
क्या कमीशन का बंटवारा बना कारण..?या दुकानदारी इसकी वजह..?
देवभोग/गरियाबंद(गंगा प्रकाश):-वैसे तो किसी के माथे पर लिखा नहीं होता कि वह बेवकूफ है। मतलब साफ है कि लोग बेवकूफ होते नहीं, उन्हें बेवकू बना दिया जाता है। बेवकूफ जो बनाते हैं, वे बेवकूफ बना दिए लोगों से ज्यादा समझदार होते हैं, ऐसा भी नहीं है। साधारण से साधारण और पढ़े-लिखे ज्ञानी-महाज्ञानियों के बेवकूफ बनाए जाने के समाचार हमारे समाज में कई बार सामने आते हैं। दरअसल, ये एक कला है, जो प्राचीनतम काल से चली आ रही है। लोगों का मानना है कि ये कला उस समय तक जारी रहेगी, जब तक कि इस धरती पर जीवन रहेगा यानी ये अजर और अमर कला है जिसका अंत होना ही नहीं है।समय, काल और परिस्थितियों के अनुरूप बदलने वाली इतनी महत्वपूर्ण इस विद्या को हासिल करने के लिए किसी डिग्री की आवश्यकता वैसे तो होती नहीं है, मगर आजकल दूसरे नामों से इसे कॉलेजों में पढ़ाया जाने लगा है। बेवकूफ बनाने की इस क्रिया को आप कला और विज्ञान दोनों सहित किसी भी कसौटी पर कसें तो इसे सदा खरा ही पाएंगे। वैसे भी भाइयों-बहनों, जो बंदा बेवकूफ बनाता है, वह अपने आप में इतना कॉन्फिडेंट होता है कि आप अनुमान ही लगा नहीं सकते कि वो आपको बेवकूफ बना रहा है। लेकिन बेवकूफ बनने वाले अधिकांश लोग ये जानते हैं कि उन्हें बेवकूफ बनाया जा रहा है फिर भी वे वह बन ही जाते हैं। बेवकूफ बनाने वाला तो यह जानता ही है कि वह सामने वाले या वाली को बेवकूफ बना रहा है।


खैर, बेवकूफ बनाने के लिए साल में एक दिन भी निर्धारित किया हुआ है। जी हां, ठीक समझ गए आप। मैं आपको बेवकूफ नहीं बना रहा ना अप्रैल की पहली तारीख, इस दिन आपको बेवकूफ बनने और बनाने की छूट है।
छूट से याद आया कि आपको याद ही नहीं होगा कि आपको ‘छूट’ के नाम पर भी बाजार में बेवकूफ बनाया जाता है और आप चेहरे पर विजेता की मुस्कान लिए बेवकूफ बन जाते हैं। ‘खरीदी पर 60 प्रतिशत तक की छूट, इसके साथ वो फ्री, उसके साथ ये फ्री, बाय वन गेट टू’ जैसे सुंदर मनमोहक वाक्य होते हैं, जो आपकी समझ को बेवकूफ बना देने के लिए ऑफर की शक्ल में आते हैं और आप पढ़े-लिखे होकर भी ‘वो’ बना दिए जाते हैं, जो वे चाहते हैं। इतिहास के पन्नों को खंगालें तो इस प्राचीनतम कला के कई महारथी सामने आते हैं। हमारे देश में देवी-देवता तक इस कला से प्रभावित हुए हैं या उन्होंने इस कला का बाखूबी उपयोग किया है। याद करें मोहिनी रूप धारण कर भगवान विष्णु ने असुरों को बेवकूफ बनाया था या भगवान कृष्ण का गोपियों के साथ रासलीला इसी क्रिया का स्वरूप था।
उसके बाद तो ये कला संसार में ऐसी फैली कि आज तक जारी है। ‘सिर रहे सलामत तो पगड़ियां मिलेंगी हजार’ की कहावत के अनुसार बेवकूफों की कमी नहीं है, बस उन्हें बनाने वाला चाहिए। लोकतंत्र में हम भी तो इसी कला के कायल हैं। भाइयों-बहनों, आप खुद समझदार हैं। एक ढूंढने पर हजार मिल जाते हैं। आप भी ढूंढें।
कबीरदासजी के एक दोहे को इसी क्रम में समझना काफी होगा-
‘बुरा जो ढूंढन मैं चला, बुरा न मिलयो कोई।
जो मन खोजा आपनो मुझसे बुरा न कोई।।
