कवर्धा वन क्षेत्र में अवैध कटाई से लेकर वन सम्पदा का,अवैध दोहनराजनितिक संरक्षण में जिला वन अधिकारी

कवर्धा(गंगा प्रकाश)। – जिले के 16.65 प्रतिसत में वन है,जिसमे अधिकांश कीमती सागोन सीसम व सराई के पेड़ है,जहा सीधे तौर पर वन विभाग का शासन चलता वन अधिनियम के तहत वहा किसी भी कार्य के लिए वन विभाग की अनुमति लेनी होती है ,वन संरंक्षण व वन क्षेत्रो की निगरानी की जिम्मेदारी वन विभाग की होती है लेकिन यहाँ खुद वन विभाग तस्करों व ठेकेदारों से गठजोड़ कर जंगल को वीरान बनाने में लगे हुए है।


प्रमुख समस्या – विभागीय कार्य स्थानीय ठेकेदारों को


वन विभाग मोटी कमीशन ले कर विभागीय कार्य स्थानीय ठेकेदारों को दे देता है,साथ ही उन्हें वन सम्पदा का दोहन करने की छुट भी जिसके चलते अधिकांश ठेकेदार खुले आम वन क्षेत्र से ही मुरुम ,गिट्टी,पत्थर का खनन करता है जिसके चलते वन सम्पदा की हानी होती है साथ ही वन जिव रहवास पर असर पड़ता है ,जिसका उदहारण भोरमदेव अभयारण क्षेत्र में एक रसूखदार ठेकेदार के द्वारा अवैध क्रेसर की सञ्चालन व खुदाई का मामला आया था,लगातार कई समाचार पत्रों में इस सम्बन्ध में समाचार प्रकाशित किये जाने पर खनिज विभाग ने क्रेसर सिल किया था लेकिन वन विभाग की संलिप्ता के चलते अवैध खुदाई आज भी जारी है।


वनों की अवैध कटाई और कब्जा – जिले के लगभग सभी वन क्षेत्रो में वन अधिकारी और तस्करों का गठजोड़ दिखाई पड़ता है ,जिसके माध्यम से सागोन सीसम व सराई की लकडियो के साथ साथ कीमती वन उत्पाद की भी तस्करी की जाती है,साथ ही लकड़ी तस्कर के साथ साथ वन क्षेत्रो में अवैध कब्जा करवाने वाले भूमाफिया भी सक्रीय है जो अधिकारियो के साथ मिल कर जंगल की कटाई करा वहा कई सालो का कब्ज़ा दिखा कर वन पट्टा बनवाने की राह को आसन करते है जिसकी एवज में मोटी रकम वसूला जाता है ,स्थानीय रेंजर से लेकर जिले के बड़े अधिकारियो तक पहुचती है।


फर्जी वृक्षारोपण व गुजरती भेड़ो की चराई – जिले में विभाग के द्वारा बड़े पैमाने पर वृक्षा रोपण किया जाता है ,लेकिन अधिकांश कागजो और जमीनी हकीकत से दूर है, इसके साथ ही बड़े स्तर पर गुजराती भेड़ चरवाहे पालक बरसात के दिनों में जिले के वन क्षेत्रो में हजारो की तादात में भेड़ बकरी लेकर जंगल में पहुचते है जिसका बाकायदा वन विभाग के रेंजरो के साथ ठेका होता है,एक बार तय रकम देने के बाद जंगल में पुरे चार महीने कही भी भेड़ बकरिया चराने को स्वतंत्र रहते है कभी कभी समाचार पत्रों में खबर लगने पर दिखावे के लिए कुछ रकम का चालन बना खाना पूर्ति कार्टर है जिसका लाभ विभाग को ये मिलता है की जो पौधे कभी लगे भी नहीं वो भी चराई में सामिल हो जाते है ।

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