
वनमंडल में डीएमएफ सहित करोड़ो के घोटाले का खेल करने वाले डीएफओ की कब होगी गिरफ्तारी?
पीसीसीएफ राव के नजदीकी डीएफओ की जांच कब करेगी साय सरकार?
रिपोर्ट:मनोज सिंह ठाकुर
कोरबा(गंगा प्रकाश )। कांग्रेस के पांच वर्ष के शासनकाल के दौरान करोड़ो रुपयों का बंदरबांट कटघोरा वनमंडल में किया गया था।इस वनमंडल में सरकार के अधिकारियों और सत्ता के ठेकेदारों की मिलीभगत से कोरबा डीएमएफ के फंड में कई करोड़ के आसपास की कमीशनखोरी हुई थी। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के छापेमारी में जो सरकारी खजाने से पैसे निकालने व धन का उपयोग में भ्रष्ट्राचार करने से संबंधित मामला जुड़ा है । इस हाईप्रोफाइल कार्रवाई से भ्रष्ट्राचारियों के चेहरे सामने आ रहे है तो वहीं खनिज न्यास की निधि पर डांका डाल अपना- अपना बोरी भरने वालों के हाथ- पांव फूल चुके है। कटघोरा वनमंडल में भी पिछले पंचवर्षीय कांग्रेस शासन के दौरान करोड़ो का घोटाला हुआ है । जिसमे डीएमएफ की राशि भी समाहित है।
इस वनमंडल में तात्कालीन डीएफओ रही श्रीमती शमा फारुखी के ऊपर बहुत से आरोप लगते रहे है।इनके पदस्थापना काल के दौरान तालाब- डबरी, डब्ल्यूबीएम सड़क, चेकडेम, स्टापडेम निर्माण, पौधारोपण सहित अन्य कार्यों के लिए जारी करोड़ो की राशि में जमकर बंदरबांट किया गया और कहीं अधूरे काम कराए गए तो कहीं बिना काम पूरी राशि हजम कर दी गई । यहां तक कि चर्चित पुटुवा स्टापडेम भ्रष्ट्राचार की जानकारी भी विधानसभा सत्र के दौरान सदन में छिपा कर रखा गईं। डीएफओ श्रीमती फारुखी तत्कालीन सरकार में वनमंत्री मोहम्मद अकबर की भतीजी के रूप में जानी जाती थी।इस कारण इस अफसर का अलग ही जलवा था । इस अफसर ने अपने पति की फर्म को ही करोड़ो के काम दे दिए।बिना काम के ही करोड़ो का भुगतान भी किये जाने की चर्चा है।
इन सभी के ऊपर पीसीसीएफ श्रीनिवास राव का हांथ था।यह सभी लोग मोहम्मद अकबर के बहुत नजदीकी लोगो मे शामिल थे।प्रदेश की साय सरकार से सुशासन की अपेक्षा में जनता बैठी हुई है। कब इन बेईमान अफसरों के ऊपर कार्यवाही होगी। सत्ता बदलने के बाद भी श्रीनिवास राव पीसीसीएफ के पद पर बैठकर आज भी अपना खेल कर रहा है। यह सरकार कब जागेगी अमित शाह जी…
इसके तबादले के पश्चात श्रीमती प्रेमलता यादव के कार्यकाल में भी कुछ इसी तरह का रवैया रहा।इन दोनों के समय करोड़ो के काम पेपरों में कर दिए गए। उक्त दोनों डीएफओ के कटघोरा वनमंडल में रहने के दौरान रेंजरों ने भी जमकर मलाई खायी। पाली वनपरिक्षेत्र में संचालित ईएसआईपी योजना के निर्माण कार्यों में भी जमकर बोगस भुगतान हुआ और इस योजना के अन्य कार्यों में भी भ्रष्ट्राचार होता चला आ रहा है।इसी कड़ी में वर्तमान में पदस्थ डीएफओ कुमार निशांत की भी अगर जांच की जाए तो बड़े खेल उजागर होंगे।इस डीएफओ के बिलासपुर कार्यकाल की कहानियां भी बहुत सी है।अपने आपको साफ ईमानदार बताने वाले इस अफसर ने भी करोड़ो की कहानी की हुई है।30% कमीशन के नाम से प्रसिद्ध इस डीएफओ के कार्यकाल की भी जांच होनी चाहिए।बहती धारा में इस डीएफओ ने भी कटघोरा वनमंडल में खूब मलाई खाई है।
सरकारी राशि का वन विभाग में ऊपर से नीचे तक कमीशनखोरी व बंदरबांट होता रहा। यदि कांग्रेस सरकार के दौरान पांच वर्ष में इस वनमंडल में कराए गए कार्यों की जांच को लेकर ईडी की नजरें टेढ़ी हुई तो यकीनन चौकाने वाले भ्रष्ट्राचार का खुलासा होगा।इन सभी डीएफओ की जांच करवाने की आवश्यकता है।साय सरकार को इस भ्रष्टाचारी अफसरों के ऊपर कार्यवाही करने की आवश्यकता है। लेकिन कार्रवाई की शुरुआत कब होगी?

