
रिपोर्ट:मनोज सिंह ठाकुर
रायपुर(गंगा प्रकाश)। वेश्यावृत्ति, यौन सेवाओं के आदान-प्रदान के लिए भुगतान, आज दुनिया भर के अधिकांश देशों में एक प्रमुख सामाजिक समस्या मानी जाती है, इसे कैसे संबोधित किया जाए इस पर बहुत कम या कोई सहमति नहीं है। इस लक्ष्य लेख में, हम उन दो प्राथमिक स्थितियों को उजागर करते हैं जो असमानता और वेश्यावृत्ति के बीच संबंधों के बारे में अकादमिक सोच को रेखांकित करती हैं: (1) वेश्यावृत्ति मुख्य रूप से पदानुक्रमित लिंग संबंधों की एक संस्था है जो पुरुषों द्वारा महिलाओं के यौन शोषण को वैध बनाती है, और (2) वेश्यावृत्ति शोषित श्रम का एक रूप है जहां नवउदारवादी पूंजीवादी समाजों में सामाजिक असमानता (वर्ग, लिंग और नस्ल सहित) के कई रूप मिलते हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य हैं: (ए) प्रत्येक परिप्रेक्ष्य का समर्थन या खंडन करने के लिए उपलब्ध प्रमुख दावों और अनुभवजन्य साक्ष्य की जांच करना; (बी) प्रत्येक परिप्रेक्ष्य से जुड़ी नीति प्रतिक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करें; और (सी) मूल्यांकन करें कि सामाजिक संस्थानों और रोजमर्रा की प्रथाओं में यौनकर्मियों के सामाजिक बहिष्कार को कम करने में कौन सी प्रतिक्रियाएँ सबसे प्रभावी रही हैं। जबकि वैश्विक स्तर पर समग्र प्रवृत्ति “वेश्यावृत्ति समस्या” पर पहले परिप्रेक्ष्य को स्वीकार करने और दमनकारी नीतियों को लागू करने की रही है, जिसका उद्देश्य वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं की रक्षा करना, पुरुष खरीदारों को दंडित करना और सेक्स क्षेत्र को हाशिए पर रखना है, हमारा तर्क है कि सबसे मजबूत अनुभवजन्य साक्ष्य इसे अपनाने के लिए है। दूसरा परिप्रेक्ष्य जिसका उद्देश्य एकीकृत नीतियों को विकसित करना है जो यौनकर्मियों को आजीविका कमाने और समान रूप से शामिल होने के संघर्ष में सामना करने वाली सामाजिक असमानताओं को कम करती है। हम अधिक मजबूत अनुभवजन्य अध्ययनों के आह्वान के साथ अपनी बात समाप्त करते हैं जो विभिन्न क्षेत्रों के भीतर और यौन कार्य तथा अन्य अनिश्चित व्यवसायों के बीच सेक्स क्षेत्र की रणनीतिक तुलना का उपयोग करते हैं।बताना लाजमी होगा कि इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्पा सेंटर के आड़ में चल रहे जिस्मफरोशी के इस गंदे धंधे को पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगाने के लिए राजधानी में राष्ट्रीय बजरंग दल ने रैली निकालकर विरोध भी दर्ज कराया था उसके बावजूद स्पा सेंटरों हौसले बुलंद है शहर के कुल 2500 स्पा सेंटर है जिसमें लगभग 250 कांग्रेसी नेताओं के व्दारा संचालित हो रहे है मजे कि बात ये है कि इन स्पा सेंटरों में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का भी पैसा लगा है। भाजपा शासन आने के बाद भी इन कांग्रेसी स्पा सेंटरों पर कार्रवाई न होना इस बात का तस्दीक करता है कि उच्च अधिकारियों का वरदहस्त प्राप्त है इन स्पा के संचालकों को। मान -मर्यादा संस्कृति को ताक में रख कर कांग्रेसी नेता और पार्षद वाटसएप मेसेस के जरिए ग्राहकों को लुबा रहे है और तरह-तरह के आफर दे रहे है।इनके स्पा सेंटरों में कोलकोता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई के अलावा स्थानीय और नेपाल, भूटान, थाईलैंड, बैंकांक -पटाया की युवतियां उपलब्ध रहती है।