बस, समझदार के लिए इशारा काफी है।जैसा कि इनदिनों जनपद पंचायत देवभोग क्षेत्र में जनता को बनाया जा रहा हैं। यंहा पर बताना लाजमी होगा कि इन दिनों जनपद पंचायत देवभोग की भाजपा और कांग्रेस की महागठबंधन से बनी सरकार के बीच तकरार बढ़ गई हैं। ज्ञातव्य हो कि आज से तीन वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव सम्पन्न हुआ जिसमे देवभोग जनपद पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भाजपा नेत्री श्रीमती नेहा सिंघल निर्विरोध अध्यक्ष चुनी गई थी जिनके विरुद्ध चुनाव मैदान में कांग्रेस द्वारा कोई प्रत्याशी नही उतारा गया था इसकी मुख्य बजह यहा थी कि 18 जनपद में 16 सदस्य भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता थे तो वंही दूसरी ओर जनपद उपाध्यक्ष के पद लिए कांग्रेस के कर्मठ कार्यकर्ता सुखचंद बेसरा ने अपना नामांकन दाखिल किया तब भाजपा का अधिकृत प्रत्याशी के रूप में इनके विरुद्ध किसी भी जनपद सदस्य ने अपना नामांकन पत्र दाखिल नही किया था इस तरह श्री बेसरा निर्विरोध उपाध्यक्ष पद के लिए चुने गए।भाजपाईयों की माने तो सुखचंद बेसरा खुद चलकर भाजपा नेत्री नेहा सिंघल के पास चलकर आए थे और उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए श्रीमती सिंघल के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि प्रदेश में हमारी कांग्रेस की सरकार हैं अगर आप मुझे जनपद उपाध्यक्ष बनाते हैं तो मैं सभी जनपद पंचायत के सभी सदस्यों के क्षेत्र में विकासः करवाऊंगा बड़े नेताओं से देवभोग क्षेत्र के लिए विकास के लिए निर्माण कार्य स्वीकृत करवाऊंगा साथ ही प्रत्येक जनपद सदस्य के क्षेत्र में 5-5 लाख रुपए के कार्य भी स्वीकृत करवाऊंगा,उसके बाद नेहा सिंघल सुखचंद बेसरा को अपना समर्थन दे दी थी। हालांकि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव गैर राजनीतिक चुनाव होते हैं। इसमे राजनीतिक पार्टियों द्वारा टिकट विरतण नही किया जाता हैं किंतु जनपद पंचायत चुनाव हो या जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव हो अघोषित रूप से राजनीतिक पार्टी इसमे इनबोल हो जाती हैं।लेकिन देवभोग जनपद पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव में भी यही हुआ था भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच एक महागठबंधन कर जनपद पंचायत की सरकार का गठन किया गया था। आखिर भाजपा या भाजपा नेत्री नेहा सिंघल की क्या मजबूरी थी कि 16 भाजपाई होने के बाबजूद भी भाजपा से जनपद उपाध्यक्ष पद के लिए कोई प्रत्याशी नही उतारा गया था जो कि देवभोग क्षेत्र में काफी चर्चा का विषय बना रहा। नतीजा यहा हुआ कि विगत तीन वर्षों तक यहां सरकार निर्विवाद सुचारू रूप से चलते रही जिसमे अध्यक्ष नेहा सिंघल द्वारा अपने पद का उपयोग करते हुए अपने पति के फर्म को लाभ दिलाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी लाखो रुपए के सोलर लाइट ग्राम पंचायतों को बेचते रहें।दूसरी बार जनपद अध्यक्ष बनी भाजपा नेत्री नेहा सिंघल द्वारा जनपद क्षेत्र में अपने पद का धौंस दिखाकर किये गए कारनामे की लंबी फेहरिश्त है।