महिलाओं के सम्मान में कांग्रेस मैदान में? कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता राधिका खेड़ा को भू-पे समर्थकों ने दी मां-बहन की गंदी गालियां, बदसलूकी के बाद फफक कर रो पड़ी राधिका, आंसू पोंछने बीजेपी ने बढ़ाया हाथ

रिपोर्ट:मनोज सिंह ठाकुर
रायपुर(गंगा प्रकाश)।
नारी का सम्मान सदा होना चाहिए। संस्कृत में एक श्लोक है- ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता: (भावार्थ- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।) किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है।यह बेहद चिंताजनक बात है। आइए देखते हैं हम नारी का कैसे सम्मान करें।
नारी का सबसे पवित्र रूप मां के रूप में देखने में आता है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे।किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। (सिर्फ) मेरी बीवी व मेरे बच्चे यही आजकल परिवार की परिभाषा रह गई है। फिर बुजुर्ग माता-पिता की सेवा कौन करे? यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए।बताते चले कि देश में लोकसभा चुनाव का दौर जारी हैं और कांग्रेस पार्टी की कथनी और करनी भी खुल कर सामने आ रही है बताना लाजमी होगा कि
कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता राधिका खेड़ा किसी परिचय की मोहताज नही है। मीडिया में पार्टी का पक्ष रखते अक्सर आपने उन्हें देखा और सुना होगा। हाल ही के छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव में उन्होंने मीडिया की बागडोर बखूबी संभाली थी। अब लोकसभा चुनाव में भी राधिका खेड़ा सुर्खियों में है। उन्हें पार्टी ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव में अपना हुनर दिखाने के लिए रायपुर भेजा है। यहां वे बीजेपी से लोहा ले रही थी। लेकिन अचानक उनके साथ ऐसा हुआ कि वे कांग्रेस से ही इस्तीफा देने के लिए आमादा हैं। मंगलवार देर शाम वो पार्टी मुख्यालय राजीव भवन में फूट-फूट कर रो रही थीं , उनके मुंह से इस्तीफा देने का रूदन भी साफ साफ सुनाई दे रहा था। एक कमरे में अकेली रोती बिलखती राधिका खेड़ा को देखने के लिए कार्यकर्ताओं की भीड़ जुट गई। कोई उनके करीब जाने की हिम्मत तक नही जुटा पा रहा था।
बड़ी मुश्किल से कुछ लोगों ने उनकी मदद की। मौके का नजारा देख कर हर कोई जानना चाह रहा था कि आखिर यहां हुआ क्या है ? मामला पता पड़ते ही लोगों के होश उड़ गए। बताया जाता है कि मंगलवार शाम कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन में पत्रकार वार्ता लेने के लिए राधिका खेड़ा पहुंची थी। इस दौरान भू-पे बघेल समर्थकों ने उनके साथ जमकर बदसलूकी की।प्रत्यक्षदर्शी सूत्रों के मुताबिक पहले तो राधिका के साथ झूमा-झटकी का प्रयास विफल हुआ , इस बीच एकाएक कुछ कार्यकर्ताओं ने उनके साथ काफी बुरा बर्ताव किया। उन्हें मां बहन की भद्दी-भद्दी गालियां दी गईं , अपशब्द इस्तमाल किए गए।अंदेशा जाहिर किया जा रहा था कि राधिका पर कभी भी हमला हो सकता है। हालाकि गहमा-गहमी और तनाव के बीच वरिष्ठ जनों ने दोनों पक्षों को समझा बुझा कर मामला शांत किया।

