साधु सन्तों ने बहाई ज्ञान की गंगा,राजिम पुण्य भूमि में विराट सन्त सम्मेलन

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आयोजित हुआ सन्त सम्मेलन

राजिम कुंभ के अवसर पर जुटे साधु संत

नवापारा/राजीम (गंगा प्रकाश)। नवापारा राजिम स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में सोमवार को विराट सन्त सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस सन्त सम्मेलन में देश भर से आये सन्त महात्माओं ने भाग लिया।

ब्रह्माकुमार नारायण भाई ने ओम शांति के उदघोष के साथ स्वागत भाषण देते हुए सभी साधु संतों का स्वागत किया। सन्त महात्माओं को देखकर आंखों के साथ मन भी धन्य हो जाता है। परमात्मा पिता की याद आती है, वही संकल्प देकर कार्य करने की प्रेरणा देते हैं। नारायण भाई ने संतों को मेडिटेशन कराया।सबसे पहले परमात्मा को धन्यवाद करेंगे कि उन्होंने हमें इस कार्यक्रम के निमित्त बनाया। हमारे पूर्वज हमारी दादियां, दादा हमें याद आ रहे हैं। परमात्मा शिव पिता की मुरलियों में सुनते आए हैं कि सन्त महात्मा नहीं होते तो भारत नहीं होता। भारत योगियों की संतों की भूमि है। संतो का प्रताप है कि आज भारत विश्व मे ताकतवर बनकर खड़ा है। संतों ने अपनी साधना से भारत का मान शान बनाये रखा है। जब अज्ञान अंधकार फैल जाता है, तब परमात्मा आकर ज्ञान चक्षु देकर मुक्त करता है। उसी की याद में शिव जयंती यानी शिवरात्रि के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। जब परमात्मा शिव की जयंती मनाते हैं तो यह भारत सतयुग में बदल देवी देवताओं की दुनिया बन जाती है।

शिव जयंती ही गीता जयंती भी है-डॉ पुष्पा दीदी

जबलपुर से आईं डॉ पुष्पा दीदी ने कहा कि आप सबके आने से चारों तरफ खुशबू फैल गयी है। एक एक सन्त के पीछे न जाने कितने शिष्य हैं। आज हम विशेष प्रयोजन के लिए विषय पर चर्चा करेंगे। शिव जयंती ही गीता जयंती है, गीता जयंती की कृष्ण जयंती है। आप सब संसार को परिवर्तन करने के निमित्त बने हैं, क्योंकि आपके पास ब्रह्मचर्य का बल है। पुष्पा दीदी ने शिव जयंती के श्रीमद भगवत गीता से सम्बन्ध पर प्रकाश डाला। परमात्मा शिव के अजन्मा, निराकार, अनादि, गीता ज्ञान दाता के स्वरूप को तर्क के साथ समझाया। निराकार परमात्मा इस अज्ञान अंधकार में आया हुआ है। जब पूरा कौरव समाज अज्ञान की नींद में सोया हुआ है। गीता में भगवान ने कहा है कि मैं अणु से भी सूक्ष्म हूँ। निराकार ज्योति स्वरूप परमात्मा इस धरा में उस समय आता है, जब धर्म की ग्लानि हो जाती है। वह इस भौतिक धरा में तो नहीं रहता। लोग आज सोच रहे हैं कि हम इस भौतिक दुनिया मे बहुत खुश हैं। पुष्पा दीदी ने संतों का आह्वान किया कि हमें आपकी मदद चाहिए लोगों की आंखे खोलने के लिए। लोगों को जगाने के लिए। लोगों को इस और आकर्षित करना है कि यह संसार परिवर्तित होने वाला है। भगवान को पहचान लो। वास्तव में यह सारा संसार ही युद्ध का मैदान है। यहां दो कुरुक्षेत्र हैं, हमारे मन मे अच्छाई और बुराई के बीच युद्घ हो रहा है। क्या यह कौरवों के मन मे युद्ध होता है या पांडवों के मन में? वास्तव में पांडवों के अंदर मनोयुद्घ चलता है। हम सब कौन्तेय यानी हम सब अर्जुन हैं। कौन्तेय के साथ भगवान थे। कौरव यानी दुर्योधन तो ईश्वर की सुन ही नहीं सकता। दुर्योधन जो धर्म के दुरूपयोग करता है, दुशासन यानी जो शासन का दुरुपयोग करता है।जो भगवान का ज्ञान का अर्जन करता वही अर्जुन, जो ज्ञान का जीवन मे उपयोग करता है तो वह भीम है। लोग जो कहते हैं कि कलयुग अभी छोटा है, उन्हें जगाना है। सोने का समय नहीं, जागने का समय है। भगवान स्वयं आकर गीता ज्ञान सुना रहा है। गीता में लिखा है भगवान स्वयं आता है। माता के गर्भ से जन्म नहीं लेता। वह परकाया प्रवेश करता है। प्रजापिता ब्रह्मा में ही परमात्मा आकर गीता ज्ञान सुनाता है। परमात्मा निराकार इस धरा पर अवतरित हो चुका है। आप अपने समान सबको पवित्र बनाएं। लोगों को काम विकार से दूर करने मदद करें। भगवत गीता योग शास्त्र है और शिव पिता आदि योगी हैं। परमात्मा शिव ने गीता के द्वारा योग सिखाया। मेरे वजूद में तू उतर जाए, मैं देखूं आईना मुझे तो नज़र आये।