हैरानी की बात तो यह है कि जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विभाग को भी इनके द्वारा ठेंगा दिखाया गया। पंचायतो में दबाव पूर्वक निर्माण कार्य की सामग्री सप्लाई के करने तिरूपति बालाजी एजेंसी बनाया गया,इसके प्रोप्राइटर नेहा के पति दीपक सिंघल है। जो कि नेहा सिंघल के जनपद अध्यक्ष बनने से पहले इनका मुख्य व्यापार सोने चांदी के आभूषणों का था किंतु श्रीमती नेहा सिंघल के अध्यक्ष बनने के बाद इनका व्यापार सीमेंट,लोहा,गिट्टी और सेनेटाइजर का भी हो गया और बकायदा इनकी सामग्रियों की सप्लाई ग्राम पंचायतों में होती हैं और बकायदा इस एजेंसी का पंजीयन जीएसटी में भी है।जिसका नम्बर 22AAKHD0542C1Z2 नियमानुसार इस एजेंसी को केवल निर्माण कार्य समाग्री स्पालाई की पात्रता है। पर सिंघल परिवार के इस एजेंसी ने 30 से भी ज्यादा पंचायतो में 150 रुपए प्रति लीटर की दर पर 5 हजार लीटर सेनेटाइजर की सप्लाई किया,जबकि इसके लिए केमिस्ट लाइसेंस जरूरी होता है,बगैर मापदण्ड पूरे किए पंचायतो में पानी व सेनेटाइजर । अपने व अपने एक खास सहयोगी के प्रभाव वाले 20 से भी ज्यादा पंचायतो में सोलर लाइट की भी सप्लाई इसी एजेंसी ने किया है।पंचायतो ने 50 लाख का भुगतान कर दिया है। लंबित 1 करोड के भुगतान के लिए इन्हें आये दिन जिले के दफ्तरों में चक्कर लगाते देखा जाता रहा है। बताया जाता है जनपद कार्यलय में बगैर निविदा जारी किए एक।स्कॉर्पियो वाहन लगाकर कर मनमानी किराए का बिल भी वसूला जा रहा है। नियम को ताक में रखकर जनपद के अलावा मनरेगा साखा से भी जनपद अध्यक्ष के भ्रमण के नाम पर बिल आहरण किया गया है। पँचायती राज अधिनियम के मुताबिक पद का दुरुपयोग नही किया जाना है।बता दें कि 14वे वित्त मद से सोलर लाइट खरीदने वाले देवभोग ब्लॉक की 16 पंचायतो से 61 लाख की रिकव्हरी की कार्यवाही कि प्रकिया हाईकोर्ट में याचिका दायर होने के बाद से जारी है,यंहा के सरपंच व सचिव द्वारा नियमों को ताक पर रख कर 14वे वित्त मद की राशि से सोलर लाइट की खऱीदी कर ली गई थी,इसका बाजार भाव अधिकतम 10 से 12 हजार प्रति नग होगा,लेकिन इसके एवज में 17 हजार 500 रुपये प्रति नग के दर पर देवभोग क्षेत्र के तिरुपति बालाजी एग्रो नामक फर्म जो कि जनपद अध्यक्ष नेहा सिंघल के पति का ट्रेडर्स हैं को अब तक दो लाख रुपये का भुगतान बताया गया है। इतना ही नही बिना ग्राम सभा प्रस्ताव के खरीदी किये गये इन सोलर लेम्प को वँहा स्थापित कर दिया गया जंहा पहले से ही बिजली के पोल लगे हुये हैं, जबकि रोशनी के लिये इन जगहों पर बिजली पोल पर बल्ब लगाये जा सकते थे। बाबजूद इसके बिगत तीन वर्षों से जनपद उपाध्यक्ष सुखचंद बेसरा ग्राम पंचायतों की राशि लूटते देख मौन थे उन्होंने इस विषयों पर अपनी मौन स्वकृति दे रखी थी लेकिन अब उन्होंने नेहा सिंघल के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया हैं।
जनपद उपाध्यक्ष ने कलेक्टर के सामने ईस्तीफा सौप कर 7 बिंदुओं में जांच की मांग किया।


कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष व देवभोग जनपद उपाध्यक्ष सुखचन्द बेसरा ने गरियाबंद पहुंचकर कलेक्टर प्रभात मलिक को अपना ईस्तीफा सौपा दिया साथ ही उन्होने देवभोग जनपद में हुए भ्रस्टाचार की जांच की मांग किया है।तीन वर्ष भ्रस्टाचार को मौन समर्थन देने बाले बेसरा ने 7 बिंदुओं में अनियमिता को गिनाने से पहले कहा है कि भाजपा समर्थित जनपद अध्यक्ष द्वारा जनपद को मिले जनकल्याणकारी मदो को सीईओ के साथ मिलकर बंदरबाट किया है।लगभग 3 साल के कार्यकाल में 1 करोड़ से ज्यादा का भस्ट्राचार करने का आरोप लगाया है।हालांकि हाउसिंग बोर्ड में जनपद निधी की 7 लाख रुपए के बंदरबांट पर किसी भी तरह की टिप्पणी नही किया हैं। क्योंकि सारा माजरा काम के बंदरबांट का हैं?हालांकि उन्होंने बताया कि जब जब गड़बड़ियों की भनक लगी भरी बैठक मे उनके द्वारा रोक टोक किया जाता रहा,चूंकि जनपद में भाजपा समर्थित सदस्यों की संख्या ज्यादा है,सदस्य को गुमराह कर आसानी से कई ऐसे प्रस्ताव करा लिया जाता था जिसमे जन कल्याण की उपेक्षा व निज स्वार्थ झलकता था। श्री बेसरा ने कहा कि इनका विरोध करने पर मुझे पद से हटवाने की धमकी दी जाती है।बेसरा ने कहा कि मैं जनपद में हो रहें भ्रस्टाचार को रोकने में नाकाम रहा इसलिए कलेक्क्तर को अपना स्तीफा दिया हूं, साथ ही भ्रस्टाचार की जांच कर दोषियों के खिलाफ उचित कार्यवाही के अलावा पद का दुरुपयोग कर अपने परिवार के सदस्य को अनुचित लाभ दिलाने वाले जनपद अध्यक्ष नेहा सिंघल के विरूद्ध धारा 40 के तहत कार्यवाही कि मांग किया हूं।
ऐसा खोला भ्रष्ट्राचार की कलई

बेरोजगारों के बजाए जनपद के बाबू व अधिकारी की पत्नी को दिया दुकान- लिखित शिकायत में बेसरा ने बताया कि जनपद विकास निधि की राशि से बनाये गए ब्यवसायिक परिसर के निर्माण से लेकर उसके दुकान के आबंटन में भारी अनियमितता बरती गई है।सामुदायिक भवन के पुराने दीवार पर परिसर खडा कर पूर्ण मूल्यांकन किया गया।आबंटन में 5 वे नम्बर की दुकान लिलम ध्रुव जो कि जनपद मनरेगा शाखा में सहायक ग्रेड 3 के रूप में कार्यरत है एवं 8 नम्बर की दुकान कृतिका मरकाम जो की जनपद में पदस्थ सहायक विस्तार अधिकारी पालेश्वर मरकाम की पत्नी के नाम दुकान आबंटित किया गया।बगैर रेंट कंट्रोलर के अभिमत के किराये का दर बाजार भाव से ज्यादा तय किया गया,हद तो तब हो गई जब इस परिसर के किराए दार से पगड़ी के रूप में 30 से 40 हजार रुपये नगद लिया गया।आबंटन लॉटरी सिस्टम से हुआ।जनपद से जुड़े उक्त दो महिलाओं के नाम लॉटरी सिस्टम में शामिल नहीं था,इसका मैंने विरोध किया ,लेकिन जनपद अध्यक्ष सब कुछ जानते हुए भी प्रस्ताव पारित करवा लिया।परिसर आबंटन में किये गए मनमानी से सरकार की छवि धूमिल हुई है।
वाहन के नाम पर नियम विरुद्ध भुगतान
ज्ञापन में लिखा गया है कि मनरेगा कार्य निरीक्षण के नाम पर स्कॉर्पियो वाहन किराए पर लगाया गया है,जो जनपद अध्यक्ष के ज्वेलरी में काम करने वाले कर्मी के नाम पर है।निविदा प्रक्रिया में हेर फेर कर जनपद अध्यक्ष नेहा सिंघल द्वारा पद का दुरुपयोग कर वाहन लगाया गया है।पहले वाहन चालक के नाम पर लाखों रुपये मनरेगा से भुगतान करवाया,दोबारा वाहन नॉकर के नाम पर खरीदी गई,मनरेगा से भुगतान रुका तो , जनपद के अन्य मदो से नियम विरूद्ध भुगतान किया जा रहा है।इसके पूर्व कार्यकाल में इसी तरह वाहन के आड़ में जनपद मद का भारी दुरुपयोग किया गया है।
कागजों में कराया विवेकानन्द युवा
