
रायपुर(गंगा प्रकाश):-भ्रष्टाचार एक ऐसा जहर है जो देश,संप्रदाय,समाज और परिवार के कुछ लोगों के दिमाग में बैठ गया है। इसमें केवल छोटी सी इच्छा और अनुचित लाभ के लिए सामान्य जन के संसाधनों की बरबादी की जाती है। किसी के द्वारा अपनी ताकत और पद का गलत इस्तेमाल करना है, फिर चाहे वो सरकारी या गैर-सरकारी संस्था क्यों न हो। इसका प्रभाव व्यक्ति के विकास के साथ ही राष्ट्र पर भी पड़ रहा है और यही समाज और समुदायों के बीच असमानता का बड़ा कारण बन चूका है। साथ ही ये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रुप से राष्ट्र के प्रगति और विकास में बाधा बनते जा रहा है।दूषित और निन्दनीय, पतित और अवैध आचरण भ्रष्टाचार है। अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा विहित कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक यथोचित रूप से पालन न करके,अवैध ढंग से, विलम्ब से तथा कार्यार्थी से रिश्वत लेकर अनुचित रूप में कार्य करना भी भ्रष्टाचार है। भ्रष्ट आचरण का अभिप्राय ऐसा आचरण और क्रियाकलाप है जो आदर्शों, मूल्यों, परम्पराओं, संवैधानिक मान्यताओं और नियम व कानूनों के अनुरूप न हो। भारतीय संविधान, भारतीय मूल्यों और आदर्शों के साथ किया जाने वाला विश्वासघात भी भ्रष्ट आचरण है। व्यापारी खाद्य वस्तु और पेट्रोलियम पदार्थों में मिलावट करते हैं, तीन रुपये की वस्तु के तेरह रुपये वसूलते हैं, यह भी भ्रष्टाचार ही है। भ्रष्टाचार सामाजिक स्वास्थ्य के लिए विकार उत्पन्न करने का कारण है।बताना लाजमी होगा कि इन दिनों मरवाही वन मंडल का एक ऑडियो बड़ी तेजी से सोशल मीडिया व्हाट्सएप में वायरल हो रहा है जिसमे वर्तमान डीएफओ पटेल साहब को श्रमिकों के अधिकार की भुगतान राशि से या फिर यह कह ले कि दोबारा फर्जी बिल बाउचर बनाकर 22 पर्सेंट राशि देने की बात हो रहा है जिसमे एक वन कर्मचारी जो प्रभारी रेंजर है तथा जिसके सेवा निवृत्त होने में मात्र छः माह ही शेष है उसके और संभवतः दूसरी ओर स्थानीय ठेकेदार के मध्य हुए वार्तालाप का ऑडियो होने की आशंका है। ऑडियो मरवाही वन मंडल क्षेत्र के होने के नाम से वायरल हो रहा है(जिसकी पुष्टि गंगा प्रकाश नही करता हैं कि ऑडियो में आवाजे किसकी हैं)तथा ऑडियो पांच सात दिन पुराना बताया जा रहा है चूंकि मामला भ्रष्टाचार से संबंधित होने के कारण “गंगा प्रकाश” अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए ऑडियो के कुछ अंश को समाचार के रूप मे आम जन तक पहुंचा रहा है साथ ही लिंक के नीचे ऑडियो को भी प्रेषित की जा रही है जो वरिष्ठ अधिकारियों के लिए जांच का विषय हो सकता है?उसमें कथित प्रभारी रेंजर वन कर्मी डीएफओ पटेल को 22 पर्सेंट राशि दिए जाने की बात कही जा रही है यही नही एसडीओ को पांच पर्सेंट और बाबू भैया लोगो को तीन पर्सेंट राशि देने की बात कही जा रही है इस पर वन कर्मी यह कहते हुए बता रहा है कि बैठक में उसने साहब को इतनी राशि मे कार्य संभव नही है होना बताया उसमें पर्सेंट कम करने अनुनय भी किया गया है जिस पर 18 पर्सेंट पर बात तय हुई थी वही डब्ल्यू बी एम में कटे तीन तीन लाख के भुगतान की बात भी कही जा रही है।जिसमे किसी सुंदर पैकरा गोपाल को दिए जाने की बात कही है जिसकी पुष्टि करते हुए कथित प्रभारी रेंजर वन कर्मी के द्वारा डब्ल्यू बी एम सड़क निर्माण में नौ लाख का एडी बाउचर काटे जाने की बात स्वीकार करते हुए श्रमिकों को भुगतान आधा किया जाना बताया जिसमे राकेश नामक सह वन कर्मी की संपूर्ण भूमिका बताई गई है। यही नही छग शासन की महत्वाकांक्षी नरवा योजना के तहत जालीदार ग्रेबियन तथा अन्य कार्यों में दो करोड़ रुपये की लेनदेन जिसमे किसी मिश्रा साहब के द्वारा दो करोड़ की राशि रोके जाने पर तथा उसपर त्रिपाठी के द्वारा हेरा फेरी होने की बात की गई है जबकि वर्तमान मरवाही में पदस्थ डीएफओ अधिकारी पटेल साहब द्वारा एक पैसा भी राशि न लेकर ईमानदार अधिकारी के रूप में अपने आप को बताते है परंतु उक्त ऑडियो में दोनों के द्वारा डीएफओ साहब 22 पर्सेंट की मांग वह भी श्रमिक भुगतान की राशि लेने पर दोनों वन कर्मी हंस रहे है चर्चा इस बात को लेकर भी की जा रही है कि पूर्व डीएफओ त्रिपाठी साहब बीस परसेन्ट लेते थे जिससे वन कर्मियों की जान कल्ला जाती थी परंतु वर्तमान डीएफओ पटेल साहब के द्वारा 22 परसेन्ट लेने पर उनके द्वारा 18 पर्सेंट पर भी जबान हुई थी परन्तु कमीशन खोरी की राशि देने वाले राकेश नामक वन कर्मी उन्हें 22 परसेन्ट की राशि देने की बात स्वीकारी गई है ।वही डिप्टी रेंजर का कमीशनखोरी का हिस्सा को देने पर प्रभारी रेंजर वन कर्मी परेशान हो रहा है वही तत्कालीन अधिकारी त्रिपाठी द्वारा बड़ी राशि गबन की बात ऑडियो में कही जा रही है इसके अलावा बहुत सी वार्तालाप ऑडियो में कही जा रही है इससे ज्ञात होता है कि मरवाही वन मंडल मे लाखों की राशि का नही बल्कि करोड़ो रुपये का गड़बड़ घोटाला करते हुए कमीशन खोरी के नाम भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है।

बार बार बिल बाउचर बनाकर राशि की मचाई लूट
यही नही बिल बाउचर के एक से दो बार कही भी घूमने जाने की बात कह कर दोबारा तिबारा दूसरा बिल बाउचर प्रस्तुत कर गड़बड़ घोटाला और भ्रष्टाचार किया जाना बताया गया है वन कर्मियों द्वारा कमीशन खोरी हेतु दुबारा बिल बाउचर बनाकर गड़बड़ झाला करने के उक्त वायरल ऑडियों को सुनकर आम जन सहित विभागीय वन कर्मी आश्चर्य चकित है तथा चटकारे लेकर चर्चा कर रहे है कि वन विभाग की कार्यशैली में ऐसा प्रतीत होता है कि योजनाओं का आधे से ज्यादा राशि कमीशनखोरी,भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है शेष राशि मैदानी अमलों के द्वारा भ्रष्टाचार गड़बड़झाला घोटाला कर स्वाहा हो जाता है ऐसी परिस्थिति में निर्माण कार्यों सहित अन्य योजनाओं की गुणवत्ता की कसौटी पर खरा उतरने पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है अब देखना होगा कि इस संबंध में ऊपर बैठे अधिकारी क्या कार्यवाही करते है क्योंकि बंदरबांट वाली विभागीय कार्यप्रणाली में इनकी संलिप्तता से भी इंकार नही किया जा सकता केवल यही हो सकता है कि जांच के नाम पर संपूर्ण प्रकरण पर केवल लीपापोती ही की जा सकती है।