नदी कभी अपना जल स्वयं नहीं पीती-अरुणा भारती

बागेश्वर धाम छतरपुर से पधारीं अरुणा भारती दीदी ने कहा वृक्ष कभी अपना फल नहीं कहता, नदी कभी अपना जल नहीं पीता। साधु हमेशा सुगन्ध लेकर ही जाते हैं। हम लोग भिन्न भिन्न जगह से आये हैं, सेंटर में आकर आप सब एक हो जाएं, अलग अलग न रहें। मैं भी सेंटर जाती हूँ और दीदियों के उद्गार सुनते हैं। पुष्पा दीदी बहुत बड़ी महामंडलेश्वर थीं, हैं और रहेंगी। ब्रह्माकुमारी आश्रम में जो सम्मान मिला और सेंटर से यही इशारा मिला कि आप और हम एक हो जाएं।

सनातन धर्म मे शिवरात्रि का बड़ा महत्व-अत्री महाराज

जोधपुर से पधारे अत्री महाराज जी ने सन्त सम्मेलन में सम्बोधित करते हुए कहा कि बड़े सौभाग्य की बात है कि इस मंच से हम शिवरात्रि मनाने जा रहे हैं। सनातन धर्म मे शिवरात्रि का बड़ा महत्व है। शिव और शंकर का अंतर स्पष्ट करते हुए कहा शिव यानी निराकार, जिसका कोई आकार नहीं है। शंकर कहते ही गौरी शंकर यानी साकार का ध्यान आता है। जबकि निराकार में ‘निरा’ का मतलब ही पवित्र है। हमारे सनातन में उस परमात्मा को हम तुलसी, पीपल में देखते हैं। ब्रह्माकुमारीज़ के संस्थापक ब्रह्मा बाबा ने शिव की शक्ति को पहचाना है। यदि शिव से ई की मात्रा हटा दो तो वह शव है। शव यदि पानी डाला जाए तो वह तैरता रहता है, जबकि जिंदा आदमी डूब जाता है। शव को कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती, पर जीवित आदमी को मेहनत करनी पड़ती है। इसलिए शव के कोई ठिकाना नहीं है, जबकि मेहनत करने वाले किनारे को प्राप्त कर लेते हैं। शव की तरह जीवन जीने वालों की कोई जगह नहीं है। यह विश्वविद्यालय यही सिखाता है कि सहज योग द्वारा शिव को प्राप्त किया जा सकता है। नारायण भाई व पुष्पा दीदी हमे माउंट आबू ले गए और शिव बाबा के दर्शन करवाये।

