भगवान को पाने मन को मंदिर बनाएं- वैष्णवी रामायणी

छुरा (गंगा प्रकाश)- राम जानकी मानस मंदिर छुरा में चल रहे वें 70 वें रामचरित मानस यज्ञ परायण महायज्ञ के दोपहर कथा प्रवचन में व्यासपीठ से साध्वी वैष्णवी रामायणी ने कहा कि रामायण सिखाती है कि हमारा निज धर्म कैसा  होना चाहिए।पार्वती ने भगवान शंकर को रामकथा के लिए आग्रह किया इसके लिए माता ने अपने पति की बढ़ाई किया तो भगवान शंकर ने शंशय किया।तब पार्वती ने पूर्व जन्म की भूल को सुधारने व रामकथा के प्रति अपना अडिग विश्वास दिलाया।विश्वास दिलाने के लिए उसने अपने पिता हिमालय अर्थात् पर्वत अर्थात् अडिग का परिचय दिया और कहा कि वह अपने वचन पर अडिग रहेगी पलटेगी नहीं। कथावाचिका ने कहा कि जो व्यक्ति किसी के बातों पर आ जाते हैं उस पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि वह कभी भी पलट सकता है लेकिन जो अडिग है उस पर विश्वास करना चाहिए। पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से 14 प्रश्न पूछे जिसमें निर्गुण भगवान और सगुन भगवान एक हैं या अलग अलग।शंकर जी ने कहा कि दोनों एक ही हैं निर्गुण भगवान इंद्रियों से परे हैं उसे इंद्री से देख नहीं सकते, छू नहीं सकते किन्तु वह बिना पांव के चलते हैं।बिना हाथ के अनेकों काम कर लेते हैं।बिना कान के चींटी के पैरों में बंधे पायल की आवाज भी सुन लेते है व बिना आँखों के हमारे कार्यों पर नजर रखे होते हैं। कथा में आगे भगवान के जन्म के अनेकों हेतु बताए जिसमें पांच प्रमुख है जय विजय, नारद श्राप, जलंधर वृंदा, मनु सतरुपा और प्रतापभानु अरिमर्दन। भगवान को लाने के लिए मन को मंदिर बनाने की आवश्यकता है परन्तु हर व्यक्ति का मन मंदिर नहींं बन सकता। संसार में तीन राम हुए, दशरथनंदन राम, बलराम, परसूराम इसी प्रकार तीन भरत हुए, कैकई नंदन भरत, जड़भरत और सकुंंतला पुत्र भरत जिससे इस देश का नाम भारत पड़ा। सुख की अनुभूति एवं आनंद की अनुभूति भरत से होता है।शत्रुघन का नाम लेने से अंत:करण के शत्रु मोह माया ईर्ष्या तृष्णा मत्सर का नाश होता है। कहा जाता है सबसे बड़ा मित्र सबसे बड़ा शत्रु होता है। मित्र बनाना हो तो भगवान को बनाना चाहिए उसे ही हर बात बतानी चाहिए।

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