बताते चले कि हाल ही में दुर्ग वन मंडल के धमधा रेंजर शिवानंद को भ्रष्ट आचरण एवं अनुपात से अधिक चल अचल संपति के रखने के एवज में माननीय न्यायालय द्वारा पांच वर्ष की सश्रम सजा एवं दस हजार रुपये का अर्थ दंड दिया गया है जो एक नाजीर के रूप में देखा जा रहा परंतु वन विभाग में कभी भी किसी भ्रष्ट अधिकारी पर कठोर कार्यवाही नही होती केवल निलंबन, जांच,एवं नाम मात्र रिकवरी कर मामला सेटलमेंट कर लिया जाता है और भ्रष्ट अधिकारी शासन की लाखों करोड़ों की राशि डकार कर वैभव शाली जीवन व्यतीत करते है यह सिस्टम की कमजोरी नही तो और क्या है या फिर यूँ कह लें कि भ्रष्टाचार के इस हम्माम में सब के सब नंगे है।
भ्रष्टाचार रिश्वत और बेईमानी का पर्याय है।
इसके मूल में है अत्यधिक धनोपार्जन की लिप्सा (हवस)। जब धन-सम्पत्ति के संग्रह की व्यापक छूट हो तो आगा-पीछा सोचने की जरूरत ही क्या है ? इस छूट से सच्चाई पर स्वत: पर्दा पड़ जाएगा, न्याय पर सोने का पानी चढ़ जाएगा।यदि धन-संग्रह की खुली छूट न होती, तो न्यायालय के चपरासी, बाबू और रीडर न्यायाधीश से भी अधिक अमीर कैसे होते ? हाजी मस्तान, बखिया और पटेल जैसे तस्कर-सम्राट भारत में कैसे फलते-फूलते ? शेयर किंग हर्षद मेहता भारत के अर्थ-तंत्र की जड़ें कैसे हिला पाता ? प्रशासनिक शिथिलता भ्रष्टाचार की जड़ है। रिश्वत के बिना ‘फाइल’ हिलेगी नहीं और कार्य की सम्पन्नता पर प्रश्नवाचक चिन्ह बना ही रहेगा। लिपिक से लेकर मंत्री तक, लालफीताशाही की गिरफ्त में हैं। उस बंधन को काटने के लिए चाहिए बख्शिश, रिश्वत, मेहनताना, दस्तूरी।
राजनीतिक भ्रष्टाचार
भारत आज भ्रष्टाचार के रोग से ग्रस्त है। यहाँ का राजनीतिज्ञ सूखा-पीड़ित जनों में वितरणार्थ आए अनाज की तो बात ही क्या पशुओं का ‘चारा’ तक खा जाता है। दोषी और भ्रष्ट नेताओं के विरुद्ध मुकदमे वापिस हो जाते हैं । समाजद्रोही तत्त्वों को न केवल सरकार का प्रश्नय मिलता है, अपितु उन्हें स्वच्छन्द पापाचार का लाइसेन्स भी मिलता है, तो भ्रष्टाचार रुकेगा कैसे ?सरकारी कानूनों के नाम पर लोगों के उचित और सही काम भी जब फाइलों में लटकते रहेंगे, परियोजनाओं की पूर्ति के लिए खुलकर कमीशन मिलते और माँगे जाते रहेंगे, सरकारी खरीद में हिस्सा मिलता रहेगा तो लोगों में नैतिकता का बोध[कैसे कायम रह पाएगा ?यदि राजनीति में व्यक्ति, सिद्धांत, विचारधारा एवं संगठन की बजाय धन ही प्रभावी होता जाएगा और बिना पैसे वाले निष्ठावान कार्यकर्ता की अवहेलना की जाती रहेगी, तो सार्वजनिक जीवन में पवित्र मूल्यों की स्थापना कैसे हो पाएगी ?भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी का मानना था कि ‘भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक उदासीनता की स्थिति भी है क्योंकि भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया है । लोग मानने लगे हैं कि भ्रष्टाचार न सिर्फ प्रशासन में बल्कि जीवन के विभिन क्षेत्रों में इस हद तक फैल चुका है कि उसे मिटाया नहीं जा सकता।
इंसान के दिमाग को भ्रष्ट कर रहा है