राजीव भवन के ऊपरी मंजिल स्थित एक कमरे से राधिका खेड़ा की चीख पुकार सुनकर घंटों गहमा-गहमी रही। रोती बिलखती राधिका चीख-चीख कर अपनी आप बीती सुना रही थी। उन्होंने कहा कि उनका ऐसा अपमान जीवन में कभी नही हुआ है , जैसा की यहां राजीव भवन में किया गया। मुझे मां बहन की भद्दी गालियां दी गई , महिला होने के बावजूद किसी ने उनकी एक ना सुनी , उन्हें परेशान किया जा रहा है। वे राष्ट्रीय नेताओं को इसकी शिकायत करेंगी, वापस दिल्ली पहुंच कर इस्तीफा भी देंगी। उन्होंने भू-पे गिरोह के एक स्थानीय मीडिया प्रभारी पर कई गंभीर आरोप लगाए। सूत्रों के मुताबिक मामला पार्टी के विज्ञापन और प्रचार-प्रसार की मद से जुड़ा बताया जाता है। चुनाव के मौके पर कई मीडिया कर्मियों को उपकृत किया जा रहा है, लिफाफे सौंपे जा रहे हैं। बताते हैं कि कई कार्यकर्ताओ को राधिका की सक्रियता बुरी तरह से खल रही है।कहा जा रहा है कि राजीव भवन में घटना के दौरान पीड़िता अलग थलग पड़ गईं थी , उस वक्त उनके साथ कोई भी मददगार महिला कार्यकर्त्ता नही थी , वे अकेले ही हमलावरों का सामना कर रहीं थीं। कार्यकर्त्ता उनपर हमले की तैयारी में थे, उनकी चीख पुकार सुनकर कई लोग घटनास्थल की ओर भागे।उधर मामले के खुलासे के बाद काफी देर तक पार्टी मुख्यालय में हंगामा होता रहा। आरोप प्रत्यारोप के बीच कुछ वरिष्ठों ने हस्तक्षेप कर मामला शांत कराया। इधर बीजेपी ने कांग्रेस मुख्यालय में हुई इस घटना की तीखी निंदा की है। वरिष्ठ बीजेपी नेता केदारनाथ गुप्ता और गौरीशंकर श्रीवास ने राधिका को ढांढस दिलाया है। नेताद्वय ने कहा कि राजनैतिक मतभेदों को दरकिनार कर हमें पीड़िता की सहायता के लिए आगे आना चाहिए।उन्होंने कहा कि कौशल्या माता की नगरी में किसी भी महिला के अपमान से कांग्रेसियों को बाज आना चाहिए। यह चुनाव का मौका है कम से कम अब तो महिलाओं का सम्मान करना कांग्रेसियों को सीखना चाहिए। केदारनाथ गुप्ता ने कहा कि एक ओर प्रधानमंत्री मोदी महिलाओं को अपना परिवार मानकर उन्हें अधिकार संपन्न और मजबूत बनाने में जुटे हैं , महिलाओं का सम्मान बढ़ाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कांग्रेसी महिलाओं को प्रताड़ित करने में जुटे हैं , घरों से लेकर पार्टी मुख्यालय राजीव भवन तक महिलाएं पीड़ित हैं, इस घटना से पूर्व मुख्यमंत्री भू-पे और उनके समर्थकों का असली चेहरा सामने आया है। गुप्ता ने राजनैतिक मतभेद भूलाकर पीड़िता राधिका खेड़ा को न्याय दिलाने की अपील की है।

इधर बीजेपी के युवा नेता गौरीशंकर श्रीवास भी पीड़ित राधिका खेड़ा की सहायता के लिए आगे आए हैं। उन्होंने पीड़िता के लिए मुफ्त कानूनी सलाह मुहैय्या कराने की पेशकश की है। गौरीशंकर ने कहा कि राज्य की विष्णुदेव साय सरकार महतारी वंदन योजना के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में जुटी है , वहीं कौशल्या मां के आंगन में ही कांग्रेसी अपनी महिला नेत्रियों के साथ बदसलूकी कर रहे हैं, उन्हें अपमानित कर रहे हैं। बताते हैं कि पीड़िता को कानूनी संरक्षण प्रदान करने के लिए जब कांग्रेसी ही सामने नही आए , तब गौरीशंकर ने राधिका का हाल चाल जानने के लिए जमकर हाथ पैर मारा, कड़ी मशक्कत भी की। लेकिन पीड़िता से उनकी मुलाकात नही हो पाई। इस मामले को लेकर न्यूज टुडे छत्तीसगढ़ ने पीड़िता और कांग्रेस के प्रभारी नेताओं से प्रतिक्रिया लेनी चाही, लेकिन उनकी ओर से भी कोई प्रतिउत्तर नही प्राप्त हुआ। फिलहाल घटना का वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है।वैसे नारी की बात कि जाए तो सदियों से नारी को एक वस्तु तथा पुरुष की संपत्ति समझा जाता रहा है। पुरुष नारी को पीट सकता है, उसके दिल और शरीर के साथ खेल सकता है, उसके मनोबल को तोड़कर रख सकता है, साथ ही उसकी जान भी ले सकता है। मानो कि उसे नारी के साथ यह सब करने का अघोषित अधिकार मिला हुआ है। मगर यह भी सच है कि अनेक नारियों ने हर प्रकार की विपरीत और कठिन परिस्थितियों का डटकर सामना करते हुए उन पर विजय प्राप्त की और इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। आज की बदली हुई तथा अपेक्षया अनुकूल परिस्थितियों में नारियां स्वयं को बदलने और पुरुष-प्रधान समाज द्वारा रचित बेड़ियों से स्वयं को आजाद करवाने हेतु कृतसंकल्प हैं। अब प्रश्न यह है कि नारी कितना बदले और क्यों?

