विश्वास फलदायी होता है

रीझे यादव की कलम से

पिछले दिनों गुजरात के विश्व विख्यात द्वारिकाधीश मंदिर में महादेव देसाई नाम के एक व्यक्ति ने अपनी 25 गायों के साथ भगवान द्वारिकाधीश के मंदिर की परिक्रमा किया और प्रभु का प्रसाद भी ग्रहण किया।ये अनूठा अवसर था जब गौमाता के साथ एक भक्त की मनोकामना पूर्ण करने के लिए मंदिर प्रशासन ने अपना नियम बदला और आधी रात को भगवान द्वारिकाधीश के गर्भगृह का पट खुला।चूंकि भगवान द्वारिकाधीश स्वयं गौसेवक थे इसलिए मंदिर प्रशासन ने अपने नियमों को सरल बना दिया और एक भक्त की वांछित मनोकामना पूर्ण हुई।जन सामान्य के दृष्टिकोण से यह एक सामान्य घटना है।

परंतु मेरे दृष्टिकोण में इस अद्भुत घटना के पीछे ईश्वर के प्रति आस्था की बहुत सुंदर तस्वीर है।कच्छ में रहने वाले गौपालक देसाई जी के अनुसार पिछले वर्ष लंपी वायरस के प्रकोप के चलते उनकी सारी गायें बीमार पड़ गईं‌।इस बीमारी ने समूचे भारतवर्ष में हाहाकार मचाई थी और गौवंश असमय काल कवलित हो रहे थे।ऐसी विषम परिस्थिति में देसाई जी ने ईश्वर की शरण लिया और मन ही मन संकल्प लिया कि अगर उनकी गायें बीमारी के प्रकोप से बच जाती है तो वे उन गायों को लेकर भगवान द्वारिकाधीश के दर्शन लिए जायेंगे। फिर उन्होंने अपनी परेशानी ईश्वर को सौंप दिया और बीमार गायों के ईलाज में लगे रहे।

कुछ समय के पश्चात बीमारी का बुरा दौर खत्म हुआ और उनकी एक भी गाय वायरस के प्रकोप से हताहत नहीं हुई।तब देसाई जी अपने कुछ साथियों को लेकर भगवान द्वारिकाधीश के दर्शन को चल पड़े।उनके निवास से द्वारिका की दूरी लगभग 450 किमी के आसपास थी। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पैदल ही गायों को लेकर चल पड़े।70 दिन की यात्रा के पश्चात उन्हें और उनकी गायों को भगवान द्वारिकाधीश ने दर्शन दिया।

क्या ये घटना आज की भौतिकतावादी युग में ईश्वरीय चमत्कार का एक उदाहरण नहीं है?जिसमें एक साधारण से व्यक्ति की आस्था ने असंभव को संभव कर दिखाया।ये घटना हर तथ्य को तर्क के कसौटी पर कसने वाली और चमत्कार को देखने के बाद प्रमाणिक मानने वाली पीढ़ी के लिए ईश्वर के प्रति आस्था व विश्वास एवं सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्राणियों के प्रति प्रेम का एक अद्भुत उदाहरण भी है।

हालांकि लोग इसको अलग अलग नजरिए से देखकर अलग अलग तरीके से परिभाषित भी कर सकते हैं।सकल ब्रम्हांड जिनके नियंत्रण में है।उस जगत नियंता की कृपा असीम है।जरुरत है उसे महसूस करने की।जिसने सरल हृदय से ईश्वर को पुकारा ईश्वर ने उन सबको अपना साक्षात्कार कराया।चाहे वो स्वामी रामकृष्ण परमहंस हो या गोस्वामी तुलसीदास।

आस्था को परिभाषित करना मुश्किल है।ईश्वर ब्रम्हांड के कण कण में व्याप्त है।ऐसा संत महात्माओं और ज्ञानियों का कहना है।भक्ति धारा से जुड़े लोग इस बात को मानते भी हैं।बात आस्था और समर्पण की हो तो सब संभव हो जाता है।

ईश्वर को पाने के लिए हृदय की सरलता सबसे पहली आवश्यकता है।सरल बनकर देखिए ईश्वर की प्राप्ति सहज हो जायेगी।गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में लिखा भी है-

निर्मल मन जन सो मोहि पावा।

मोहि छल छिद्र कपट नहीं भावा।।

हमारा देश गांवों का देश है।जब कभी आप ग्रामीण क्षेत्रों से गुजरेंगे तो आपको रास्ते पर अनेक छोटे छोटे मंदिर या देवालय मिलेंगे।हर देवालय में भगवान की सुंदर प्रतिमा नहीं मिलेंगी। कहीं कहीं पर आपको अनगढ़ पाषाण ही पूजित होते दिखेंगे।अधिकांश स्थानों पर अनगढ़ पत्थर को सिंदूर पोतकर भोले भाले ग्रामीण देव प्रतिमा के रुप में स्थापित कर देते हैं।आस्था से उसकी पूजा अर्चना करते हैं और मजेदार बात ये है कि उनकी मनोकामनाएं फलित भी होती हैं।किसी बड़े देवालय में जाने की जरूरत नहीं पड़ती। यहां बात ईश्वर के सुंदर स्वरूप के पूजन की नहीं है।केवल जनआस्था की है।

आस्था हर चीज को मुमकिन कर सकती है।आस्तिकता व्यक्ति के हृदय में सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास का प्रसार करती है।नई स्फूर्ति और आशा का संचार करती है।किसी ने क्या खूब कहा है-

इंसानियत आदमी को इंसान बना देती है।

लगन हर मुश्किल को आसान बना देती है।।

लोग यूं ही नहीं जाते मंदिरों में पूजा करने।

आस्था ही पत्थर को भगवान बना देती है।।

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