
रिपोर्ट:मनोज सिंह ठाकुर
रायपुर(गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित रामावतार जग्गी हत्याकांड से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आ रही है। हत्याकांड के प्रमुख आरोपित याहया ढेबर सहित पांच दोषियों ने आज कोर्ट ने सरेंडर कर दिया है। याहया ढेबर के अलावा सूर्यकांत तिवारी, पुलिस अधिकारी आरसी त्रिवेदी, अमृतसिंह गिल और वीके पांडे ने विशेष न्यायाधीश एट्रोसिटी की कोर्ट में सरेंडर किया। इस मामले के अब तक साल दोषियों ने सरेंडर किया है।इससे पहले हाईकोर्ट ने जग्गी हत्याकांड के दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखते हुए सभी दोषियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था।जग्गी हत्याकांड का मुख्य आरोपित याहया ढेबर रायपुर के ढेबर बंधुओं में से एक है। पांच भाइयों में एजाज ढेबर रायपुर के मौजूदा मेयर हैं। वहीं एक भाई अनवर ढेबर शराब कारोबारी है। छत्तीसगढ़ के शराब घोटाला केस में ईडी ने उसे छह मई, 2023 को गिरफ्तार किया था।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हत्याकांड मामले की सुनवाई करते हुए पांच दोषियों को सरेंडर के लिए तीन सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया था। इनमें क्राइम ब्रांच के प्रभारी रहे आरसी त्रिवेदी, तत्कालीन मौदहापारा थाना प्रभारी वीके पांडे, सीएसपी कोतवाली अमरीक सिंह गिल, सूर्यकांत तिवारी सहित मेयर एजाज ढेबर के भाई याहया ढेबर शामिल हैं।
पांच प्रमुख दोषियों में से दो पहले कर चुके हैं सरेंडर
इधर, हाईकोर्ट के आदेश के बाद जग्गी को गोली मारने वाले दो दोषियों चिमन सिंह और विनोद सिंह राठौर ने 15 अप्रैल को रायपुर में विशेष न्यायाधीश पंकज कुमार सिन्हा की कोर्ट में सरेंडर किया था। हत्याकांड के अभी भी 24 दोषियों ने अब तक सरेंडर नहीं किया है।बतादें कि 21 साल पहले छत्तीसगढ़ में जोगी शासनकाल के दौरान 4 जून 2003 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) नेता रामावतार जग्गी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
चर्चित जग्गी हत्याकांड का मामला, हाईकोर्ट ने खारिज की आरोपियों की अपील, उम्र कैद की सजा को रखा बरकरार
प्रदेश में चर्चित हत्याकांड राकांपा नेता रामावतार जग्गी के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए हत्याकांड के 27 आरोपियों की अपील को खारिज कर दिया है। सभी नामजद आरोपियों को सजा दी गई है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अरविंद वर्मा डिवीजन बेंच ने उनकी आजीवन कारावास की सजा को रखा बरकरार रखा है। वहीं मुख्य आरोपी के तौर पर याहया ढेबर को बनाया है जो वर्तमान महापौर के बड़े भाई है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की डीबी में जग्गी हत्याकांड के आरोपियों की अपील पर बीते 29 फरवरी को बहस पूरी कर ली थी। बहस के बाद फैसले को रिजर्व रख लिया गया था। पिछली सुनवाई में लगातार बहस के बाद आरोपियों की ओर से अपने तर्क प्रस्तुत किए गए थे। तीसरे दिन सीबीआई के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया। इसके साथ आरोपियों की ओर से अधिवक्ताओं ने सीबीआई की कार्रवाई का प्रतिपरीक्षण भी किया। कोर्ट ने सभी पक्षों की बहस सुनने के उपरांत सभी को लिखित में तर्क पेश करने को कहा और फैसले को सुरक्षित कर लिया था।
अमित जोगी के खिलाफ दायर हुई याचिका
