
इधर मुख्यालय से महज पांच किमी की दूरी पर हो रहा रेत का अवैध उत्खनन और परिवहन,उधर प्रशासन ने 25 किमी दूर जाकर की खानापूर्ति वाली कार्यवाही
रिपोर्ट:मनोज सिंह ठाकुर
आरंग/रायपुर(गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ राज्य से भूपेश की भ्रष्ट सरकार तो जनता ने उखाड़ फेका हैं किंतु भ्रष्ट नौकरशाह आज भी अपनी कुर्शियो में चिपके हुए है जिसका नतीजा यहा है कि छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में प्राकृतिक संसाधनों को गिद्ध की तरह नोचने वाले माफिया अपने सियासी रसूख की बदौलत खुलेआम नदियों का सीना चीर कर रेत का अंधाधुंध अवैध खनन करते रहते हैं।सवाल उठता है कि आखिर छत्तीसगढ़ में कब तक चलता रहेगा अवैध रेत उत्खनन व परिवहन का कार्य? कब तक सत्ता पक्ष व विपक्ष के लोग गुंडागर्दी,दादागिरी,मारपीट,खौफ व प्रभाव का इस्तेमाल कर रेत और गौण खनिज का उत्खनन अवैध तरीके से करते रहेंगे। दिनरात चैन माउंटेन(पुकलेण्ड)से रेत की अवैध खुदाई कर सैकड़ों ट्रीप परिवहन हो रहा है।जिससे राजस्व को एक बड़ी हानि हो रही हैं तो वंही एनजीटी के सारे नियमो और सारे कानून कायदा को सरेआम ठेंगा दिखाते हुए चैन माउंटेन मशीन से नदीयों का सीना छलनी किया जा रहा है और जिम्मेदार मौन साधे हुए है। दिनदहाड़े कानून की धज्जियां उड़ाते हुए हो रहे रेत के अवैध कारोबार में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों,ओहदे पदो पर बैठे जिम्मेदारों सहित छुट भैया और चुरकुट नेताओं का नाम सामने आ रहा है।जिसके वजह से प्रशासन अपना रोना रोने में लगे है।गरियाबंद में हो रहे रेत के गोरखधंधे का तार रायपुर के ओहदेदार पदो पर बिराजमान जिम्मेदार से जुड़ने का खबर सामने आ रहीं हैं जो कि अवैध रेत खनन पर खनन माफियाओं को जिला प्रशासन की खुली छूट मिली हुई है।नतीजन सरकार को लाखो रुपए का राजस्व का चूना लगाया जा रहा है।गौरतलब है कि शासन द्वारा अवैध रेत खनन रोकने तरह-तरह के नियम बनाकर प्रशासन को लगातार निर्देश दे रहे है।तो दूसरी ओर जिला प्रशासन कि नाक के नीचे खुलेआम नियमों को ताक में रखकर नदीयों में रेत खनन का अवैध कारोबार खूब फल फूल रहा है।इस पूरे मामले में जिम्मेदार की संलिप्तता,तगड़ी सेटिंग और माफियाओं को खुला संरक्षण साफ तौर पर नजर आ रहा है।जिसके कारण बेरोकटोक रेत की अवैध खुदाई और परिवहन लगातार जारी है।कभी कभार दिखावे की कार्यवाही कर जिम्मेदार अपना पल्ला झाड़ लेते है।खनन माफिया की पहुंच और पैसों के दम पर सारे नियम और कानून कायदों को जेब में रख लिए है।जिसे प्रशासन भी रोकने में बेबस नजर आ रहे है।जिसके कारण खनन माफिया की दबंगई खुलकर सामने आ रहा है।
अवैध रेत खुदाई में खनन माफियाओं को संरक्षण के चलते इनके हौसला इतना बुलंद है कि इसे किसी भी कानून का डर नहीं है।जिसके कारण बेधड़क चैन माउंटेन से रेत खुदाई कर कानून के विपरीत कार्य कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में भी कोई गुरेज नहीं कर रहे है।बताना लाजमी होगा कि एक बार फिर
इन दिनों आरंग क्षेत्र के महानदी किनारे लगभग आधा दर्जन गांवों में रेत का अवैध उत्खनन और परिवहन धड़ल्ले से जारी है। रेत माफिया बेखौफ होकर दिन-रात ‘छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा’ कही जाने वाले महानदी से बेहिसाब रेत निकाल कर महानदी का अस्तित्व खतरे में डाल रहे है। वर्तमान समय में आरंग के ग्राम पारागांव, राटाकाट,गौरभाट,हरदीडीह, कुटेला सहित कई गांवों में महानदी से रेत का अवैध उत्खनन जारी है। आपको बता दे कि आरंग से महज 05 किलोमीटर दूर ग्राम पारागांव और राटाकाट में रेत का अवैध उत्खनन और परिवहन धड़ल्ले से चल रहा है किंतु रायपुर खनिज विभाग और स्थानीय प्रशासन की नजर इस पर नही जा रही,जबकि बीती रात आरंग से लगभग 25 किलोमीटर दूर ग्राम कुरूद में जाकर खनिज विभाग,आरंग राजस्व विभाग और आरंग पुलिस की संयुक्त टीम ने एक चैन माउंटिंग मशीन और 04 रेत से भरी हाईवा को जब्त कर सिर्फ खानापूर्ति की कार्रवाई की है। आपको बता दे कि उसी दिन यानी बुधवार को पारागांव के रेत खदान में 04 चैन माउंटिग मशीन महानदी में पानी के अंदर से रेत निकाल रही थी और लगभग 50 से 60 हाईवा वाहन रेत के अवैध परिवहन में लगी हुई थी। वही महानदी के लगभग 03 किलोमीटर किनारे तक रेत का अवैध भंडारण किया गया है। सूत्रों के अनुसार इन जगहों पर राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण के कारण कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।वही कुछ माह पहले हरदीडीह रेत खदान में खनिज विभाग की टीम को बंधक बनाने और मारपीट की घटना के बाद से डरी हुई खनिज विभाग की टीम भी बेबस और लाचार नजर आ रही है।अब देखने वाली बात है कि खनिज विभाग और स्थानीय प्रशासन कुंभकर्णी नींद से कब जागती है और क्षेत्र में हो रहे रेत के अवैध उत्खनन और परिवहन पर कब ईमानदारी से कार्यवाही करती है।
पुनः चैन माऊटिंग से खनन एवं परिवहन प्रारंभ कर नियम कानून को अंगूठा दिखा रहे है एवं बकायदा फोन में व्हॉटसप के माध्यम से ट्रांसपोर्टरों को रेत लोडिंग की जानकारी एवं रेत लोडिंग की दर 10 चक्का हेतु 2200, 12 चक्का 2700, 14 चक्का 3200 एवं 16 चक्का 3700 तथा रॉयल्टी 10 घनमीटर की 2000, 12 घनमीटर 2500 दी गई। ग्रामीणों का कहना है कि इन दिनों रेत माफिया विभागीय अधिकारी एवं राजस्व अधिकारियों से मिलीभगत एवं सेटिंग कर धड़ल्ले से रेत उत्खनन कर लाखें रूपयों की अवैध कमाई कर रहे है। शिकायत करना, अनियमियता सार्वजनिक होना यह सब अपनी जगह होता रहता है। मामूली दिखावटी कार्यवाही के बाद फिर रेत माफिया अपनी नियमित अवैध उत्खनन एवं परिवहन में लिप्त हो जाता है। ग्रामीणों ने कहा कि रेत माफिया अधिकारियों से सेटिंग कर जब चाहें जहां चाहें मनमाने ढंग से अवैध खनन करते है और प्रतिदिन मनमाने ढंग से हाईवा गाड़ी से रेत का परिवहन कर जहां शासन को हजारों रूपयों की रायल्टी की चोरी तो करते है साथ ही पर्यावरण का नुकसान, ग्राम्यांचल की सड़कों के साथ साथ दुर्घटनाओं को आमंत्रित करते है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब एनजीटी ने सभी खदानों के एनओसी को रदद करते हुए खनन पर रोक लगा दी है। सिर्फ स्टॉक के परिवहन को अनुमति दी गई है। इसके बाद भी अवैध रूप से खनन दिन रात चल रहा है। उन्हीं रेत खदानों से बिना पिटपास के हाईवा में लोडिंग दी जा रही है। इतना ही नहीं बिना अनुमति के ही कई रेत घाटों से दिन रात अवैध खनन कर लाखों रूपए की रेत बेची जा रही है। शासन द्वारा रेत लोडिंग एवं रायल्टी का मूल्य 980 रूपए निर्धारित किया गया है। सभी रेत घाटों में 2500 से 3000 रूपए लोडिंग चार्ज लिया रहा है। रेत की रॉयल्टी का मूल्य 650 रूपए है। गाड़ी मालिकों से 2000 रूपए अतिरिक्त लिया जा रहा है। इसके बाद भी रॉयल्टी पर्ची नहीं दी जा रही है। बता दें कि खनिज विभाग की छूट के कारण जिले में अवैध रेत खनन अब भी तेजी से चल रहा है। इसकी वजह से अवैध परिवहन लगातार किया जा रहा है। रेत खदान की स्वीकृति संदेह के दायरे में है। रेत ठेकेदार ने बताया कि हम रेत भंडारण से रेत उठा रहे है। खनन का सवाल ही नहीं है। जबकि रेत माफिया कहने को तो भंडारण से रेत परिवहन बताते है परंतु मौका मिलते ही चैनमाऊटिंग से नदी के बीच में जाकर अवैध खनन किया जाता है। धड़ल्ले से काफी ऊंची कीमत में हाईवा लोड की जाती है। ग्रामीणों ने क्षेत्र के रेत खदानों में नियमानुसार खनन एवं परिवहन किए जाने की मांग की है। ताकि हर समय ग्रामीण संशय में न रहे। और अवैध खनन परिवहन में अंकुश रखा जा सकें।
कार्यवाही के बाद भी रेत चोर प्रशासन को दिखा रहा हैं ठेंगा
बताते चले की अंचल की रेत खदानों में मनमाने स्तर पर दिन रात 24 घंटे बड़ी बड़ी अनेकानेक चैन माऊंटिग मशीनों से धड़ल्ले से नदी के बीचों बीच पानी के अंदर से, स्वीकृत रकबा से कई कई एकड़ अनाधिकृत स्थानों से खनन एवं जब चाहें तब बड़ी बड़ी हाईवा वाहनों से किया जा रहा बेताहा मात्रा में रेत का परिवहन इन दिनों क्षेत्र की सुर्खियों में है। इस तरह खुले आम बड़े बड़े जनप्रतिनिधियों, विभागीय अधिकारियों, पुलिस, खनिज विभाग के नाक के नीचे किया जा रहा यह अवैध एवं अनैतिक कृत्य रेत माफिया अपने दम पर कर रहा हो यह संभव प्रतीत नहीं होता। यदा-कदा झुटपुट कार्यवाही, ग्रामीणों की शिकायत, छत्तीसगढ़ सरकार को अवैध खनन के नाम पर कोसती मिडिया की हेडलाईन के चलते अधिकारी कार्यवाही की औपचारिकता तो करते है। परंतु ऐसी बनावटी और दिखावटी कार्यवाहियों से अभ्यस्त रेत माफिया रूकने का नाम नहीं ले रहे है। इन दिनों आरंग क्षेत्र रेत चोर अवैध खनन तथा परिवहन के मामले में सारी हदें पार कर रहे है। ग्रामीणों ने बताया कि यहां लंबे समय से स्वीकृत रेत खदान काफी अनियमितता एवं भ्रष्टाचार के बल पर निर्बाध रूप से चल रही है। यहां 50 एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में बेदर्दी से खनन किया जा रहा है। एक-दो नहीं 4-4 बड़ी बड़ी चैन माऊटिंग से लगातार 24 घंटे खनन कर प्रतिदिन बड़ी मात्रा में हाईवा गाड़ी भरी जा रही है। ग्रामीणों ने कहा कि रेत माफिया के हौसले इतने बुलंद है कि ग्रामीणों की कोई भी बल, शिकायत, कठिनाई समझता तो दूर सुनना ही नहीं चाहते। मनमाने जहां चाहे वहां खनन से नदी का स्वरूप ही बदलने लगा है। बरसात का पानी समीप के खेतों में गांव में घुसने की आशंका बढ़ती जा रही है। गांव वालो की बात कोई सुनने वाला नहीं है। अधिकारियों को कई कई बार शिकायत करो, मिडिया के पास जावोंतो कभी कभार अधिकारी औपचारिक कार्यवाही करने के प्रोग्राम से ही आते है। उनके जाने के दूसरे दिन से ही फिर वही अवैध खनन, मनमाना, परिवहन, दिन-रात 24 घंटे और ज्यादा बेदर्दी से खदान का दोहन शुरू हो जाता है। लगता है कि रेत माफिया शिकायत करने वालों को चिढ़ा रहा है और कार्यवाही से होने वाले नुकसान का कई गुना वसूल कर शासन को लाखों रूपयों का नुकसान पहुंचाने आपदा है। इतनी ज्यादा, इतनी बड़ी टैक्स चोरी में रेत माफिया को अधिकारियों की राह एवं मिलीभगत न हो ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता। बीच नदी में खनन करती चैन माऊंटिग, हाईवा गाड़िया कई कई बार कार्यवाही के बाद भी अधिकारियों से सेटिंग के कारण हर बार मामूली कार्यवाही कर फिर उसी काम में लग जाती है। ग्रामीणों ने मांग की है कि अवैध खनन-परिवहन में पकड़ी गई गाड़ियों को राजसात जैसी सख्त कार्यवाही करने से ही इस प्रकार की अनियमियता पूर्ण गतिविधि से अंकुश लगाया जा सकता है। वरन इस प्रकार के कुत्ते बिल्ली के लुकाछिपी का खेल चलता ही रहेगा। जिसमें आर्थिक क्षति के साथ पर्यावरण की हानि तथा नदी का सीना छतनी होता ही रहेगा। रेत खदान में जब हमारे प्रतिनिधि ने चैन माऊटिंग देखा तो चैन माऊटिंग नदी के बीच में खड़ी थी और उसमें जब्ती किए जाने सील लगा हुआ था। इस बारे में जब खनिज अधिकारी से जानकारी ली गई तो उन्होंने कहा कि अवैध खनन के कारण चैन माऊटिंग की जब्ती की गई है। जब अवैध खनन नदी के बीच में करते चैन माऊंटिग जब्त हुई है तो इसे राजसात क्यों नहीं किया जाता मात्र मामूली फाईन करके छोड़ दिया जाता है। इस बारे में खनिज अधिकारी ने कहा कि हम कोर्ट में यह सिद्ध नहीं कर पाते कि चैन माऊटिंग अवैध खनन के उद्देश्य से नदी में उतारी गई है। समझा जा सकता है कि मिलीभगत एवं भ्रष्टाचार की राह पर खनिज अधिकारी किस प्रकार की कार्यवाही करवाते है। इस मामले में यह स्पष्ट हो जाता है कि आरंग अंचल सहित पूरे छत्तीसगढ़ में अनेकों जगह पर चल रही रेत खदान के अवैध काम में अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह अवैध काम संभव नहीं है। आरंग अंचल में चल रही अवैध खनन में सख्ती पूर्वक कार्यवाही के लिए नवनिर्वाचित विधायक से ग्रामीणों ने तत्काल कार्यवाही करवाए जाने की मांग की है।
रोजाना 2000 हाइवा निकल रहा रेत
छत्तीसगढ़ में मौजूद महानदी के मशीन लगी हुई हैं,जो दिन रात के अंधेरे में रेत चोरी कर रहें है।बताया जाता है की इन घाटों की वैधता खत्म होने के बावजूद यहा लगातार अवैध खनन जारी है। कहा जाता है काम में जुड़े सरगना वही है बस सत्ता बदलते ही सेटिंग व सेटिंग के बाद देने वाले कलेकशन का पता बदल गया है।बता दें कि गरियाबंद जिला में रेत चोरों ने अवैध रेत खनन को एक संपन्न उद्योग में बदल दिया है,कुछ चिरकुट नेता के द्वारा युवाओं और ग्रामीणों को पैसा और पावर वादे के साथ लुभाया जा रहा है।अपराध और गड्ढायुक्त नदियां एक ही सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं।गरियाबंद धमतरी,रायपुर जिला के अंतर्गत महानदी के किनारों से अवैध रूप से रेत उत्खनन करवाए जाने का कार्य बदस्तूर जारी है। जिन्हें रोकने में प्रशासनिक स्तर के आला अधिकारी इन माफिया के आगे बेबस नजर आ रहे हैं। ऐसा नहीं बल्कि सारा खेल खनिज अधिकारी की सांठ – गांठ ही चल रहा हैं।जिसका नजारा वर्तमान समय में आसानी से हथखोज में अवैध रूप से रेत उत्खनन का नजारा दिखलाई देता है। वहीं इन रेत चोरों के हौसले इतने बुलंद है कि नदियों से रेत का अवैध उत्खनन कर रहे हैं।अधिकारियों की मिलीभगत व लापरवाही से नदियों में अवैध उत्खनन व परिवहन धड़ल्ले से हो रहा है इन दिनों छत्तीसगढ़ के धमतरी,गरियाबंद ,रायपुर जिला में रेत चोर काफी सर्कीय हो गये हैं।बारिश थमने के बाद से अचानक रेत चोरों में इजाफा हो गया है। नदियों को खोखला करने का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। अवैध उत्खनन कर सैंकड़ों हाइवा ट्रक रेत का परिवहन कर रहे हैं। जिसमें नए-नए रेत माफिया नगर में घूमते फिरते हुए बड़े पैमाने पर रेत सप्लाई कर माल कमा रहे हैं जिसके चलते रेत के रेट आसमान छू रहे हैं। शासन प्रशासन समय-समय पर कार्रवाई करता है लेकिन अवैध रेत माफियाओं पर रोक लगाने में नाकाम साबित हो रहा है जिससे उनकी कार्यशैली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। अब सवाल यह है कि राजस्व खनिज सहित शासन प्रशासन सफेदपोश नेता का खुला संरक्षण क्या शासन को क्षति नहीं पहुंचा रहा है? निरंतर समाचार प्रकाशन पर भी जिला खनिज विभाग के अधिकारियों सहित स्थानीय प्रशासन इस ओर कोई ठोस पहल क्यों नहीं करता क्या कारण है? कि इस अवैध व्यवसाय की कड़ी को तोड़ने में स्थानीय प्रशासन सहित जिला प्रशासन कार्रवाई न करने पर नाकामियों सिद्ध हो रहा है। अब देखना यह है कि जो अवैध व्यवसाय प्राप्त संरक्षण के आधार पर यह व्यापार में लाखों की चांदी काट रहे हैं शासन को हो रही छती को प्रशासन रोकने में कहां तक कामयाबी हासिल करता है?
सत्ता बदली तो रेत चोर और उनके पते ठिकाने भी बदल गए
बताते चले कि छत्तीसगढ़ राज्य से पूर्ववर्ती भूपेश की भ्रष्ट सरकार को तो जनता ने तो उखाड़ फेका हैं किंतु भ्रष्ट नौकरशाह आज भी अपनी कुर्शियो में चिपके हुए है।जो की अब भाजपा नीत “विष्णु सरकार” के लिए एक बड़ा सरदर्द बने हुए हैं।सत्ता परिर्वतन के बाद रेत चोरों की टीम भी बदल गई है।जिसका नतीजा यहा है कि छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में प्राकृतिक संसाधनों को गिद्ध की तरह नोचने वाले रेत माफिया भ्रष्ट अधिकारियों से सांठ गांठ बदौलत खुलेआम नदियों का सीना चीर कर रेत का अंधाधुंध अवैध खनन करते रहते हैं।सवाल उठता है कि आखिर कर्ज में डूबे छत्तीसगढ़ का राजस्व को कब तक लूटा जाएगा? अवैध रेत उत्खनन व परिवहन का कार्य? कब तक सत्ता पक्ष व विपक्ष के लोग गुंडागर्दी,दादागिरी,मारपीट,खौफ व प्रभाव का इस्तेमाल कर रेत और गौण खनिज का उत्खनन अवैध तरीके से करते रहेंगे? हथखोज में दिनरात चैन माउंटेन(पुकलेण्ड)से रेत की अवैध खुदाई कर सैकड़ों ट्रीप परिवहन हो रहा है।जिससे राजस्व को एक बड़ी हानि हो रही हैं तो वंही दूसरी ओर एनजीटी के सारे नियमो और सारे कानून कायदा को सरेआम ठेंगा दिखाते हुए चैन माउंटेन मशीन से महा नदी का सीना छलनी किया जा रहा है और जिम्मेदार मौन साधे हुए है। दिनदहाड़े कानून की धज्जियां उड़ाते हुए हो रहे रेत के अवैध कारोबार में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों,ओहदे पदो पर बैठे जिम्मेदारों सहित छुट भैया और चुरकुट नेताओं का नाम सामने आ रहा है।जिसके वजह से प्रशासन अपना रोना रोने में लगे है।गरियाबंद में हो रहे रेत के गोरखधंधे का तार रायपुर और भिलाई के ओहदेदार पदो पर बिराजमान जिम्मेदार से जुड़ने का खबर सामने आ रहीं हैं जो कि अवैध रेत खनन पर खनन माफियाओं को जिला प्रशासन की खुली छूट मिली हुई है।नतीजन सरकार को लाखो रुपए का राजस्व का चूना लगाया जा रहा है।गौरतलब है कि शासन द्वारा अवैध रेत खनन रोकने तरह-तरह के नियम बनाकर प्रशासन को लगातार निर्देश दे रहे है।तो दूसरी ओर गरियाबंद जिले में जिला प्रशासन कि नाक के नीचे खुलेआम नियमों को ताक में रखकर नदीयों में रेत खनन का अवैध कारोबार खूब फल फूल रहा है।इस पूरे मामले में जिम्मेदार की संलिप्तता,तगड़ी सेटिंग और भिलाई के रेत माफियाओं को खुला संरक्षण साफ तौर पर नजर आ रहा है।जिसके कारण बेरोकटोक रेत की अवैध खुदाई और परिवहन लगातार जारी है।कभी कभार दिखावे की कार्यवाही कर जिम्मेदार अपना पल्ला झाड़ लेते है।रेत चोरों की पहुंच और पैसों के दम पर सारे नियम और कानून कायदों को जेब में रख लिए है।जिसे प्रशासन भी रोकने में बेबस नजर आ रहे है।जिसके कारण रेत चोरों की दबंगई खुलकर सामने आ रही है।
अवैध रेत खुदाई में रेत चोरों को संरक्षण के चलते इनके हौसला इतना बुलंद है कि इसे किसी भी कानून का डर नहीं है।जिसके कारण बेधड़क चैन माउंटेन से रेत खुदाई कर कानून के विपरीत कार्य कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में भी कोई गुरेज नहीं कर रहे है। रेत खदान में छापेमारी के बाद भी रेत उत्खनन धड़ल्ले से चैनमाऊटिंग मशीन से शुरू हो गया है। बकायदा फोन में व्हॉटसप के माध्यम से ट्रांसपोर्टरों को रेत लोडिंग की जानकारी एवं रेत लोडिंग की दर 10 चक्का हेतु 2200, 12 चक्का 2700, 14 चक्का 3200 एवं 16 चक्का 3700 तथा रॉयल्टी 10 घनमीटर की 2000, 12 घनमीटर 2500 दी गई। ग्रामीणों का कहना है कि इन दिनों रेत चोर और विभागीय अधिकारी एवं राजस्व अधिकारियों से मिलीभगत एवं सेटिंग कर धड़ल्ले से रेत उत्खनन कर लाखें रूपयों की अवैध कमाई कर रहे है। शिकायत करना, अनियमियता सार्वजनिक होना यह सब अपनी जगह होता रहता है। मामूली दिखावटी कार्यवाही के बाद फिर रेत माफिया अपनी नियमित अवैध उत्खनन एवं परिवहन में लिप्त हो जाता है। ग्रामीणों ने कहा कि रेत चोरों और अधिकारियों से सेटिंग कर जब चाहें जहां चाहें मनमाने ढंग से अवैध खनन करते है और प्रतिदिन मनमाने ढंग से हाईवा गाड़ी से रेत का परिवहन कर जहां शासन को हजारों रूपयों की रायल्टी की चोरी तो करते है साथ ही पर्यावरण का नुकसान, ग्राम्यांचल की सड़कों के साथ साथ दुर्घटनाओं को आमंत्रित करते है। महा नदी में अवैध रूप से खनन दिन रात चल रहा है। उन्हीं रेत खदानों से बिना पिटपास के हाईवा में लोडिंग दी जा रही है। इतना ही नहीं बिना अनुमति के ही कई रेत घाटों से दिन रात अवैध खनन कर लाखों रूपए की रेत बेची जा रही है। शासन द्वारा रेत लोडिंग एवं रायल्टी का मूल्य 980 रूपए निर्धारित किया गया है। सभी रेत घाटों में 2500 से 3000 रूपए लोडिंग चार्ज लिया रहा है। रेत की रॉयल्टी का मूल्य 650 रूपए है। गाड़ी मालिकों से 2000 रूपए अतिरिक्त लिया जा रहा है। इसके बाद भी रॉयल्टी पर्ची नहीं दी जा रही है। बता दें कि खनिज विभाग की छूट के कारण जिले में अवैध रेत खनन अब भी तेजी से चल रहा है। इसकी वजह से अवैध परिवहन लगातार किया जा रहा है। धड़ल्ले से काफी ऊंची कीमत में हाईवा लोड की जाती है। ग्रामीणों ने क्षेत्र के रेत खदानों में नियमानुसार खनन एवं परिवहन किए जाने की मांग की है। ताकि हर समय ग्रामीण संशय में न रहे। और अवैध खनन परिवहन में अंकुश रखा जा सकें।
कलेक्टर के निर्देश के बाद भी नहीं रुक रहा अवैध खुदाई
आपको बता दे की हाल ही में अवैध खनन को लेकर टास्क फ़ोर्स की बैठक में छत्तीसगढ के समस्त कलेक्टरों ने अधिकारियो को निर्देश देते हुए कहा था कि अवैध रेत व मुरूम की खुदाई पर पुलिस विभाग के साथ टीम बनाकर कार्यवाही करे।लेकिन कलेक्टरों के निर्देश और आदेश का पालन नहीं हो रहा है। छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में में जगह जगह अवैध खनन से जंहा शासन को राजस्व की क्षति हो रही है तो वहीं पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है।दूसरी ओर खनिज विभाग खनन माफियाओं और रेत के अवैध कारोबार में जुड़े नेताओं के दबाव का दंश भी झेल रहा है।ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि इन खनन माफियाओं को आखिर सरंक्षण कौन दे रहा है ?क्या इस अवैध कारोबारियों पर कोई कानून लागू नहीं?ये सवाल भी अब छत्तीसगढ़ कि जनता पूछ रही है।क्षेत्र में रेत चोर रातों में सक्रिय हो जाते है और रात भर नदियों से पुकलेण्ड मशीन से लोडिंग कर रेत चोरी करते हैं और सुबह होते ही नदी से मशीन निकाल ली जाती हैं। रेत को जमाकर मनमाने दाम पर बेचकर भारी अवैध मुनाफा लिया जा रहा है।रेत माफियाओं की इन हरकतों से खनिज विभाग को इन दिनों रेत की रायल्टी का जबरदस्त नुकसान हो रहा है,और ऐसा भी नही की प्रशासनिक अमला को इसकी जानकारी ना हो सारा खेल जिम्मेदारों की जानकारी में होने के बाबजूद भी रेत चोरी का खेल धड़ल्ले से जारी हैं जिससे रोजाना सरकार को लाखों रुपये का चूना लग रहें है।मिली जानकारी के अनुसार आरंग क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली नदियों के किनारे बसे रेत माफियाओं की नजर अब हर वर्ष की तरह रेत का नियमों को धता बताकर अवैध खनन कर डंपिंग कर भारी मूल्य में बेचकर चांदी नहीं बल्कि सोना काटने पर उतारू है। हर वर्ष की तरह खनिज विभाग भी इन रेत चोरों पर लगाम लगाने की तैयारी में उडनदस्ता तैयार किया है उसके बाबजूद भी रेत चोरों द्वारा भी तु डाल-डाल तो मैं पांत -पांत कहते हुए भारी मात्रा में अवैध खनन लगातार किया जा रहा है।प्रशासन द्वारा रेत की खुदाई बंद करने का आदेश खनिज विभाग के लोग मानने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि रेत चोरों के साथ सांठगांठ कर अनेक गांव में अभी भी धड़ल्ले के साथ नदी से रेत की खुदाई और अर्वध परिवहन दोनों ही चल रहा है।ग्रामों में तो और भी हद हो गई है।वहां गांव के सरपंच और पंचों द्वारा मना करने के बावजूद रेत चोर तथा उनके छूट भैये नेता पूरी तरह से दादागिरी करते हुए नदी से रेत निकालने का काम खुलेआम कर रहे हैं।खनिज विभाग के अधिकारियों को अवैध रेत उत्खनन तथा अवैध परिवहन दोनों की ही पूरी जानकारी रहती है।लेकिन किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की जा रही है।इससे स्पस्ट होता है कि रेत चोरी का सारा खेल में खनिज विभाग के अधिकारी की सांठगांठ से सारा खेल खेला जा रहा हैं वंही राजस्व विभाग का भी अपना शेयर तय हैं जानकारी होने के बाबजूद राजस्व विभाग भी मूकदर्शक बना हुआ हैं।वहीं दूसरी ओर रेत चोरों द्वारा अवैध उत्खनन रोकने वालों के खिलाफ ही थाने में फर्जी शिकायतें दर्ज कराने की धमकी दी जा रही है।तो कंही पत्रकारों को भी धमकी दी जा रही है। खनिज विभाग की छत्रछाया में चल रहे इस धंधे के कारण जिला प्रशासन कि न केवल छवि खराब हो रही है।वरन उसकी बदनामी भी हो रही है।
एनजीटी का रेत खनन के लिए जारी पर्यावरण मंजूरी में कुछ अनिवार्य शर्ते लेकिन चलाता है रेत चोरों का अपना ही हैं
– माइनिंग करने वाले को कम से कम संख्या में पोकलेन का उपयोग करना चाहिए और यह एक परियोजना स्थल में दो से अधिक नहीं होनी चाहिए।
– जिला प्रशासन को पहले वर्ष के अंत में माइनिंग पर जाकर उसके पर्यावरण पर पड़ रहे असर का आंकलन करना चाहिए। जिसके आधार पर काम जारी रखना है या नहीं उसकी अनुमति देनी चाहिए।
– खनन क्षेत्र को ठीक से भर दिया गया है इस पर अधिकृत एजेंसी द्वारा हर साल रिपोर्ट तैयार करके निर्धारित प्राधिकारी को दी जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो उसके अनुसार खनन के काम को रोका या कम किया जा सकता है।
– वर्तमान प्राकृतिक नदी तल स्तर से अंतिम कार्य की गहराई कम से कम 1 मीटर होनी चाहिए और जिस जगह रेत खनन करना है वहां रेत की मोटाई 3 मीटर से अधिक होनी चाहिए।
– किसी भी हालत में ग्राउंडवाटर लेबल से नीचे रेत खनन नहीं किया जाना चाहिए। यदि भूजल का स्तर 1 मीटर के अंदर है तो खनन को तुरंत रोका जाना चाहिए।
– रेत खनन से किसी भी तरह नदी के पानी की गुणवत्ता में गिरावट और वेग पर असर नहीं होना चाहिए। साथ ही इससे नदी के प्रवाह और उसके पैटर्न पर भी असर नहीं पड़ना चाहिए।
– महीने में एक बार तालुक स्तर के अधिकारियों द्वारा खनन कार्य की स्वयं जाकर जांच की जानी चाहिए।
– खनन बंद करने के बाद जिसे माइनिंग का लाइसेंस दिया गया है उसके द्वारा खदान पर डाले गए सभी शेड को तुरंत हटा देना चाहिए। साथ ही खनन के संचालन के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी उपकरणों, सड़कों और रास्तों को समतल किया जाना चाहिए ताकि नदी बिना किसी कृत्रिम अवरोध के अपने सामान्य मार्ग पर फिर से बह सके सके।
– जहां खनन किया गया है वहां बने गड्ढों को तुरंत भर देना चाहिए। साथ ही उस जगह को जितना हो सके पुरानी स्थिति में लाना चाहिए, जिससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान को सीमित किया जा सके।

पर्यावरण के लिए तबाही बन सकता है बेतहाशा रेत खनन
निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होने वाली रेत की मांग बढ़ती ही जा रही है लेकिन अंधाधुंध रेत-खनन पर्यावरण पर भारी पड़ रहा है।
रेत का उपयोग हर तरफ है,घर से लेकर मोबाइल फोन तक,घरों की कंक्रीट में रेत लगती है,सड़कों के डामर में,खिड़कियों के कांच में और फोन की सिलिकॉन चिपों में भी रेत है। लेकिन आधुनिक जीवन के निर्माण की जरूरत ये रेत विनाशकारी और बाजदफा गैरकानूनी उद्योग की धुरी भी बनती जा रही हैं। हालांकि मुहावरों में बेकार लेकिन वैसे बेशकीमती रेत हैं।
रेत दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली खनिज संपदा है दूसरे बहुत से उत्पादों से अलग नीति निर्माताओं के पास रेत की सालाना खपत का कोई ठोस अनुमान भी नहीं है। 2019 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट में सीमेंट के डाटा की मदद से रेत की खपत का अंदाजा लगाया गया है क्योंकि सीमेंट में रेत और बजरी इस्तेमाल होती है और इस आधार पर सालाना 50 अरब टन रेत की अनुमानित मात्रा निकाली गई हैं।शोधकर्ताओं का कहना है कि यह मात्रा हर साल जिम्मेदारी से उपयोग की जाने वाली रेत से ज्यादा है,जबकि चट्टानों को कूटकर और रेत बनाई जा सकती है।कुछ इलाकों में रेत की कमी से जो लूट और झपटमारी शुरू हुई है,उसका निशाना पर्यावरण और वन्यजीव बन रहे हैं।उनकी रिहाइशें तबाह हो रही हैं।इस रिपोर्ट की सह लेखक और जेनेवा में ग्लोबल सैंड ऑब्जरवेटरी से जुडीं लुईस गालाघेर कहती हैं कि”संकट कुछ ऐसा है कि हमें ठीक से इस सामग्री के बारे में पता भी नहीं है। हमें उस असर का भी अंदाजा नहीं है जहां से इसे निकाला जा रहा है। हम तो यह भी नहीं जानते हैं यह आती कहां से हैं।नदियों से कितनी रेत आती है, हमे नहीं पता है।
बेतहाशा रेत खनन का मतलब बेतहाशा बर्बादी

विशेषज्ञ यह जरूर जानते हैं कि बेतहाशा मात्रा में रेत निकाली जाती है तो इसकी कीमत लोग ही चुकाते रहेंगे और यह धरती चुकाएगी,रेत खनन से हैबिटैट बर्बाद हो जाते हैं,नदियां गंदली और तटों में दरार आ जाती हैं,इनमें से कई तट तो समुद्र के जलस्तर में बढ़ोत्तरी से पहले ही गुम होने लगे हैं।जब रेत की परतें खोदी जाती हैं तो नदी के तट अस्थिर होने लगते हैं।प्रदूषण और पानी में अम्लता यानी एसिडिटी आ जाने से मछलियां मारी जा सकती हैं और लोगों और फसलों को पानी नहीं मिल पाता है।यह समस्या तब और सघन हो जाती है,जब बांध के नीचे गाद भरने लगती हैं। रेत संकट के समाधानों पर किताब लिख चुकीं स्वतंत्र शोधकर्ता किरन परेरा का कहना है कि”और भी बहुत सारे प्रभावों को नहीं देखा जाता है।रेत की कीमत दिखती है लेकिन ये असर बिल्कुल नहीं दिखते हैं।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) में खनन उद्योगों पर शोध की अगुवाई कर रहे स्टीफन एडवर्ड्स के मुताबिक सबसे खराब यह है कि बहुत सारा असर तो तत्काल नहीं दिखता है,जिसके चलते यह जानना कठिन है कि वह असर कितना है।यह मामला इतना अधिक चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है कि हमें इस पर और करीब से ध्यान देने की जरूरत है।

त्वरित टिप्पणी:भ्रष्ट नेता बिना नौकरशाही की मदद के सरकारी धन की लूट नहीं कर सकते?
