
500 रुपये में धर्म परिवर्तन, मुफ्त में बेटी की शादी, देंगे इलाज का खर्चा…राम को लेकर कही ऐसी बात
जयपुर(गंगा प्रकाश)। प्राचीन काल से ही मिशनरी धर्मांतरण, जिसे अक्सर नरम धर्मांतरण कहा जाता है, भारत में सक्रिय है। चाहे वह 18वीं शताब्दी में देश के दक्षिणी हिस्से में औपनिवेशिक उदय हो या मदर टेरेसा के आगमन के साथ मानव सेवा के आदर्श वाक्य का उदय, चावल की थैली की रणनीति और भी बहुत कुछ। आज तक, मिशनरी प्रचारक गैर-ईसाइयों को तैयार करने और उन्हें अपने विश्वास में परिवर्तित करने के लिए कई हथकंडे अपना रहे हैं। हाल के वर्षों में, हिंदू समाज मिशनरियों की धर्मांतरण गतिविधियों के प्रति अधिक सतर्क हो गया है। परिणामस्वरूप, मिशनरियां अन्य धर्मों के लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए अनसुनी रणनीति का उपयोग कर रही हैं।
गौरतलब हो कि हाल में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 13 बड़े ईसाई मिशनरी संगठनों को विदेशी अनुदान विनियमन अधिनियम के तहत मिली चंदा लेने की अनुमति रद्द कर दी। इनमें से अधिकतर संगठन झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व के राज्यों में सक्रिय थे और विदेशी चंदे का दुरुपयोग धर्मांतरण कराने के लिए कर रहे थे। हमेशा की तरह इंटरनेशनल क्रिश्चियन कंसर्न जैसे संगठनों ने इस फैसले पर हाय-तौबा मचानी शुरू कर दी। अब इसके आसार हैं कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर ईसाई मिशनरियों के काम को सुगम बनाने वाले विदेशी संगठन भारत में कथित रूप से घटती धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई रिपोर्ट जारी कर दें।भारत सरकार पर दबाव बनाने के लिए वे ऐसा करते रहते हैं। यह सही है कि भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें अपने पंथ के प्रचार का भी अधिकार शामिल है, लेकिन हर अधिकार की तरह इस अधिकार की भी कुछ सीमाएं हैं। यह जानना भी जरूरी है कि यह अधिकार किन परिस्थितियों में दिया गया था।ज्ञात हो कि भारत में धर्म के प्रति लोगों में काफी आस्था है।भारत को हिंदुओं का देश कहा जाता है लेकिन यहां हर धर्म के लोग रहते हैं।चाहे मुस्लिम हो या ईसाई, भारत में हर धर्म के लोग एक साथ रहते हैं। लेकिन कई बार अलग-अलग हिस्सों से धर्म परिवर्तन की खबरें सामने आती हैं। भारत में इंसान अपनी मर्जी से धर्मान्तरण कर सकता है।जब एक शख्स की आस्था दूसरे धर्म में हो जाती है तो वो अपनी मर्जी से उस धर्म का अनुसरण कर सकता है। लेकिन कई बार एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों को लालच देकर भी उनका धर्मांतरण करवाने की कोशिश जैन करते देखे जाते हैं।राजस्थान के भरतपुर से ऐसी ही एक खबर सामने आई है।यहां अचानक ही विश्व हिंदू परिषद् के लोगों को जानकारी मिली कि सोनार हवेली में ईसाई धर्म के लोग हिंदुओं को लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं। जब इस जानकारी के आधार पर विश्व हिंदू परिषद के लोग मौके पर पहुंचे तो वाकई जानकारी सही साबित हुई,इसके बाद तो जमकर हंगामा शुरू हो गया।
देवी-देवताओं का कर रहे थे अपमान
भरतपुर के मथुरा गेट के पास से ये घटना सामने आई,सोनार हवेली में दस से पंद्रह ईसाई समुदाय के लोग करीब साढ़े तीन सौ हिंदुओं को बरगला कर उनका धर्म परिवर्तन करवा रहे थे,जब हिंदू परिषद के सदस्य अंदर गए तो उन्होंने सुना कि ईसाई समुदाय हिंदू देवी-देवताओं के ऊपर अभद्र टिप्पणी कर रहे थे,वो कह रहे थे कि ईसा मसीह के पास सारे समस्याओं का समाधान है, ब्रम्हा, विष्णु, राम आदि इसमें कुछ नहीं कर सकते।

कई तरह के प्रलोभन
जब इन बातों को सुनकर हिंदू परिषद के लोगों ने हंगामा शुरू किया, तो वहां मौजूद महिलाएं उनके साथ मारपीट करने लगीं,इतना ही नहीं, वीडियो बनाने के दौरान लोगों के मोबाइल छीने जाने लगे. पुलिस जब मौके पर पहुंची, तब जाकर माहौल शांत हुआ।बाद में पता चला कि करीब साढ़े तीन सौ हिंदुओं को ईसाई बनाए जाने का कार्यक्रम था।इसके लिए हिंदुओं को कई तरह के प्रलोभन दिए गए थे। किसी को पैसे, किसी की बेटी की मुफ्त में शादी तो किसी की बिमारी के इलाज का खर्चा देने का लालच दिया गया था।
गांधी ईसाई मिशनरियों के क्रियाकलापों से थे खिन्न
महात्मा गांधी ब्रिटिश शासन के दौरान ईसाई मिशनरियों के क्रियाकलापों से खिन्न थे। उन्होंने अपने संस्मरणों में लिखा है कि किस प्रकार राजकोट में उनके स्कूल के बाहर एक मिशनरी हिंदू देवी-देवताओं के लिए बेहद अपमानजनक शब्दों का उपयोग करता था। गांधी जी जीवन भर ईसाई मिशनरियों द्वारा सेवा कार्यों के नाम पर किए जाने वाले धर्म परिवर्तन के विरुद्ध रहे। जब अंग्रेज भारत से जाने लगे तो ईसाई मिशनरी लॉबी ने प्रश्न उठाया कि स्वतंत्र भारत में क्या उन्हें धर्म परिवर्तन करते रहने दिया जाएगा, तो गांधी जी ने इसका जवाब न में दिया। उनके अनुसार लोभ-लालच के बल पर धर्म परिवर्तन करना घोर अनैतिक है। इस पर मिशनरी लॉबी ने बहुत हंगामा किया।
आजादी के समय भारत बेहद गरीब देश था और वित्तीय सहायता के लिए पाश्चात्य ईसाई देशों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों निर्भर था, इसलिए भारत को मिशनरियों के आगे झुकना पड़ा। इसके परिणामस्वरूप संविधान में अपने पंथ के प्रचार का अधिकार कुछ पाबंदियों के साथ दिया गया, लेकिन एक के बाद एक सरकार मिशनरी लॉबी के सामने मजबूर होती गई।
नए हथकंडों का प्रयोग किया गया शुरू
धर्म परिवर्तन कराने के लिए पैसे का इस्तेमाल तो आजादी से पहले से भी होता था, परंतु आजादी के बाद और भी बहुत तरह के प्रयोग किए जाने लगे। मिशनरियों ने अपने अनुभवों से पाया कि भारतीय धर्मों के लोग अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं से भावनात्मक तौर पर इतने गहरे जुड़े हैं कि तमाम प्रयासों के बावजूद भारत में करोड़ों की संख्या में धर्म परिवर्तन संभव नहीं हो पा रहा है। इस कठिनाई से पार पाने के लिए नए हथकंडों का प्रयोग शुरू किया गया, जैसे मदर मैरी की गोद में ईसा मसीह की जगह गणेश या कृष्ण को चित्रांकित कर ईसाइयत का प्रचार शुरू किया गया, ताकि आदिवासियों को लगे कि वे तो हिंदू धर्म के ही किसी संप्रदाय की सभा में जा रहे हैं। ईसाई मिशनरियों को आप भगवा वस्त्र पहनकर हरिद्वार, ऋषिकेश से लेकर तिरुपति बालाजी तक धर्म प्रचार करते पा सकते हैं। यही हाल पंजाब में है, जहां बड़े पैमाने पर सिखों को ईसाई बनाया जा रहा है। पंजाब में चर्च का दावा है कि प्रदेश में ईसाइयों की संख्या सात से दस प्रतिशत हो चुकी है।

आदिवासी समाज का बड़े पैमाने पर हो चुका है धर्मांतरण
ईसाई मिशनरी विदेशी पैसे का इस्तेमाल करते हुए पिछले सात दशकों में उत्तर-पूर्व के आदिवासी समाज का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करा चुके हैं। यही सब मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में भी चल रहा है, जहां इन गतिविधियों का फायदा नक्सली भी उठाते हैं। विदेशी पैसे का धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल देश की सुरक्षा और स्थिरता के लिए बड़ी चुनौतियों को जन्म दे रहा है। विकसित पाश्चात्य ईसाई देशों की सरकारें धर्मांध कट्टरपंथी ईसाई मिशनरी तत्वों को धर्म परिवर्तन के नाम पर एशिया और अफ्रीका जैसे देशों को निर्यात करती रहती हैं। इससे दो तरह के फायदे होते हैं। एक तो इन कट्टरपंथी तत्वों का ध्यान गैर ईसाई देशों की तरफ लगा रहता है, जिस कारण वे अपनी सरकारों के लिए कम दिक्कतें पैदा करते हैं और दूसरे, जब भारत जैसे देशों में विदेशी चंदे से धर्मांतरण होता है, तो धर्मांतरित लोगों के जरिये विभिन्न प्रकार की सूचनाएं इकट्ठा करने और साथ ही सरकारी नीतियों पर प्रभाव डालने में आसानी होती है।
विदेशी चंदा प्राप्त कर रहे चार एनजीओ पर भी हुई थी कार्रवाई
उदाहरण के लिए भारत- रूस के सहयोग से स्थापित कुडनकुलम परमाणु संयंत्र से नाखुश कुछ विदेशी ताकतों ने इस परियोजना को अटकाने के लिए वर्षों तक मिशनरी संगठनों का इस्तेमाल कर धरने-प्रदर्शन करवाए। तत्कालीन संप्रग सरकार में मंत्री वी नारायणस्वामी ने यह आरोप लगाया था कि कुछ विदेशी ताकतों ने इस परियोजना को बंद कराने के लिए धरने-प्रदर्शन कराने के लिए तमिलनाडु के एक बिशप को 54 करोड़ रुपये दिए थे। इस मामले में विदेशी चंदा प्राप्त कर रहे चार एनजीओ पर कार्रवाई भी की गई थी।
मिशनरी संगठनों द्वारा फैलाया गया दुष्प्रचार
इसी प्रकार का दूसरा उदाहरण वेदांता द्वारा तूतीकोरीन में लगाए गए स्टरलाइट कॉपर प्लांट का है। इस प्लांट को बंद कराने में भी चर्च का हाथ माना जाता है। आठ लाख टन सालाना तांबे का उत्पादन करने में सक्षम यह प्लांट अगर बंद न होता, तो भारत तांबे के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गया होता। यह कुछ देशों को पसंद नहीं आ रहा था और इसलिए उन्होंने मिशनरी संगठनों का इस्तेमाल कर पादरियों द्वारा यह दुष्प्रचार कराया कि यह प्लांट पूरे शहर की हर चीज को जहरीला बना देगा। इस दुष्प्रचार के बाद हिंसा भड़की और पुलिस फायरिंग में 13 लोगों की मौत हो गई। नतीजा यह हुआ कि यह प्लांट बंद कर दिया गया। यह अभी भी बंद है और 18 साल बाद भारत को एक बार फिर तांबे का आयात करना पड़ रहा है।
देश को गहरे नुकसान से बचाने के लिए विदेशी चंदे पर पूरी तरह रोक के साथ- साथ मिशनरी संगठनों की गतिविधियों पर सख्त पाबंदी आवश्यक है। धार्मिक सभाएं करने से पहले ऐसे संगठनों के लिए स्थानीय पुलिस-प्रशासन को जानकारी देना आवश्यक होना चाहिए। अपनी र्धािमक सभाओं में ऐसे संगठनों द्वारा दूसरे धर्मों के देवी-देवताओं और प्रतीकों का प्रयोग करने को छल की श्रेणी में रखा जाना चाहिए और धार्मिक नगरों और साथ ही सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ठिकानों के आसपास उन पर कड़ी निगाह रखी जानी चाहिए, क्योंकि धर्मांतरण सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने के साथ देश की सुरक्षा के लिए चुनौती बन रहा है।
हिंदू घरों से भगवान की मूर्ति हटाकर जीसस की प्रेयर कर बना रहे क्रिश्चियन
देश के सिर्फ पांच राज्यों में ही धर्म परिवर्तन कराना कानूनन अपराध होने के कारण इसकी विष-बेल लगातार फल-फूल रही ही है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कई राज्यों में जबरन या डरा-धमकाकर, प्रलोभन या लालच देकर धर्मांतरण का खेल मिशनियां और मुस्लिम बेखौफ चला रहे है। ईसाई मिशनरियों की बदमाशी दरअसल गैर भाजपाई राज्यों में ज्यादा चल रही है। इन राज्यों में सरकार द्वारा धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के बजाए इस ओर के आंखे मूंदकर इन्हें समर्थन ही दिया जा रहा है। दूसरी ओर नेपाल बॉर्डर पर धर्मांतरण कराने का नया तरीका ही सामने आया है। ईसाई मिशनरियां पोल खुलने के डर से यहां दलित और गरीब हिंदुओं का धर्मांतरण तो कर रही हैं, लेकिन उनके नाम नहीं बदल रही हैं। ताकि पुलिस को कार्रवाई करने में मुश्किल आए। यहां लोगों के घरों के उनके इष्टदेव भगवान की मूर्तियों को हटा दी गईं हैं। इसके स्थान पर जन्म से हिंदुओं से भी जीसस की प्रेयर कराई जा रही है। मिशनरियों ने धर्मांतरण का ये नया तरीका निकाला है।
सनातन धर्म के प्रति नफरत के एजेंडे को आगे बढ़ाने में जुटी मिशनरी
सनातन धर्म से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी किस कदर नफरत करती है यह कोई अनजानी बात नहीं है?कांग्रेस पार्टी ने देश पर 70 सालों तक शासन के दौरान सनातन धर्म को हर स्तर से नुकसान पहुंचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वहीं आम आदमी के पार्टी के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने तो 10 हजार लोगों को एक साथ हिंदू धर्म के खिलाफ शपथ दिलवाकर रिकार्ड ही बना डाला। छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार हो या राजस्थान की गहलोत सरकार, पंजाब में भगवंत मान सरकार हो या दूसरे कुछ राज्यों की सरकारों द्वारा पूरी तरह आंखें पूरी तरह से बंद कर लिए जाने के कारण धर्मांतरण का खेल ईसाई मिशनरियां खुलेआम खेल रही हैं। मिशनरियों की मंडलियां भोले-भाले आदिवासियों को कई तरह के प्रलोभन देकर, तो कभी बीमारी ठीक करने और शराब छुड़ाने के नाम पर धर्म परिवर्तन करा रही हैं। धर्मांतरण की करतूतों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने का ही दुष्परिणाम है कि मिशनरियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में तो ईसाई मिशनरी और आदिवासियों के बीच नौबत टकराव तक जा पहुंची है। सनातन धर्म के प्रति नफरत के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में मिशनरी जुटी हुई हैं और कांग्रेस व आप सरकार इनकी मदद कर रही हैं। यही वजह है कि कांग्रेस शासित राजस्थान में धर्मांतरण की कई घटनाएं हो चुकी हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि जबरन धर्म परिवर्तन बेहद गंभीर समस्या
अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि जबरन धर्म परिवर्तन बेहद गंभीर समस्या है और इससे देश की सुरक्षा भी प्रभावित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की है। जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने को लेकर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की है। याचिका में मांग की है कि प्रलोभन देकर, दबाव बनाकर या फिर धमकी देकर धर्म परिवर्तन कराए जाने को संविधान के खिलाफ बताते हुए सख्त कदम उठाए जाएं। लॉ कमीशन को कहा जाए कि धर्म परिवर्तन को कंट्रोल करने के लिए रिपोर्ट पेश करे ताकि जबरन और धमकी और बहला फुसलाकर धर्म परिवर्तन मामले में कानून लाया जाए।
जबरन धर्म परिवर्तन कराने के लेकर तमिलनाडु में एक नाबालिग लड़की ने आत्यहत्या ही कर ली। लेकिन वहां की सरकार, समाज और कानून इस पर मौन है। आइए, पहले यह जान लेते हैं कि देश में कितने राज्यों में धर्मांतरण को लेकर क्या कानून हैं…?