पूरे प्रदेश में गली मोहल्लों से लेकर राजधानी के मॉल और संभ्रात कालोनियों में किराए और निजी मकान में चल रहे स्पा सेंटर के नाम पर वैश्यावृत्ति का कारोबार चल रहा हैं।कम समय में अधिक पैसा कमाने की लालच में दो नंबरी लोगों ने स्पा सेंटर खुलवा दिए जहां बाड़ी़ मसाज के नाम पर देहव्यापार का कारोबार बेखौफ चल रहा है। राजधानी रायपुर सहित छत्तीसगढ़ में इन दिनों स्पा सेंटरों की भरमार हो गई है जिधर देखो उधर स्पा सेंटर दिखाई दे रहा है। वास्तव में स्पा सेंटर की आड़ में वेश्यावृत्ति के धंधे जोरशोर से फल-फूल रहा हैं। पुलिस द्वारा समय-समय पर शिकायत मिलने पर कार्रवाई तो करती है लेकिन छुटभैये नेताओं और पार्षदों द्वारा मिल रहे संरक्षण की वजह से वे बच निकलते हैं। स्पा सेंटर के मैनजरों को पकड़ लिया जाता है और संचालक बच निकलता है। स्पा सेंटरों के संचालक पक्ष और विपक्ष दोनों पार्टी के नेताओं के समर्थक बताते हुए पुलिस पर रौब भी झाड़ते हैं और इस तरह से बिना किसी कार्रवाई के वे बच निकलते हैं हालांकि कई स्पा सेंटरों के संचालक स्थानीय पार्षद और कुछ छुटभैये नेताओं के मुंहलगे भी होते हैं जिनके आड़ में वे स्पा सेंटर बेखौफ होकर चलाते हैं।
विदेशी युवतियां भी उपलब्ध

स्पा सेंटर्स के संचालक विदेशी युवतियों को टूरिस्ट वीजा पर लाकर वेश्यावृति करवाते हैं।स्पा सेंटरों का मुख्य आकर्र्षण होती है ये विदेशी बालाएं जो कस्टमरों को फुल मसाज कर फुल कमाई करती है। रायपुर पुलिस ने कई बार स्पा सेंटरों में छापा मारकर विदेशी युवतियों और ग्राहकों को पकड़ा भी है । लेकिन ग्राहक के रसूखदार होने के वजह से आसानी से थाने स्तर से ही छूट जाते हैं। पुलिस ने एक ऐसे कई स्पा सेंटर पर कार्रवाई करते हुए विदेशी युवतियों और ग्राहकों को गिरफ्तार किया था। उसके बाद भी स्पा सेंटरों में जिस्मफरोशी का व्यापार रुकने का नाम नहीं ले रहा है। छत्तीसगढ़ में अलग-अलग जगहों पर स्पा सेंटर्स की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा है। सेंटर के संचालक विदेशी युवतियों को टूरिस्ट वीजा पर लाकर देह व्यापार में धकेल रहे हैं।
स्पा संचालक व्हाट्सएप मेसेज करते हैं
स्पा सेंटर के संचालक विदेशी युवतियों का 3 से 5 हजार में सौदा करते हैं। स्पा सेंटर में जाने के बाद ही संचालक ग्राहकों से यही पूछते हैं की देशी लडक़ी से मसाज करना है या विदेशी लडक़ी से। वास्तव में मसाज तो एक बहाना होता है बस यहीं से जिस्मफरोशी का गन्दा खेल शुरू होता है। टूरिस्ट वीजा पर युवतियों को थाइलैंड, मलेशिया, नेपाल और भूटान से स्पा सेंटर लाते हैं। और मसाज पार्लर की आड़ में घिनौना काम करवाते हैं। राजधानी के पॉश कालोनियों के अलावा कई इलाकों में जगह-जगह स्पा सेंटर हैं। यहां देह व्यापार का काम धड़ल्ले से चल रहा है। जैसे ही एक स्पा पर कार्रवाई की बात सामने आती है तो स्पा सेंटर के संचालक और युवतियां स्पा खाली करके कुछ दिनों के लिए गायब हो जाती हैं। इन स्पा सेंटरों में मसाज काम और देह व्यापर ज्यादा होता है।
महिला आयोग ले संज्ञान
दिल्ली महिला आयोग के तर्ज पर छत्तीसगढ़ महिला आयोग को भी इसे संज्ञान में लेना चाहिए और दिशा निर्देश जारी करना चाहिए। ताकि समाज में तेजी से बढ़ रहे इस बुराई पर रोक लगाया जा सके।
सहायता करने वालों पर कड़ी कार्रवाई हो
पुलिस की टीम शिकायत होने पर अपना काम तो करती जरूर है लेकिन छुटभैये नेताओं के दखल के कारण स्पा संचालक तुरंत छूट जाते हैं। अनैतिक काम में लिप्त ऐसे लोगों की मदद करने वालों पर कड़ी कार्यबाई करना चाहिए ताकि भविष्य में वे ऐसे लोगों की मदद करने से बचे रहें।
शहर के सभी मुहल्लो में स्पा सेंटर का जाल
