
फिंगेश्वर(गंगा प्रकाश)।-पूरे छ.ग. में पंचायतों के माध्यम से 33 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू है। सभी ग्राम पंचायतों में 33 प्रतिशत से ज़्यादा महिलायें ग्राम पंचायत जनपद पंचायत जिला पंचायत नगर पंचायत नगर पालिका नगर निगम के सभी पदो पर जनप्रतिनिधि बनी हुई है। फिर 2024 के चुनाव में उसी पंचायत डाटा पर महिला आरक्षण क्यों नहीं दिया जा सकता। जनपद पंचायत फिंगेश्वर की अध्यक्ष श्रीमती पुष्पा जगन्नाथ साहु ने कहा कि आरक्षण का संघर्ष इस देश की महिलाओं के लिए बहुत लंबा रहा है और हर बार उनको मायूसी ही झेलनी पड़ी है। इस बार जब महिला आरक्षण बिल आया तो सशक्तिकरण और राजनीतिक भागीदारी की उम्मीद एक बार फिर जागी। लेकिन आज देश की आधी आबादी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रही है।ऐसा लग रहा हैए मुँह तक आया निवाला ही छीन लिया गया हो । उन्होंने कहा कि आनन.फानन में लाए गए इस बिल के ज़रिये महिलाओं को आखिर आरक्षण कब मिलेगाए ये कोई नहीं जानता। सरकार खुद कह रही है 2029 से पहले संभव ही नहीं। जनगणना और परिसीमन से महिला आरक्षण को जोड़कर महिलाओं को कहा गया है. अभी इंतज़ार लंबा है। सरकार के मंत्रियों और सांसदों ने संविधान के अनुच्छेद 82. 81;3द्ध का हवाला दिया।जिसके अनुसार 2026 का परिसीमन उसके बाद वाली जनगणना मतलब 2031 वाली जनगणना पर ही संभव है। यानी महिला आरक्षण संभवतः 2039 तक ही हो सकता है। श्रीमती पुष्पा जगन्नाथ साहू ने प्रश्न किया कि आखिर 2024 में ये क्यों नहीं हो सकता अगर वाकई में इच्छाशक्ति है तो जैसे दो मिनट के अंदर नोटबंदी तीन काले कानून लॉकडाउन 370 को हटाने जैसे निर्णय लिए गए थे वो अब भी लिये . जायें। अगर इस क़ानून से महिलाओं को वाक़ई सशक्तिकरण और भागीदारी देने की मंशा है तो फिर देर किस बात की अन्यथा यह झुनझुना नहीं तो और क्या है ये साफ़ प्रतीत होता है कि राज्यों में अपनी हार से बौखलाकर इंडिया गठबंधन की ताकत को देखकर मोदी जी परेशान हो गए और अडानी के ऊपर आँच ना आए इसलिए पहले इंडिया बनाम भारत का शिगूफा छोड़ा गया और फिर जब उससे आक्रोश दिखा तो महिला आरक्षण बिल को ले आये। वो कानून जो आज से 10 साल बाद ही शायद क्रियान्वित हो। ये तो कुछ किसानों की आय दोगुनी हर साल दो करोड़ रोज़गार 15 लाख बैंक खातों में 100 स्मार्ट सिटी रुपया. डॉलर का बराबर मूल्य पेट्रोल 40 लिटर और चीन को लाल आँख दिखाने वाले जुमलों जैसा साबित होता दिख रहा है। श्रीमती साहु ने कहा कि यह बिल महिलाओं को अधिकार देता है कि वो ना सिर्फ़ सार्वजनिक जीवन में बल्कि संसद के पटल से महिला सशक्तिकरण महिलाओं के खिलाफहो रहे अपराधों की और महिला सुरक्षा की पुरज़ोर योद्धा बनें। मेरी आशा है कि इस क़ानून के बन जाने के बाद महिला सांसद बेखौफ होकर महिलाओं के खिलाफ बढ़ते हुए जघन्य अपराधों पर बोलेंगी उनकी भर्त्सना कर सकेंगी।