नारी जाति का इतिहास और उसमें देखे गए बदलाव

  1. वैदिक काल : वैदिक काल की नारियों ने पुरुषों के समकक्ष स्थिति का आनंद लिया। वैदिक काल की महिलाएं शिक्षित होती थीं। उनका विवाह परिपक्वता की वय में ही होता था तथा उन्हें अपने वर को चुनने की आजादी होती थी।
  2. मध्यकाल : मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई। बाल विवाह, पुनर्विवाह पर रोक, बहुविवाह, राजपूत महिलाओं द्वारा जौहर, देवदासी प्रथा जैसी कुरीतियों के माध्यम से नारी जाति का शोषण आरंभ हो गया। नारियों को पर्दे के पीछे कैद कर दिया गया। इसके बावजूद अनेक नारियों ने संघर्ष करते हुए राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियां अर्जित कर सम्मान पाया। रजिया सुल्तान, गोंड रानी दुर्गावती, रानी नूरजहां, शिवाजी की माता जीजाबाई जैसी महिलाओं ने नारी जाति को गौरव प्रदान किया। मीराबाई ने भक्ति रस की धारा बहाई और वे इतिहास की एक किंवदंती बन गईं।
  3. अंग्रेजी राज : अंग्रेजी राज में नारियों की स्थिति में धीमी गति से सुधार आना आरंभ हुआ। नारियों को शिक्षा पाने का अवसर मिला। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के उन्मूलन तो ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह के पक्ष में बड़ा योगदान दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़कर उनके छक्के छुड़ा दिए। आजादी की लड़ाई में अनेक महिलाओं जैसे डॉ. एनी बेसेंट, विजयलक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। सुभाष चंद्र बोस की सेना की एक कैप्टन लक्ष्मी सहगल थीं।
  4. आजाद भारत : आजादी के बाद सन् 1950 में जब देश को संविधान मिला तो उसमें स्त्रियों को सुरक्षा, सम्मान और पुरुषों के समान अवसर व अधिकार मिले किंतु अशिक्षा, पुरातनवादी सोच तथा कमजोर सामाजिक ढांचे के कारण नारी जाति उन अवसरों और अधिकारों का पूर्ण रूप से लाभ न उठा पाई। अपने बचपन में वह पिता, जवानी में पति तथा वृद्धावस्था में पुत्र पर निर्भर रही। पति के घर में प्रवेश करने के बाद उसकी अर्थी ही बाहर निकलती रही।

मगर आजाद भारत के इतिहास को नारियों की गौरव गाथा से रीता नहीं रहना था। इंदिरा गांधी 1966 में देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। सुचेता कृपलानी यूपी की मुख्यमंत्री, किरण बेदी प्रथम महिला आईपीएस, कमलजीत संधू एशियन गेम्स में प्रथम गोल्ड पदकधारी, बेछेंद्री पाल एवरेस्ट पर प्रथम भारतीय महिला, मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार, फातिमा बीबी प्रथम महिला जज सुप्रीम कोर्ट, मेधा पाटकर सामाजिक कार्यकर्ता जैसी अनेक महिलाओं ने पुरुषवादी समाज की सोच को धता बताते हुए अपनी बुद्धिमत्ता, नेतृत्व क्षमता और सामर्थ्य का परिचय दिया और इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा दिया।