वीआईपी रोड, मंदिर हसौद के बड़े रिसार्ट, तेलीबांधा, मरीन ड्राइव के आसपास के कालोनियों में, मोवा, सड्डू, जोरा, लाभांड़ी के बड़े होटलों में, रायपुरा, रिंगरोड, भाठागांव, टाटीबंध, स्टेशन रोड, गुढिय़ारी के आसपास के कालोनियों में, कटोरातालाब, राजातालाब, महादेवघाट रोड, अमलेश्वर में नव निर्मित कालोंनियों में स्पा के नाम पर देहव्यापार का गोरखधंधा बेखौफ चल रहा है। पुलिस को संज्ञान होने के बाद भी शिकायत का इंंतजार करती है। पुलिस जब सख्त कार्रवाई करने का मन बनाकर रेड मारती है तो तथाकथित नेता और अधिकारी मामले को ले देकर सुलझा लेते है और मामला टांय-टांय फिस्स हो जाता है।
वेश्यावृत्ति क्या है ?

जब कोई स्त्री किसी पुरुष से जो उसका पति नहीं है अथवा पुरुष किसी स्त्री से जो उसकी पत्नी नहीं है, यौन सम्बन्ध स्थापित करती/करता है और उसके बदले में धन या अन्य किसी प्रकार की वस्तु या सेवा प्राप्त करता, करती है तो उसे सामान्य रूप से वेश्याव॒त्ति माना जाता है। स्त्रियों एवं कन्याओं के अनैतिक व्यापार (निरोधक) अधिनियम 1956 (Suppression of Immoral Traffic Prevention Act, 1956-SITA) के अनुसार वेश्या वह स्त्री है जो कि धन या वस्तु के बदले में अवैध यौन सम्बन्धों के लिए अपना शरीर पुरुष को सौंपती है। इस प्रकार अवैध सम्बन्ध के लिए शरीर अर्पित करना वेश्यावत्ति कहलाती है।
आधुनिक समाज में वेश्याओं को विभिन्न आधारों पर अनेक श्रेणियों में बांटा जाता है। व्यावसायिक दृष्टिकोण से वर्तमान युग में प्रायः तीन प्रकार की वेश्याएं होती हैं-
- वे वेश्याएं जो संगठित अड्डों पर देह बेचती हैं और जिनका नियंत्रण अड्डे के मालिकों के हाथ में रहता है।
- वे वेश्याएं जो सर्वथा स्वतंत्र रूप से अपना व्यवसाय चलाती हैं।
- वे स्त्रियां जो पूर्णरूप से वेश्या नहीं हैं किन्तु पारिवारिक जीवन में रहते हुए भी आर्थिक लाभ हेतु चोरी-छिपे इस व्यवसाय को अपनाती हैं।
यह माना जाता है कि वेश्यावृत्ति सबसे पुराना पेशा है। यह सबसे पुराना पेशा हो या न हो लेकिन यह विश्व के सभी समाजों में पाया जाता है।
भारत जैसे समाज में जहाँ महिलाओं की यौन-आकांक्षा उच्चस्तर के मूल्य और मानकों से जुड़ी हो, उसे यौन-आकांक्षा पर स्वतंत्रता नहीं दी गई है और उसकी इस इच्छापूर्ति का अधिकार पति को दिया गया है। भारतीय समाज में वेश्यावृत्ति संस्कृति के विपरीत कार्य के तौर पर देखा जाता है। फिर भी वेश्यावृत्ति समाज का अभिन्न हिस्सा है। सामान्य रूप से हर शहर के एक हिस्से को वेश्यावत्ति वाला इलाका या रेड लाइट इलाके के रूप में जाना जाता है। वेश्यावत्ति को सामाजिक कलंक मानने के कारण यह एक सामाजिक समस्या के रूप में जानी जाती है।
भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार प्रदान करता है। लेकिन वेश्यावत्ति में शामिल यौन-कर्मियों को गरिमापूर्ण जीवन नसीब नहीं हो पाता है। इस तरह देखा जाए तो वे देश के ऐसे नागरिक होते हैं जिन्हें समानता का अधिकार प्राप्त नहीं है। भारत में वेश्याओं को सामान्य श्रम कानूनों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है लेकिन उनके बचाव एवं पुनर्वास का प्रयास किया जाता है।