ब्रह्माकुमारी आश्रम आकर मिलती है परम् शांति- ब्रह्मदत्त जुगलकिशोर

राजिम के ब्रह्मदत्त जुगलकिशोर जी ने कहा कि मैं अपने घर मे ही हूँ, पुष्पा दीदी से बरसो पुराना नाता है। छत्तीसगढ़ की पुण्य धरा पर कोटि कोटि अभिनंदन है। छत्तीसगढ़ के प्रयागराज के नाम प्रसिद्ध राजिम धाम की महिमा अलौकिक है। हमारी महानदी के दोनों भागो में युगों युगों से तपस्या की है। उसके प्रताप से राजिम में संतों के दर्शन से धन्य धन्य हो रहे हैं। हमारे कुलेश्वर धाम की शक्ति केदारनाथ से कम है, ऐसा नहीं है। हमारे अंदर ऐसी प्यास होनी चाहिए, ऐसी उत्कंठा होनी चाहिए कि जर्रे जर्रे में उसके दर्शन हो जाएं।
उसको खोजने के लिए जगह जगह भटकते रहते हैं कि कहीं तो मिलेगा।पवन दीवान की तपस्थली है।यह ब्रह्मा बाबा का ध्यान धाम है। यहां परम् शांति मिलती है। ब्रह्माकुमारी आश्रम में आकर जो शांति, अपनापन, आत्मीयता मिलती है। सन्त महात्मा तो केवल भाव के भूखे हैं। जो अपनापन हमें पुष्पा दीदी व नारायण भाई से मिलता है, उसकी प्यास में हम बार बार ब्रह्माकुमारी आश्रम में आते हैं।

सन्तों का मार्गदर्शन जीवन मे उतारें-संतोष महाराज

राजिम से पधारे संतोष महाराज ने भगवान राजिमलोचन की पुण्य धरा में साधु संतों का स्वागत करते हुए कहा कि हम धर्म के ऐसे पहलू पर आगे बढ़ रहे हैं, वह नहीं होना चाहिए। सनातन धर्म को आधार बनाकर परमात्मा को पाने के लिए आगे बढ़ें। हम जिस सत्य की खोज में हैं, क्या वाकई में हमे उसकी प्राप्ति हो पा रही है। इसपर चिंतन की आवश्यकता है। सन्तो का मार्गदर्शन लेते हुए जीवन में उसे उतारे।

आज सन्तों का आशीर्वाद नहीं सेल्फी चाहिए- महामंडलेश्वर प्रेमानंद सरस्वती

मुंबई से पधारे महामंडलेश्वर प्रेमानंद सरस्वती राजिम कुंभ कल्प 2024 और रामोत्सव के लिए पवित्र तीर्थों से पधारे संतों का अभिनन्दन करते हुए कहा कि पांच साल के संक्रमणकाल के बाद से फिर उसके शिल्पी बृजमोहन अग्रवाल जी व मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, उप मुख्यमंत्री द्वय अरुण साव व विजय शर्मा धन्यवाद के पात्र हैं। अयोधया में रामलला के बाल रूप की प्राण प्रतिष्ठा हुई। छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत का केंद्र बिंदु राजिम है। हरि और हर की नगरी है। यह हरीहर तीर्थ है। छत्तीसगढ़ की खुशहाली की कामना लेकर सभी सन्त महात्मा यहां आए हुए हैं। सन्त भगवान के निकट व लाडले होते हैं। बिना सत्संग के कभी भी भगवद प्राप्ति नहीं हो सकती। गोविंद को यदि जानना है, तभी भगवद प्राप्ति हो सकेगी। परम् तत्व एक है, लेकिन विद्वान अपने अपने तरीके से व्याख्या करते हैं। सबका अपना अंदाज होता है, चिंतन व अभिव्यक्ति की मौलिकता अलग है, लेकिन सब एक ही बात कहते हैं। हम जो सुनते हैं, यदि उसका हम जीवन मे उतार लें तो कल्याण हो जाये। आज सन्तो का आशीर्वाद नहीं चाहिए, बल्कि लाइक, सब्सक्राइब व सेल्फी चाहिए। जीवन मे आचार का महत्व है। जीव का कल्याण बिना सत्संग हो नहीं सकता। आप महापुरुषों का, शास्त्रों का संग रखो तो कल्याण हो जाएगा। सत्संग की औषधि लेने आप ब्रह्माकुमारी सेंटर आइए और आपका जीवन मे कल्याण होगा। शिव जयंती 8 मार्च को आ रही है। राजिम में महाशिवरात्रि के अवसर पर सन्तो का यह कार्यक्रम बहुत सुंदर तरीके से किया। सन्त साधन संपन्न नहीं बल्कि साधना सम्पन्न होता है। उसके पास तप, तपस्या, त्याग व वैराग्य होता है। आज हमको 4 जी 5 जी नहीं गुरु जी चाहिए।