केस में अमित जोगी की दोषमुक्ति के खिलाफ रामवतार जग्गी के बेटे सतीश जग्गी ने अलग से याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लंबित होने के कारण छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में इस प्रकरण की सुनवाई रुकी हुई है। उक्त मामले को छोड़कर हाईकोर्ट ने आरोपियों की अपील पर सुनवाई शुरू की है।
जग्गी हत्याकांड: छत्तीसगढ़ की पहली राजनीतिक हत्या मुख्यमंत्री के खिलाफ दर्ज हुई थी एफआईआर
जग्गी हत्याकांड करीब 21 साल पहले हुई इस हत्या को छत्तीसगढ़ के इतिहास की पहली राजनीतिक हत्या मानी जाती है। मौदहापारा थाना से चंद कदमों की दूरी पर हुई इस हत्या के मामलें में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी का नाम मुख्य आरोपी के रुप में दर्ज हुआ था। पहले पुलिस फिर सीबीआई ने इसकी जांच की। सीबीआई ने कुल 31 लोगों को आरोपी बनाया था। यह हत्या का पहला ऐसा मामला था जिसमें मुख्यमंत्री को भी आरोपी बनाया गया था। इस मामले में 2007 में अजीत जोगी की गिरफ्तारी हुई, तब वे मुख्यमंत्री के पद पर नहीं थे। हालांकि वे जेल नहीं गए, स्वास्थ्यगत कारणों से उन्हें जमानत मिल गई। पढ़िए इस बहुचर्चित घटना की पूरी कहानी-
जानिए… कौन थे जग्गी

जग्गी जिनका पूरा नाम रामावतार जग्गी था। व्यावसायिक पृष्ठभूमि वाले जग्गी देश के कद्दावार नेताओं में शामिल विद्या चरण (वीसी) शुक्ल के बेहद करीबी थे। शुक्ल जब कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) में पहुंचे तो जग्गी भी उनके साथ एनसीपी में आ गए। वीसी ने उन्हें छत्तीसगढ़ में एनसीपी का कोषाध्यक्ष बना दिया।
हत्या से पहले का घटनाक्रम
छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना तब विधानसभा में कांग्रेस बहुमत में थी। कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे वीसी का नाम चल रहा था। लेकिन पार्टी ने अचानक अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बना दिया। इसकी वजह से पहले से नाराज चल रहे वीसी पार्टी में बार-बार हो रही उपेक्षा से और भड़क गए। नवंबर 2003 में चुनाव होना था। चुनाव से कुछ महीने पहले ही उन्होंने कांग्रेस छोड़कर एनसीपी ज्वाइन कर लिया। वीसी के समर्थक पूरे प्रदेश में थे, ऐसे में थोड़े ही समय में पूरे प्रदेश में एनसीपी का माहौल बन गया। एनसीपी की बढ़ती लोकप्रियता से कांग्रेस को सत्ता से बाहर होने का डर सताने लगा। जग्गी की हत्या से कुछ दिन पहले एनसीपी की एक बड़ी रैली प्रस्तावित थी। इसमें शरद पवार, पीए संगमा सहित पार्टी के अन्य बड़े नेता आने वाले थे।
4 जून की वो रात
एनसीपी के बड़े आयोजन की तैयारी में रामावतार जग्गी जग्गी पूरी तरह व्यस्त थे। घटना 4 जून 2003 की है। रात करीब 11 बजे जग्गी अपनी कार से एमजी रोड से केके रोड की तरफ आ रहे थे। तभी मौदहापारा थाना से कुछ दूरी पर कुछ लोगों ने उनकी कार को रोका और गोली मार कर फरार हो गए। इस घटना में जग्गी गंभीर रुप से घायल हो गए हैं। जग्गी को पहले मौदहापारा थाना ले जाया गया। वहां से मेडिकल कॉलेज अस्पताल यानी अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई। पुलिस इसे लूट की घटना बताती रही।
एक ही मामले में दर्ज हुई दो एफआईआर
घटना के समय मौजूद निरीक्षक वीके पांडे ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। इस बीच घटना की सूचना मिलते ही एनसीपी के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में थाने पहुंच गए। घटना की सूचना मिलते ही वीसी भी आधी रात को थाने में पहुंच गए। इन लोगों ने तत्काल मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर हत्या कराने का आरोप लगाया और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर थाने में ही डट गए बैठ गए। यह वीसी का ही प्रभाव था कि पुलिस को जग्गी के पुत्र सतीश जग्गी की शिकायत पर एक और एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। इस एफआईआर में मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनके पुत्र अमित जोगी को नामजद आरोपी बनाया गया।
