अंतिम संस्कार भी मुश्किल  शमशान तक जाने के रास्ते हैं खराब


बारिश में भीगते भीगते दी आखिरी विदाई

मैनपुर (गंगा प्रकाश)। विकासखंड मुख्यालय में में यूं तो लोग हर रोज किसी न किसी समस्या से जूझते हैं। लेकिन यहां मरने के बाद भी लोगों को मुक्ति नहीं मिल रही है। कारण यह है कि विकासखंड  में कई गांव ऐसे हैं जहां या तो मुक्तिधाम नहीं है। यदि हैं भी तो वहां टीनशेड सहित अन्य सुविधाओं न होने के कारण बारिश में अंतिम संस्कार के लिए जद्दोजहद करना पड़ रही है। ऐसा ही हाल ऐसा ही हाल मैनपुर का है जहां की आबादी लगभग 4500       है  जहा पर पूरी मैनपुर के रहवासी इसी शमशान घाट पर ही निर्भर है ।मगर शमशान घाट जाने तक का भी रास्ता नहीं होने के कारण लोग बहती नदी के सहारे से श्मशान घाट तक पहुंचते हैं जिससे लोगों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और लोगों में इस कारण भारी आक्रोश है।

प्रशासन हर बार मुक्तिधामों की हालत सुधारने का दावा तो करता है। लेकिन वह सिर्फ कागजों में सुधरती है। जबकि जमीनी हकीकत उनके हालात जस के तस रहते हैं।

शमशान जाने के रास्ते पर 5.44 लाख की पुल स्वीकृत है

मैनपुर पंचायत के रह वासियों के लिए मैनपुर से शमशान घाट जाने वाली मार्ग पर 5.44 लाख का  मनरेगा के तहत प्रशासकीय स्वीकृति हुई है जो कार्य भी पूर्ण हो चुका है मगर उस पुल का कोई मतलब नहीं है क्योंकि शमशान घाट तक पहुंचने के लिए जब तक रास्ता नहीं बनाया गया तब तक उसे मार्ग का कोई मतलब नहीं है लोग मजबूरन बमुश्किल नदी के सहारे या कीचड़ बड़े रास्तों से होकर शमशान घाट तक पहुंचते हैं।

ग्राम हरदीभाटा में भी श्मशान घाट जाने तक रास्ता नहीं

ऐसा ही हाल ऐसा ही हाल मुख्यालय से जुड़े ग्राम हरदीभाटा में भी नदी के सहारे लोक शमशान घाट तक पहुंचाते हैं शमशान घाट में ना टीनसेड है ना किसी प्रकार की कोई व्यवस्था है बारिश के दिनों में भी बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है तब कहीं जाकर अंतिम संस्कार किया जाता है।

बता दें जिले में 74 ग्राम पंचायतें  हैं।  मुख्यालय सहित कुछेक पंचायत को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर में मुक्तिधामों की हालत काफी दयनीय है। कई गांव तो ऐसे हैं जहां मुक्तिधाम तक नहीं है। ऐसे में इन गांव के लोगों को अंतिम संस्कार के लिए भी संघर्ष  करना पड़ता है। वहीं बारिश के मौसम में उनका यह संघर्ष और भी बढ़ जाता है। कारण यह है जहां मुक्तिधाम है वहां पहुंचने के लिए पक्का रास्ता नहीं है। यदि रास्ता है तो मुक्तिधाम के अंदर टीनशेड नहीं है। परिणामस्वरुप अंतिम संस्कार के वक्त लोगों को खुद ही टीनशेड अथवा तिरपाल तानना पड़ती है।

 कई जगह तो लोगों को भी अपने खेतों पर अंतिम संस्कार के लिए मजबूर होना पड़ता है। बताया जा रहा है कि गांव में अंतिम संस्कार के लिए जमीन तो चिंहित है। लेकिन उस पर कई लोगो का कब्जा है।

क्या कहते हैं जिम्मेदार

ग्राम पंचायत मैनपुर को मैंने कई बार कह चुका है मगर अभी तक कार्य पूर्ण नहीं हुआ है मैं जल्द ही इसको दिखवाता हूं और कंप्लीट करवाता हूं।

एस डी एम हितेश पिस्दा

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