

गरियाबंद/फिंगेश्वर(गंगा प्रकाश)। जैन समाज के संत गुरूवर आचार्य श्री 108 श्री विद्यासागर के समाधीकरण ब्रम्हलीन होने पर जैन श्री संघ फिंगेश्वर द्वारा जैन मंदिर परिसर में नगर के सर्वसमाज की सभा आयोजित कर आचार्य श्री के प्रति श्रद्धासुमन-श्रद्धांजलि अर्पित की। आचार्य श्री के छायाचित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित एवं धूप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ भाजुयमो के जिला उपाध्यक्ष राजू साहू एवं भाजपा महिला मोर्चा जिला महामंत्री श्रीमती संतोषी श्रीवास्तव ने किया। राजू साहू ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि उनके स्वर्गारोहण के बाद ही हमें आचार्य श्री के त्याग, तपस्या एवं साधना के बारे में मालूम पड़ा तो हम न सिर्फ हतप्रभ है बल्कि स्वयं का दुर्भाग्य मान रहे है कि कलयुग के चलते फिरते भगवान का दर्शन न कर पाए जो कि हमारे आसपास ही थे। महिला मोर्चा की जिला महामंत्री श्रीमती संतोषी श्रीवास्तव ने आचार्य श्री को अपनी विनयांजली देते हुए कहा कि उन्हें देश एवं समाज के लिए किए गए योगदान के लिए युगों युगों तक स्मरण किया जाता रहेगा। आपका जीवन, पारदर्शी पराक्रमी दोनों को अलौकित करने वाला था। पिछले सैकड़ो वर्षो में कोई ऐसा प्रखर और विचारोव्तेजक संत न कोई था, न अब है, और शायद ही कोई होगा। श्रीमती श्रीवास्तव ने भाव विभोर होते हुए कहा कि आज आकाश से वह तारा टूट गया है जो पूरे आसमान में लाखों के बीच अकेला था। मै दोनों हाथ जोड़कर नमन करते हुए उन्हें अपने श्रद्धा के फुल अर्पित करती हॅू। इस कड़ी में श्रीमती पूजा पहाड़िया ने आचार्य श्री की तपस्या, त्याग के बारे में विस्तार पूर्वक बताते हुए कहा कि 52 वर्षो के आचार्य पद में उन्होंने समाज देश एवं संसार को अपनी चर्या, अपने त्याग, तपस्या एवं साधना से चरितार्थ किया कि जैन धर्म कोई साधारण धर्म ही नहीं है बल्कि मनुष्य की स्वयं की मुक्ति के साथ साथ मानव समाज को जीवन जीने की कला सिखाता है। आचार्य श्री का जीवन वाणी की प्रमाणिकता, साहित्य की सृजनात्मकता और प्रकृति की सरलता का त्रिवेणी संगम था। समाज के लिए उनका अप्रीतम योगदान हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा। समाज की वरिष्ठ सदस्या प्रभा गोलछा ने गुरूदेव के बारे में काफी कुछ जानने एवं समझने के बाद भी उनका दर्शन न हो पाने को अपने जीवन का सबसे बड़ा दुर्भाग्य बताते हुए कहा कि आचार्य श्री का जीवन तटवृक्ष के समान था। वे वर्तमान युग के वर्धमान थे। संवेदनशील और त्याग, तपस्या वाले संत थे। आपका जीवन पारदर्शी, पराक्रमी और जगत के अलौकिक करने वाला था। फिंगेश्वर जैन श्री संघ के अध्यक्ष अरेन्द्र पहाड़िया ने आचार्य श्री की जीवनी एवं 22 वर्ष के उम्र से संत बने श्री विद्यासागर गुरूदेव के 76 वर्ष की उम्र तक किए गए त्याग, तपस्या एवं उनकी साधना के बारे में विस्तारपूर्वक बोलते हुए आज के अवसर को स्मरणीय बनाने उपस्थित जनों से कोई एक ऐसा नियम लेने प्रेरित किया जिससे हमें जीवन पर्यन्त आचार्य श्री का स्मरण होता रहे। पूरे कार्यक्रम का संचालन जैन श्री संघ के सचिव अभिषेक दुग्गड़ ने किया। कार्यक्रम में मनोज शर्मा, मामाजी, छुरा से संतोष पगारिया एवं श्रीमती पद्मा यदु, भुनेश्वरी साहू, अनीता शर्मा, मुकेश साहू सहित काफी संख्या में सामाजिक महिला, पुरूष एवं युवाजन शामिल थे। कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थित जनों ने 2 मिनट का मौन रख आचार्य श्री की आत्मा की शांति की प्रार्थना की।