवान सुखी

धनवान कहे सुख राजा को भारी

राजा कहे चक्रवर्ती सुखी

चक्रवर्ती कहे सुख इंद्र को भारी

इंद्र कहे श्री राम सुखी

श्री राम कहे सुख संत को भारी

संत कहे संतोष में सुख सब

बिना संतोष के दुनिया दुखारी

मतलब संतुष्टि से बढ़कर कोई सुख दुनिया में नहीं है।कहा भी गया है संतोषं परं सुखं।तृष्णा का तो कोई अंत ही नहीं है।जो है,जितना है उसी में खुश रहने की कला अगर इंसान सीख ले तो शायद दुनिया में कोई दुखी ही ना रहे। सर्वत्र सुख की मंगल कामना के साथ अंत में यही कामना करता हूं.. सर्वे भवन्तु सुखिन:

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *