
गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। चैत्र नवरात्र पर्व में क्षेत्र के धार्मिक आस्था के केन्द्र और पर्यटन स्थल मां घटारानी देवी स्थल में 205 मनोकामना ज्योति कलश की स्थापना किया गया है। वही बोडकी, फुलझर, जोगीडीपा, चरभट्ठी, देवगांव द्वारा संचालित जंगल में विराजमान कर्राबाघिन देवी स्थल में 170 जोत जलाए गए हैं। तथा काली माता सुमेर पहाड़वाली कुण्डेल में 21 आस्था के जोत घट स्थापित किया गया है। शनि देव स्थल दुर्गा मंदिर कुण्डेल में भी सैकड़ों मनोकामनाएं के लिए जोत जलाए गए हैं। काली माता कुण्डेल पुजारी भगत खोरबाहरा विगत कई वर्षों से यहां देवी की सेवा कर रहे हैं। यहां बारहो महिना भक्त, माता के शरण में आते हैं। भगत ने कहा मानव जनजीवन में धर्म की महत्ता अपरंपार है। यह सबकी की उदात्त संस्कृति का ही परिणाम है कि सब धर्मों को मानने वाले लोग अपने-अपने धर्म को मानते हुए भाईचारे की भावना के साथ सदियों से एक साथ रहते चले आ रहे हैं। यही कारण है कि धर्म व संस्कृति सर्वोत्तम माने गए हैं। विभिन्न धर्मों के साथ जुड़े कई पर्व भी हैं, जिन्हें कोने-कोने में श्रद्धा, भक्ति और धूम-धाम से मनाया जाता है, चैत्र नवरात्र पर्व उन्हीं में से एक है। कुण्डेल की काली मंदिर सुमेर पहाड़वाली के पुजारी भगत खोरबाहरा ने आगे कहा नवरात्र पर्व के नौ दिनों के दौरान आदिशक्ति जगदम्बा के नौ विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है। ये नौ दिन वर्ष के सर्वाधिक पवित्र दिवस माने गए हैं। इन नौ दिनों का विशेष महत्त्व है। नवदूर्गा और दस महाविद्याओ में काली माता ही प्रथम और प्रमुख हैं। देवता, मानव, दानव सभी इसके कृपा के बिना अधूरे हैं। नवरात्र में नौ दिनो में भगवती के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री नौ रूपों की अराधना करनी चाहिए, इससे जीवन में सुख, समृद्धि एंव शांति बनी रहती है।