डीएमएफ का दंश: क्या भ्रष्ट्राचार के गढ़ जिला गरियाबंद में ईडी करेंगी जांच?हाई मास्ट लाईट लगाने डीएमएफ से जिले के 5 मिमी स्टेडियम में फूक दिए डेढ़ करोड़ से ज्यादा

6 माह से नही लगा कनेक्शन,पुलिस भर्ती की तैयारी में लगे युवा और खिलाड़ी बोले सुबह एक बार हो पा रही प्रेक्टिस,शुरू करने से पहले शराब की खाली बोतलें बाहर फेकना पड़ता है।

गरियाबंद(गंगा प्रकाश)। भ्रष्टाचार एक ऐसा जहर है जो देश, संप्रदाय, समाज और परिवार के कुछ लोगों के दिमाग में बैठ गया है। इसमें केवल छोटी सी इच्छा और अनुचित लाभ के लिए सामान्य जन के संसाधनों की बरबादी की जाती है। किसी के द्वारा अपनी ताकत और पद का गलत इस्तेमाल करना है, फिर चाहे वो सरकारी या गैर-सरकारी संस्था क्यों न हो। इसका प्रभाव व्यक्ति के विकास के साथ ही राष्ट्र पर भी पड़ रहा है और यही समाज और समुदायों के बीच असमानता का बड़ा कारण बन चूका है। साथ ही ये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रुप से राष्ट्र के प्रगति और विकास में बाधा बनते जा रहा है।बताना लाजमी होगा कि भ्रष्ट भूपेश सरकार में ऐसा कोई विभाग और ऐसी कोई योजना नहीं बची जिसमे नौकरशाहों द्वारा भ्रष्टाचार को अंजाम नहीं दिया गया हैं। भूपेश के भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र को जब जब भी कमीशन खोरी और
भ्रष्टाचार का मौका मिला उन्होने कोई मौका नहीं छोड़ा और जहां मौका नहीं मिला वन्हा मौका खोजा गया बताते चले की भ्रष्ट्राचार के गड़ बन चुके जिला गरियाबंद में वित्तीय वर्ष 2022_23 में मिले डीएमएफ फंड का ज्यादातर उपयोग सरकारी व उपयोगी संस्थानों को चका चौंध करने में खर्च किया गया।इसी कड़ी में ही जिले के देवभोग के अलावा मैनपुर, गरियाबंद,छुरा व राजिम के मिनिस्टेडियम में 40_40 लाख का बजट हाई मास्ट लाईट के लिए खर्च का प्रावधान किया गया। काम कराने का जिम्मा अलग अलग संस्थानों को सौपा गया लेकिन वर्क आर्डर राजधानी के सत्तासीन नेता और तत्कालीन अफसरों के इर्द गिर्द रहने वाले चहते ठेका कम्पनी को मिला।क्रियान्वयन एजेंसी भी प्रशासनिक मुखिया के मूड के आधार पर तय हुआ।छुरा,राजिम ओर मैनपुर का कार्य लोकनिर्माण विभाग के बिजली शाखा के माध्यम से हुआ,गरियाबंद में इस काम को कराने वन विभाग की जिम्मेदारी मिली थी,जबकि देवभोग स्टेडियम का कार्य देवभोग सरपंच के कंधे पर रख कर कराया गया।सभी कार्य के लिए 15 मई से 25 मई के बीच वर्क आर्डर जारी कर दिया गया था।ठेका कंपनियों ने अक्तूबर माह में काम खत्म कर ट्रायल भी पूरी कर ली। हाई मास्क लाईट को जलाने 3 किलो वाट से ज्यादा भार क्षमता की बिजली चाहिए ,जिसके लिए सभी जगह एक एक ट्रांसफार्मर की जरूरत है ,लेकिन इसके अभाव में स्टेडियम के हाई मास्क का उपयोग नही हो पा रहा है।बिजली विभाग के कार्यपालन अभियंता अतुल तिवारी कहते है कि उन्हें अब तक किसी भी स्थान से ट्रांसफार्मर लगाने के लिए कोई आवेदन या नही प्राप्त हुआ है ।

दो के बजाए एक टाइम की प्रेक्टिस,पहले सफाई करना पड़ता है

इन दिनों पुलिस व सेना की भर्ती की तयारी भारी संख्या में कर रहे है।ग्रामीण अंचल में दौड़ लगाने का विकल्प है,लेकिन जिला मुख्यालय में युवाओं को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।इसके साथ ही खेलो इंडिया व अन्य स्पोर्ट्स के पुरुष महिला खिलाड़ी भी सुबह से गरियाबंद मिनी स्टेडियम में आ रहे है।महिला खिलाड़ी खिलेश्वरी ध्रुव ने बताया की पूरे मैदान व बैठने के जगह में शराब के बोतल पड़ा रहता है प्रेक्टिस शुरू करने से पहले बोतल फेकना पड़ता है,कूद के लिए रखे गए बालू में तक बोतल तोड़ कर कांच डाल दिया जाता है,बोलीबॉल कोच कौशल वर्मा ने कहा की गर्मी में जल्दी तेज धूप निकल आता है,लाइट जलता तो शाम का भी वर्क आउट हो जाता।महिला आरक्षक भर्ती के लिए मेहनत में लगी मिलंती दुर्गे ने बताया की बिजली प्रबंध और शाम को असामाजिक लोगो के डेरा से मुक्ति दिलाने जिला प्रशासन को लिखित आवेदन किया गया है।

डेढ़ गुना बड़ा प्राक्कलन बनाया,पर बिजली प्रबंध का जिक्र नही

प्राक्कलन और हुए काम को देख कर डेढ़ गुना बड़ा स्टीमेट बनाए जाने का अंदेशा है।जिन क्रियान्वयन एजेंसी ने टेंडर जारी किया वहा 12 से 15 प्रतिशत विलो में काम लिया गया है।काम के स्टीमेट में सबसे जरूरी था ट्रांसफार्मर जिसका स्वीकृति प्राक्कलन में जिक्र तक नहीं किया गया।बिजली का खर्च कैसे मेंटेन किया जाएगा इसका भी कोई जिक्र नही है।अफसर बदले तो काम के गुणवत्ता पर भी नजर गई, एसे में भुगतान का लटकना भी स्वाभाविक था।अब तक इस मद का केवल आधा पैसा ही सबंधित को जारी किया गया है ,आधा रुपए के लिए एजेंसियां आज भी कलेक्ट्रोरेट व जिला पंचायत का चक्कर लगा रहे हैं।

क्या कहते हैं जिम्मेदार

रीता यादव,सीईओ जिला पंचायत गरियाबंद से चर्चा करने पर उन्होंने कहा कि इस मामले में जो भी पूछना है कलेक्टर से पूछिए,सारा फाइल उन्ही के पास दे दिया गया है।मद में पैसे बाकी है, उन्ही से ट्रांसफार्मर लगाने की प्रक्रिया की जा रही है।

छत्तीसगढ़ में DMF घोटाला मामले में IAS रानू समेत 10 के खिलाफ नामजद FIR दर्ज हो चुकी हैं

बता दें कि निवर्तमान कांग्रेस सरकार में डीएमएफ फंड छत्तीसगढ़ नौकरशाहों के लिए चारागाह बना हुआ था, डीएमएफ
घोटाले मामले में आईएएस रानू साहू समेत 10 नामजद आरोपी बनाए गए हैं। जिसमे कारोबारी संजय शेंडे, अशोक अग्रवाल, मुकेश अग्रवाल, रिषभ सोनी समेत बिचौलियों की भूमिका निभाने वाले मनोज द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहु, अब्दुल और शेखर समेत अन्य लोकसेवको के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया गया है।डीएमएफ मामले में IAS रानू साहू के खिलाफ नामजद FIR हैं। बता दें कि दरअसल कांग्रेस कार्यकाल में कोरबा जिले में डीएमएफ के पैसों का बड़े पैमाने पर बंदरबांट की शिकायत मिली थी। मामले में जांच के बाद अब ED की शिकायत पर EOW ने जो मामले दर्ज किए हैं, उसके मुताबिक इस अनियमितता में तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू समेत अनेक विभागीय अफसर भी संलिप्त हैं। शिकायत के मुताबिक कई टेंडर्स में अफसरों को सीधे-सीधे 40 फीसदी रकम पहुंचाई गई है।ईडी के प्रतिवेदन रिपोर्ट के आधार पर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने अपराध क्रमांक-02/2024 धारा 120बी, 420 भादवि एवं धारा-7, धारा-12 के तहत् मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। शिकायत के मुताबिक, कोरबा में तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू के साथ उनके मातहत अफसरों ने निविदा भरने वाले के साथ सांठगांठ की थी। डीएमएफ के पैसों से कराए जाने वाले कामों की निविदाओं के आबंटन में, बिल पास कराने के लिए, सामानों के वास्तविक मूल्य से कई गुना ज्यादा दाम के बिल पास किए गए।शिकायत में जिन ठेकेदारों पर अफसरों को लाभ पहुंचाने की शिकायत है, उनमें संजय शेण्डे, अशोक कुमार अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, रिषभ सोनी और बिचौलिए मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल, शेखर के नाम शामिल हैं। जानकारी के मुताबिक कोरबा जिले में DMF से टेंडर्स के आंबटन में बड़े पैमाने पर पैसों का लेन-देन हुआ है। गलत ढंग से टेंडर की दरें तय कर ठेकेदारों को सीधे लाभ पहुंचाया गया, जिसके कारण प्रदेश शासन को बड़ी आर्थिक हानि हुई है।अब सवाल यहा है की क्या गरियाबंद जिला में भी डीएमएफ में हुए कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार की जांच ईडी करेगी?

भ्रष्टाचार का अर्थ,भ्रष्टाचार क्या है?

बड़ा सवाल यहां है कि भ्रष्टाचार क्या होता है?भ्रष्टाचार दूषित और निन्दनीय, पतित और अवैध आचरण भ्रष्टाचार है। अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा विहित कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक यथोचित रूप से पालन न करके, अवैध ढंग से, विलम्ब से तथा कार्यार्थी से रिश्वत लेकर अनुचित रूप में कार्य करना भी भ्रष्टाचार है। भ्रष्ट आचरण का अभिप्राय ऐसा आचरण और क्रियाकलाप है जो आदर्शों, मूल्यों, परम्पराओं, संवैधानिक मान्यताओं और नियम व कानूनों के अनुरूप न हो। भारतीय संविधान, भारतीय मूल्यों और आदर्शों के साथ किया जाने वाला विश्वासघात भी भ्रष्ट आचरण है। व्यापारी खाद्य वस्तु और पेट्रोलियम पदार्थों में मिलावट करते हैं, तीन रुपये की वस्तु के तेरह रुपये वसूलते हैं, यह भी भ्रष्टाचार ही है। भ्रष्टाचार सामाजिक स्वास्थ्य के लिए विकार उत्पन्न करने का कारण है।

रिश्वत और बेईमानी का पर्याय

भ्रष्टाचार रिश्वत और बेईमानी का पर्याय है। इसके मूल में है अत्यधिक धनोपार्जन की लिप्सा (हवस)। जब धन-सम्पत्ति के संग्रह की व्यापक छूट हो तो आगा-पीछा सोचने की जरूरत ही क्या है ? इस छूट से सच्चाई पर स्वत: पर्दा पड़ जाएगा, न्याय पर सोने का पानी चढ़ जाएगा | यदि धन-संग्रह की खुली छूट न होती, तो न्यायालय के चपरासी, बाबू और रीडर न्यायाधीश से भी अधिक अमीर कैसे होते ? हाजी मस्तान, बखिया और पटेल जैसे तस्कर-सम्राट भारत में कैसे फलते-फूलते ? शेयर किंग हर्षद मेहता भारत के अर्थ-तंत्र की जड़ें कैसे हिला पाता ? प्रशासनिक शिथिलता भ्रष्टाचार की जड़ है। रिश्वत के बिना ‘फाइल’ हिलेगी नहीं और कार्य की सम्पन्नता पर प्रश्नवाचक चिन्ह बना ही रहेगा। लिपिक से लेकर मंत्री तक, लालफीताशाही की गिरफ्त में हैं। उस बंधन को काटने के लिए चाहिए बख्शिश, रिश्वत, मेहनताना, दस्तूरी।

राजनीतिक भ्रष्टाचार

भारत आज भ्रष्टाचार के रोग से ग्रस्त है। यहाँ का राजनीतिज्ञ सूखा-पीड़ित जनों में वितरणार्थ आए अनाज की तो बात ही क्या पशुओं का ‘चारा’ तक खा जाता है। दोषी और भ्रष्ट नेताओं के विरुद्ध मुकदमे वापिस हो जाते हैं । समाजद्रोही तत्त्वों को न केवल सरकार का प्रश्नय मिलता है, अपितु उन्हें स्वच्छन्द पापाचार का लाइसेन्स भी मिलता है, तो भ्रष्टाचार रुकेगा कैसे ?सरकारी कानूनों के नाम पर लोगों के उचित और सही काम भी जब फाइलों में लटकते रहेंगे, परियोजनाओं की पूर्ति के लिए खुलकर कमीशन मिलते और माँगे जाते रहेंगे, सरकारी खरीद में हिस्सा मिलता रहेगा तो लोगों में नैतिकता का बोध कैसे कायम रह पाएगा ?यदि राजनीति में व्यक्ति, सिद्धांत, विचारधारा एवं संगठन की बजाय धन ही प्रभावी होता जाएगा और बिना पैसे वाले निष्ठावान कार्यकर्ता की अवहेलना की जाती रहेगी, तो सार्वजनिक जीवन में पवित्र मूल्यों की स्थापना कैसे हो पाएगी ?श्री अटलबिहारी वाजपेयी का मानना था कि ‘भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक उदासीनता की स्थिति भी है क्योंकि भ्रष्टाचार ने संस्थागत रूप ले लिया है।लोग मानने लगे हैं कि भ्रष्टाचार न सिर्फ प्रशासन में बल्कि जीवन के विभिन क्षेत्रों में इस हद तक फैल चुका है कि उसे मिटाया नहीं जा सकता।

इंसान के दिमाग को भ्रष्ट कर रहा है

हम सभी भ्रष्टाचार से अच्छे तरह वाकिफ है और ये अपने या किसी भी देश के लिए में नई बात नहीं है। इसने अपनी जड़ें गहराई से लोगों के दिमाग में बना ली है। ये एक धीमे जहर के रुप में प्राचीन काल से ही समाज में रहा है। ये मुगल साम्राज्य के समय से ही मौजूद रहा है और ये रोज अपनी नई ऊँचाई पर पहुँच रहा है साथ ही बड़े पैमाने पर लोगों के दिमाग पर हावी हो रहा है। समाज में सामान्य होता भ्रष्टाचार एक ऐसा लालच है जो इंसान के दिमाग को भ्रष्ट कर रहा है और लोगों के दिलों से इंसानियत और स्वाभाविकता को खत्म कर रहा है।भ्रष्टाचार पर अंकुश कुछ प्रभावी कदम उठाकर लगाया जा सकता है। सबसे पहले इस बात की जरूरत है कि मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवारों का चुनावी खर्चा सरकार सहन करे। दूसरे, गोपन कानून को संशोधित किया जाए, क्योंकि जितने पर्दे कम होंगे, पाप भी उतने ही कम होंगे। तीसरे, शक्तियों का विकेद्रीकरण हो। शक्तियों के विकेन्द्रीकरण से चीजें पंचायती हो जाएँगी और भ्रष्टाचार करना आसान नहीं होगा। चौथे, रचनात्मक जवाबदेही से युक्त राजनीतिक लोकाचार स्थापित हो । इसके तहत कोई अफसर या राजनेता यह कह कर नहीं बच सकता कि उसने चोरी नहीं की, बल्कि उसके रहते चोरी हुई। यही उसे गैर जिम्मेदार साबित करने के लिए पर्याप्त है और पाँचवें, राजनीतिक कार्रवाइयों के लिए एक गैर-राजनीतिक ‘पीपुल्स प्लेटफॉर्म’ (जन-परिषद्‌) बने, जो स्थायी विपक्ष की भूमिका अदा करता रहे ।

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