क्या मोदी गारंटी के साथ कटघोरा वन मंडल में हुए भ्रष्ट्राचार की खुलेगी फाईल, नव निर्वाचित विधायक पर हैं दारोमदार?
छत्तीसगढ़ में सत्ता बदल गई है। कद्दावर मंत्री भी हार चुके हैं जिनके बलबूते कई विभागों में भ्रष्टाचार का खेल जमकर खेला गया। कोरबा जिले में भी इस तरह के कारनामे हुए हैं जिनमें वन महकमा प्रमुख है। सूबे के मुखिया रहे भूपेश बघेल के करीबी वन मंत्री मोहम्मद अकबर की धाक पर कटघोरा वन मंडल में तत्कालीन वन मंडल अधिकारी शमा फारुकी ने भ्रष्टाचार और घोटाले का ऐसा खेल खेला जिसकी गूंज आज भी जंगलों में सुनाई देती है। डीएफओ के इशारे पर कुछ रेंजरों, डिप्टी रेंजरों ने जंगल के विकास के लिए विभिन्न मदों में आने वाली राशि की जमकर बंदरबांट की।इनमे प्रमुख तौर पर स्टाप डेम घोटाला हो या जंगल के भीतर सड़क निर्माण का मामला या फिर नरवा विकास की योजना हो या लेंटाना उन्मूलन करने की बात हो, इन सभी में जमकर भ्रष्टाचार हुए हैं। इन भ्रष्टाचारों को समय-समय पर प्रमुखता से उजागर भी किया गया है। निर्माण कार्यों में मजदूरी घोटाला, तालाब निर्माण में फर्जी कार्य, फर्जी मजदूरों के नाम से पैसा निकालने का मामला हो या मजदूरों के तौर पर हॉस्टल/ छात्रावास के बच्चों के नाम से रुपए निकाल कर गबन करने की बात हो, या काम के बाद सालों से मजदूरी के लिए भटकाने का मामला, इन सब में तत्कालीन रेंजर, वन मंडल अधिकारी के हाथ काफी गहरे तक धंसे हुए हैं। सूबे में अपनी सरकार और रिश्तेदार के वन मंत्री होने का पूरा-पूरा फायदा न सिर्फ शमा फारूकी ने उठाया बल्कि श्रीनिवास राव के साथ मिलकर निर्माण कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार किया है। निर्माण सामग्रियों में गुणवत्ताहीन सामानों की खरीदी कराई गई। बिलासपुर के एक सप्लायर के लिए सांठगांठ कर बाजार में प्रचलित दाम से भी कम मूल्य पर निर्माण सामग्रियों की खरीदी होना दर्शाकर करोड़ों रुपए गबन किए गए। सामानों की डंपिंग हुए बगैर ही उसकी राशि निकाल दी गई, घटिया सीमेंट का घोटाला भी वन मंत्री के संरक्षण में समा फारुकी ने किया। यहां तक की निर्माण कार्य में सप्लायरों, पौधा सप्लाई आदि की परिवहन की राशि को भी गबन कर लिया गया और इसका भुगतान करने के एवज में 40 से 60% तक की मांग रखी गई। बाद में यह मामला हाई कोर्ट में भी चला गया और सप्लायर अपने काम के एवज में रुपए की राह आज भी ताक रहे हैं।
यह सारे मामले शमा फारूकी के तबादले के बाद डीएफओ बनकर आई श्रीमती प्रेमलता यादव ने भी दबा दिए। प्रेमलता यादव ने भी इन सभी मामलों और घोटालों की फाइल को कोई तवज्जो नहीं दी। नतीजा या रहा कि वन मंडल में जंगल राज कायम रहा। कुछ लोगों ने तो घोटालों की आड़ में RTI लगाकर अपने मतलब भी साध लिए और रेंजर लेकर अधिकारी ब्लैकमेल तक होते रहे पर बोलें भी तो किस मुंह से जब खुद ही भ्रष्टाचार के दलदल में समाए रहे। एक रेंजर मृत्युंजय शर्मा पर तो राष्ट्रीय बागवानी मिशन में करोड़ों की रिकवरी जांच में साबित हुई है लेकिन ना तो एफआईआर हो रही और ना रिकवरी। जांच पर कार्रवाई दिखाने के नाम पर निलंबन तो एक सामान्य प्रक्रिया है।
अब सत्ता बदल चुकी है, वन मंत्री करारी हार का सामना कर चुके हैं। खबर तो यह है कि उनके काफी करीबी रहे श्रीनिवास राव जो की करोड़ों रुपए का घोटाला करके बैठे हैं, उन पर जांच बिठाई जाएगी। ऐसी सुगबुगाहट के बीच चर्चा यह भी है कि अगर वन मंडल की फाइल खुली तो शमा फारूकी पर भी जांच की आंच आने से नहीं बच सकती। शमा फारूकी ने तो विधानसभा के सदन में दस्तावेजी तौर पर गलत जानकारी देकर गुमराह करने का दुस्साहस किया है जिस पर जानकार बताते हैं कि विधानसभा को गुमराह करने की हिमाकत पर एफआईआर तो दर्ज होना ही चाहिए। भाजपा विधायक धरमलाल कौशिक ने यह मामला सदन में उठाया जरूर, लेकिन वह भी न जाने क्यों खामोश बैठ गए?
अब यह नई सरकार में बनने वाले नए मुख्यमंत्री और नए वन मंत्री के साथ-साथ कटघोरा के नए विधायक प्रेमचंद पटेल भी का दायित्व होगा कि वह कटघोरा वन मंडल में हुए घोटाले की फाइल की परतें खोलें।


फेंसिंग कार्य मे जंगल की लकड़ी का पोल लगाकर सीमेंट खम्भे का निकाला लाखों रुपए, शासन हीनता से भ्रष्ट्रसुरों के बढ़े हौसले
लगता है कटघोरा वनमंडल को तात्कालीन डीएफओ शमा फारुखी के जमाने से भ्रष्ट्राचार की खुली छूट मिल गई है, जिसके कारण वर्तमान डीएफओ श्रीमती प्रेमलता यादव के कार्यकाल में भी शासन की विभिन्न योजनाओं सहित कैंपा मद, नरवा विकास योजना के मद से लेकर विभिन्न मदों के तहत जंगल मे होने वाले कार्यों में मंगल ही मंगल किया जा रहा है। चैतमा वन परिक्षेत्र में कुछ दिन पहले डब्ल्यूबीएम सड़क घोटाला के बाद एक और घोटाला सामने आया है जिसमें फेंसिंग कार्य के दौरान जंगल की लकड़ी गाड़कर सीमेंट के खंभे का पैसा निकाला गया और एएनआर (प्राकृतिक पुनरूत्पादन) कार्य के अंतर्गत ठूंठ कटाई और लकड़ी खंभे से कांटा तार फेंसिंग कार्य में भारी अनियमितता कर लाखों- करोड़ों रुपये का भ्रष्ट्राचार डीएफओ ने एसडीओ, रेंजर के साथ मिलकर किया है।
उल्लेखनीय है कि कोरबा जिले के कटघोरा वनमण्डल अंतर्गत चैतमा रेंज के बारीउमराव आरेंज क्षेत्र 541 कूप क्रमांक 08 में 6300 रनिंग मीटर लागत 939000 रुपये के स्थान पर सड़क के दोनों ओर सिर्फ 500 रनिंग मीटर ही लकड़ी खंभे से कांटा तार फेंसिंग का कार्य होना दिख रहा है। जिसमें प्रथम दृष्टया भारी भ्रष्टाचार प्रतीत हो रहा है। एक स्थानीय ग्रामीण मजदूर के अनुसार 20 रुपये प्रति नग में जंगल से काटकर लकड़ी के खंभे का जुगाड बना लिया गया और मानक के विपरीत 14×14 गेज के स्थान पर कम गेज की मोटाई वाला कांटा तार लगाया गया है। विभागीय सूत्रों के बताए अनुसार प्रोजेक्ट के अनुसार 4m/kg के 5 स्टेंड लगाना था तथा 7 रो में कांटा तार लगाए जाने का नियम है जिसमे 2 रो डायगोनल फिक्स किया जाना था।पहला रो जमीन सतह से 9 इंच की ऊंचाई पर दूसरा पहले से 9 इंच के अंतर तथा तीसरा चौथा व पांचवे रो में 12 इंच का अंतर होना चाहिए परंतु यहां खानापूर्ति मात्र किया गया है। लकड़ी खंभा या आरसीसी पोल को 30×30 *45 cm साइज का गढ्ढा खोदकर 1:3:6 के अनुपात में कंक्रीट से फिक्स किए जाने का नियम है, लेकिन यहां नाम मात्र गढ्ढा खोदकर मिट्टी से पाटा गया है। इसके अतिरिक्त इस कार्य में वर्ष 2022-23 के लिए लगभग 780000 रुपये की राशि ठूठ ड्रेसिंग, क्लीनिंग, अग्नि सुरक्षा, जुताई तथा अन्य आकस्मिक व्यय के नाम पर फर्जी निकाल लिया गया है जबकि उपरोक्त कोई भी कार्य नही हुआ है यही नहीं कूप क्रमांक 08 के कक्ष क्रमांक 25 राहा तथा कूप क्रमांक 08 के कक्ष क्रमांक 78 चैतमा में 2-3 सौ आरसीसी पोल दिखाने मात्र के लिए गिराया गया है लेकिन बिल व्हाउचर प्रोजेक्ट के अनुसार पूरे का बनाया गया है।
इसमें दोष काम कराने वाले वन कर्मचारियों का नहीं है। क्या करें बेचारे, जितना खंभा और तार डीएफओ ने सप्लाई में लिया उतने का ही काम कराया गया है, क्योंकि सप्लाई में ही कांटा मार लिया गया। हालांकि जंगल में लकड़ियों को गाड़ कर भी कंटीले तार का घेरा लगाया जाता रहा है लेकिन इस मामले में लकड़ियों को गाड़ने का ऑर्डर कैंसिल करके सीमेंट के पोल पर तार लगाने संबंधित निर्देश दिया गया था। इस बारे में जानकारी लेने के लिए कटघोरा डीएफओ श्रीमती प्रेमलता यादव को फोन लगाया गया तो उनका नंबर कवरेज से बाहर मिला।
कम खरीदी में पूरा बिल का चल रहा खेल, शासन अनजान या आंखों में बंधी पट्टी
गौरतलब हो कि शासन द्वारा बनाया गया कोई भी प्रोजेक्ट गलत नही होता लेकिन सही और गुणवत्तायुक्त प्रोजेक्ट भ्रष्ट अधिकारियों की धनलिप्सा की भेंट चढ़ जाया करती है। शासन कटघोरा वनमंडल में हो रहे खुला भ्रष्ट्राचार को लेकर अनजान है या आंखों में पट्टी बंध गई है, यह तो शासन स्तर ही जाने, लेकिन इस वनमंडल में हो रहे खुले तौर पर भ्रष्ट्राचार की खबर लगातार प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक्स व सोशल मीडिया में आने के बाद भी भ्रष्ट्रसुरों पर कार्रवाई न होना शासन हीनता को उजागर करता है। उक्त मामले में एक वन कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सामान खरीदी का अधिकार डीएफओ का है और वो सप्लायर से मात्र 40 प्रतिशत ही सामग्री मंगाते हैं चाहे गिट्टी हो सीमेंट या अन्य सामग्री, और इतने मात्र में ही काम कराने का मौखिक निर्देश रहता है तो काम पूरा कैसे होगा?
लेकिन बिल व्हाउचर पूरे का मंगा कर तथा सप्लायर से भी पूरे का बिल लेकर आहरण किए जाने का वर्तमान डीएफओ प्रेमलता यादव ने अपना ट्रेंड बना लिया है। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार लकड़ी खंभे का तो मांग पत्र ही इस डिवीजन ने करीब 2 माह पहले ही निरस्त कर चुका है तो लकड़ी खंभे का काम कैसे हुआ? काम भले ही लकड़ी खंभे से हुआ है परंतु बिल आहरण आरसीसी पोल का हो रहा है। भ्रष्टाचार का यह खेल डीएफओ के निर्देश पर खेला जा रहा है तथा यह कार्य इसी तरह से अन्य रेंज में हुए हैं। यदि उच्चाधिकारी समय रहते ईमानदारी पूर्वक ध्यान दें तो एएनआर कार्य भी बड़ा घोटाला सामने आएगा।