लूट के लिए हत्या
पुलिस ने अपनी विवेचाना में इस घटना को लूट के लिए हत्या बताया। इसी आधार पर जांच करते हुए पुलिस ने 5 लोगों को गिरफ्तार किया था। इनमें अविनाश सिंह उर्फ लल्लन, जामवंत कश्यप, श्याम सुंदर, विनोद सिंह और विश्वनाथ राजभर को आरोपी बनाया गया था।
सत्ता बदलते ही बदल गया पूरा केस
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई थी और डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा प्रदेश की सत्ता में आई। भाजपा सरकार ने मामला सीबीआई को सौंप दिया। सीबीआई ने 2003 में सतीश जग्गी की तरफ से दर्ज एफआईआर के आधार पर जांच शुरू की। लंबी जांच-पड़ताल और गिरफ्तारियों के बाद सीबीआई ने रायपुर की विशेष कोर्ट में चालान पेश किया। इसमें 31 लोगों को आरोपी बनाया गया। सीबीआई की चार्जशीट में अतिम जोगी को मुख्य आरोपी बताया गया था। इसमें वो पांचों आरोपी भी शामिल थे जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया था। अमित जोगी के अलावा शूटर चिमन सिंह, याहया ढेबर, अभय गोयल,शिवेंद्र सिंह, फिरोज सिद्दिकी, विक्रम शर्मा, राकेश शर्मा, अशोक भदौरिया, संजय कुशवाहा, राजीव भदौरिया, नरसी शर्मा, विवेक भदौरिया, रवि कुशवाहा, सत्येंद्र सिंह तोमर, सुनील गुली, अमित पचौरी व हरीश चंद्र शामिल थे।
राजनांदगांव में हुई थी अजीत जोगी की गिरफ्तारी
सतीश जग्गी की तरफ से दर्ज कराए गए एफआईआर में अजीत जोगी का भी नाम था, इस वजह से अदालत ने उनकी भी गिरफ्तारी का वारंट जारी किया था। यह बात 2007 की है। कोर्ट से जारी वारंट के आधार पर पुलिस ने जोगी को कवर्धा के पास स्थित विरेंद्रनगर के पास गिरफ्तार कर लिया, लेकिन तबीयत खराब होने के कारण जोगी तो तुरंत अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इस बीच जोगी ने वकील के माध्यम से कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल की। जोगी के स्वास्थ्य को देखते हुए कोर्ट ने एक लाख रुपये के मुचलके पर उन्हें जमानत दे दिया। बाद में इस केस से जोगी का नाम हट गया।
बाइज्जत बारी हो गए अमित जोगी
इस मामले में विशेष न्यायाधीश बीएल तिड़के 31 मई 2007 को फैसला सुनाया। इसमें अमित जोगी सहित 19 आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया गया।
तीन पुलिस वालों को हुई थी सजा
कोर्ट ने इस मामले में तीन पुलिस अधिकारियों सहित नौ लोगों को पांच-पांच वर्ष और अन्य 19 आरोपियों को आजीवन करावास की सजा सुनाई। जिनको आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई उनमें शूटर चिमन सिंह, याहया ढेबर, अभय गोयल,शिवेंद्र सिंह, फिरोज सिद्दिकी, विक्रम शर्मा, राकेश शर्मा, अशोक भदौरिया, संजय कुशवाहा, राजीव भदौरिया, नरसी शर्मा, विवेक भदौरिया, रवि कुशवाहा, सत्येंद्र सिंह तोमर, सुनील गुली, अमित पचौरी तथा हरीश चंद्र शामिल थे।
जज तिड़के पर लगा था रिश्वत लेने का आरोप
इस मामले में दोषी करार दिए गए याहया ढेबर और अभय गोयल के भाई अनवर ढेबर व अंशुल गोयल ने अक्टूबर 2008 में पत्रवार्ता लेकर कोर्ट के फैसले पर सवाल खड़ा कर दिया था। उन्होंने 25 लाख रुपये की रिश्वत लेकर अमित जोगी को रिहा करने का आरोप लगाया था। जज अजय तिड़के ने इस कोर्ट की अवमनना बताते हुए इन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी।