भागवत कथा में आज चौथे दिन भगवताचार्य ने जड़भरत कथा, अजामिलो व्याख्यान, प्रहलाद चरित्र एवं नरसिंह अवतार प्रसंग पर व्यासपीठ से दिया प्रवचन, तिवारी परिवार ने नृत्य एवं संगीत के साथ की भागवत भगवान की आरती

गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। नगर भक्तिमय भागवत कथा में रमा हुआ है। नयना भिरामी भागवत पंडाल में श्रद्धालुजनों की खचाखच भीड़ भागवत कथा का संगीतमय आयोजन का कार्यक्रम का धर्मलाभ जमकर उठा रही है। इस 41-42 डिग्री की दोपहर भीषण गर्मी भी जनमानस के धार्मिक उन्माद को रोक नहीं पा रही है। भागवत आयोजक परिवार के राजा परिक्षित के रूप में दीपक तिवारी-बबली तिवारी की उपस्थिति में आज भागवत कथा के चौथे दिवस व्यासपीठ से भगवताचार्य पं. भागीरथी तिवारी ने कथा में आज के प्रसंग जड़भरत की कथा, अजामिलो व्याख्यान, प्रहलाद चरित्र, नरसिंह अवतार पर विस्तृत एवं सरल शब्दों में कहा कि नरसिंह अवतार द्वारा वध से हमें हमारे भीतर अधर्म, गुण और विकार को समझना होगा। हमारे प्रबल शत्रु काम, क्रोध और लोभ है। काम को मन में बिठाकर हम सुख की अनुभूति कर रहे है, अहम में क्रोध को छिपाकर स्वाभिमान की रक्षा कर रहे है और बुद्धि में लोभ को बसाकर संचय करने में लगे है। इस तरह जब हम अपने मन, बुद्धि और चित्त में इन शत्रुओं को बिठा रखे है तो जीवन में कैसे विजय प्रापत कर पाएंगे। कैसे सफल होंगे। जीवन में सफल होना है तो दान करें, दया करें और गलत प्रवृत्तियों का दमन करें। अजामिल की सरलता से ही उन्हें प्रभु की प्राप्ति हुई। आज भागवत कथा के प्रारंभ में दीपक-बबली तिवारी सहित परिजनों श्रीमती निर्मला देवी पाण्डेय, प्रभा-नरेश शुक्ला, कामिनी-अखिलेश शुक्ला, आयुषी-आदित्य तिवारी, महिमा, अक्षत, विमला तिवारी, प्रतिभा-जगतनारायण तिवारी, प्रेमलता-राजेश, नीलम-ब्रिजेश, हितेश, स्वाति-मुकेश, अनामिका-आयुष आदि ने संगीतमय गीतों के बीच झुमते नाचते गाते हुए भागवत भगवान की पूजा अर्चना कर नमन किया। आज के प्रवचन में भगवताचार्य पं. भागीरथी तिवारी ने कहा कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए। हम यहां इस संसार में क्यों आए है। सिर्फ कमाने, दौलत अर्जित कर खाने, ऐशो आराम एवं सोने के लिए। अगर ऐसा ही हमारा जीवन है तो हम में और पशु में क्या अंतर है। ऐसे नहीं चलेगा। हमारे जन्म का उद्देश्य पुरूषार्थ को पाना है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यानी धर्म को लेकर अर्थ कमाएं अर्थ को लेकर सत्कर्म करेंगे तब जाकर हमें मोक्ष की प्राप्ति होगी। हमारा जीवन मिला है परोपकार करते हुए अपने कर्म को श्रेष्ठ बनाने के लिए। जिस दिन मनुष्य धर्म को अपने जीवन से जोड़ लेता है उसदिन से उसकी मूल यात्रा प्रारंभ होती है। परोपकार करना ही जीवन की श्रेष्ठता है। क्योंकि हम उनके अंश है जो सीमित नहीं असीमित है। प्रत्येक जीव में भगवान दर्शन करें और अपने जीवन को कृतार्थ करें। आज की कथा में संगीत के चलते श्रद्धालु भाव में बहते नृत्य करने लगते थे कथा का रसान करते श्रोता झूम रहे थे। कथा के पांचवे दिन कल रविवार को रामजन्म-कृष्णजन्म पर भगवताचार्य पं. भागीरथी तिवार अपना प्रवचन दोपहर 2 बजे से प्रारंभ करेंगे।

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