बदलाव की बयार

स्वतंत्रता की रजत जयंती के बाद का समय विकास का स्वर्ग साबित हुआ। देश में कम्प्यूटर तथा अन्य टेक्नोलॉजी के विकास, टीवी युग का प्रादुर्भाव, आधारभूत संरचना के साथ बड़े उद्योगों की स्थापना ने देश में विकास के कीर्तिमानों की नई इबारत लिख दी। बॉलीवुड, फैशन और मनोरंजन की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। नारियों तक इस नवविकास की बयार पहुंची और उनकी स्थिति में काफी महत्वपूर्ण बदलाव आया।

आज नारियां पुरुषों से किन्हीं भी मायनों में कम और घर की चहारदीवारी में कैद नहीं हैं। वे उच्च शिक्षित हैं, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक व अंतरिक्ष यात्री हैं तथा हर तरह के उच्चतम पदों पर भी आसीन हैं। वे अपने वस्त्रों व जीवनशैली के साथ अपने जीवनसाथी का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं। उनकी सुरक्षा एवं हित रक्षा के लिए संविधान में लगभग 34 एक्ट प्रभावी हैं। नारियों ने साबित कर दिया है कि वे पुरुषों के समकक्ष नहीं, बल्कि उनसे बेहतर हैं।

आने वाले समय में नारी कितना बदले और क्यों?

समाज की कुछ उच्च शिक्षित नारियां और उनके संगठन शायद यह समझते हैं कि मनचाहे कम वस्त्र पहनना, रोक-टोकरहित मुक्त जीवन जीना, मुक्त सेक्स की राह पर चलना ही वांछित बदलाव है। इस बदलाव का उनके पास कोई तर्कयुक्त जवाब उनके पास नहीं है सिवाय इसके कि सदियों से चले आ रहे रहन-सहन व आचार-व्यवहार के हर नियम को उन्हें बस चुनौती देना है।
इस बात में कोई संशय नहीं है कि नारी अपने जीवन में घर के सीमित दायरे के लिए नहीं बनी है। फिर भी नारी को यह भूलना नहीं चाहिए कि घर ही उनका किला और सबसे बड़ा कार्यक्षेत्र है जिसकी कि वे अकेली ऑर्किटेक्ट हैं। नारी के द्वारा घर को घर जैसा बनाने रखने में किया प्रयास महान होता है जिसमें वह अपने बच्चों का पालन-पोषण कर उनका और देश का भविष्य संवारती है।घर की हर जिम्मेदारी को निभाकर वह अपने पति की धुरी और खुशहाल घर की नींव बनकर दिखाती है। ऐसे खुशहाल घरों से ही देश ताकतवर बनता है। हां, यह जरूरी नहीं कि घर संभालने में नारी अपने आपको इतना झोंक दे कि उसे अपने स्वास्थ्य, पोषण, खुशियों व अन्य सामान्य जरूरतों का ध्यान ही नहीं रहे। उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उसे घर में उतना ही सम्मान मिले जितना कि घर का पुरुष घर के बाहर काम करके अर्जित करता है। जरूरत पड़ने पर उसे इसके लिए कठोर बनकर भी दिखाना होगा।

ग्रामीण क्षेत्रों में भी बदलाव की बयार पहुंचने लगी है। मनोरंजन व संचार के साधन जैसे टीवी व मोबाइल गांवों में भी पहुंचने लगे हैं। गांवों की नारी अपने ससुराल आने से इसलिए मना कर रही है कि वहां शौचालय नहीं है। यह बड़ा बदलाव है और यह बयार और तेज होना चाहिए। एक बात और, समाज की जो भी रूढ़ियां, नियम या परंपराएं होती हैं, वे सारी की सारी गलत नहीं होती हैं। अत: जो भी बदलाव हों, वे तर्कसंगत होने चाहिए और उसमें दूसरों के हितों का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। नारी को समय, स्थान, अपने परिवार, अपनी परिस्थिति और क्षमता के अनुसार ही उपयुक्त बदलाव को अपनाना होगा और वह भी क्रमिक तरीके से ताकि अनावश्यक टकराव को टाला जा सके। नारी ने साबित कर दिया है कि जीवन की दौड़ में वह पुरुषों के समकक्ष ही नहीं, बल्कि उनसे बेहतर है। वही जीवन की असली कलाकार है और पुरुष उसके हाथों का मात्र रंग और कागज है। यह दुनिया पल-पल बदलती रहती है और नारियों को भी स्वयं को मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार लगातार बदलते रहना होगा।यह तय है कि नारी कोई वस्तु या दया की पात्र नहीं है। सभी को पता है कि मां के रूप में एक कमजोर दिखने वाली नारी को भी जब लगता है कि उसके बच्चों पर कोई खतरा है तो उनकी रक्षा करने के लिए वह रणचंडी का रूप धारण करने में कोई देर नहीं लगाती है।

बाजी मार रही हैं लड़कियां

अगर आजकल की लड़कियों पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल बहुत बाजी मार रही हैं। इन्हें हर क्षेत्र में हम आगे बढ़ते हुए देखते हैं। विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान किया जाना चाहिए।

कंधे से कंधा मिलाकर चलती नारी

नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है।

उसे इस दौरान घर के कामकाज के साथ पढ़ाई-लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी होती है, जबकि इस दौरान लड़कों को पढ़ाई-लिखाई के अलावा और कोई काम नहीं रहता है। कुछ नवुयवक तो ठीक से पढ़ाई भी नहीं करते हैं, जबकि उन्हें इसके अलावा और कोई काम ही नहीं रहता है।विवाह पश्चात तो महिलाओं पर और भी भारी जिम्मेदारी आ जाती है। पति, सास-ससुर, देवर-ननद की सेवा के पश्चात उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता है। वे कोल्हू के बैल की मानिंद घर-परिवार में ही खटती रहती हैं। संतान के जन्म के बाद तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। घर-परिवार, चौके-चूल्हे में खटने में ही एक आम महिला का जीवन कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता।

कई बार वे अपने अरमानों का भी गला घोंट देती हैं घर-परिवार की खातिर। उन्हें इतना समय भी नहीं मिल पाता है वे अपने लिए भी जिएं। परिवार की खातिर अपना जीवन होम करने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं।

बच्चों में संस्कार भरना

बच्चों में संस्कार भरने का काम मां (नारी) द्वारा ही किया जाता है। यह तो हम सभी बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि बच्चों की प्रथम गुरु मां ही होती है। मां के व्यक्तित्व-कृतित्व का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का असर पड़ता है।
इतिहास उठाकर देखें तो मां पुतलीबाई ने गांधीजी व जीजाबाई ने शिवाजी महाराज में श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण किया था। जिसका ही परिणाम है कि शिवाजी महाराज व गांधीजी को हम आज भी उनके श्रेष्ठ कर्मों के कारण आज भी जानते हैं। इनका व्यक्तित्व विराट व अनुपम है।

अभद्रता की पराकाष्ठा

आजकल महिलाओं के साथ अभद्रता की पराकाष्ठा हो रही है। हम रोज ही प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पढ़ते हैं कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की गई या उनसे अभद्रता इसे नैतिक पतन ही कहा जाएगा। शायद ही कोई दिन जाता हो, जब महिलाओं के साथ की गई अभद्रता पर समाचार न हो।

क्या कारण है इसका?

इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिन-पर-‍दिन अश्लीलता बढ़ती‍ जा रही है। इसका नवयुवकों के मन-मस्तिष्क पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। वे इसके क्रियान्वयन पर विचार करने लगते हैं। परिणाम होता है दिल्ली गैंगरेप जैसा जघन्य व घृणित अपराध।

‍ इतिहास के पन्नो से

देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, इला भट्ट, महादेवी वर्मा, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गाँधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे जग-संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

और अंत में…

अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें, क्योंकि दुनिया की आधी आबादी के बलबूते पर ही आदमी यहां तक आया है। उसे ठुकराना नहीं चाहिए।
जिस सीढ़ी (महिला) के बलबूते पर आदमी यहां तक आया, उसका तिरस्कार, अपमान कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।(साभार न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़)

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