प्रोत्साहन का काम-बेसरा के ज्ञापन में लिखा गया है कि विवेकानंद युवा प्रोत्साहन राशि के 10 लाख रुपये को जनपद अध्यक्ष एवं सीईओ द्वारा परिचितो के बिल के सहारे कागजों में जागरूकता व अन्य आयोजन दिखाकर पुरी राशि का आहरण कर लिया गया है।जबकि सरकार ने इस मद का आबंटन यूवाओ को प्रोत्साहित करने के लिए दिया था।
इसी तरह 14 वे एवं 15 वे वित्त मद से जनपद अध्यक्ष द्वारा अपने निर्वाचित क्षेत्र में मुरम बिछाई व मरम्मत जैसे कार्यो का आबंटन कराया।अपने पति दीपक सिंघल के फर्म श्री तिरुपति बालाजी एजेंसी व तिरुपति ज्वेलर्स समेत अन्य फर्मों के बिल के सहारे कम काम कर ज्यादा रुपए आहरित किया गया।इन सभी कार्यो की मूल्यांकन व बिल की जांच की मांग की गई है।
आरईएस इंजीनियर को बनाया एजेंसी
आरोप है कि जनपद विकास निधि,15 वे वित्त मद के कंटीजेंसी राशि,विधायक सांसद मद के बचत राशि, जनपद स्टाम्प शुल्क, उपकर एवं ब्याज की राशि के लगभग 1 करोड़ राशि का गबन फर्जी बिल लगाकर किया गया है।स्टेशनरी, वाहन,डीजल,के अलावा अन्य कम बजट के मरम्मत व साज सज्जा के कार्य मे खर्च दिखाकर रुपये गबन किया गया है।यंहा तक के जनपद में पदस्थ आरइएस विभाग के उपयंत्री को तक कार्य एजेंसी दर्शा कर उसके नाम पर राशि का भुगतान किया गया है।
सेनेटाइजर के नाम पर लिया लाखों का भुगतान

शिकायत पत्र के मूताबिक कोरोना काल मे जनपद अध्यक्ष के पति के फर्म तिरुपति बालाजी एजेंसी,ग्राम पंचायत व जनपद मद से लाखों का भुगतान किया गया है।मेडिकल व अन्य सरकारी सप्लाई के बावजूद पति के फर्म को फायदा दिलाने का दबाव बनाया गया, अपने पति के फर्म के नाम से जबरिया सेनेटाइजर खपाया गया,ऐसा ही लाभ सोलर लाइट लगवाकर लिया गया है,अध्यक्ष के दबाव से पंचायतो नियम विरुद्ध सोलर लाइट लगवाया, पति के फर्म को भुगतान भी हुआ।जब रिकवरी हुई तो इसका खामियाजा ग्राम पंचायत को भुगतना पड़ा है।सोलर व सेनेटाइजर के नाम पर 30 से 40 लाख का भुगतान लिया गया है।
देर शाम अविश्वास प्रस्ताव लेकर कलेक्टोरेट पहूँची जनपद अध्यक्ष
दिनांक 17-01-2023की सुबह 11 बजे बेसरा के स्तीफे के पेशकश व शिकायत के बाद जनपद अध्यक्ष नेहा सिंघल जनपद सभापति व सदस्यों के साथ देर शाम कलेक्टोरेट पहूँची।उनके हाथों में 15 सदस्यों के हस्ताक्षर युक्त पत्र था,जिसमे जनपद उपाध्यक्ष सुखचन्द बेसरा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने मांग रखी गई थी,जिसे कलेक्टर प्रभात मलिक को सौपा गया।सौपे गए ज्ञापन में जनपद उपाध्याय सुखचन्द बेसरा पर सदस्यों ने कार्यप्रणाली पर असंतोष जता कर अविश्वास प्रस्ताव लाया है
जनपद अध्यक्ष नेहा सिंघल ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि मुझ पर लगाये गए सारे आरोप बेबुनियाद है।जनपद अध्यक्ष का कंही कोई दस्तखत नही होता,न ही मेरे पति कोई काम करते हैं।परिसर का आबंटन सभा मे लॉटरी सिस्टम से हुआ है ,उपाध्यक्ष भी बैठा हुआ था।जँहा भी शिकायत करना है कर ले,आखिर जांच होगा तो सच सामने आ जाएगा।मैंने खुद ही कलेक्टर सर से निवेदन की हूं कि निष्पक्ष जांच करवाई जाए।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव व्यवस्था बन गई भ्रष्ट्राचार की जन्म स्थली?
उल्लेखनीय है कि अभी जनता द्वारा चुने गए जिला पंचायत सदस्य और जनपद पंचायत सदस्य क्रमशः जिला पंचायत सदस्य से लेकर अध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष का चुनाव करते हैं।
सदस्यों द्वारा होने वाले इन चुनावों में धनबल और बाहुबल का अत्यधिक दुरुपयोग होता है। धनबल और बाहुबल के अत्यधिक प्रयोग के अलावा इन चुनावों में सत्तारूढ़ दल के पक्ष में शासन-प्रशासन की मशीनरी का भी खूब प्रयोग होता है। इसलिए इन चुनावों के परिणाम वास्तविक जनादेश की अभिव्यक्ति नहीं करते। महज छत्तीसगढ़ या उप्र ही नहीं,बल्कि पश्चिम बंगाल,राजस्थान, बिहार,पंजाब, हरियाणा,उड़ीसा मध्यप्रदेश और जम्मू-कश्मीर आदि जहां भी त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू है, वहां की कमोबेश यही कहानी है। यह सर्वविदित है कि सत्तारूढ़ दल ही इनमें से अधिकांश पदों को जीतते हैं। वर्तमान परिस्थिति में कोई भी निर्दलीय या विपक्षी प्रत्याशी तभी यह चुनाव लड़ने और जीतने की सोच सकता है जबकि उसके पास जनबल, धनबल और बाहुबल की प्रचुरता हो।
सत्ता-परिवर्तन के साथ ही ब्लॉक प्रमुखों और जिला पंचायत अध्यक्षों के विकेट गिरने लगते हैंI अविश्वास प्रस्तावों की झड़ी लग जाती है और नए सत्तारूढ़ दल के लोग इन पदों को हथिया लेते हैं।
24 अप्रैल,1993 को 73 वें संविधान संशोधन के परिणामस्वरूप त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआI इसीलिए भारत में प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है। पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने की सबसे बड़ी वजह गाँधी जी की ग्राम स्वराज की अवधारणा थीI गाँधी जी मानते थे कि ‘सच्चा लोकतंत्र केंद्र में बैठकर राज्य चलाने वाला नहीं होता, अपितु यह तो गाँव के प्रत्येक व्यक्ति के सहयोग से चलता हैI’ दरअसल, गांधीजी की लोकतंत्र की अवधारणा में शासन-प्रशासन का विकेंद्रीकरण अन्तर्निहित हैI उनके इसी सपने को साकार करने के लिए और लोकतंत्र और विकास को ऊपर से नीचे की जगह नीचे से ऊपर की संभव करने के लिए पंचायती राज व्यवस्था लागू की गयी।
इसमें ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत को शामिल किया गया। ग्राम पंचायत के अध्यक्ष अर्थात प्रधान या सरपंच का चुनाव तो ग्राम पंचायत के मतदाता प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा करते हैं। किन्तु क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष अर्थात ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष अर्थात जिला प्रमुख का चुनाव जनता द्वारा चुने हुए सदस्य करते हैंI इस अप्रत्यक्ष चुनाव के कारण ही पंचायती राज व्यवस्था के दूसरे और तीसरे पायदान इतने प्रदूषित और तमाम बुराइयों के उद्गमस्थल बन गये हैं।जनपद पंचायत सदस्यों और जिला पंचायत सदस्यों की क्रमशः जनपद पंचायत अध्यक्षों और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में मतदान के अलावा कोई सक्रिय और व्यावहारिक भूमिका नहीं होती है। उनके पास कोई कार्यकारी शक्ति, बजट आदि भी नहीं होता है। इसलिए अध्यक्ष के चुनाव में प्रायः अपने मत को एकमुश्त रकम लेकर बेच देते हैं। इसी से ये चुनाव बहुत अधिक खर्चीले हो जाते हैंI इसी खरीद-फरोख्त के कारण इन सदस्यों की सामाजिक छवि भी बहुत अच्छी नहीं मानी जातीI सदस्यों की खरीद-फरोख्त में करोड़ों रुपये लगाकर चुनाव जीते हुए प्रमुख और अध्यक्ष विकास की जगह अपने खर्च की भरपाई में जुट जाते हैंI ये संस्थाएं विकास के नाम पर सफ़ेद हाथी बन जाती हैं और भ्रष्ट्राचार,गबन और खाने-पीने के बड़े अड्डे बन जाती हैं।जैसा इन दिनों देवभोग में देखा जा रहा हैं जंहा शासन की राशि का बंदरबांट करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी गई और राजनीतिक स्टैंड बनाने जनपद उपाध्यक्ष श्रीमती नेहा सिंघल के खिलाफ मोर्चा खोला हैं।जनपद पंचायत देवभोग में भ्रष्ट्राचार का खेल यहा सब गरियाबंद जिला मुख्यालय में बैठे कमीशन खोर अधिकारियों की निगरानी मे चल रहा हैं चूंकि सभी को पता हैं प्रति वर्ष शासन द्वारा पंचायत का ऑडिट भी होता हैं और ऑडिट के समय जिला में बैठें कमीशन खोर अधिकारी सचिवों को ब्लैक मेल करने से नही चूकते और सीधा पैसा अपने हाथों से ना लेकर दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को अपनी ढाल बनाकर उनके टेवल के माध्यम से लेते हैं इतना ही नही ये दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी आज गरियाबंद मुख्यालय सहित धवलपुर जैसे ग्रामों में करोड़ो का बंगला बना बैठे हैं इसलिए ये विकास-कार्यों के लिए आवंटित राशि का कहां, कितना और कैसा प्रयोग करते हैं, उसका ज़मीनी हिसाब-किताब न होकर कागजी लेखा-जोखा ही अधिक होता है। विकास-राशि के बड़े हिस्से का गुल गपाड़ा हो जाता है।अब उदाहरण बतौर देखा जाए तो इन्हें यहा भी पता नही होता कि शासन द्वारा दिया गया वाहन का उपयोग गरियाबंद जिला का दौरा करने दिया गया हैं या अन्य जिला में इन्हें इतना भी पता नही हैं?ज्ञातव्य हो कि पंचायत और जिला पंचायत के चुनावों का गन्दा नाला अंततः विधान-सभा और लोक-सभा चुनावों की नदी में ही मिलता है और उसे भी गँदला कर देता है। इस व्यवस्था में आंशिक परिवर्तन करके जनपद पंचायत सदस्यों और जिला पंचायत सदस्यों के गैरजरूरी और बेवजह खर्चीले चुनाव से बचा जा सकता हैI ग्राम पंचायत पंचायती राज व्यवस्था की वास्तविक रीढ़ हैI केंद्र सरकार और राज्य सरकार की तमाम विकास योजनाओं और नीतिगत निर्णयों के जमीनी कार्यान्वयन में ग्राम पंचायतों की ही निर्णायक और निर्विकल्प भूमिका होती है।उन्हें ही सर्वाधिक मजबूत,महत्वपूर्ण और साधन-संपन्न बनाने की आवश्यकता है। सरपंच का चुनाव जनता सीधे करती हैI उसके पास कार्यकारी अधिकार और वित्तीय शक्तियां और संसाधन होते हैं। उसकाअपने निर्वाचकों के साथ सीधा संपर्क और संवाद तथा उनके प्रति प्रत्यक्ष जवाबदेही भी होती है। इसलिए उसी की तर्ज पर क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव की जगह जनता द्वारा सीधे ब्लॉक अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव कराया जाना चाहिएI ब्लॉक के सभी अध्यक्ष को जनपद पंचायत का सदस्य बनाकर और जिले के सभी ब्लॉक प्रमुखों को जिला पंचायत का सदस्य बनाकर जनपद पंचायत और जिला पंचायत का गठन किया जा सकता है।