हम सभी भ्रष्टाचार से अच्छे तरह वाकिफ है और ये अपने या किसी भी देश के लिए में नई बात नहीं है। इसने अपनी जड़ें गहराई से लोगों के दिमाग में बना ली है। ये एक धीमे जहर के रुप में प्राचीन काल से ही समाज में रहा है। ये मुगल साम्राज्य के समय से ही मौजूद रहा है और ये रोज अपनी नई ऊँचाई पर पहुँच रहा है साथ ही बड़े पैमाने पर लोगों के दिमाग पर हावी हो रहा है। समाज में सामान्य होता भ्रष्टाचार एक ऐसा लालच है जो इंसान के दिमाग को भ्रष्ट कर रहा है और लोगों के दिलों से इंसानियत और स्वाभाविकता को खत्म कर रहा है।भ्रष्टाचार पर अंकुश कुछ प्रभावी कदम उठाकर लगाया जा सकता है। सबसे पहले इस बात की जरूरत है कि मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवारों का चुनावी खर्चा सरकार सहन करे। दूसरे, गोपन कानून को संशोधित किया जाए, क्योंकि जितने पर्दे कम होंगे, पाप भी उतने ही कम होंगे। तीसरे, शक्तियों का विकेद्रीकरण हो। शक्तियों के विकेन्द्रीकरण से चीजें पंचायती हो जाएँगी और भ्रष्टाचार करना आसान नहीं होगा। चौथे, रचनात्मक जवाबदेही से युक्त राजनीतिक लोकाचार स्थापित हो । इसके तहत कोई अफसर या राजनेता यह कह कर नहीं बच सकता कि उसने चोरी नहीं की, बल्कि उसके रहते चोरी हुई। यही उसे गैर जिम्मेदार साबित करने के लिए पर्याप्त है और पाँचवें, राजनीतिक कार्रवाइयों के लिए एक गैर-राजनीतिक ‘पीपुल्स प्लेटफॉर्म’ (जन-परिषद्) बने, जो स्थायी विपक्ष की भूमिका अदा करता रहें।
भ्रष्टाचार हैं राष्ट्र के पतन का कारण
आज समाज और राष्ट्र के जीवन में जो समस्याएँ मुँह बाये खड़ी हैं, उनमें भ्रष्टाचार की समस्या बड़ी समस्याओं में एक है। यह समस्या आज भयंकर रूप धारण कर चुकी है। यह समस्त सामाजिक जीवन को विष-कीट के समान विषैला और घुन के समान धीरे-धीरे राष्ट्र को खोखला करती जा रही है।भ्रष्टाचार का अर्थ है-अशुद्ध, अपवित्र और दूषित आचरण। यह शुद्धाचार का विलोम शब्द है। अशुद्ध या दूषित आचरण से शीघ्रतिशीघ्र धनवान् बनने की और ऐश्वर्य तथा वैभवपूर्ण जीवन की अभिलाषा से ही भ्रष्टाचार पनपता है। शुद्धाचरण से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र जहाँ श्रेष्ठ बनते हैं, उन्नत होते हैं, वहीं भ्रष्टाचार से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का पतन होता है। भ्रष्टाचार का कारण मनुष्य का भाव, लोभ, स्वार्थपरता, भौतिक सुख-समृद्धि और विलासिता की अभिलाषा है। व्यक्ति के पास जो कुछ है-वह उसी से तृप्त नहीं होता। वह चाहता है कि मेरे पास अधिक से अधिक धन हो, अधिक से अधिक सुखोपभोग की सामग्री हो, मैं समाज में ऐश्वर्यशाली माना जाऊँ।विज्ञान ने सुख के जो साधन दिए हैं, वे सभी मेरे पास हों, कोठी, कार, नौकर-चाकर सब मुझे प्राप्त हों और रातों-रात कुबेर का कोष मेरे पास आ जाए। फिर मुझे परिश्रम भी अधिक न करना पड़े। इससे व्यक्ति के अहंभाव की भी पुष्टि होती है। इसी के कारण मनुष्य जीविकोपार्जन का नीति-संगत शुद्ध छोड़कर अशुद्ध या भ्रष्ट मार्ग का अनुसरण करने लगता है।
भ्रष्टाचार के रूप
बेईमानी, रिश्वतखोरी, मिलावट और तस्करी भ्रष्टाचार (भ्रष्टाचार पर निबंध) के मुख्य रूप हैं। आज समाज में कोई पक्ष ऐसा नहीं है, जहाँ इन बुराइयों ने घर न कर लिया हो। बेईमानी तो सर्वत्र दिखाई देती है, मिलावट का काम भ्रष्ट व्यापारी करते हैं और रिश्वत का काम सरकारी या अर्द्ध सरकारी अधिकारियों का, मन्त्रियों का, शासन दल के प्रभावी विधायकों का, संसद् सदस्यों का या शीर्षस्थ नेताओं का होता है।इसी प्रकार रातों-रात धनवान् बनने की इच्छा रखने वाले लोग तथा बड़े-बड़े अपराधी तस्करी में संलग्न हैं। तस्करी वस्तुओं में सोना, हीरे, विदेशी घड़ियाँ, लाइलॉन के वस्त्र, बिजली के नवीनतम उपकरण और हीरोइन तथा ब्राउन शूगर प्रमुख हैं। हाजी मस्तान, दाऊद, आदि इसी श्रेणी के लोग हैं।
और आज सरकारी बाबू और अधिकारी अपने जीवन को अधिक सुख-सुविधापूर्ण और विलासितापूर्ण बनाने के लिए अधिक से अधिक धन-संचय करना चाहते हैं। अतः वे जनता का काम करके नहीं देते। फाइलें जहाँ की तहाँ पड़ी रहती हैं, उन्हें कोई देखता तक नहीं। जब सम्बन्धित व्यक्ति उनके पास काम के लिए जाता है तो कभी परोक्ष रूप में और कभी प्रत्यक्ष रूप में वे उनसे पैसों की (रिश्वत की) माँग करते हैं। वह व्यक्ति भी विवश होकर पैसे (रिश्वत) देकर काम करवाता है।रेल में टिकट का आरक्षण हो, नगरपालिका में नक्शा पास करवाना हो, कहीं से अपना बिल बनवाना हो, थाने में रपट लिखानी हो, पुलिस से कोई मदद माँगनी हो, जब तक बाबू या सम्बन्धित अधिकारी की जेब गर्म न कर दी जाए वे टस से मस नहीं होते। भारत के न्यायालय भी रिश्वत के अड्डे हैं।अहलमद, पेशकार, रिकार्ड कीपर सब रिश्वत के बिना काम नहीं करते। आयकर अधिकारी तो व्यापारियों को स्पष्ट कह देते हैं कि इतनी राशि दे दो और हम लेखे पर हस्ताक्षर कर देंगे। उनके पास लाखों का काला धन जमा रहता है।इसी प्रकार व्यापारी रातों-रात धन-कुबेर बनने के लिए मिलावट का सहारा लेते हैं। इसी कारण बाजार में कोई भी खाद्य वस्तु शुद्ध नहीं मिलती। दूधिया दूध में पानी मिलाता है, सरसों के तेल में घटिया दर्जे के तेल मिलाये जाते हैं। वनस्पति में चर्बी मिलायी जाती है। वनस्पति में गाय की चर्बी मिलाने के कारण कुछ वर्ष पूर्व कई कम्पनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे। शुद्ध घी में वनस्पति मिला दी जाती है। पिसे मसालों में रंग मिला दिए जाते हैं।
काली मिर्च में पपीते के बीज और बादामों में आडू या खुमानी की गुठलियों मिला दी जाती हैं। सीमेंट में मिट्टी पीसकर मिला देना, सोडे में और पिसे नमक में सफेद पत्थर पीसकर मिला देना तो साधारण बात हो गई है। कभी-कभी वे वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा कर उसे काले बाजार में बेच देते हैं। कहाँ तक कहें? कुछ चिकित्सक भी शुद्ध दवाइयों की जगह नकली दवाइयां ही रोगियों को देते हैं। जिससे रोगी स्वस्थ होने की अपेक्षा और अधिक रुग्ण हो जाता है। मिलावटी दवाइयों की बात भी नित्य सुनने को मिलती हैं।
तस्करों का तो कहना ही क्या? उनकी तो अपनी दुनिया है। नित्य करोड़ों रुपयों की हेरा-फेरी करते हैं। राजनीतिक नेता भी भ्रष्टाचार पनपाने के दोषी हैं। वे, विशेषकर शासक दल के लोग व्यापारियों से मोटा चन्दा लेते हैं और बेईमानी करने की खुली छूट देते हैं। मन्त्री लोग कितनी रिश्वतखोरी करते है; इसका पता भी सबको है।जैसा कि महाराष्ट्र के एक मुख्यमन्त्री अब्दुल रहमान अन्तुले ने भ्रष्टाचार से करोड़ों रुपये विभिन्न ट्रस्टों के नाम से लिए थे।