सबसे सुंदर है परमात्मा- ब्रह्माकुमारी पुष्पा दीदी

राजिम स्थित त्रिमूर्ति भवन सेंटर की संचालिका ब्रह्माकुमारी पुष्पा दीदी ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि परमात्मा को प्रत्यक्ष करने के शब्द हैं, इसलिए कहा गया है भक्ति, ज्ञान, वैराग्य। सत्संग शब्द सत्यम शिवम सुंदरम से जुड़ा हुआ है। सन्त महात्माओं के पास अपनी पवित्रता है। हर आत्मा की अपनी अपनी क्वालिटी है। क्योंकि यह सृष्टि रंगमंच है। हर आत्मा अपना पार्ट प्ले कर रही हैं। सन्त महात्मा द्वापर से भगवान को प्रत्यक्ष करने का काम कर रहे हैं। इस राजयोग का अर्थ है अपने को आत्मा समझ परमात्मा को याद करना। हर आत्मा का कनेक्शन उस परमात्मा के साथ है। सबसे सुंदर परमात्मा है। परमात्मा स्वयं टचिंग देकर कार्य करवाता है। दादी प्रकाशमणि महात्माओं को देखकर बहुत खुश होती थी। 1999 से मेला तो चलता ही आ रहा है। लेकिन भाजपा सरकार ने मेले का रूप बड़ा बना दिया ताकि देश-विदेश के सन्त यहां आएं और महानदी का महत्व समझें। इसका प्रयागराज जैसा महत्व है। सन्त प्रयागराज जाते, नासिक, उज्जैन जाते थे, लेकिन राजिम में मेले के स्वरूप बढ़ने के बाद ही यहां आना शुरू हुए। ब्रह्माभोजन का महत्व समझाते हुए उन्होंने कहा कि भोजन तो हम रोज अपने घरों में करते हैं, लेकिन यहां हम ब्रह्मा भोजन करते हैं। बाबा के घर से तो कई लोगों को निमंत्रण गया। देवता भी ब्रह्मा भोजन को तरसते हैं। हम बाहर का धन नहीं लेते। आश्रम में आने वाले धन से ही आश्रम चलाते हैं। भगवान को हम समय पर सहयोग देंगे तो भगवान भी हमे समय पर सहयोग देगा। ब्रह्मा भोजन से अपनी भोगना कम करता है। हमारा एक रुपये और हमारा समय यदि भगवान के घर मे सफल करते हैं तो हमारा पुण्य जमा होता है। जन्मजन्मांतर के लिए हमारी निरोगी काया बन जाती। यहां ज्ञान और योग के बल से सेवाएं होती हैं।

कार्यक्रम का सुंदर संचालन बिलासपुर से पधारी ब्रह्माकुमारी राखी दीदी ने किया। इस अवसर पर देश के कई हिस्सों से पधारे सन्त महात्मा व धर्मप्रेमी जनता उपस्थित थी। इस अवसर पर ब्रह्माभोजन का भी आयोजन हुआ। सभी साधु संतों व जनसमूह ने ब्रह्माभोजन ग्रहण किया।

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