साथ ही, इन चुनावों को राजनीतिक दलों के आधार पर नहीं लड़ा जाना चाहिए। राजनीतिक दल इन चुनावों के परिणामों से अपने प्रदर्शन को जोड़कर एड़ी चोटी का जोर लगाते हैं और साम,दाम,दंड, भेद- सब हथकंडे अपनाते हैंI अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर धनबल, बाहुबल और शासन-प्रशासन की मशीनरी का भी जमकर दुरुपयोग करते हैंI परिणामस्वरूप, इन चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता बुरी तरह प्रभावित होती है। ये चुनाव वास्तविक जनाकांक्षा और जनादेश की अभिव्यक्ति में पूर्णतः असफल सिद्ध होते हैंI जब ये चुनाव भी ग्राम प्रधान की तरह गैर-राजनीतिक आधार पर होंगे और राजनीतिक दलों के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से मुक्त होंगे तो जमीनी स्तर पर जनता के बीच सक्रिय और लोकप्रिय नेताओं की नयी पौध तैयार हो सकेगी। यह संयोग मात्र नहीं है कि सन् 1993 में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था प्रारम्भ होने के बाद से राजनीति में धनबल और बाहुबल का प्रयोग और वर्चस्व क्रमशः बढ़ता गया हैI दरअसल, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव राजनीति में धनपशुओं और बाहुबलियों के प्रवेश-द्वार हैंI ये चुनाव जीतकर वे अपने धनबल और बाहुबल के प्रदर्शन से राजनीतिक दलों को प्रभावित करते हैं और विधान-सभा और लोक-सभा के टिकट मार लेते हैंI राजनीति के इन गंदे नालों को बंद करने या इनकी चुनाव-प्रक्रिया में तत्काल बदलाव करने की जरूरत है।इनकी वर्तमान चुनाव-प्रक्रिया में एक और समस्या है। इन पंचायतों में संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। इसलिए लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में वंचित वर्गों की व्यापक भागीदारी होती है। ग्राम पंचायत सदस्य, सरपंच, जनपद पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के रूप में इन वंचित वर्गों के अनेक लोग चुनकर आते हैं। ये चुनाव प्रत्याशी विशेष के लिए आवंटित चुनाव-चिह्न पर मोहर लगाने वाली मतदान प्रणाली से संपन्न होते हैं। इसलिए मतदाताओं और प्रत्याशियों की शैक्षणिक योग्यता से निर्वाचन-प्रक्रिया प्रभावित नहीं होती, लेकिन ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव चुनाव-चिह्न आवंटित न करके प्रत्याशी के नाम के सामने वाले खाने में वरीयता क्रम में 1,2,3 लिखकर होता है। परिणामस्वरूप, अनेक निरक्षर या कम पढ़े-लिखे क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य सही से मतदान नहीं कर पाते और उनके मत बड़ी संख्या में निरस्त हो जाते हैंI इस प्रकार उनकी निरक्षरता न सिर्फ उनकी भागीदारी को सीमित कर देती है, बल्कि जिस मतदाता वर्ग (वार्ड) ने उन्हें चुना है; उनके जनादेश की भी सही अभिव्यक्ति और भागीदारी नहीं हो पाती हैI इसलिए यथाशीघ्र पंचायती राज व्यवस्था में चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता का प्रावधान किया जाना चाहिएI साथ ही, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव भी चुनाव-चिह्न आवंटित करके ही कराये जाने चाहिए; ताकि वंचित वर्गों के लोगों के कम से कम मत निरस्त हों।अगर सचमुच सरकार का विकेंद्रीकरण करना है और लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाना है तो उपरोक्त सुधारों की दिशा में पहलकदमी करने की आवश्यकता है। ऐसा करके ही इन पंचायती राज संस्थाओं में जनता की वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी और लक्षित परिणाम प्राप्त होने की सम्भावना भी बनेगी।