
गरियाबंद का एक बड़ा मेडिकल शॉप बना उगाही का अड्डा,विभाग के अफसर क्यों बन गए कठपुतली?
जिसमे कार्यवाही नही होना है,उसी केश का भय दिखा कर हो रही उगाही
प्रकाश कुमार यादव
गरियाबंद(गंगा प्रकाश):- दवा विक्रेता फर्म की खरीददारी वैधानिक थी इसलिए पेन किलर की प्रतिबंधित मल्टीडोज की कार्यवाही राजधानी में ठंडी पड़ गई पर इस कार्यवाही के आड में जिले के दवा विक्रेताओं से चल रही है उगाही।गरियाबंद के एक बड़े मेडिकल दुकान बना उगाही का अड्डा।

पिछले माह 5 अक्टूबर को राजधानी के विभिन्न दवा कारोबारियों से पेन किलर की प्रतिबंधित दवा (DICLOFANIC _AQ) का बड़ा खेप औषधीय विभाग ने जप्त कर जांच शुरु कर दिया था।छापेमारी के बाद मामले को लेकर जितना हो हल्ला मचाया गया जांच आगे बढ़ते गई तो मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया।लेकिन राजधानी में हुइ इस कार्यवाही का प्रभाव गरियाबंद जिले में अब भी है।जिस फर्म से दवा जप्त हुई वहा से गरियाबंद के मेडिकल कारोबारी भी लेन देन करते थे। ड्रग विभाग इन खरीदारो की एक सूची बना लिया है।
सूत्र बताते है की राजधानी के फर्म से दवा खरीदी करने वाले मेडिकल व्यवसाई को गरियाबंद के एक मेडिकल में बार बार बुलाया जा रहा है,उन्हे कार्यवाही का डर दिखाकर उगाही शुरू कर दिया गया है।उगाही के इस खेल में मेडिकल कारोबारी के पीछे ड्रग विभाग के ज्वाबदारो का बड़ा हाथ है।चुनावी सीजन में इधर बड़े अफसर व्यस्त हैं,नेताओं की दाल नही गल रही है ऐसे में इस मामले को ड्रग विभाग केश कराने में भिड़ा हुआ है ।नाम न छापने के शर्त पर कुछ कारोबारी ने बताया है की उनसे कार्यवाही की धमकी दे कर रकम ले ली गई है।जो नही दिया है उन्हे बार बार मेडिकल स्टोर तलब किया जा रहा है।अब सवाल उठता है की दवा जिस फर्म ने बनाया,जिसने विक्रय कर रिटेलर को दिया उस पर जब कार्यवाही नही हुई तो जिले के रिटेलर बेचने वाले पर कार्यवाही किस आधार पर होगी।कहा जा रहा है कारोबार में प्रतिद्वंद के कारण एक बड़े मेडिकल कारोबारी दूसरे कारोबारी का दुकान दारी बंद कराने की सुपाड़ी ड्रग विभाग को से रखा है।अवैधानिक कार्यवाही की चर्चा मेडिकल कारोबारियों में जम कर है।लेने देन और धमकी भरे बातचीत का रिकार्डिंग भी संबंधित लोगो के पास मौजूद है।कहा जा रहा प्रताड़ना बढ़ा तो रिकर्डिंग बम भी जल्द फूटेगा।मामले में गरियाबंद ड्रग विभाग से पक्ष लेने की कोशिश की गई पर अफसरों ने फोन नही उठाया।
इस बड़ी वजह से कार्यवाही नही हुई
जिन फर्मों से दवा जप्त किया था उन्हे रायपुर खाद्य एवम औषधीय प्रशासन ने नोटिस देकर संबंधित फर्म से जवाब मांगा था,फर्मों ने जवाब में बताया था की वे कायदे से इन दवा की खरीदी राजस्थान के जिस दवा निर्माण कंपनी से किया था,उनके पास दवा बनाने व बेचने की वैध दस्तवेज थे।लाइसेंस के सारे दस्तावेज भी विभाग को दिया गया।यह भी बताया गया कि बिक्री के वक्त दस्तावेज सभी मेडिकल स्टोर्स के रिटेलर विक्रेताओं को दिखाया गया था।इन्ही आधार पर पक्के में दवा की खरीदी बिक्री हुई थी।हालाकि छापे की कार्यवाही के बाद राजस्थान औषधि विभाग ने इसे मामूली चूक बता कर दवा निर्माण पर फिर से रोक लगा दिया।खरीदी बिक्री कानून उल्लंघन के दायरे में नही आ रहा था,लिहाजा मामला राजधानी के औषधीय विभाग ने राजस्थान जा कर पडताल के बाद आगे कार्यवाही के बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया।
वेटनरी पर विपरीत असर के कारण प्रतिबंध किया गया था पेन किलर
DICLOFANIC _AQ के 30 एमएल वायल का पहले उत्पादन होता था,दर्द की इस दवा का उपयोग मवेशियों के इलाज में भी कर दिया जाता था।लेकिन मवेशियों के मरने के बाद , मरे मवेशी के मांस खाने वाले चिल कौवा की मौत हो जाती थी।2015 में ड्रग के नेशनल आथारटी ने 30 एमएल वायल पर प्रतिबंध लगाते हुए,10 एम एल के वायल उत्पादन की छूट निर्धारित कंटेंट में संशोधन के बाद दिया था।
8 रुपए कीमत की वाली 220 रुपए में बिकती है
इस कार्यवाही के बाद से फर्मों ने खरीददारी के जो बिल पेस किए गए उसमे पता चला की DICLOFANIC _AQ 10 एमएल/ 75 एमजी के एक वायल की खरीदी कीमत लगभग 8 रुपए की है,जबकि इस पर 220 रुपए का एम आर पी दर्ज है। ऐसे ही 25 गुना से भी ज्यादा कीमत की एम आर पी वाली दवा आज भी भारी मात्रा में उपलब्ध है।प्रतिद्वंदी कारोबारी एसे ही एम आर पी वाली अन्य दवा बाजार में खपाने के उद्देश्य से ड्रग विभाग को कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रहा है।