विष्णु अवतार भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध में देश , काल, वर्ण आदि भेद से है विभिन्नता – पुरी शंकराचार्य

अरविन्द तिवारी की कलम से 

जगन्नाथपुरी (गंगा प्रकाश)- हिन्दुओं के सार्वभौम धर्मगुरु एवं हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता , विश्व मानवता के रक्षक पूज्यपाद पुरी शंकराचार्यजी विष्णुवतार बुद्ध एवं गौतम बुद्ध में विभिन्नता की चर्चा करते हुये संकेत करते हैं कि भगवान् विष्णु कीकट (गया) – क्षेत्र में बुद्ध नाम से प्रसिद्ध हुये। गौतम बुद्ध भगवान् विष्णु के दशावतार के अन्तर्गत बुद्ध से भिन्न हैं। देश , काल , वर्ण , जन्मतिथि के भेद से दोनों में भेद सिद्ध है। भगवान् विष्णु के दशावतार का वर्णन आर्ष ग्रन्थों में इस प्रकार है – मत्स्य , कूर्म , वराह , नरसिंह , वामन , परशुराम , श्रीराम , बलराम , श्रीकृष्ण तथा कल्कि – ये दस अवतार हैं। श्रीबलरामजी के स्थान पर श्रीकृष्णावतार के पश्चात् बुद्धावतार का अथवा श्रीकृष्ण को अवतारी मानकर बलराम सहित श्रीबौद्धावतार का शास्त्रोंमें समुल्लेख है। वनज – जलचर मत्स्य तथा कूर्म , वनज – वनचर और वराह नृसिंह , खर्व – वामन , त्रिरामी – परशुराम , राम , बलराम , सकृपः – बुद्ध ,  अकृपः – कल्कि ये ही दशावतार हैं, श्रीकृष्ण तो साक्षात् अवतारी ही हैं। भगवान् बुद्ध ने यज्ञादि श्रौत – स्मार्त कर्मों को अनधिकृत व्यक्तियों के चपेट से मुक्त करने की भावना से उन्हें अहिंसादि मानवोचित शील का उपदेश देकर यज्ञादि कृत्यों से विमुख किया। उन्होंने मन , वाणी से अतीत तत्त्व की सांकेतिक व्याख्या की। कालक्रम से उनके अनुयायी वेदविरोधी तथा वैदिक यज्ञादि कृत्यों के विद्वेषी हो गये। वैदिक धर्म का स्वयं को अनुयायी मानने वाले पन्थायी हो गये। कर्म , उपासना तथा ज्ञान का सामञ्जस्य पूर्ण स्वरूप प्रायः विलुप्त हो गया। भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र के शब्दों में वेदोक्त कर्म , उपासना तथा ज्ञानकाण्ड में सामञ्जस्य इस प्रकार है। श्रुतियाँ कर्मकाण्ड में क्रिया , कारक और फलरूप से मुझ अद्वितीय सच्चिदानन्द का ही विधान करतीं हैं। उपासना काण्ड में इन्द्रादि उपास्य देवों के रूप में मुझ सर्वव्यापक , सर्वज्ञ , सर्वशक्तिमान् सर्वरूप सर्वेश्वर का ही वर्णन करती हैं और ज्ञानकाण्ड में मुझ अद्वितीय चिदात्म तत्त्व में ही आकाशादि का आरोप करके उनका निषेध करती हैं। सम्पूर्ण श्रुतियों का इतना ही तात्पर्य है कि वे मेरा आश्रय लेकर मुझ में भेद का आरोप करती हैं , मायामात्र कहकर उनका अनुवाद करती हैं और अन्त में सबका अपवाद करके स्वयं भी मुझमें ही शान्त हो जाती हैं। अन्त में अधिष्ठानात्मक अद्वय ब्रह्मात्म रूप से केवल मैं ही शेष रहता हूँ। कर्म , उपासना और ज्ञान काण्ड इन  तीनों का पृथक् – पृथक् शास्त्रीय स्वरूप तथा तीनों में सामञ्जस्य साधने की एवम् वेद विरोधियों और वैदिक मार्ग को विकृत करने वालों के दमन तथा शोधन की चिन्ता देवों को सन्तप्त करने लगी। उन्होंने देवाधिदेव महादेव के धाम उदयाचल पर स्थित कैलास में जाकर भगवान् आशुतोष को आस्था पूर्वक विधिवत् प्रणाम कर उनसे भूमण्डल – स्थित भारत की दुर्दशा का वर्णन करते हुये कहा। यद्यपि भगवान् विष्णु ने बौद्धावतार ग्रहण कर हम देवों के हित की भावना से यज्ञ में अनधिकृत और यज्ञ के रहस्यों से अनभिज्ञ व्यक्तियों की उनके कल्याण की भावना से अहिंसादि पञ्चशील का उपदेश देकर और आत्मा को मन — वाणी से अतीत अनिरूप्य कहकर देवकार्य को ही सिद्ध किया है , तथापि वे बौद्ध यज्ञ निन्दक और विध्वंसक नैरात्म्य निरूपक होकर अभ्युदय – निःश्रेयस के अवरोधक सिद्ध हो रहे हैं।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *