कोयला और शराब के बाद अब चावल और डीएमएफ की बारी, एसीबी ने दोनों मामलों में दर्ज की FIR


रायपुर(गंगा प्रकाश)।कोयला और शराब घोटाले के बाद एन्टी करप्शन ब्यूरो (ACB) और आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने चावल और डीएमएफ घोटाले में FIR दर्ज की है. एजेंसी ने 16 और 17 जनवरी को अपराध दर्ज किया है। जिसमें अधिकारी नेताओं और कारोबारियों को आरोपी बनाया गया है।डीएमएफ फंड घोटाले में एफआईआर नंबर 01/2024 में धारा- 120-B-IPC, 409-IPC, 13(2)-PRE, 13(1)(a)-PRE और चावल घोटाले में 02/2024 में धारा 120-B-IPC, 420-IPC, 12-PRE के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।बता दें कि कुछ महीने पहले ईडी ने दावा किया था कि छत्तीसगढ़ ‘मार्कफेड’ के पूर्व प्रबंध निदेशक और एक स्थानीय चावल मिल मालिक एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने ‘ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के फायदे’ के लिए 175 करोड़ रुपये की रिश्वत जुटाई थी।

क्या था चावल घोटाला ?

आरोप था कि छत्तीसगढ़ राज्य राइस मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने छत्तीसगढ़ राज्य विपणन संघ लिमिटेड (मार्कफेड) के अधिकारियों के साथ मिलीभगत की और विशेष प्रोत्साहन का दुरुपयोग करने और रिश्वत में करोड़ों कमाने की साजिश रची, ईडी की जांच में यह भी पता चला कि विशेष भत्ता 40 रुपये से बढ़ाकर 120 रुपये प्रति क्विंटल करने के बाद 500 करोड़ रुपये के भुगतान जारी किए गए। जिससे 175 करोड़ रुपये की रिश्वत मिली, जिसे रोशन चंद्राकर ने एमडी मार्कफेड की सक्रिय सहायता से एकत्र किया था।

छत्तीसगढ़ में 175 करोड़ रुपये का चावल घोटाला ED का सनसनीखेज दावा

ईडी ने दावा किया है कि छत्तीसगढ़ ‘मार्कफेड’ के पूर्व प्रबंध निदेशक और एक स्थानीय चावल मिल मालिक एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने ‘ऊंचे पदों पर बैठे लोगों के फायदे’ के लिए 175 करोड़ रुपये की रिश्वत जुटाई हैं।पिछले कुछ महीनों में ईडी ने कोयला लेवी, शराब शुल्क और एक अवैध ऑनलाइन जुआ ऐप से जुड़े ‘घोटाले’ का पर्दाफाश करने का दावा किया है।
ईडी ने दावा किया है कि इन सभी प्रकरणों में स्थानीय नेताओं और नौकरशाहों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये की रिश्वत राशि जुटायी गई। उसने अब तक उपरोक्त मामलों में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के कई अधिकारियों, एक पुलिस अधिकारी और कुछ अन्य को गिरफ्तार किया है।ईडी ने एक बयान में आरोप लगाया कि धान से चावल निकालने की प्रक्रिया पर प्रोत्साहन राशि से जुड़े नवीनतम ‘घोटाले’ में उसे वित्तीय वर्ष 2020-21 अक्टूबर को मार्कफेड के पूर्व प्रबंध निदेशक मनोज सोनी, राज्य धान मिल मालिक संघ के कोषाध्यक्ष रोशन चंद्राकर समेत उसके कुछ पदाधिकारियों, जिला विपणन अधिकारियों (डीएमओ), कुछ मिल मालिकों के खिलाफ तलाशी के बाद इसी तरह की साठगांठ का पता चला था।
उसने कहा कि धनशोधन रोकथाम अधिनियम के तहत उसकी आपराधिक कार्रवाई राज्य की राजधानी रायपुर में एक अदालत में आयकर विभाग द्वारा दर्ज शिकायत पर आधारित है। कर विभाग ने आरोप लगाया था कि छत्तीसगढ़ धान मिल मालिक एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने राज्य विपणन फेडरेशन लिमिटेड (मार्कफेड) के अधिकारियों के साथ साठगांठ की तथा उस विशेष प्रोत्साहन राशि का दुरूपयोग करने की साजिश ‘रची’ जो धान से चावल निकालने की प्रक्रिया पर मिल मालिकों को राज्य सरकार द्वारा प्रति क्विंटल चावल पर 40 रुपये के रूप में दी जाती है। छत्तीसगढ़ को चावल के अधिक उत्पादन के लिए ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है।
ईडी ने कहा कि 40 रुपये की इस राशि को काफी बढ़ाकर 120 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया तथा उसका भुगतान 60-60 रुपये की दो किश्तों में किया जाता था। ईडी ने कहा कि अपने कोषाध्यक्ष चंद्राकर के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ चावल मिल मालिक एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने मार्कफेड के प्रबंध निदेशक सोनी के साथ मिलीभगत की तथा मिल मालिकों से धान से चावल निकालने पर प्रति क्विंटल पर 20 रुपये की रिश्वत वसूलना शुरू किया।उसने कहा कि जिन मिल मालिकों ने नकद राशि दी, उनका ब्योरा जिला मिल मालिक एसोसिएशन ने संबंधित डीएमओ के पास भेजा। उसने कहा कि इन मिल मालिकों के बिल मिलने पर डीएमओ उनका संबंधित जिला मिल मालिक एसोसिएशन से प्राप्त विवरण से मिलान करते थे और यह सूचना मार्कफेड प्रमुख कार्यालय तक पहुंचाई जाती। उसने आरोप लगाया है कि ‘जिन मिल मालिकों ने एसोसिएशन को नकद राशि दी, केवल उनके ही बिल को मार्कफेड ने भुगतान के लिए मंजूर किया।ईडी की जांच में पाया गया कि विशेष भत्ते को प्रति क्विंटल 40 रुपये से बढ़ाकर 120 रुपये प्रति क्विंटल किये जाने के आधार पर 500 करोड़ रुपये जारी किए गए तथा उससे 175 करोड़ रुपये की ‘रिश्वत’ जुटाई गई जिसे चंद्राकर ने ‘ऊंचे पदों पर बैठे लोगों’ के फायदे के लिए सोनी की सक्रिय मदद से जमा किया। जांच एजेंसी ने कहा कि उसने छापे के दौरान ‘अभियोजन योग्य सामग्री, डिजिटल उपकरण तथा बिना लेखा-जोखा की 1.06 करोड़ रुपये की नकदी जब्त किए।

डीएमएफ घोटाला

साल 2020 में प्रस्ताव तैयार कर 5050 हेक्टेयर भूमि में मक्के की फसल को प्रोत्साहित करने के नाम पर 26 अक्टूबर को एक करोड़ 99 लाख 97 हजार रुपये का हाइब्रिड मक्का बीज क्रय किया गया था,इसी तरह 2021 में फिर से उतने ही रकबे के लिए मक्का बीज खरीदे गए थे, कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इतने रकबे में मक्का लगाया ही नहीं गया था, वहीं नागरिक आपूर्ति निगम और मंडी के भी आंकड़े बताते हैं कि मक्का खरीदी पिछले दो सालों में नहीं हुई थी।

2018 में मक्के की खरीदी

नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से जिले में शुरू की गई थी, दो से तीन साल मक्का खरीदा गया,इसमें अधिकतम 800 हैक्टेयर में उत्पादित मक्का खरीदा गया था,इसकी धरमजयगढ़ और लैलूंगा क्षेत्र से खरीदी की गई थी। लेकिन हाईब्रिड मक्का बीज क्रय कर उसे पूरे नौ तहसील में बांटने की बात कही जा रही थी।

कोरबा जिले में कलेक्टर और उनके मातहतों को हर टेंडर में 40% कमीशन मिला, ठेकेदारों को पहुंचाया गया बेजा लाभ

बताते चलें की छत्तीसगढ़ में पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान कोरबा जिले में डीएमएफ के पैसों का बड़े पैमाने पर बंदरबांट किया गया है। ED की शिकायत पर EOW ने जो मामले दर्ज किए हैं, उसके मुताबिक इस अनियमितता में तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू समेत अनेक विभागीय अफसर भी संलिप्त पाए गए हैं। शिकायत के मुताबिक कई टेंडर्स में अफसरों को सीधे-सीधे 40 फीसदी रकम पहुंचाई गई है।  
उल्लेखनीय है कि, ED के क्षेत्रीय कार्यालय रायपुर के प्रतिवेदन रिपोर्ट पर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने अपराध क्रमांक-02/2024 धारा 120बी, 420 भादवि एवं धारा-7,  धारा-12 के तहत् मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। ED की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरबा जिले में DMF से टेंडर्स के आंबटन में बड़े पैमाने पर पैसों का लेन-देन हुआ है। गलत ढंग से टेंडर की दरें तय कर ठेकेदारों को सीधे लाभ पहुंचाया गया, जिसके कारण प्रदेश शासन को बड़ी आर्थिक हानि हुई है।

निजी कंपनी को 15 से 20 प्रतिशत कमीशन दिया गया

प्रतिवेदन में यह भी साफ-साफ कहा गया है कि, अफसरों को कुल टेंडर दर में से लगभग 40 प्रतिशत रकम दिए गए। इतना ही नहीं बल्कि एक निजी कम्पनी को भी इन निविदाओं के लिए 15 से 20 प्रतिशत अलग-अलग दरों से कमीशन दिया गया है। इसी तरह प्रदेश के कई जिलों में डी.एम.एफ. में भारी वित्तीय अनियमितता बरतकर शासन को नुकसान पहुंचाया गया है।

कई गुना ज्यादा दामों के बिल पास किए गए

प्रतिवेदन के मुताबिक, कोरबा में तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू के साथ उनके मातहत अफसरों ने निविदा भरने वाले के साथ सांठगांठ की। डीएमएफ के पैसों से कराए जाने वाले कामों की निविदाओं के आबंटन में, बिल पास कराने के लिए, सामानों के वास्तविक मूल्य से कई गुना ज्यादा दाम के बिल पास किए गए। जिन ठेकेदारों को इन अफसरों ने लाभ पहुंचाया उनमें संजय शेण्डे, अशोक कुमार अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, रिषभ सोनी और बिचौलिए मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल, शेखर के नाम शामिल हैं।

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