अवैध निजी लाभ के लिये सरकारी अधिकारियों द्वारा अपने विधायी शक्तियों का उपयोग राजनैतिक भ्रष्टाचार कहलाता है। किन्तु सामान्यतः सरकारी शक्तियों का दुरुपयोग (जैसे अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को सताना/दबाना, पुलिस की निर्दयता आदि) राजनैतिक भ्रष्टाचार में नहीं गिना जाता।भ्रष्टाचार (आचरण) की कई किस्में और डिग्रियाँ हो सकती हैं, लेकिन समझा जाता है कि राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार समाज और व्यवस्था को सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है। अगर उसे संयमित न किया जाए तो भ्रष्टाचार मौजूदा और आने वाली पीढ़ियों के मानस का अंग बन सकता है। मान लिया जाता है कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक सभी को, किसी को कम तो किसी को ज़्यादा, लाभ पहुँचा रहा है। राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार एक-दूसरे से अलग न हो कर परस्पर गठजोड़ से पनपते हैं।
ये भ्रष्ट नेता बिना नौकरशाही की मदद के सरकारी धन की यह लूट नहीं कर सकते थे। ख़ास बात यह है कि इस भ्रष्टाचार में निजी क्षेत्र और कॉरपोरेट पूँजी की भूमिका भी शालिम होती है। बाज़ार की प्रक्रियाओं और शीर्ष राजनीतिक- प्रशासनिक मुकामों पर लिए गये निर्णयों के बीच साठगाँठ के बिना यह भ्रष्टाचार इतना बड़ा रूप नहीं ले सकता। आज़ादी के बाद भारत में भी राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार की यह परिघटना तेज़ी से पनपी है। एक तरफ़ शक किया जाता है कि बड़े-बड़े राजनेताओं का अवैध धन स्विस बैंकों के ख़ुफ़िया ख़ातों में जमा है और दूसरी तरफ़ तीसरी श्रेणी के क्लर्कों से लेकर आईएएस अफ़सरों के घरों पर पड़ने वाले छापों से करोड़ों-करोड़ों की सम्पत्ति बरामद हुई है। राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को ठीक से समझने के लिए अध्येताओं ने उसे दो श्रेणियों में बाँटा है। सरकारी पद पर रहते हुए उसका दुरुपयोग करने के ज़रिये किया गया भ्रष्टाचार और राजनीतिक या प्रशासनिक हैसियत को बनाये रखने के लिए किया जाने वाला भ्रष्टाचार। पहली श्रेणी में निजी क्षेत्र को दिये गये ठेकों और लाइसेंसों के बदले लिया गया कमीशन, हथियारों की ख़रीद-बिक्री में लिया गया कमीशन, फ़र्जीवाड़े और अन्य आर्थिक अपराधों द्वारा जमा की गयी रकम, टैक्स-चोरी में मदद और प्रोत्साहन से हासिल की गयी रकम, राजनीतिक रुतबे का इस्तेमाल करके धन की उगाही, सरकारी प्रभाव का इस्तेमाल करके किसी कम्पनी को लाभ पहुँचाने और उसके बदले रकम वसूलने और फ़ायदे वाली नियुक्तियों के बदले वरिष्ठ नौकरशाहों और नेताओं द्वारा वसूले जाने वाले अवैध धन जैसी गतिविधियाँ पहली श्रेणी में आती हैं। दूसरी श्रेणी में चुनाव लड़ने के लिए पार्टी-फ़ण्ड के नाम पर उगाही जाने वाली रकमें, वोटरों को ख़रीदने की कार्रवाई, बहुमत प्राप्त करने के लिए विधायकों और सांसदों को ख़रीदने में ख़र्च किया जाने वाला धन, संसद-अदालतों, सरकारी संस्थाओ, नागर समाज की संस्थाओं और मीडिया से अपने पक्ष में फ़ैसले लेने या उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए ख़र्च किये जाने वाले संसाधन और सरकारी संसाधनों के आबंटन में किया जाने वाला पक्षपात आता है।राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार को समझने के लिए ज़रूरी है कि इन दोनों श्रेणियों के अलावा एक और विभेदीकरण किया जाए। यह है शीर्ष पदों पर होने वाला बड़ा भ्रष्टाचार और निचले मुकामों पर होने वाला छोटा-मोटा भ्रष्टाचार। सूज़न रोज़ एकरमैन ने अपनी रचना करप्शन ऐंड गवर्नमेंट : कॉजिज़, कांसिक्वेसिंज़ ऐंड रिफ़ॉर्म में शीर्ष पदों पर होने वाले भ्रष्टाचार को ‘क्लेप्टोक्रैसी’ की संज्ञा दी गयी है। किसी भी तंत्र के शीर्ष पर बैठा कोई बड़ा राजनेता या कोई बड़ा नौकरशाह एक निजी इजारेदार पूँजीपति की तरह आचरण कर सकता है। हालाँकि एकरमैन ने भारत के उदाहरण पर न के बराबर ही ग़ौर किया है, पर भारत में पब्लिक सेक्टर संस्थाओं के मुखिया अफ़सरों को ‘सरकारी मुग़लों’ की संज्ञा दी जा चुकी है। न्यायाधीशों द्वारा किये जाने वाले न्यायिक भ्रष्टाचार की परिघटना भारत में अभी नयी है लेकिन उसका असर दिखाई देने लगा है। दिल्ली में हुए राष्ट्रमण्डलीय खेलों के आयोजन में हुए भीषण भ्रष्टाचार के पीछे भी नेताओं और अफ़सरों का शीर्ष खेल ही था। टू जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में हुए भ्रष्टाचार को भी क्लेप्टोक्रैसी के ताज़े उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। निचले स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार ‘स्पीड मनी’ या ‘सुविधा शुल्क’ के तौर पर जाना जाता है। थाना स्तर के पुलिस अधिकारी, बिक्री कर या आय कर अधिकारी, सीमा और उत्पाद-शुल्क अधिकारी और विभिन्न किस्म के इंस्पैक्टर इस तरह के भ्रष्टाचार से लाभांवित होते हैं। इसी तरह ज़िला स्तर पर दिये जाने वाले ठेकों के आबंटन में पूरे ज़िला प्रशासन में कमीशन की रकम का बँटना एक आम बात है।यहाँ इन दोनों तरह के भ्रष्टाचारों के मूल्यांकन संबंधी विवाद का ज़िक्र करना ज़रूरी है। सार्वजनिक जीवन में अक्सर यह बहस होती रहती है कि क्लेप्टोक्रैसी ज़्यादा बड़ी समस्या है, या फिर सुविधा शुल्क? समाज शीर्ष पदों पर होने वाले भ्रष्टाचार से अधिक प्रभावित होता है, या निचले स्तर पर होने वाले अपेक्षाकृत छोटे भ्रष्टाचार से? इस बहस के पीछे एक विमर्श है जो क्लेप्टोक्रैसी से जुड़ा हुआ है। सत्तर और अस्सी के दशकों में देखा यह गया था कि कई बार शीर्ष पर बैठे हुए क्लेप्टोक्रैटिक शासक या अफ़सर निचले स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार को नापसंद करते हैं। उन्हें लगता था कि इस छुटभैये भ्रष्टाचार से व्यवस्था बदनाम होती है और अवैध लाभ उठाने की ख़ुद उनकी क्षमता घट जाती है। इस दृष्टिकोण में निचले स्तर का भ्रष्टाचार प्रशासनिक अक्षमता का द्योतक था।यह सही है कि छोटे स्तर का भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी को पूरे समाज में विकेंद्रित कर देता है। एकरमैन ने भी अपनी रचना में इस पहलू की शिनाख्त की है। भारत में इसके सामाजिक प्रभाव का एक उदाहरण विवाह के बाज़ार में लाभ के पदों पर बैठे वरों की ऊँची दहेज-दरों के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन दूसरी तरफ़ भारतीय उदाहरण ही यह बताता है कि भ्रष्टाचार का यह रूप न केवल शीर्ष पदों पर होने वाली कमीशनखोरी, दलाली और उगाही से जुड़ता है, बल्कि दोनों एक-दूसरे को पानी देते हैं। पिछले बीस वर्षों से भारतीय लोकतंत्र में राज्य सरकारों के स्तर पर सत्तारूढ़ निज़ाम द्वारा अगला चुनाव लड़ने के लिए नौकरशाही के ज़रिये नियोजित उगाही करने की प्रौद्योगिकी लगभग स्थापित हो चुकी है। इस प्रक्रिया ने क्लेप्टोक्रैसी और सुविधा शुल्क के बीच का फ़र्क काफ़ी हद तक कम कर दिया है। भारत जैसे संसदीय लोकतंत्र में चुनाव लड़ने और उसमें जीतने-हारने की प्रक्रिया अवैध धन के इस्तेमाल और उसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार का प्रमुख स्रोत बनी हुई है। यह समस्या अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण के दिनों में भी थी, लेकिन बाज़ारोन्मुख व्यवस्था के ज़माने में इसने पहले से कहीं ज़्यादा भीषण रूप ग्रहण कर लिया है। एक तरफ़ चुनावों की संख्या और बारम्बारता बढ़ रही है, दूसरी तरफ़ राजनेताओं को चुनाव लड़ने और पार्टियाँ चलाने के लिए धन की ज़रूरत। नौकरशाही का इस्तेमाल करके धन उगाहने के साथ-साथ राजनीतिक दल निजी स्रोतों से बड़े पैमाने पर ख़ुफ़िया अनुदान प्राप्त करते हैं। यह काला धन होता है। बदले में नेतागण उन्हीं आर्थिक हितों की सेवा करने का वचन देते हैं। निजी पूँजी न केवल उन नेताओं और राजनीतिक पार्टियों की आर्थिक मदद करती है जिनके सत्ता में आने की सम्भावना है, बल्कि वह चालाकी से हाशिये पर पड़ी राजनीतिक ताकतों को भी पटाये रखना चाहती है ताकि मौका आने पर उनका इस्तेमाल कर सके। राजनीतिक भ्रष्टाचार के इस पहलू का एक इससे भी ज़्यादा अँधेरा पक्ष है। एक तरफ़ संगठित अपराध जगत द्वारा चुनाव प्रक्रिया में धन का निवेश और दूसरी तरफ़ स्वयं माफ़िया सरदारों द्वारा पार्टियों के उम्मीदवार बन कर चुनाव जीतने की कोशिश करना। इस पहलू को राजनीति के अपराधीकरण के रूप में भी देखा जाता है।चुनाव प्रणालियों का भ्रष्टाचार की समस्या के आईने में तुलनात्मक अध्ययन भी किया गया है। कई विद्वानों ने एक अध्ययन में दिखाया है कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व (जैसे अमेरिकी चुनावी प्रणाली) फ़र्स्ट-पास्ट-दि-पोस्ट (जैसे भारतीय चुनावी प्रणाली) के मुकाबले राजनीतिक भ्रष्टाचार के अंदेशों से ज़्यादा ग्रस्त होती है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से सांसद या विधायक चुनने वाली प्रणाली बहुत अधिक ताकतवर राजनीतिक दलों को प्रोत्साहन देती है। इन पार्टियों के नेता राष्ट्रपति के साथ, जिसके पास इस तरह की प्रणालियों में काफ़ी कार्यकारी अधिकार होते हैं, भ्रष्ट किस्म की सौदेबाज़ियाँ कर सकते हैं।इस विमर्श का दूसरा पक्ष यह मान कर चलता है कि अगर वोटरों को नेताओं के भ्रष्टाचार का पता लग गया तो वे अगले चुनाव में उन्हें सज़ा देंगे और ईमानदार प्रतिनिधियों को चुनेंगे। लेकिन, ऐसा हमेशा नहीं होता। अक्सर वोटरों के सामने एक तरफ़ सत्तारूढ़ भ्रष्ट और दूसरी तरफ़ विपक्ष में बैठे संदिग्ध चरित्र के नेता के बीच चुनाव करने का विकल्प होता है। एक अध्ययन में तथ्यगत विश्लेषण करके यह भी दिखाया गया है कि फ़ायदे के पदों से होने वाली कमायी, विपक्ष की कमज़ोरी और पूँजी की शक्तियों के बीच गठजोड़ के कारण सार्वजनिक जीवन में एक ऐसा ढाँचा बनता है जिससे राजनीतिक क्षेत्र को भ्रष्टाचार से मुक्त करना तकरीबन असम्भव लगने लगता है।