भारत में वेश्याव॒त्ति का सबसे प्रमुख कारण गरीबी को माना जाता है। इस पेशे को अपनाने वाली ज्यादातर महिला लाचारीवश ही इसे अपनाती हैं। वे सामान्यतः: अशिक्षित भी होती हैं और उनके पास किसी कार्य का विशिष्ट कौशल भी नहीं होता है। दुर्भाग्य से यदि ऐसी महिलाओं का सामना दलालों से हो जाए तो उनके इस पेशा में आने की सम्भावना बढ़ जाती है। कई माता-पिता गरीबी से तंग आकर अपनी बेटियों को बेच देते हैं। उनका यह भी मानना होता है कि घर के मुकाबले चकलाघर में उसकी बेटी का जीवन बेहतर होगा। कई महिलाओं एवं लड़कियों को उनके रिश्तेदारों, पति एवं पुरुष-मित्रों द्वारा भी इस पेशे में धकेला जाता है। कई लोग महिलाओं को शादी या नौकरी का झांसा देकर उन्हें चकलाघर पहुंचा देते हैं। कई बार पड़ोसी देशों से लड़कियों को बहुत कम पैसे में खरीदकर इस पेशे में शामिल किया जाता है। यह भी देखा गया है कि सड़क के किनारे भीख मांगने वाली लड़कियों को भी चकलाघर तक पहुंचा दिया जाता है। इन महिलाओं एवं लड़कियों की स्थिति चकलाघर में बन्द कैदियों जैसी ही होती है।
भारत के कूछ राज्यों में धार्मिक रीति-रिवाजों और रूढ़ियों के कारण भी कूछ स्त्रियों को वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। ओड़िशा, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कुछ धार्मिक केन्द्रों में यह प्रथा बनी हुई है। दक्षिण भारत में इसे देवदासी प्रथा, महाराष्ट्र में मुरली, कर्नाटक में ‘वासवी’ एवं ‘नामिका’ आदि कहा जाता है। यह प्रथा धार्मिक वेश्यावृत्ति की श्रेणी में आती है।
देह व्यापार कब अपराध की श्रेणी में आता है, जानिये सुप्रीम कोर्ट का आदेश
भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत, वेश्यावृत्ति वास्तव में अवैध नहीं है, लेकिन कुछ गतिविधियां ऐसी हैं जो वेश्यावृत्ति का एक बड़ा हिस्सा है और कुछ प्रावधानों के तहत दंडनीय हैं।हमारे देश में देह व्यापार और इसमें शामिल लोगों को समाज के तानों को झेलना पड़ता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देह व्यापार से संबंधित कानून में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत से बदलाव किए हैं। इसके बावजूद लोगों के बीच जानकारी के अभाव में असमंजस है कि यदि देश में देह व्यापार एक अपराध है फिर कैसे यह व्यवस्था शहरों देश विभिन्न हिस्सों में जारी है।
इसके पीछे कुछ कानूनी वजहें हैं जिनके बारे में आईए समझते हैं कि कब यह अपराध की श्रेणी में आ जायेगा और कब नहीं। में मुंबई के सत्र अदालत ने मजिस्ट्रेट के आदेश रद्द करते हुए एक आश्रय गृह को 34-वर्षीया महिला को रिहा करने का निर्देश दिया. महिला को देह व्यापार के आरोप में वहां (आश्रय गृह में) रखा गया था। अदालत ने कहा कि यौन-कार्य को तभी अपराध कहा जा सकता है, जब यह ऐसे सार्वजनिक स्थान पर किया जाए जिससे दूसरों को दिक्कत होती है।मजिस्ट्रेट की अदालत ने 15 मार्च को महिला को देखभाल, सुरक्षा तथा आश्रय के नाम पर मुंबई के आश्रय गृह में एक साल तक रखने का निर्देश दिया था।
उस महिला ने सत्र अदालत का रुख किया था, और उसकी सुनवाई के उपरान्त अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सीवी पाटिल ने मजिस्ट्रेट अदालत के पिछले महीने के आदेश को रद्द कर दिया।मामले पर विस्तृत आदेश हाल ही में जारी किया गया।
रिपोर्ट्स के अनुसार, उपनगरीय मुलुंड में एक वेश्यालय पर छापे के बाद महिला को फरवरी में हिरासत में लिया गया था. इसके बाद, आरोपी के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई और उसे दो अन्य लोगों के साथ मझगांव में एक मजिस्ट्रेट अदालत में पेश किया गया,चिकित्सकीय रिपोर्ट पर गौर करने के बाद मजिस्ट्रेट ने कहा था कि वह बालिग है और उसे आदेश की तारीख से देखभाल, सुरक्षा तथा आश्रय के लिए एक वर्ष तक देवनार में नवजीवन महिला वस्तिगृह में रखा जाए,सत्र अदालत में दायर अपनी याचिका में महिला ने किसी भी अनैतिक गतिविधियों में शामिल होने से इंकार किया था।सत्र अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा, कानून के अनुसार यौन कार्य में शामिल होना अपने आप में कोई अपराध नहीं है, बल्कि सार्वजनिक स्थान पर यौन-कार्य अपराध है, जिससे दूसरों को परेशानी हो।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
देह व्यापार, वेश्यावृत्ति या जिस्मफरोशी सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2010 में दिए गए एक महत्वपूर्ण आदेश के बाद अब यह एक तरह से पेशा हो गया है।सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश 2010 के एक मामले पर सुनवाई करते हुए आया जो मानव तस्करी और सेक्स वर्कर्स के रिहैबिलिटेशन से जुड़ा है।भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत, वेश्यावृत्ति वास्तव में अवैध नहीं है, लेकिन कुछ गतिविधियां ऐसी हैं जो वेश्यावृत्ति का एक बड़ा हिस्सा है और कुछ प्रावधानों के तहत दंडनीय हैं।वेश्यावृत्ति उन्मूलन विधेयक 1956 के मुताबिक,सेक्स वर्कर निजी तौर पर यह काम कर सकती है।
अनैतिक ट्रैफिक रोकथाम
अधिनियम -1986 के तहत कोई सेक्स वर्कर किसी को शारीरिक संबंध बनाने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकती,ऐसा करना एक दंडात्मक अपराध माना गया है।
इसके अलावा, कॉल गर्ल अपना फोन नंबर सार्वजनिक नहीं कर सकतीं। ऐसा करते पाए जाने पर उन्हें 6 महीने तक की सजा और जुर्माना भी लग सकता है।
वेश्यावृत्ति एक पेशा
19 मई, 2022 को, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सेक्स वर्कर्स को सम्मान और जीवन के अधिकार की गारंटी है. इस तरह, यौनकर्मियों को कानूनी रूप से परेशान और गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है, लेकिन वेश्यालय चलाना अभी भी अवैध हैं।
सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण दिशा – निर्देश
- अगर कोई अपनी मर्जी से इस पेशे में आता है तो उसे अरेस्ट, दंडित, परेशान या छापेमारी के जरिए प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए।
- वेश्यालयों पर छापे के दौरान सेक्स वर्कर्स को अरेस्ट, परेशान या जुर्माना नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि अपनी मर्जी से सेक्स वर्क करना अवैध नहीं है।सिर्फ वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है।
- अगर कोई सेक्स वर्कर अपने खिलाफ हुए यौन उत्पीड़न की शिकायत पुलिस में करती है तो उनके साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए. यौन उत्पीड़न की शिकार सेक्स वर्कर्स को हर सहायता मिलनी चाहिए. जिनमें तुरंत मेडिकल और कानूनी सहायता उपलब्ध कराना शामिल है।
4.अगर किसी सेक्स वर्कर का बच्चा है. तो बच्चे को मां से दूर नहीं करना चाहिए. बच्चे की देखभाल का पूरा हक मां का होना चाहिए,अगर किसी नाबालिग को सेक्स वर्कर्स के साथ रहते हुए पाया जाता है तो ये नहीं माना जाना चाहिए कि उसकी तस्करी की गई है।
देह व्यापार कब अपराध की श्रेणी में आता है: अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 के तहत देह व्यापार से संबंधित कई प्रावधान किया गए है।
- कोई व्यक्ति जो वेश्यागृह को चलाता है, उसका प्रबंध करता है तो उसे अपराध माना जाएगा।
- किसी मकान, या स्थान का मालिक, किराएदार, भारसाधक, एजेंट के द्वारा वेश्यागृह के लिए इस्तेमाल करना अपराध।
3.सार्वजनिक स्थानों या उसके आस-पास वेश्यावृत्ति करना अपराध।
4.अगर ऐसा अपराध किसी होटल में किया जाता है तो उस होटल का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।
देह व्यापार को वैधानिक बनाने के खतरे?
भारतीय स्त्री की गुलामी की जंजीरें सदियों से पुरुष, पूंजी और धर्म के हाथों में रही हैं। यह भी कहा जा सकता है कि मानव समाज में ताकत के जितने रूप और संस्थान हैं, वे सब या तो स्त्री का शोषण करते हैं या अपने स्वार्थ के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं। जिस्मफरोशी भी स्त्री-शोषण का ही एक रूप है। अपने देश में जिस्मफरोशी को वैध करने सवाल पर बहस पहले से होती रही है, जिसे हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग ने अपने प्रस्ताव के जरिए फिर से गरमा दिया है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने जिन तर्कों के साथ यौन कर्म को कानूनी जामा पहनाने का सुझाव दिया है उनका आधार व्यावहारिकता है और कमोबेश वही हैं जो ऐसी मांग करने वाले संगठन और लोग लंबे समय से देते रहे हैं। चूंकि आयोग की अध्यक्ष ने अपना प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रिमंडल की अधिकार-प्राप्त समिति के सामने रखने की बात कही है, लिहाजा अब यह बहस ज्यादा प्रासंगिक हो गई है।
राष्ट्रीय महिला आयोग का दावा है कि वेश्यावृत्ति को वैधानिक कर देने से महिलाओं की तस्करी रुक जाएगी। साथ ही इसकी वैधता के बाद सुरक्षित तरीके से यौन संबंध बनाना आसान होगा। आयोग का यह भी कहना है कि इससे यौन कर्म में लगी महिलाओं का एचआईवी सहित तमाम संक्रामक यौन रोगों से भी बचाव हो सकेगा। आयोग की अध्यक्ष कहना है कि यौन-कर्म को वैधता प्रदान करने के साथ ही ऐसे कानूनी प्रावधान किए जाने चाहिए, जिससे इस पेशे में लगी महिलाओं के कामकाज के घंटे और उनका पारिश्रमिक तय हो सके ताकि उनके स्वास्थ्य की भी उचित देखभाल हो सके। निश्चित ही आयोग के उद्देश्यों से असहमत नहीं हुआ जा सकता। मगर इन उद्देश्यों से भी कहीं अधिक गंभीर है महिलाओं के इस असम्मानजनक कर्म से जुड़ा यह मुद्दा, जिससे कुछ व्यावहारिक प्रति-प्रश्नों के साथ समाज और मनुष्य को देखने के नजरिए से संबंधित सवाल भी जुड़े हैं। आयोग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इन ज्वलंत सवालों के तार्किक जवाब भी तलाशे और समाज के सामने पेश करे।
दरअसल यह पूरा धंधा महिलाओं के घोर अमानवीय शोषण पर आधारित है। बदनाम बस्तियों में स्थित कोठों के मालिक-मालकिन, दलाल और संगठित गिरोहों की मिलीभगत से गरीब तबके की अशिक्षित लड़कियां तस्करी के जरिए लाई जाती हैं और फिर उन्हें इस अमानवीय पेशे में धकेल दिया जाता है, जहां उन्हें अपने बारे में कोई निर्णय लेने के लिए एक क्षण के लिए भी आजादी मयस्सर नहीं होती। इसलिए सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वेश्यावृत्ति को वैधता प्रदान कर देने के बाद देश में इस कर्म का कितना विस्तार हो जाएगा। जिस्मफरोशी की वैधता से जुड़े दूसरे देशों के अनुभव बताते हैं कि जहां-जहां भी वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता दी गई है, वहां इस काम से जुड़ी महिलाओं की हालत पहले से बेहतर नहीं है। जर्मनी में इसको कानूनी रूप देने के बाद वहां महिला देहकर्मियों की संख्या संख्या दोगुनी हो गई। इसके बावजूद बहुमंजिली इमारतों मे चलने वाला यह कर्म अब भी 90 फीसद गैरकानूनी है। नीदरलैंड में इसको वैधानिक बना देने के बाद भी वहां इस कर्म से जुड़ी महिलाओं की कार्य-स्थितियां बेहद खराब हैं। नीदरलैंड सरकार खुद अब यह मानती है कि उसने इस काम को कानूनी मान्यता देकर एक राष्ट्रीय भूल की है।
एक समय गुलामी को हमेशा से चलती आई व्यवस्था के रूप में देखा जाता था। इसी विचार के वशीभूत हमारे देश में आज यौन-दासता और वेश्यावृत्ति को भी स्वाभाविक बताया जा रहा है और इसे कानूनी जामा पहनाने का आग्रह किया जा रहा है। यूरोप और अमेरिका में भी न केवल यौन कारोबार से जुड़े, बल्कि सरकार और महिला आंदोलनों में भी कई ऐसे लोग हैं जो वेश्यावृत्ति का समर्थन करते हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2010 में यौनकर्मी महिलाओं के पुनर्वास के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका की सुनवाई करने वाली बैंच के एक जज ने कहा था कि अगर महिलाओं की एक बड़ी तादाद देह व्यापार में संलग्न है तो हमें इसे कानूनी दर्जा दे देना चाहिए, ताकि यौन कारोबार को विनियमित किया जा सके।
ऐसी टिप्पणी करते हुए इस अमानवीय पेशे के अंतहीन दलदल में धकेल दी गई छोटी-छोटी बच्चियों की दुर्दशा पर गौर करना जरूरी नहीं समझा गया। यही नहीं, कुछ हलकों में तो बड़ी आसानी और बेशर्मी के साथ जिस्मफरोशी के कारोबार में निवेश की बात भी कही जाती है। शायद इसलिए कि इसमें आमतौर पर गरीब और निचली समझी और कही जाने वाली जातियों की औरतें होती हैं। कुछ लोग तो बड़े भोलेपन से भूख और वेश्यावृत्ति के बीच एक ‘वास्तविक’ चुनाव की बात भी करते हैं। सवाल है कि क्या ऐसा सरकार को महिला नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी से बरी करने की मंशा से नहीं किया जा रहा?
अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम 1956 के तहत यौन कर्म के व्यवसायीकरण को अपराध माना जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक महिला अपने शरीर का इस्तेमाल एकल आधार पर कर सकती है। परंतु सार्वजनिक तौर पर उसे इस कर्म को करने की मनाही है। महिला आयोग का इरादा इसी कानूनी निषेध को खत्म कर महिलाओं के यौन कर्म से जुड़े कारोबार को वैधता प्रदान कराना है। लेकिन अहम सवाल यह है कि आखिर महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा देने के बजाय उनके देह व्यापार को वैधता प्रदान करने का रास्ता क्यों चुना जाना चाहिए? आखिर क्यों इन महिलाओं को अन्य कामों की बजाय देह कर्म को ही विकल्प के रूप में चुनना पड़ रहा है? एक दशक पहले 2004 में केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने एक सर्वे कराया था, जिसमें देश में 28 लाख से भी ज्यादा महिलाएं देह कर्म के कारोबार मे संलिप्त पाई गई थीं।
अनुमान है कि आज तो यह आंकड़ा 35 लाख को पार कर चुका होगा। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें एक तिहाई के करीब कम उम्र की बच्चियां शामिल हैं। इसी सिलसिले में बाल संरक्षण आयोग की एक रिपोर्ट भी बताती है कि हर साल 60 हजार से भी अधिक बच्चियों को उनके घर से बड़े शहरों में लाकर देह व्यापार में झोंक दिया जाता है। इस कारोबार में पूरा का पूरा एक संगठित तंत्र शामिल है। हैरत की बात है कि वर्ष 2013-14 में गायब हुए 67 हजार बच्चों में से 45 फीसद बच्चों की तस्करी देह व्यापार के लिए की गई थी। स्थिति यह है कि आज देश मे हर आठ मिनट में एक बच्ची का अपहरण हो जाता है।
राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा देह कर्म को कारोबार की शक्ल में वैधता प्रदान कराने के पीछे की मंशा इस पेशे से जुड़ी महिलाओं का आर्थिक शोषण रोकने, उन्हें कोठा संचालकों, दलालों और पुलिस की प्रताड़ना से बचाने तथा रोजगार की गारंटी प्रदान करने की लगती है। अहम सवाल यह है कि देश में देह कारोबार को कानूनी दर्जा दे देने से क्या ऐसे नेटवर्क टूट जाएंगे? या इससे उपरोक्त गिरोहों को खुलकर देह व्यापार चलाने का मौका नहीं मिल जाएगा? भारत में सबसे बड़ी बदनाम बस्ती या रेड लाइट एरिया माने जाने वाले कोलकाता के सोनागाछी में कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं का अनुभव बताता कि जब वहां सुरक्षित यौन संबंध के उपाय लागू किए गए, तो कंडोम अपनाने के प्रति अनिच्छुक ग्राहकों से कोठों के मालिक और दलाल ज्यादा पैसा वसूलने लगे।
यह सच है कि इस कारोबार के प्रति झुकाव के लिए देश की गरीबी और बेरोजगारी के साथ ही सरकारों की गरीब विरोधी नीतियां अधिक जिम्मेदार हैं, लेकिन क्या देह व्यापार को वैध कर देने से महिलाओं में गरीबी और बेरोजगारी की समस्या किसी भी हद तक कम हो जाएगी। हकीकत यह है कि कोई भी महिला खुशी-खुशी अपनी इच्छा से इस काम को नहीं अपनाती। बहुआयामी अनवरत शोषण और रोजगार की विकल्पहीनता ही उन्हें मजबूरन इस कर्म की ओर खींचकर ले आती हैं। देश मे देह व्यापार को वैधता मिलने के बाद इससे जुड़ी समस्याओं में और इजाफा ही होगा। महिला और बाल तस्करी बढ़ने से महिलाओं व बच्चियों की दुर्गति तो होगी ही, साथ ही कॉलगर्ल जैसे अभिजात्य देह कर्म का भी और ज्यादा फैलाव होगा। तथाकथित आधुनिकता की ओर बढ़ते समाज की खुली और भोगवादी जीवनशैली ने आज स्त्री-पुरुष के पुरातन वैवाहिक संबंधों का रूपांतरण कर दिया है। विवाह संस्था लगातार कमजोर पड़ रही है। देह कर्म का कारोबार भी वैवाहिक रिश्तों के बिगड़ने-टूटने का एक कारक बना हुआ है।
फिर सबसे अहम सवाल यह भी है कि क्या किसी सभ्य समाज में यौन-क्रिया के व्यापार की इजाजत होनी चाहिए? यह दलील कतई स्वीकार्य नहीं हो सकती कि इस धंधे को आज तक रोका नहीं जा सका, इसलिए इसे वैधानिक दर्जा दे देना चाहिए। इसे आज तक रोका नहीं जा सका है तो यह हमारी शासन और समाज व्यवस्था की विफलता है। दरअसल यह धंधा इसलिए चल रहा है, क्योंकि पुरुष प्रधान समाजों ने महिलाओं को इंसान न समझ कर सिर्फ और सिर्फ भोग की वस्तु और बच्चे पैदा करने की मशीन ही समझा है। चूंकि समाज में इस मानसिकता से संचालित देह के सौदागर मौजूद हैं, अतः सिरे से अस्वीकार्य इस बुराई को भी पेशा कहा जाना आम प्रचलन में है।
जिस्मफरोशी को वैधानिक रूप देने के बजाय जरूरत इस बात की है कि इससे संबंधित मौजूदा कानून में ऐसे संशोधन किए जाएं, जिससे इस काम में लगी लाचार-बेबस महिलाएं ही मुजरिम न ठहराई जाएं। कानून के निशाने पर तो वे लोग होने चाहिए, जो इस धंधे का संचालन करते हैं और जो पैसे के जोर से यौन-सुख खरीदते हैं। उन पुलिसकर्मियों को भी सुधारने की जरूरत है जो ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई न कर पीड़ित महिलाओं का ही आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से शोषण करते हैं।
सही मायनों में यह सरकारों ही जिम्मेदारी बनती है कि वह उन हालात पर भी ध्यान दें जिनके चलते किसी महिला को देह कर्म अपनाने पर मजबूर होना पड़ता है। सरकारें इस पेशे में लगी महिलाओं को ऐसे विकल्प उपलब्ध कराएं जिनसे कि वे इस दलदल से बाहर निकल सकें और उनका रचनात्मक पुनर्वास हो सके। ऐसा करने के बजाय इस काम को वैधानिकता प्रदान करना निश्चित ही दूसरी सामाजिक बुराइयों को न्योता देना होगा। लक्ष्य अंततः इस बुराई का आमूल-चूल खात्मा होना चाहिए।