
गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। समीपस्थ ग्राम लचकेरा में काफी वर्षो से प्रतिवर्ष मानसून के प्रारंभ में आने वाले विदेशी पक्षी ठंड की दस्तक के साथ ही श्रीलंका सहित कई देशों से आने वाले पक्षियों का प्रवास काल पूरा हो चुका है। अब वे अपने बच्चों के साथ मीलों का सफर पूरा कर स्वदेश लौटने लगे है। दशकों से यह खास किस्म के पक्षी घोंगिल ओपनबिल्ड स्टार्क विकासखंड के ग्राम लचकेरा को अपने प्रवास का सबसे प्रिय स्थान बना लिया है। वे यहां प्रजनन के लिए आते है पक्षियों का आगमन जून महीने में होता है। यह वह माह होती है जब शिव की आराधना के पवित्र माह सावन की भी शुरूआत होती है। भगवान शिव की आराधना के लिए प्रख्यात कनेकेरा धाम में पक्षियों का आगमन शिव की आराधना से जुड़ा हुआ है। ग्रामीण इन पक्षियों को आस्था से जोड़कर देखते है। बरसात की शुरूआत में इनका आगमन होने के कारण इन्हें मानसून का सूचक भी माना जाता है। अब ठंड की शुरूआत होते ही पक्षी वापस लौटने लगे है। यह अपने घोसले गांव के इमली, बरगद, पीपल, बबूल व बांस के पेड़ो पर बनाते है। स्टार्क पक्षी 10 से 20 हजार की संख्या तक अपने घोंसले बनाते है। एक पेड़ पर 40 से 50 घोसले हो सकते है। प्रत्येक घोसले में चार से पांच अंडे होते है। सितंबर के अंत तक इनके चूजे बड़े होकर उड़ने समर्थ हो जाते है। इनके घोसलो का स्थान भी निश्चित होता है। जहां प्रत्येक वर्ष यह जोड़ा उन्ही टहनियों पर घोसला रखता है। जहां पूर्व के वर्ष में था। इन पक्षियों के प्रवास से यहां के स्थानीय निवासियों में लीवरफ्लूक जैसी बीमारिया जो मनुष्य व उनके पालतु जानवरों में बुखार यकृत की बीमारी पित्ताशय की पथरी, डायरिया आदि पेट से संबंधित बीमारी के कारण बनते है वह इन पक्षियों की मौजूदगी से काफूर हो जाती है। चूंकि इन परजीवियों का वाहक घोंघा मोलस्क होता है जिसके द्वारा खेतों में काम करने वाले मनुष्यों और जलाशयों व चारागाहों में चरने व पानी पीने वाले पशुओं को यह परजीवी संक्रमित कर देता है। इन पक्षियों की मौजूदगी से यहां घोंघे लगभग पूरी तरह से नष्ट हो जाते है। जिससे यह परजीवी अपना जीवनचक्र पूरा नहीं कर पाते और इनसे फैलने वाला संक्रमण रूक जाता है। इन रोगों की यह एक प्राकृतिक रोकथाम है। इन पक्षियों के मल में भी फॉस्फोरस नाइट्रोजन यूरिक एसिड आदि कार्बनिक तत्व होजक है जो पानी के साथ बहकर आस पास के खेतों की उर्वरकता बढ़ाती है। लचकेरा गांव की जलवायु में प्रवासी पक्षियों को प्रजनन काल के लिए उपयुक्त वातावरण मिलता है। जिसके कारण ही यहां पिछले कई दशकों से यह सिलसिला लगातार चलता आ रहा है। मुख्यतौर पर यह पक्षी दक्षिण पूर्व एशिया, श्रीलंका और दक्षिण भारत में पाए जाते है। जिनकी 20 से अधिक प्रजातिया विश्व में मौजूद है।