
छुरा (गंगा प्रकाश) – सरस्वती शिशु मंदिर में बालक के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से पांच विषयों के केन्द्रीय पाठ्यक्रम निर्धारित किये गये है ।(1) शारीरिक शिक्षा(2) योग शिक्षा(3) संगीत शिक्षा(4) संस्कृत शिक्षा(5) नैतिक एवं आध्यात्मि
इसके तहत प्रत्येक शनिवार को योग कक्षा का आयोजन किया जा रहा है जिसमे योगाचार्य मिथलेश कुमार सिन्हा के द्वारा भैया बहनों को सूक्ष्म व्यायाम के साथ सहरूर को खोल कर सूर्य नमस्कार के 12 अभ्यासो को विधि एवम मंत्रों के साथ अभ्यास कराया गया। एवम योगाचार्य मिथलेश कुमार सिन्हा द्वारा स्फूर्ति तथा रक्तसंचार सुचारू रखने हेतु ताड़ासन , मानसिक एकाग्रता एवम स्थिरता हेतु ध्रुवासन , कटि प्रदेश मजबूती हेतु कुर्सी आसान , रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु भस्त्रिका प्राणायाम, एलर्जिक समस्या से निजात पाने हेतु तथा नाड़ी गत शुद्धि हेतु अनुलोम विलोम प्राणायाम, उदर रोगों के समन हेतु कपालभाती प्राणायाम, बच्चों के लिए खास उपयोगी तथा मानसिक स्वास्थ एवम दिमाग की क्षमता बढ़ाने हेतु भ्रामरी प्राणायाम, गले और थायराइड के रोगों से बचने एवम स्वर तंत्र को स्वस्थ रखने सिंहासन ,एकग्रता एवम संतुलन हेतु ब्रम्हनाद का अभ्यास कराया गया ।
योगाचार्य मिथलेश सिन्हा ने योग की वैज्ञानिकता को बताते हुए कहा कि योग हमेशा खाली पेट करना चाहिए तथा सर्व प्रथम सुक्ष्म व्यायाम करके जड़ शरीर के समस्त अंगो को खोलना चाहिए उसके बाद ही योगाभ्यास, व्यायाम आदि का अभ्यास करना चाहिए
योगाचार्य ने भैया बहनों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु तुलसी के पत्ते का प्रतिदिन पांच पत्तो का उपयोग करने कहा , तथा खांसी से बचने के लिए गुड में हल्दी का चूर्ण मिलाकर गोली बनाकर खाने का आयुर्वेदिक नुस्खा भी बताया, तथा गैस से निजात पाने हेतु पंचामृत का जिक्र किया जिसमे जीरा, धनिया, मेथी, अजवाइन, सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर प्रातः काल छनकर पीने हेतु बताया। इस अवसर पर संस्था के प्राचार्य संतोष वर्मा ने बताते हुए कहा की विद्या भारती के पांच आधारभूत विषय से भैया बहन बलवान बने, बलिष्ठ बने, अच्छा खिलाड़ी बने, उसकी शारीरिक क्षमताओं का विकास हो, योग विद्या भारती की प्राचीन विद्या है. विश्व भर में इसको अपनाया जा रहा है. विद्या भारती का प्रयत्न है कि हमारे सभी बालक-बालिकाएं योगाभ्यासी बनें. योग के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास उत्तम रीति से होता है – यह विज्ञान से एवं अनुभव से सिद्ध है. प्रत्येक प्रदेश एवं क्षेत्र में योग शिक्षा केंद्र स्थापित किये हैं.
संस्कृत भाषा की ही नहीं विश्व की अधिकांश भाषाओँ की जननी है. संस्कृत साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की निधि भरी पड़ी है. संस्कृत भाषा के ज्ञान के बिना उससे हमारे छात्र अपरिचित रहेंगे. संस्कृत भारत की राष्ट्रीय एकता का सूत्र भी है. बालक देश के भावी कर्णधार हैं. उनके चरित्र बल पर ही देश की प्रतिष्ठा एवं विकास आधारित है. अतः नैतिकता, राष्ट्रभक्ति आदि मूल्यों की शिक्षा और जीवन के आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करने हेतु विद्या भारती ने यह पाठ्यक्रम बनाया है. यह समस्त शिक्षा प्रक्रिया का आधार विषय है. भारतीय संस्कृति, धर्म एवं जीवनादर्शों के अनुरूप बालकों के चरित्र का निर्माण करना विद्या भारती की शिक्षा प्रणाली का मुख्य लक्ष्य है। योग सत्र में विद्यालय के समस्त आचार्य/दीदियाँ उपस्थितथे,जिनमें,किरण,सेवक,हरीश
सीताचरण, विजय,अजयकांत,सरस्वती, भारती, पम्मी,
अंजुरानी,मनोज,मैनाज,टोमन, टेकेश्वरी सभी उपस्थित रहकर योग क्रियाकलाप में भाग लिए।श्री मिथलेश सिन्हा जी योगाचार्य पतंजलि युवा भारत द्वारा प्रत्येक शनिवार को सुबह एक से डेढ़ घंटा सरस्वती शिशु मंदिर छुरा के लिए समर्पित रहता है।
योगाचार्य मिथलेश सिन्हा ने योग की वैज्ञानिकता को बताते हुए कहा कि योग हमेशा खाली पेट करना चाहिए तथा सर्व प्रथम सुक्ष्म व्यायाम करके जड़ शरीर के समस्त अंगो को खोलना चाहिए उसके बाद ही योगाभ्यास, व्यायाम आदि का अभ्यास करना चाहिए
योगाचार्य ने भैया बहनों को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु तुलसी के पत्ते का प्रतिदिन पांच पत्तो का उपयोग करने कहा , तथा खांसी से बचने के लिए गुड में हल्दी का चूर्ण मिलाकर गोली बनाकर खाने का आयुर्वेदिक नुस्खा भी बताया, तथा गैस से निजात पाने हेतु पंचामृत का जिक्र किया जिसमे जीरा, धनिया, मेथी, अजवाइन, सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर प्रातः काल छनकर पीने हेतु बताया। इस अवसर पर संस्था के प्राचार्य संतोष वर्मा ने बताते हुए कहा की विद्या भारती के पांच आधारभूत विषय से भैया बहन बलवान बने, बलिष्ठ बने, अच्छा खिलाड़ी बने, उसकी शारीरिक क्षमताओं का विकास हो, योग विद्या भारती की प्राचीन विद्या है. विश्व भर में इसको अपनाया जा रहा है. विद्या भारती का प्रयत्न है कि हमारे सभी बालक-बालिकाएं योगाभ्यासी बनें. योग के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास उत्तम रीति से होता है – यह विज्ञान से एवं अनुभव से सिद्ध है. प्रत्येक प्रदेश एवं क्षेत्र में योग शिक्षा केंद्र स्थापित किये हैं.
संस्कृत भाषा की ही नहीं विश्व की अधिकांश भाषाओँ की जननी है. संस्कृत साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की निधि भरी पड़ी है. संस्कृत भाषा के ज्ञान के बिना उससे हमारे छात्र अपरिचित रहेंगे. संस्कृत भारत की राष्ट्रीय एकता का सूत्र भी है. बालक देश के भावी कर्णधार हैं. उनके चरित्र बल पर ही देश की प्रतिष्ठा एवं विकास आधारित है. अतः नैतिकता, राष्ट्रभक्ति आदि मूल्यों की शिक्षा और जीवन के आध्यात्मिक दृष्टिकोण का विकास करने हेतु विद्या भारती ने यह पाठ्यक्रम बनाया है. यह समस्त शिक्षा प्रक्रिया का आधार विषय है. भारतीय संस्कृति, धर्म एवं जीवनादर्शों के अनुरूप बालकों के चरित्र का निर्माण करना विद्या भारती की शिक्षा प्रणाली का मुख्य लक्ष्य है। योग सत्र में विद्यालय के समस्त आचार्य/दीदियाँ उपस्थितथे,जिनमें,किरण,सेवक,हरीश
सीताचरण, विजय,अजयकांत,सरस्वती, भारती, पम्मी,
अंजुरानी,मनोज,मैनाज,टोमन, टेकेश्वरी सभी उपस्थित रहकर योग क्रियाकलाप में भाग लिए।श्री मिथलेश सिन्हा जी योगाचार्य पतंजलि युवा भारत द्वारा प्रत्येक शनिवार को सुबह एक से डेढ़ घंटा सरस्वती शिशु मंदिर छुरा के लिए समर्पित रहता है।

