
गरियाबंद/फिंगेश्वर/छुरा (गंगा प्रकाश)। क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक झरना घटारानी इन दिनों पूरे शबाब पर है। वनों की हरियाली और बारिश ने इसकी खूबसूरती को और बढ़ा दिया है। इस नजारे का लुक उठाने के लिए पूरे प्रदेश से इन दिनों यहां सैलानी आ रहे हैं। जतमई घटारानी का वाटरफॉल जंगलों से घिरा हुआ है। जंगल के बीचो-बीच स्थित जतमई वाटरफॉल में 40 फीट की ऊंचाई पर पानी नीचे पत्थरों से टकराता है। घटारानी वॉटरफॉल में नीचे कुंड है जहां पर्यटक नहाने का आनंद भी लेते हैं। वॉटरफॉल के ऊपर माता का मंदिर है जहां श्रद्धालु दर्शन करते हैं। मां घटारानी मंदिर से वाटरफॉल को देखकर इसकी नैतिक खूबसूरती से पर्यटक खो जाते हैं। तेज बारिश में पर्यटन का आना जाना बंद कर दिया जाता है। क्योंकि वाटरफॉल में वाटर लेवल बढ़ जाता है और थोड़ी सी भी असावधानी भारी पड़ सकती है। इस प्राकृतिक झरने में विराजमान मां घटारानी का मंदिर पवित्रता और लोगों की आस्था का केंद्र है। झरना का मनोरम दृश्य मन को सुकून और गजब की शांति की अनुभूति कराता है। पर्यटकों के लिए यहां सुंदर कॉटेज और भोजन की भी व्यवस्था है। जतमई और घटारानी दोनों अलग-अलग मंदिर है इन दोनों के बीच लगभग 8 से 10 किलोमीटर का फासला है। इन दोनों मंदिरों के पास खूबसूरत झरने हैं। जो भक्तों और पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।
जतमई माता मंदिर
माता जतमई को वन देवी के नाम से भी जानते हैं इस मंदिर को 16 वी शताब्दी में कमार जनजाति द्वारा बनवाया गया था। जतमई देवी के अलावा यहां मां दुर्गा भगवान राम और नरसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित की गई है। मुख्य मंदिर में जतमई माता विराजमान है। पानी की धारा माता के चरणों को स्पर्श करते हुए बहती है। ऐसा कहा जाता है जहां जलधाराएं माता की सेविका है। यहां किसी भी मौसम में पानी कम नहीं होता है। मंदिर के पास में ही भगवान राम और लक्ष्मण को अपने कंधे पर बैठे हुए विशाल हनुमानजी की प्रतिमा है। जहां दो गुफाएं भी है। जिनमें देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित की गई है।
घटारानी मंदिर
घटारानी मंदिर धने जंगलों में एक पहाड़ी की खोह में विराजमान है। अब खोह के ऊपर मंदिर का निर्माण कर दिया है। मान्यता है कि जंगलों में भटक गए लोगों की यहां पूजा करने से वह अपनी मंजिल तक पहुंच जाते थे। यहां शिवलिंग भी है जिसे घटेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है।