आन्ध्र के एक मन्त्री के दामाद ने हजारों एकड़ भूमि हड़प ली और हिमाचल के भूतपूर्व मुख्य मन्त्री रामलाल के सम्बन्धियों ने करोड़ों रुपयों के जंगल काट दिए थे। हरियाणा के मुख्यमन्त्री भजनलाल ने अपने दामाद को कुछ ही दिनों में हरियाणा का बड़ा उद्योगपति बना दिया था।
रक्षा सौदों में भूतपूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी के निकट सहयोगियों ने ही 40-50 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी , जिसे दलाली नाम दिया गया था। यह स्वीडन की बोफोर्स कम्पनी की तोपों और जर्मनी की पनडुब्बियों से सम्बन्धित है। शेयर घोटाला कांड तो भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया था। इसमें हर्षद मेहता ने बैंकों के साथ मिलकर पैंतीस अरब की धोखाधड़ी की।
इतना ही नहीं, शिक्षा के क्षेत्र में भी यह भ्रष्टाचार अपनी जड़ें फैला चुका है, छात्र परिश्रम करके परीक्षा देने के स्थान पर नकल करके उत्तीर्ण होना चाहते हैं। यदि उनके मार्ग में कोई निरीक्षक बाधक बनता है तो चाकू, छुरी और पिस्तौल उसे दिखाया जाता है। कई लालची अध्यापक और निरीक्षक भी पैसा लेकर नकल करवाते हैं। परीक्षा परिषदों और विश्वविद्यालयों के बाबू रिश्वत लेकर क्या-क्या नहीं कर देते
यह सर्वविदित है। अनुत्तीर्ण उत्तीर्ण घोषित कर दिए जाते हैं और द्वितीय श्रेणी वाले प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण जाते हैं।
भ्रष्टाचार रोकने के उपाय
आज भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी जा चुकी हैं। समाज इसकी जकड़ से छटपटा रहा है। जब तक यह बीमारी दूर न होगी राष्ट्र का कल्याण न होगा। इसके लिए पहले सरकारी तन्त्र और कानूनों ‘अत्यधिक कठोर बनाना होगा। पर, कानून बना देने मात्र से कुछ नहीं होगा उनका दृढ़ता से पालन भी कराना होगा।किन्तु, सरकारी कानून से ही यह काम न हो सकेगा। इसके लिए तो समाज में नैतिकता और पवित्रता का वातावरण बनाना पड़ेगा। हम यह जानते हैं कि पाप के भय से और पुण्य के लोभ से ही व्यक्ति बुरे कामों से दूर रहता है तथा शुद्ध आचरण करता है। अतः समाज के व्यक्ति-व्यक्ति में, धर्म की और पुण्य की भावना को, मानवता की भावना को जगाना पड़ेगा। जब व्यक्ति सोचेगा कि भ्रष्टाचार पाप है, मिलावट गहन पाप है। जैसे मिलावट की खाद्य-वस्तु खाकर दूसरा मर सकता है, ऐसे ही मैं भी मर सकता हूँ; तभी वह इस पाप कर्म से विरत होगा।मनुष्य में उदार भावना को जगाने में आज समाचार-पत्र भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। धर्म गुरुओं और सन्त-महात्माओं को भी इस दिशा में अधिक प्रयत्न करना चाहिए। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ “तेन व्यक्तेन भुंजीथाः” की भावना जब व्यक्ति के हृदय में जग जाएगी और तृष्णा के स्थान पर सन्तोष वृत्ति अधिक बढ़ेगी तो भ्रष्टाचार के स्थान के लिए स्थान ही न रहेगा।