
गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। अगहन मास का प्रथम गुरूवार को लक्ष्मी जी का उत्सव के रूप में पूरी श्राद्धा एवं व्रत-पूजा पाठ के साथ मनाया गया। अब लगातार 4 गुरूवार को अगहन बृहस्पती का पर्व मनाया जावेग। श्रद्धा एवं पूजा अर्चना के चलते पूरे कार्तिक माह में स्नान की परंपरा निभाकर भगवान विष्णु की पूजा की गई। अब पूरे अगहन महीना में भगवान विष्णु की अर्धागिनी महालक्ष्मी की पूजा की परंपरा निभाई जाएगी। आज से अगहन गुरूवार प्रारंभ हो गया है। इस पूजा में महिलाएं एक दिन पहले यानी बुधवार को घरों की साफ सफाई कर दूसरे दिन भोर में दिया जलाकर मॉ लक्ष्मी की पूजा आराधना करेंगी। श्रद्धालुओं ने कहा कि अगहन माह में देवी भगवती की उपासना शुभ फलदाई होती है। अगहन के प्रत्येक गुरूवार का बड़ा महत्व होता है। इसके चलते इसकी विधि विधान से पूजा की जाती है। इस बार अगहन माह में कुल चार गुरूवार होंगे। 30 नवंबर को अगहन का प्रथम गुरूवार पर्व मनाया गया। इस दिन विभिन्न नक्षत्रों का सहयोग भी बन रहा है। चंद्रमा को अर्ध्य देने से चंद्र देव की कृपा प्राप्त होती है। अगहन गुरूवार में व्रत रखने का विधान है इस दिन स्नान आदि भोर में और शाम को चंद्रमा के उदित होने के बाद पुष्प, नैवेद्य, धूप, दीप प्रज्जवलित कर भगवान गणेश व लक्ष्मी की पूजा की जाएगी। 29 नवंबर को बुधवार की शाम लोगों ने घर के द्वार से लेकर पूजा स्थल तक चांवल आटे के घोल से मॉ लक्ष्मी के पद चिन्ह और आंगन में अल्पना सजाए गए। गुरूवार की सुबह सूर्य निकलने से पहले महिलाएं स्नान कर मॉ लक्ष्मी की पूजा अर्चना की गई। यही क्रम दोपहर व शाम को भी चला। इस बीच मॉ को तीनों टाइम अलग अलग भोग अर्पित किया गया। अगहन माह में खास कर गुरूवार को घर में साफ सफाई, मन वचन कर्म से पूरी सात्विकता रहने पर मॉ लक्ष्मी का आगमन होता है। यही वजह है कि महिलाएं हर बुधवार को घर द्वार को रंगोली से सजाकर पूजा स्थल तक देवी के पद चिन्ह बनाकर गुरूवार को भोर में उनका आव्हान करती है। ऐसी मान्यता है कि अगहन गुरूवार में मॉ लक्ष्मी पृथ्वी लोक का विचरण करने आती है। इस समय घर द्वार की विशेष साज सज्जा के साथ दूसरों की विधि व्रत पूजा अर्चना करने से घर में समृद्धि आती है। छ.ग. में अगहन बृहस्पती पूरे जोर शोर एवं पूजा अर्चना से मनाई जाती है। बुधवार को ही घर को गोबर से लीप लें या फिर गीले कपड़े से पोंछ लें। इसके बाद एक ऊंचे पीढे़ या चौकी पर बीच में थोड़े गेंहू या चावल रखें। उसके ऊपर तांबे या पीतल के लोटे में पानी भर कर सुपारी, कुछ पैसे और दूर्वा घास डाल लें। लोटे में आम का पत्ता डालकर बीचों-बीच एक नारियल रखें। हल्दी-कुमकुम लगाएं और मौली धागा बांध दें। मॉ लक्ष्मी की प्रतिमा या फोटो को पूर्व या उत्तर दिशा में मुंहकर स्थापित करें।