कारावास के काल को जीवन का शांति काल मानकर श्रेष्ठ आचार एवं विचार के द्वारा जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है – न्यायाधीश उदयलक्ष्मी सिंह

कवर्धा(गंगा प्रकाश)।अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्रीमती सत्यभामा अजय दुबे के निर्देशानुसार जिला जेल में आयोजित विधिक साक्षरता शिविर में विशेष न्यायाधीश पाॅक्सो अधिनियम सुश्री उदयलक्ष्मी सिंह परमार ने कहा कि कारावास के काल को जीवन का शांति काल मानकर श्रेष्ठ आचार एवं विचार के द्वारा जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है। शिविर में उपस्थित 206 बंदियों को बताया गया कि अशिक्षा, अज्ञानता या निर्धनता न्याय पाने में बाधक नही होती है ऐसे व्यक्ति जो अनुसूचित जाति जन जाति वर्ग से संबंधित है या जिनकी वार्षिक आय डेढ़ लाख रूपए से कम है, अधिवक्ता नियुक्त करने में असमर्थ होने पर अपने प्रकरण में विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से अधिवक्ता नियुक्त करा सकते है। विशेष न्यायाधीश द्वारा पाक्सो अधिनियम के महत्वूपर्ण प्रावधानों को सुक्ष्मतापूर्वक स्पष्ट करते हुए बताया गया कि विधि में 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति की सहमति का कोई महत्व नहीं होता है। यदि कोई व्यक्ति 18 वर्ष से कम आयु के बालक के सहमति के साथ उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित करता है अथवा सुखपूर्वक दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर रहा है तब भी ऐसा व्यक्ति बलात्संग के अपराध का दोषी होता है। अपराध किसी परिस्थिति में क्षणिक आवेश में किए गए कृत्य का दुष्परिणाम होता है। आवश्यक है कि आवेश पर नियंत्रण रखे, किसी भी प्रिय या अप्रिय बात पर तुरंत प्रतिक्रिया न दे। भूतकाल में हुए किसी कृत्य के परिणामस्वरूप वर्तमान समय का उपयोग सकारात्मक चिंतन के साथ करते हुए श्रेष्ठ भविष्य के निर्माण पर विचार करना आवश्यक है। कार्यक्रम में बंदियों द्वारा पूछे गए विधिक प्रश्नों का उत्तर दिया गया। उप-अधीक्षक जिला जेल श्री बंजारे द्वारा आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे अनुभवों और संदेशों की सहभागिता से हम सदैव लाभान्वित होते रहेंगे।

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