
छुरा(गंगा प्रकाश)। नगर के हृदय स्थल राम जानकी मानस मंदिर में चल रहे नव दिवसीय मानस परायण में कथा के प्रथम दिवस अयोध्या धाम से पधारे पूज्य अनूप जी महराज ने व्यास पीठ से कहा कि राम कथा मन की घंटी बजाती है चार युगों में देवता व राक्षसों का रहने का स्थान अलग अलग था सतयुग में देवता स्वर्ग और उपर के लोक में रहते थे राक्षस पृथ्वी से नीचे रसातल तक रहते थे त्रेतायुग में देवता व राक्षस पृथ्वी पर आ गये दूरियां कम हुई द्वापरयुग में राक्षस और देवता एक परिवार में आ गये और अब कलयुग में देवता और दैत्य एक शरीर में निवास करता है। शरीर दैत्य मय है मय ही सबका जड़ है मय ही सब युद्ध की जड़ है। शरीर का देवता विनय श्रद्धा है पुण्य ही शरीर का धन है। उन्होने वाल्या भील डाकू रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की कथा सुनाते हुए कहा कि राम नाम बीज को अपने हृदय में बुआई करने के लिए उल्टा सीधा कैसे भी करो वह उग आता है। इस प्रकार वाल्मीकि ने ऐसी राम कथा लिखी भगवान भी उस लीला को स्वीकार कर भक्त के अनुसार लीला किये। व्यास पीठ से बताए संसार में राम कथा के चार वक्ता भोलेबाबा, याज्ञवल्क्य जी, काकभुशुंडि जी और गोस्वामी तुलसीदास जी। चारो वक्ता एक ही बात एक ही कथा कहते हैं जय जय श्रीराम कथा। आगे बताए कि गोस्वामी तुलसीदास ने राम जी का विजयी मंत्र लिखा है तेरह अक्षरों का विजयी मंत्र है श्रीराम जय राम जय जय राम है। गोस्वामी जी ने हनुमान चालीसा को चालीस दिन में पूर्ण किये। राम चरित मानस विश्राम देती है।भगीरथ गंगा और राम कथा गंगा दोनों बहनें हैं क्योंकि दोनों का उद्गम एक है जैसे शंकर जी की जटा और मुख से, ब्रम्हा के कमंडल और वेद पुराणों से। दोनों गंगा में मानस गंगा बड़ी है क्योकि भगीरथ गंगा के पास जाने के बाद पुण्य प्राप्त होता है और पाप उतरता है जबकि इसी के लिए मानस गंगा हमारे पास चलकर आती है। इस गंगा में जो डूबता है वह भव सागर पार हो जाता है। सती शंशय कथा व मोह भंग कथा सुनाए।शंशय का कारण बताते हुए कहा कि सती ने मन से कथा नही सुनी। मनुष्य को गुस्से को पचाना और प्रेम को प्रकट करने की कला सीख लेना चाहिए इससे गृहस्थ सुखी रहता है शंशय मिट जाता है। इससे पूर्व जब पूज्य महराज व्यास पीठ पर पधारे तब उनका स्वागत अभिनंदन मन्मानस समिति के अध्यक्ष ओंकार शाह पूर्व विधायक एवं टंकेश्वर देवांगन, लखन तिवारी, यज्ञेश पांडेय, पूजा प्रतिनिधि राधा यादव व महिला मंडल के सदस्यों ने की।