जबरन या लालच देकर धर्मांतरण को रोकने के लिए किस राज्य में क्या है कानून?
1.ओडिशाः पहला राज्य है जहां जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून आया था। यहां 1967 से इसे लेकर कानून है. जबरन धर्मांतरण पर एक साल की कैद और 5 हजार रुपये की सजा हो सकती है। वहीं, एससी-एसटी के मामले में 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है।
2.मध्य प्रदेशः यहां 1968 में कानून लाया गया था. 2021 में इसमें संशोधन किया गया। इसके बाद लालच देकर, धमकाकर, धोखे से या जबरन धर्मांतरण कराया जाता है तो 1 से 10 साल तक की कैद और 1 लाख तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
3.अरुणाचल प्रदेशः ओडिशा और एमपी की तर्ज पर यहां 1978 में कानून लाया गया था कानून के तहत जबरन धर्मांतरण कराने पर 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है।
4.छत्तीसगढ़ः 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद यहां 1968 वाला कानून लागू हुआ. बाद में इसमें संशोधन किया गया। जबरन धर्मांतरण कराने पर 3 साल की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माना, जबकि नाबालिग या एससी-एसटी के मामले में 4 साल की कैद और 40 हजार रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
5.गुजरातः यहां 2003 से कानून है। 2021 में इसमें संशोधन किया गया था. बहला-फुसलाकर या धमकाकर जबरन धर्मांतरण कराने पर 5 साल की कैद और 2 लाख रुपये जुर्माना, जबकि एससी-एसटी और नाबालिग के मामले में 7 साल की कैद और 3 लाख रुपये के जुर्माने की सजा है।
याचिकाकर्ता की कोर्ट से अपील, धर्म परिवर्तन रोकने के लिए अलग से बने कानून
अब बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट में धर्मांतरण को रोकने के लिए दायर याचिका की। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने 23 सितंबर को याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और हिमा कोहली की बेंच ने जबरन धर्मांतरण के खिलाफ याचिका की सुनवाई करते हुए मौखिक टिप्पणी में इसे गंभीर मामला बताया। कोर्ट ने कहा कि जबरन धर्मांतरण न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ बल्कि देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा हो सकता है। याचिका में धर्म परिवर्तनों के ऐसे मामलों को रोकने के लिए अलग से कानून बनाए जाने की मांग की गई है। या फिर इस अपराध को भारतीय दंड संहिता (IPC) में शामिल करने की अपील की गई है।
धर्मांतरण रोकने के लिए सख्त कानून लाने के लिए सरकार को निर्देश दिए जाएं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब 22 नवंबर तक हलफनामा देने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दाखिल की थी। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह मुद्दा किसी एक जगह से जुड़ा नहीं है, बल्कि पूरे देश की समस्या है जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से जबरन और धोखा देकर धर्म परिवर्तन रोकने के लिए सख्त कानूनी प्रावधान लाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिए जाने की मांग की है। मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी।
तमिलनाडु की लड़की के मामले का हवाला, धर्मांतरण के बाद कर ली आत्महत्या
याचिकाकर्ता ने कहा कि 19 जनवरी को तामिलनाडु में 17 साल की लड़की ने आत्महत्या कर ली है। याची ने कहा कि लड़की ने मरने से पहले लिखे नोट में कहा है कि उसे धर्म परिवर्तन करने के लिए उस पर दबाव बनाया गया। उपाध्याय ने याचिका में मांग की है कि प्रलोभन देकर, दबाव बनाकर या फिर धमकी देकर धर्म परिवर्तन कराए जाने को संविधान के खिलाफ बताते हुए सख्त कदम उठाए जाएं। लॉ कमीशन को कहा जाए कि धर्म परिवर्तन को कंट्रोल करने के लिए रिपोर्ट पेश करे ताकि जबरन और धमकी और बहला फुसलाकर धर्म परिवर्तन मामले में कानून लाया जाए।प्रलोभन या जबरन धर्म परिवर्तन एक गंभीर विषय है।
