जब रावण ने पत्थर पर लिटा कर अपनी ही बहू का ही बलात्कार किया… वो श्राप जो हमेशा उसके साथ रहा

लेख : मनोज सिंह ठाकुर की कलम से

छुरा(गंगा प्रकाश):-रावण और और उसकी बहन ब्रह्मा के पौत्र विश्रवा ऋषि और दैत्या कैकसी की संतान थी। कश्यप ऋषि के पत्नी दिती से दैत्य हुए थे, और अदिति से आदित्य (देवता)। एक तरह से रक्ष (राक्षस) एक समुदाय था। जहां रावण रक्ष का राजा बना, वहीं उसका सौतेला भाई कुबेर यक्ष का। कुबेर की पूजा होती है।रावण ने अपने इसी भाई से पुष्पक विमान और सोने की लंका छीन ली थी। रावण ब्रह्मा का परपोता, शिव का बहुत बड़ा भक्त था। जब उसे सम्राट सहस्त्र बाहु अर्जुन ने गिरफ्तार कर लिया था, तब स्वयं विष्णु स्वरूप परशुराम उसे छुड़ाने आए। रावण एक कवि और वीणा वादक भी था। रावण कुल, शौर्य, ज्ञान और सामर्थ्य हर तरफ से श्रेष्ठ था। बस उसे उसका अहंकार ले डूबा।रावण एक ” संकर” विवाह की उत्पत्ति था,संकर मतलब माता पिता अलग अलग जाति या वर्ण से आते हो । जैसे एक क्षत्रिय और ब्राह्मण का विवाह वर्ण संकर कहलाता था क्योंकि ये अलग अलग वर्ण है। वेद व्यास भी ऐसी ही सन्तान थे।

रावण की माँ राक्षस और पिता ब्राह्मण थे। वो खुद को राक्षस कहलाना पसंद करता था,उसकी राज्यसभा में कोई भी पिता की तरफ से नही था। इसी से साबित होता है कि वो जन्म से कुछ भी हो कर्म से राक्षस ही था।

सीता स्वयंवर कभी हुआ ही नही इसलिए रावण के घुसने का सवाल ही नही उठता। सीता के बारे में पहली बार शूर्पणखा ने रावण को बताया था। अगर वो सीता स्वयंवर में गया होता तो उसको पता होता कि राम सीता कौन है ! पर शूर्पणखा ने सीता की सुंदरता का बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया तब भी रावण ने ये नही कहा कि मैं सीता को जानता हूँ या देख चुका हूं ।

रामायण में सीता के अपहरण से हर कोई वाकिफ है। कैसे रावण रोज सीता के पास आया करता था और उससे शादी करने के लिए उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश किया करता था और कैसे सीता ने रावण का विरोध किया। कई लोग मानते हैं कि रावण को श्रेय देते है की उसने सीता को बल पूर्वक प्राप्त करने की कोशिश नहीं की, लेकिन केवल उसे शानदार गहने और झिलमिलाते रेशमी कपड़ों के साथ प्रस्तुत करके उसकी मितव्ययिता को मात देने की कोशिश की।

हालांकि कम ज्ञात सत्य यह है कि रावण श्रापित था। उसका श्राप यह था कि यदि वह कभी किसी महिला को उसकी सहमति के बिना छुएगा, तो उसके सिर फट जाएंगे। अप्सराओं की रानी रंभा का विवाह कुबेर के पुत्र नलकुवारा से हुआ था। कुबेर रावण के सौतेले भाई थे। कुबेर अपने ही भाई से बेदखल होने से पहले, शानदार लंका के शासक हुआ करते थे।लने के लिए जा रही थी जब वह रास्ते में रावण से मिली। रावण जिसने ऐसी चमत्कारिक और सुन्दर महिला कभी नहीं देखी थी। रावण ने रम्भा को देख कर सोच की ऐसी सुन्दर महिला को मेरी होना चाहिए ।तो, उन्होंने कहा, “प्रिय महिला, आपका नाम क्या है?” “मैं रंभा, नलकुवारा की पत्नी हूं। आप शायद मुझे नहीं जानते, लेकिन मैं जानती हूं कि आप कौन हैं। आपका भाई, कुबेर, मेरे ससुर है। “” वह मेरे कोई भाई नहीं है, वह एक आधा दानव है, जो एक अपमान है। मैंने उसे अपने सभी परिजनों के साथ बाहर कर दिया, ”रावण ने कुछ घृणा के साथ कहा। रंभा ने कहा, “कोई बात नहीं कि आप उसके बारे में कैसा महसूस करते हैं वह अभी भी आपका भाई है, जो आपको मेरा ससुर बनाता है,” रंभा ने घोषणा की, जैसा कि उसने रावण की प्रतिष्ठा के बारे में सुना था। “यह सोचने के लिए आओ, मुझे विश्वास है कि मैंने सुना है कि मेरे भतीजे ने एक अप्सरा से शादी की थी। तो आपको उसका होना ही चाहिए, “रावण की आँखें अप्सरा शब्द पर भड़कीं,” अप्सरा से विवाह करना अबूझ है। आप एक नाचने वाली अप्सरा हैं, इंद्र का एक शिष्टाचार, और कुछ नहीं। मैंने आपके द्वारा ऋषियों को भेजे जाने के आपके कारनामों के बारे में सुना है ताकि आप उन्हें लुभा सकें और उनका ध्यान बर्बाद कर सकें।

रंभा को रावण के इरादों का एहसास होने पर, उसने भागने की कोशिश की, लेकिन रावण एक योद्धा था, और उसने उसे आसानी से काबू कर लिया। उसका बलात्कार करने के बाद, वह उसे छोड़ कर वापस लंका चला गया। रंभा के वहाँ लेटते ही उसने उस भयावह भाग्य की कल्पना की जो उसके सामने था। हो सकता है उसके बाद उसका पति उसे स्वीकार न करे। वह इतनी व्याकुल थी कि मौत की उम्मीद लिए वह घंटों वहां पड़ी रही।

इस बीच, एक चिंतित नलकुवारा अपनी पत्नी के लिए पूरे जंगल का शिकार कर रहा था। नदी से छह घंटे पहले मिलना था। वह, स्वयं, उन सभी भयानक परिदृश्यों की कल्पना कर रहा था जो भयावह हो सकते थे। अचानक जब उसने जोर से रोने की आवाज़ सुनी तो उसका दिल टूट गया | उसे झाड़ियों में से आ रही गालियाँ सुनाई दीं। उसने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में पहचान लिया। सावधानी से वह देखने के लिए गया और उसे फटे कपड़ों के साथ खूनी पाया । इससे पहले कि रंभा समझा पाती उसने उसे अपनी बाहों में इकट्ठा कर लिया और उसे पकड़ लिया क्योंकि उसने रावण द्वारा उसके साथ की गई कहानी का रोना रोया था। नलकुवारा ने अपने श्रेय के लिए अपनी पत्नी की निष्ठा पर बिल्कुल भी संदेह नहीं किया | वह उसे अपनी बाहो में भहर के अपने घर ले गया। उसने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और तुरंत रावण के दरबार में गया।

रावण ने अपने भतीजे को नहीं पहचाना क्योंकि उसने उसे पहले कभी नहीं देखा था लेकिन युवक अभी तक गुस्से में दिख रहा था इसलिए उसने पूछा, “मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूं?” “आपने पहले ही मेरी काफी मदद की है, आप एक गंदे, बूढ़े आदमी है?” नालकुवारा ने कहा। रावण ने कहा, “आप कहना क्या चाहते है स्पष्ट कीजिये।” “आपने मेरी पत्नी को छुआ!” नलकुवारा ने चिल्लाते हुए कहा । “मैंने नहीं बल्कि तेरी पत्नी ने मुझे बहकाया है तुम नहीं जानते कि ये अप्सराएं स्वभाव से कैसी होती हैं। मुझे तुम्हे उससे शादी करने से पहले चेतावनी देनी चाहिए थी | ”रावण ने यह कह कर अपने आप को सभी अपराधों से मुक्त कर लिया। “मुझे पता है कि मेरी पत्नी एक अप्सरा है लेकिन जब मैंने उसे पाया तो मैंने उसकी अवस्था को भी देखा। एक क्षण के लिए भी मत सोचना कि तुम्हारा कृत्य मुझे बेवकूफ बना देगा। कोई बात नहीं, जो किया गया है, मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचा सकता, लेकिन मैं तुम्हें श्राप देता हु । पवित्र होकर मैं तुम्हें शाप देता हूं कि यदि तुम कभी किसी अन्य स्त्री को उसकी सहमति के बिना स्पर्श करोगे तो तुम्हारे सिर फट जाएंगे। और उसके टुकड़े टुकड़े हो जाएंगे | काश मई आपको बता सकता की आप कितनी भयानक और दर्दनाक मौत मरेंगे।

उसके बाद नलकुवारा अपनी पत्नी को सहारा देने चला गया

विजयादशमी के दौरान यह याद करना ज़रूरी है कि भगवान श्रीराम ने किसी ऐसे रावण का वध नहीं किया था जो विद्वान था, शास्त्रों का ज्ञाता था और अपने राज्य की भलाई के बारे में सोचता था। राम ने ऐसे रावण का वध किया था जो स्त्रियों का सम्मान नहीं करता था, उनके साथ दुर्व्यवहार करता था और बलपूर्वक अपनी बात मनवाता था। आजकल रावण को ‘अच्छा’ साबित करने के लिए उसके ग़लत पक्षों को सही बता कर पेश किया जा रहा है। हाँ, रावण रचित ‘शिव तांडव’ हम आज भी गाते हैं, जिसका अर्थ यह हुआ कि बुरे से बुरे व्यक्ति ने भी अगर कोई अच्छा काम कर दिया तो उस अच्छे को याद रखा जाता है लेकिन उसे अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है।

रावण के संगीत-ज्ञान की प्रशंसा चल सकती है लेकिन ‘उसने सीता को छुआ भी नहीं’ वाला नैरेटिव बहुत ग़लत है क्योंकि रावण का इतिहास उस प्रकार का नहीं रहा है। रावण की शिवभक्ति कई ऋषियों-मुनियों के भी तपस्या से परे थी लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि ‘रावण ने सीता के साथ बलपूर्वक व्यवहार नहीं किया’ वाला नैरेटिव सही है। रावण ने क्या अपहरण करते समय सीता पर अपने बल का प्रयोग नहीं किया था? लंकापति का इतिहास वाल्मीकि रामायण के ही एक अंश से पता चलता है, जो महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित है और जिसे रामकथा का मूल माना जाता है।

रम्भा का नाम आपने सुना होगा। वह स्वर्ग की अप्सरा थी जो तमाम नृत्यों और कई कलाओं में पारंगत थीं। आगे बढ़ने से पहले एक और बात बताना ज़रूरी है कि रावण और कुबेर भाई थे। कुबेर के पुत्र का नाम था नलकुबेर। रम्भा नलकुबेर की प्रेमिका थी और इस रिश्ते से वह रावण की बहू लगती थी। एक दिन जब वह अपने प्रेमी से मिलने जा रही थी, तभी रावण उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उसने रम्भा से आपत्तिजनक बातें पूछी। रावण ने रम्भा से पूछा कि वह इतना सज-धज कर किसको तृप्त करने जा रही है? रावण ने इसके लिए संस्कृत में ‘भोक्ष्यते’ शब्द का प्रयोग किया, जो दिखाता है कि वह स्त्री को उपभोग की वस्तु समझता था।

रम्भा ने रावण को रिश्ते-नातों की याद दिलाई। रावण ने पहले तो मानने से इनकार कर दिया कि वह उसकी पुत्रवधू है लेकिन जब रम्भा ने नलकुबेर के बारे में बताया तो रावण ने फिर आनाकानी शुरू कर दी। उस समय रम्भा काफ़ी डरी हुई थी और देवताओं को भी जीत चुके रावण के बारे में उसे पता था कि वह कुछ भी कर सकता है। डर से काँप रही रम्भा को शायद यह नहीं पता था कि रावण अपनी दुष्टता के कारण रिश्तों-नातों की भी परवाह नहीं करेगा। क्या आपको पता है जब यह साबित हो गया कि रम्भा रावण की पुत्रवधू है तब रावण ने क्या जवाब दिया?

रावण ने कहा कि सारे रिश्ते-नाते सिर्फ़ उन्हीं स्त्रियों के लिए होते हैं जो किसी एक पुरुष की पत्नी हो। उसने रम्भा से कहा कि स्वर्गलोक में तो ऐसा कोई नियम-क़ानून या रिश्ते-नाते नहीं होते। उसके बाद रावण ने रम्भा के जाँघों और वक्षस्थल को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की। साथ ही उसने घमंड से चूर होकर अपनी वीरता का बखान किया और यहाँ तक कहा कि अश्विनीकुमार सहित दुनिया का कोई भी पुरुष उससे बेहतर नहीं है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम जहाँ शबरी के झूठे फल खाते थे, रावण किसी भी स्त्री की तरफ़ सही नज़र से नहीं देखता था। ‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुसार, रावण ने रम्भा का बलात्कार किया।

एवमुक्त्वा स तां रक्षो निवेश्य च शिलातले ।
कामभोगाभिसंसक्तो मैथुनायोपचक्रमे ।। ७.२६.४२ ।। (उत्तरकाण्ड)

इस श्लोक का अर्थ यह है कि राक्षसराज रावण ने रम्भा को बलपूर्वक शिला पर बिठाया और फिर कामभोग में लीन होकर बलपूवक उसके साथ समागम किया। रम्भा के पुष्पहार टूट गए, उसके द्वारा धारण किए गए आभूषण बिखर गए और व्याकुलता से वह पीड़ित हो उठी। रावण रम्भा का बलात्कार करने के बाद उसे वहीं छोड़ दिया और निकल गया। महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं कि उसकी हालत ऐसी हो गई थी, जैसे किसी फूलों की लता को हवा द्वारा झकझोड़ दिया गया हो। उसका श्रृंगार अस्त-व्यस्त हो गया था और उसका शरीर काँप रहा था।

बिलखती हुई रम्भा अपने प्रेमी नलकुबेर के पैरों पर गिर पड़ी थी। रम्भा ने नलकुबेर को बताया कि रावण स्वर्ग जीतने के लिए भारी संख्या में सैन्यबल लेकर आया है और इसी दौरान उसने उसका बलात्कार किया। नलकुबेर महामना थे। उनमें ब्राह्मण सी धर्मशीलता और क्षेत्रीय सी वीरता थी। अपनी प्रेमिका के साथ हुए अत्याचार से क्रुद्ध होकर नलकुबेर ने उसी क्षण रावण को श्राप दिया कि आगे से उसने किसी भी स्त्री के साथ बलपूर्वक समागम करना चाहा तो उसके सिर के टुकड़े हो जाएँगे। अर्थात, रावण तब तक किसी स्त्री के साथ संभोग नहीं कर सकता था, जब तक वह ऐसा न चाहती हो।

अब आपको जवाब मिल गया होगा कि रावण ने सीता से इतनी मिन्नतें क्यों की? उसने क्यों सीता के साथ लंका में जबरन कुछ ग़लत करने की कोशिश नहीं की? इस श्लोक में नलकुबेर का श्राप देखें:

यदा ह्यकामां कामार्तो धर्षयिष्यति योषितम् ।
मूर्धा तु सप्तधा तस्य शकलीभविता तदा ।। ७.२६.५७ ।।
(उत्तरकाण्ड)

सीता-हरण के समय भी रावण ने अपने ही मुँह से कहा था कि किस तरह से उसने इधर-उधर से काफ़ी सारी स्त्रियों का अपहरण कर उन्हें लंका में लाकर रखा है। अगर किसी के भीतर रावण के अच्छे पक्षों की चर्चा करने की ही इच्छा है तो उसकी अच्छे की चर्चा करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन जिस क्षेत्र में वह बुरा था, बलात्कारी था- उस मामले में उसकी बुराई में अच्छा ढूँढने वालों को कम से कम बिना तथ्यों को जाने दुष्प्रचार तो नहीं फैलाना चाहिए।

इस लेख में वाल्मीकि रामायण के अलावा किसी अन्य सोर्स से कुछ भी नहीं लिया गया है। उपर्युक्त कहानी वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में वर्णित है और श्लोक संख्या देख कर आप उसे पढ़ सकते हैं। आप सीता-हरण वाला भाग भी पढ़ सकते हैं, जहाँ रावण ने जोर-जबरदस्ती करते हुए सीता को हाथ लगाया और फिर उन्हें उठा कर अपने रथ में लेकर गया। रावण अक्सर माँ सीता को अपनी वीरता और धन का लोभ भी देता रहता था। लेकिन, यही श्राप का डर था कि उसने सीता को हाथ नहीं लगाया।

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