याचिकाकर्ता ने केंद्र के साथ-साथ तमाम राज्यों को भी प्रतिवादी बनाया
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने अर्जी दाखिल कर केंद्र और तमाम राज्यों को प्रतिवादी बनाया है। तामिलनाडु में 17 साल की लड़की की मौत के मामले में छानबीन की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी अर्जी में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 21 एवं 25 के तहत धोखाधड़ी, धमकी या डराकर धर्म परिवर्तन कराया जाना अपराध घोषित किया जाए। याचिका में नैशनल इन्वेस्टिंग एजेंसी (NIA), सीबीआई (CBI) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को 17 साल की लड़की की मौत के मामले में कारण बताओ नोटिस जारी करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि दबाव बनाकर कराए जाने वाले अवैध धर्म परिवर्तन को संविधान के तहत अपराध घोषित किया जाए।
धर्म परिवर्तन गंभीर विषय है और इससे देश की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है:सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा कि जो मुद्दे उठाए गए हैं और जबरन धर्म परिवर्तन के जो आरोप लगाए गए हैं, अगर वो सही हैं और उनमें सच्चाई है तो फिर यह गंभीर विषय है और इससे आखिरकार देश की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे देश की जनता के ‘धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार’ प्रभावित होते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार को इस मामले में स्टैंड क्लियर करना चाहिए। इसलिए केंद्र सरकार हलफनामा देकर बताए कि वह कथित जबरन धर्म परिवर्तन रोकने के लिए क्या कदम उठा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को करेगा। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कई राज्य सरकारों ने इसे रोकने के लिए कानून बनाए हैं। उन्होने यह भी कहा कि कई उदाहरण हैं जहां चावल और गेंहू देकर धर्म परिवर्तन कराए जा रहे हैं। तब बेंच ने कहा कि आप बताएं कि आप क्या कदम उठा रहे है?
कोर्ट ने याचिका की दलीलों से जताई सहमति, सरकार जल्द उठाए कदम
सुप्रीम कोर्ट ने भी याचिका में दी गई दलीलों से सहमत होकर जबरन धर्मपरिवर्तन को गंभीर विषय माना और केंद्र सरकार से कहा है कि अगर यह सच है तो वह इसे रोकने के लिए गंभीरता से कदम उठाए। उच्चतम न्यायालय ने सरकार को चेतावनी भी दी कि यह एक कठिन स्थिति है जिस पर काबू नहीं पाया गया तो देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा होगा और नागरिकों के ‘धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार’ प्रभावित होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि इस पर एहतियाती कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जल्द कदम उठाना होगा, ताकि इसे रोका जा सके। अगर ऐसा नहीं किया गया तो कठिन समय आ जाएगा।
आप की दिल्ली: मदर टेरेसा और ईसाई मिशनरी के रास्ते पर चल रहे शिष्य केजरीवाल?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ईसाई संत मदर टेरेसा के शिष्य रहे हैं। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो किस विचारधारा से प्रेरित है। आम तौर पर माना जाता है कि शिष्य पर गुरु के उपदेशों का असर होता है। केजरीवाल पर भी उनके गुरु के उपदेश का असर दिखाई दे रहा हैे। वो उन्हीं के बताये रास्ते पर चल रहे हैं। जिस तरह मदर टेरेसा ने गरीबों की मुफ्त सेवा के बहाने दलितों और आदिवासियो के बीच पैठ बनाई। उसके बाद ईसाई मिशनरियों ने चमत्कारिक मुफ्त इलाज, मुफ्त शिक्षा और पैसे का लालच देकर और ऊंच-नीच, जात-पात का एहसास दिलाकर गरीब दलितों और आदिवासियों का धर्मांतरण कराया। उसी तरह केजरीवाल भी मुफ्त रेवड़ी कल्चर के जरिए गरीब दलितों, आदिवासियों, सिखों में पैठ बनाकर उनके बौद्ध और ईसाई धर्म में धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं।