राम मंदिर का फैसला पलटवाने की मंशा खतरनाक, पत्रकारों से खास बातचीत में बोले पीएम मोदी

रिपोर्ट:मनोज सिंह ठाकुर

नई दिल्ली(गंगा प्रकाश)। कांग्रेस पार्टी और उसके नेता कई मौकों पर श्री राम के अस्तित्व पर सवाल उठाकर हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाते रहे हैं। कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी को इस बात पर आपत्ति है कि चंद्रयान के अवतरण बिन्दु का नाम ‘शिवशक्ति’ क्यों रखा गया। इतना ही नहीं, राशिद अल्वी ने इसी संदर्भ में यह भी कहा था कि नेहरू की तुलना किसी नाम से नहीं की जा सकती। चाटुकारिता की पुस्तक का यह अध्याय क्या कहना चाहता है? यह केवल कुछ व्यक्तियों की नहीं पूरी कांग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता का लक्षण है। पिछले वर्षों में रॉ के पूर्व विशेष निदेशक अमर भूषण की पुस्तक ‘इनसाइड नेपाल’ प्रकाशित हुई थी, इस पुस्तक के अनुसार नेपाल के हिन्दू राष्ट्र को राजीव गांधी ने नष्ट किया था और नेपाल के हिन्दू शाही परिवार को उखाड़कर वामपंथियों और चीन समर्थकों के लिए सत्ता पाने का मार्ग प्रशस्त किया। इससे पुन: न केवल कांग्रेस की हिन्दू विरोधी मानसिकता बल्कि उसकी चीनपरस्ती भी उजागर होती है।
कांग्रेस और उस जैसे तत्व न केवल आग से खेल रहे हैं, बल्कि उन्हें इस देश की जनता की, देश की प्रतिष्ठा की, देश की आत्मा की जरा भी चिंता नहीं है। उन्हें पता होना चाहिए कि हिन्दू और हिन्दुत्व कोई रेत का ढेर नहीं है, जिसे ठोकर मारने पर चोट नहीं लगेगी।
आश्चर्य की बात नहीं कि विदेशों में बैठे खालिस्तानी समर्थक तत्व अपना हिन्दुत्व विरोध जताने के लिए चीन से यह आग्रह करते हैं कि वह अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा कर ले। इन तत्वों से भी कांग्रेस का संबंध महसूस किया जा सकता है। कर्नाटक, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आने के बाद से हिन्दू विरोधी हरकतों में और हिन्दुत्व के अपमान में जितनी तीव्र वृद्धि हुई है, हालाकि आज राजस्थान और छत्तीसगढ़ भाजपा की सरकार हैं। यही स्थिति कांग्रेस से प्रेरित समाजवादी पार्टी के नेताओं की है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि हिन्दू नाम का कोई धर्म है ही नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीति में, मीडिया में एक पायदान ऊपर जाने के लिए हिन्दुओं को भला-बुरा कहना, उनके विरुद्ध हिंसा करना एक फार्मूला बन गया है। इस तरह की घटनाओं को लेकर किसी तरह का अपराध बोध महसूस करना अथवा उसके लिए क्षमा प्रार्थना करना तो दूर, कांग्रेस ऐसा व्यवहार करती है जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो। जिस पार्टी और परिवार ने इतने वर्षों तक भारत पर शासन किया, वे सत्ता में रहते हुए भी भारत-विरोधी और हिन्दू-विरोधी व्यवहार करते रहे और अब सत्ता से बाहर हो कर भी वही कर रहे हैं। हिन्दुत्व विरोधी ये हरकतें भारत से गद्दारी के अलावा कुछ नहीं हैं।
प्रश्न यह नहीं है कि हिन्दुत्व कितने करोड़ लोगों की जीवनशैली अथवा उनकी आस्था है। प्रश्न संख्या का नहीं, आत्म सम्मान का है। यह एक सामान्य सी समझ की बात है कि अगर किसी देश की आत्मा के साथ खिलवाड़ किया जाएगा, तो वह देश भी किसी दिन अपने इस अपमान का प्रतिकार करने के लिए बाध्य होगा। स्पष्ट है कि कांग्रेस और उस जैसे तत्व न केवल आग से खेल रहे हैं, बल्कि उन्हें इस देश की जनता की, देश की प्रतिष्ठा की, देश की आत्मा की जरा भी चिंता नहीं है। उन्हें पता होना चाहिए कि हिन्दू और हिन्दुत्व कोई रेत का ढेर नहीं है, जिसे ठोकर मारने पर चोट नहीं लगेगी।
बताते चले कि राम और राम मंदिर का मुद्दा विपक्ष का पीछा नहीं छोड़ रहा है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में विपक्षी नेताओं की गैर मौजूदगी पर तो लगातार सवाल दागे जा रहे थे। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के ही पूर्व नेता का हवाला देते हुए कहा कांग्रेस नेता राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने की मंशा रखते थे। पीएम ने इसे खतरनाक मंशा बताते हुए कहा कि उनके पिताजी ने शाहबानो केस को बदला था।
ध्यान रहे कि एक दिन पहले ही कांग्रेस की राष्ट्रीय मीडिया संयोजक राधिका खेड़ा ने पार्टी से इसी शिकायत के साथ इस्तीफा दिया था कि राम मंदिर जाने के कारण वरिष्ठों ने उनके साथ दु‌र्व्यवहार किया था। स्पष्ट है कि चुनाव के आने वाले चरणों में भी यह मुद्दा गरमाया रह सकता है। अपने व्यस्त चुनावी कार्यक्रम के बीच दैनिक जागरण से बातचीत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भरोसा जताया कि भाजपा और राजग अपने लक्ष्य तक पहुंचेगा।

कांग्रेस की नीयत पर सवाल

उन्होंने कहा कि भाजपा अपने विकास के एजेंडे के साथ ही जनता तक जा रही है। जनता भी महसूस करती है कि पिछले दस वर्षों में बहुत सकारात्मक बदलाव आया है। दैनिक जागरण ने जब राम मंदिर के राजनीतिक प्रभाव पर सवाल पूछा को उन्होंने स्पष्ट किया भाजपा के लिए यह राजनीतिक मुद्दा कभी नहीं रहा। आमजन का भी राम से जुड़ाव अलग स्तर पर है। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस की नीयत पर भी सवाल खड़ा किया।

कांग्रेस की सोच हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने की

उन्होंने बिना नाम लिए कहा कि कांग्रेस के ही एक पूर्व सलाहकार ने कहा है कि शहजादे ने राम मंदिर के फैसले को पलटने की कोशिश की थी। ध्यान रहे कि प्रमोद कृष्णम ने यह आरोप लगाया है जो पहले कांग्रेस में थे। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस और भाजपा की सोच और कार्यशैली के बीत विभेद करते हुए कहा कि कांग्रेस की सोच हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने की है।

ये होगा तीसरे कार्यकाल का लक्ष्य

उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस काल में वित्तमंत्री पी. चिदंबरम 2014 में अपना आखिरी बजट प्रस्तुत कर रहे थे तब उन्होंने यह लक्ष्य रखा था कि हम 2043 तक भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की टॉप थ्री तक ले जाएंगे। हमने यह लक्ष्य अपने तीसरे कार्यकाल के लिए यह लक्ष्य रखा है। यानी इनके लक्ष्य से करीब 15 साल पहले। कांग्रेस और भाजपा के लक्ष्यों को देखकर आपको दोनों के लक्ष्य निर्धारण और महत्वाकांक्षा के अंतर पता चल जाएगा। अगर लक्ष्य निर्धारण ही छोटा हो तो आगे जाना असंभव है।

हर चुनाव में भाजपा का वोट बढ़ रहा

कांग्रेस की ओर से किए जा रहे वादों को खोखला बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसीलिए उनकी ओर से वोट बैक की राजनीति की जा रही है। लोग यह समझ रहे हैं। क्योंकि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं हो सकता यह बाबा साहेब का संविधान बोलता है। भाजपा एससी एसटी ओबीसी के साथ अन्याय नहीं होने देगी। यह आमधारणा है कि मुस्लिम समुदाय भाजपा को वोट नहीं देता। लेकिन प्रधानमंत्री का मानना है कि जब हर चुनाव में भाजपा का वोट बढ़ रहा है तो उसमें सबका प्रयास जरूर होगा। तीसरे कार्यकाल की तैयारी में जुटे प्रधानमंत्री ने यह संदेश भी दिया कि वह संतुष्ट होने में विश्वास नहीं रखते हैं। उन्होंने कहा- संतुष्ट न होना मुझे ताकत देता है ताकि और ज्यादा काम कर सकूं।

राम और रामायण के अस्तित्व को चुनौती देने बाली कांग्रेस की कथा

अब यहां गौर देने वाली बात है कि आज जो कांग्रेस ‘जय सियाराम’ कह रही है, वही कांग्रेस एक वक्त में भगवान राम के लंका पहुंचने के लिए वानर सेना द्वारा बनाए गए रामसेतु के अस्तिव को ही चुनौती देती थी। यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि रामसेतु काल्पनिक है।जब यह पार्टी केंद्र में सत्तारूढ़ थी, तब इसने भगवान राम को काल्पनिक बताया था। यह बात कोर्ट को दिए गए हलफनामे में कही गई थी। यह साल 2007 का समय था, केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार थी। उस समय केंद्र सरकार एक महत्वकांक्षी परियोजना पर काम कर रही थी जिसका नाम था “सेतु समुद्रम परियोजना”। इस परियोजना के अंतर्गत भारत के पूर्वी तट से पश्चिमी तट के बीच चलने वाले समुद्री जहाजों के लिए एक शार्टकट बनाने के उद्देश्य से मन्नार की खाड़ी और पाक-बे को अलग करने वाली पतली भूमि की पट्टी को काट कर पानी में जहाजों के आने जाने के मार्ग के निर्माण होना था।

मन्नार की खाड़ी और पाक-बे को अलग करने वाली यही पतली भूमि की पट्टी को राम सेतु कहा जाता है। मान्यता है कि राम सेतु भगवान राम की सेना को लंका तक पहुंचाने के लिए वानरों द्वारा बनाया गया था। जब इस परियोजना का विरोध हुआ तो तत्कालीन संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने राज्यसभा (14 अगस्त, 2007) में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए दावा किया कि राम सेतु के संबंध में कोई पुरातात्विक अध्ययन नहीं किया गया है। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट में भी तत्कालीन यूपीए सरकार ने हलफनामा दिया कि भगवान राम थे ही नहीं और राम सेतु जैसी भी कोई चीज़ नहीं है, यह एक कोरी कल्पना है। कहा गया था कि रामायण में जो वर्णित है, उसके वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। कांग्रेस नेता कपिल सिब्ब्ल केंद्र सरकार की ओर से वकील थे। कांग्रेस के अनेक नेता बचाव में थे। विपक्ष के दबाव और सुप्रीम कोर्ट में अपील ने स्थिति संभाली, नहीं तो कांग्रेसनीत यूपीए सरकार रामसेतु को तोड़ने का मंसूबा बना चुकी थी।

अब कुछ अन्य बयान भी पढ़िये –

रामायण एक काल्पनिक कहानी है – पंडित जवाहरलाल नेहरू

गवर्नर जनरल राजाजी।
राम मात्र एक काल्पनिक पात्र था

  • तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि।

राम पियक्कड़ था – तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि।

कौन था यह राम? किस इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की थी? और क्या इसका कोई प्रमाण है? तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि।

हिमालय और गंगा जितना बड़ा सत्य हैं, राम का चरित्र उतना ही झूठा है – तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि।

कांग्रेस का हलफनामा

2008 में यूपीए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर रामसेतु को काल्पनिक करार देते हुए कहा, “वहां कोई पुल नहीं है। ये स्ट्रक्चर किसी इंसान ने नहीं बनाया। यह किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर खुद ही नष्ट हो गया। इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई। न कोई सुबूत है।” कांग्रेस द्वारा दाखिल किए गए इस हलफनामे का खूब विरोध हुआ था, जिसके बाद कांग्रेस ने इसे वापिस लिया और कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है।

क्या था सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट

कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार ने 2005 में सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का ऐलान किया था। इसका प्रस्ताव डीएमके ने रखा था, गठबंधन की सरकार में डीएमके के पास जहाजरानी मंत्रालय था। सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबा नया रास्ता बनना था, जिसके लिए समुंद्र में कम गहराई वाले हिस्से की खुदाई करनी थी। यह खुदाई रामसेतु की जगह पर भी होनी थी।

क्या ? केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार श्री राम को काल्पनिक बता कर राम सेतु को RDX से उड़ाने वाली थी?

क्या कांग्रेस ने राम सेतु को तोड़ने की याचिका लगाई थी

बात है सन 2007 की, जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे, कांग्रेस ने राम सेतु को RDX से उड़ाने के लिए पूरा प्लान सेट कर लिया था. राम सेतु को बचाने वाले बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि- राम सेतु को तोड़ने की योजना के पीछे दो लोग थे सोनिया गांधी और करूणानिधि। करूणानिधि ने मुसलमानों से कहा था कि जिस तरफ हिन्दुओं ने तुम्हारी बाबरी मस्जिद तोड़ी है वैसे ही मैं राम सेतु तोडूंगा।

सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि सोनिया गांधी ईसाई है जो हमेशा से हिन्दू आस्था से जुडी चीज़ों को नष्ट करना चाहती है, करूणानिधि को तो श्री राम से ही नफरत है, जो हमेशा श्री राम और हिन्दुओं का परिहास करता है। राम सेतु को तोड़ने की योजना 1857 से ही बन रही थी लेकिन हर बार विफल हुई और आगे भी होती रहेगी।

करूणानिधि और राम सेतु की कहानी

मुत्तुवेल करूणानिधि तमिलनाडु के सीएम थे, वह नास्तिक थे लेकिन हिन्दू और हिन्दुओं के देवताओं से नफरत करते थे, फिर भी तमिलनाडु की जनता ने उन्हें 5 बार मुख्यमंत्री बनाया। करूणानिधि हमेशा हिन्दुओं और श्री राम के खिलाफ थे।एक टीवी चैनल से बातचीत में उन्होंने कहा था “क्या राम इंजीनियर थे जो उन्होंने पुल बनाया था। राम नाम के किसी व्यक्ति का अस्तित्व नहीं है” करुणानिधि ने राम को मिथक करार दिया था और कहा था कि इतिहास में राम का कोई अस्तित्वtt नहीं है।ये सब बयानबाज़ी इसी लिए हो रही थी क्योंकि कांग्रेस सरकार और मुत्तुवेल करूणानिधि ‘सेतुसमुद्रम परियोजना’ के लिए राम सेतु को तोडना चाहते थे।

कया थी सेतुसमुद्रम परियोजना

सेतुसमुद्रम परियोजना कांग्रेस की थी, जिसमे 83 किमी गहरे पानी के चैनल का निर्माण करके भारत और श्रीलंका के बीच शिपमार्ग बनाना था।ताकि दोनों देशों के बीच का समुद्री रास्ता कम हो जाए।इसके लिए कांग्रेस ने राम सेतु को RDX से उड़ा देने के पूरे इंतज़ाम कर लिए थे।कांग्रेस ने सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए राम सेतु के चारों तरफ ड्रेजिंग करने का प्रस्ताव भी पेश कर दिया था।लेकिन जब विपक्षी बीजेपी पार्टी इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट गई तो कांग्रेस और करूणानिधि ने श्री राम को ही काल्पनिक बता दिया था।
सेतुसमुद्रम परियोजना ना सिर्फ हिन्दुओं की आस्था को चोट पहुंचाने के लिए शुरू की गई थी बल्कि पर्यावरण के लिए भी यह घातक थी। इससे हिन्द महासागर के बड़े हिस्से की मरीन लाइफ तबाह हो जाती, और भारत में सुनामी का खतरा बढ़ जाता।

सुब्रमण्यम स्वामी और राम सेतु की कहानी

सुब्रमण्यम स्वामी नहीं होते तो सोनिया गांधी और करूणानिधि इसे तोड़ चुके होते, जब सेतुसमुद्रम परियोजना आई तो सबसे पहले सुब्रमण्यम स्वामी ही सुप्रीम कोर्ट गए और इसका विरोध किया। कांग्रेस द्वारा राम सेतु तोड़ने के फैसले के खिलाफ धर्माचार्यों ने पहले भी प्रयास किया था। चार शंकराचार्यों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन उनकी याचिका न सिर्फ निरस्त कर दी गई बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने धर्मगुरुओं की निंदा भी की, तब विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल ने सुब्रमण्यम स्वामी को यह मसला उठाने के लिए कहा था।
असल में राम सेतु को बचाने वाली बीजेपी भी नहीं है, सिर्फ एक इंसान है ‘सुब्रमण्यम स्वामी’ क्योंकि प्रोजेक्ट अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 2004 में शुरू किया गया था और इसके लिए 3500 करोड़ का बजट बनाया गया था, बाद में मनमोहन सिंह ने प्रोजेक्ट का उद्घाटन 2005 में किया था।हालांकि कांग्रेस की मंशा राम सेतु को तोड़ने की थी।मार्च 2018 में बीजेपी ने सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना के बारे में कोर्ट को बताया था कि इससे राम सेतु पर असर नहीं होगा, लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी ने यहां भी अपनी सरकार के खिलाफ जाकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी कि ‘बीजेपी से कहा जाए वह राम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करे, यह याचिका अबतक सुप्रीम कोर्ट में है।

भाजपा नीत मोदी सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा

बताते चले की रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किए जाने की मांग पुरानी है और अक्सर यह मांग उठती रही है कि,भगवान राम से जुड़े होने के कारण, इसे जस का तस रहने दिया जाए और इसके साथ कोई छेड़छाड़ न की जाए। शीर्ष अदालत में यह मामला, लगभग आठ साल से लंबित चल रहा है और एक बार फिर यह सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई सुब्रमण्यम स्वामी, बीजेपी के पूर्व सांसद की याचिका पर हो रही है। सुब्रमण्यम स्वामी ने, सुप्रीम कोर्ट में इस इस बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि, इस याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने अभी तक अपनी तरफ से, अपना कोई पक्ष नहीं रखा है और न ही याचिका में दिए बिंदुओं पर कोई हलफनामा दायर किया है। सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपनी याचिका में कहा है कि आठ साल से अधिक का समय बीत चुके हैं पर उनकी याचिका पर कोर्ट की नोटिस के जवाब में केंद्र सरकार हलफनामा दाखिल नहीं कर रही है। इस बीच इस याचिका की सुनवाई के लिए 16 तारीखें लगीं लेकिन अभी तक, केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग पर कोई भी जवाब दाखिल नहीं किया है।तब सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर केन्द्र सरकार को अपना जवाब, हलफनामा दायर कर, दाखिल करने का निर्देश दिया था सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा कई साल पहले रामसेतु को ऐतिहासिक स्मारक के रूप में मान्यता देने के लिए यह याचिका दायर की गई थी। पिछले महीनों याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी ने कई बार कई सीजेआई से इस मामले की जल्द सुनवाई करने की मांग भी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में इस मुद्दे पर कहा था कि इस मामले में तीन महीने बाद विचार किया जाएगा। तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को एक हलफनामा दाखिल करके अपना रुख भी स्पष्ट करने को कहा था।हालांकि मोदी सरकार रामसेतु मामले पर पहले यह कह चुकी है कि समुद्र में जहाजों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए प्रस्तावित सेतु समुद्रम परियोजना के लिए राम सेतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा।परियोजना के लिए सरकार कोई दूसरा वैकल्पिक मार्ग तलाशेगी।स्वामी ने अपनी याचिका में कहा है कि राम सेतु लाखों हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा है, लिहाजा इसे न तोड़ा जाए। साथ ही रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए।
2007 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर हिंदू मान्यताओं के अनुसार रामसेतु की अवधारणा को पूरी तरह बेबुनियाद बता दिया था। केंद्र सरकार का कहना था कि इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि, साढ़े छह हजार वर्ष पहले भगवान राम ने यह पुल बनवाया था।जबकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह वही रामसेतु है, जिसका जिक्र रामायण में किया गया है। उल्लेखनीय है कि, पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पाटी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने याचिका दायर कर रामसेतु (पुल) को तोड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। इस पर 31 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने सेतु समुद्रम परियोजना के लिए रामसेतु तोड़ने पर रोक लगा दी थी। जस्टिस बीएन अग्रवाल और जस्टिस पीपी माओलेकर की बेंच ने कहा था कि 14 सितंबर तक रामसेतु को किसी तरह की क्षति नहीं पहुंचाई जाए। तत्कालीन कांग्रेस की मनमोहन सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया था कि,यह पुल असल में एक भूगर्भीय संरचना है,जो दस लाख वर्ष पहले भूगर्भीय क्रियाओं के कारण अस्तित्व में आई। इनका निर्माण मनुष्य ने नहीं किया है।
अहमदाबाद के मरीन पेड वाटर रिसोर्स ग्रुप, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के अध्ययन का हवाला देते हुए मनमोहन सरकार की “याचिकाकर्ता की यह धारणा गलत है कि इस पुल का धार्मिक और पुरातात्विक महत्व है। देश के पूर्वी तट को पश्चिमी तट से जोड़ने वाले सेतु समुद्र कैनाल प्रोजेक्ट जनहित और आर्थिक उन्नति के लिए तैयार किया जा रहा है इसलिए रामसेतु तोड़ने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
हलफनामे में कहा गया था कि,”याचिकाकर्ता ने कोर्ट से यह तथ्य छिपाया है कि मार्ग बनाने के लिए 30 हजार मीटर लंबे पुल का केवल 300 मीटर चौड़ा और 12 मीटर गहरा हिस्सा ही तोड़ा जा रहा है, पूरा पुल नहीं।
हलफनामे में याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी पर कड़ा जुर्माना लगाने और पुल तोड़ने पर लगे प्रतिबंध को समाप्त करने की मांग की गई थी। वहीं यह भी कहा गया है कि “याचिकाकर्ता के इस तर्क को भी नहीं माना जा सकता कि इस पुल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए।तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया और कहा, “आर्थिक उन्नति के लिए रामसेतु तोड़ना जरूरी है।”
यूपीए सरकार के ऐसे ही हलफनामे पर, तब आरएसएस और बीजेपी ने हंगामा खड़ा कर दिया था और वामपंथी इतिहासकार, तब राम की ऐतिहासिकता कहीं छुपा दिए थे, जिसे संघी नहीं पढ़ पा रहे थे। अब सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर, मोदी सरकार ने भी लगभग यही बात कही है जो, पहले कही जा चुकी है। सरकार ने तो रामसेतु को तोड़ने की भी बात कह दी है। बताइए क्या समय आ गया है, जो राम को लाए हैं वही उनके द्वारा निर्मित एक प्राचीन सेतु को तोड़ने पर आमादा हैं! शिव शिव।
संघ और बीजेपी के लिए रामसेतु एक बड़ा सियासी मुद्दा रहा है, लेकिन अब मोदी सरकार के ही एक मंत्री ने संसद में रामसेतु का कोई वजूद होने से ही इनकार कर दिया है। यूपीए सरकार पर तो राम को ही काल्पनिक बताने का आरोप लगता रहा है, लिहाजा सरकार के इस जवाब के बाद हिंदूवादी संगठन नाराज हैं। लेकिन अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो केंद्रीय मंत्री, जितेन्द्र सिंह ने संसद को गुमराह करने की बजाए बिल्कुल सही जवाब दिया है। जितेंद्र सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री होने के अलावा परमाणु ऊर्जा विभाग तथा अंतरिक्ष विभाग के राज्य मंत्री भी हैं। चूंकि सवाल विज्ञान के शोध और अध्ययन से जुड़ा हुआ था, इसलिये उन्होंने अंतरिक्ष विभाग के राज्य मंत्री के नाते उसका उचित जवाब देने से कोई परहेज नहीं किया। अब ये अलग बात है कि इससे हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं और उनके इस बयान का विरोध भी हो रहा है। हरियाणा से निर्दलीय सांसद कार्तिकेय शर्मा ने राज्यसभा में रामसेतु का मुद्दा उठाया था। उन्होंने सवाल पूछा था कि, “क्या सरकार हमारे गौरवशाली, प्राचीन इतिहास को लेकर कोई साइंटिफिक रिसर्च कर रही है? क्योंकि पिछली सरकारों ने लगातार इस मुद्दे को तवज्जो नहीं दी।उनके इस सवाल का केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने जवाब देते हुए कहा था कि “रामसेतु को लेकर हमारी कुछ सीमाएं हैं क्योंकि ये करीब 18 हजार साल पहले का इतिहास है। जिस पुल की बात हो रही है वो, करीब 56 किमी लंबा था। स्पेस टेक्नोलॉजी के जरिए हमने पता लगाया कि समुद्र में पत्थरों के कुछ टुकड़े पाए गए हैं, इनमें कुछ ऐसी आकृति है जो निरंतरता को दिखाती हैं। समुद्र में कुछ आइलैंड और चूना पत्थर जैसी चीजें दिखीं हैं। अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो ये कहना मुश्किल है कि रामसेतु का वास्तविक स्वरूप वहां मौजूद है। हालांकि कुछ संकेत ऐसे भी हैं जिनसे ये पता चलता है कि स्ट्रक्चर वहां मौजूद हो सकता है। हम लगातार प्राचीन द्वारका शहर और ऐसे मामलों की जांच के लिए काम कर रहे हैं।
साफ शब्दों में कहें, तो सरकार ने ये मान लिया है कि सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों से भी राम सेतु के होने के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं। वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस की कथाओं के अनुसार श्रीराम ने श्रीलंका जाने के लिए समुद्र के ऊपर एक पुल बनाया था। यह सेतु, उसी पुल के अवशेष के रूप में बताया जाता है। रामसेतु एक ऐसा मुद्दा है, जिसे लेकर पिछले कई सालों से बीजेपी और कांग्रेस के बीच लंबी बहसे होती रही हैं। बीजेपी लगातार कांग्रेस पर यह आरोप लगाती रही है कि, वह रामसेतु के अस्तित्व को नहीं मानती, लेकिन अब सरकार ने संसद और अदालत में वही कहा जो यूपीए सरकार ने पहले कहा था।
एबीपी वेबसाइट पर संजय सिंह के एक लेख के अनुसार, सेतुसमुद्रम परियोजना को वाजपेयी सरकार में मंजूरी दी गई थी। साल 2004 में वाजपेयी सरकार ने इसके लिए 3,500 करोड़ रुपये का बजट भी रखा था। हालांकि, 2004 में यूपीए सरकार के आने के बाद, मनमोहन सिंह सरकार ने जब इसे आगे बढ़ाने पर काम शुरू किया तो, बीजेपी ही इसके विरोध में खड़ी हो गई। सरकार के अनुसार, सेतुसमुद्रम शिपिंग नहर परियोजना के तहत इस सेतु को तोड़कर एक मार्ग तैयार करना था जिससे बंगाल की खाड़ी से आने वाले जहाजों को श्रीलंका का चक्कर नहीं लगाना पड़े। इसका उद्देश्य, समय, दूरी और ईंधन आदि की बचत करना था। लेकिन बीजेपी समेत अन्य हिंदू संगठनों ने भी इसका विरोध किया और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। था।साल 2008 में यूपीए सरकार ने भी यही हलफनामा दिया था कि, “यह स्ट्रक्चर किसी इंसान ने नहीं बनाया। यह किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर खुद ही नष्ट हो गया। इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई और न कोई सुबूत है।इस हलफनामे का खूब विरोध हुआ और सरकार ने इसे वापस ले लिया था। पर्यावरण और समुद्री जीव जंतुओं के कारण उस सेतु के तोड़ने का विरोध पर्यावरण के लिए काम करने वाले समूहों और वैज्ञानिकों ने भी किया है। पर यहां उनका तर्क राम सेतु के प्रति आस्था से नहीं बल्कि, समुद्री पर्यावरण के दृष्टिकोण से है। अब अचानक ऐसा क्या हो गया कि राम सेतु को तोड़ने की योजना पर सरकार दुबारा काम करने लगी है? कहीं ऐसा तो नहीं, इसमें भी कोई चहेता पूंजीपति जिसका देश के बंदरगाहों पर कब्जा हो, को कोई मुश्किल दरपेश आ रही हो और वह एक आसान रास्ता पूर्व से पश्चिम या पश्चिम से पूर्व की ओर जाने के लिए चाहता हो। जो भी हो राम का सेतु है राम ही जानें।
अब आस्थाएं भी सेलेक्टिव होने लगी हैं। बीजेपी की सरकार के समय कुछ और यूपीए सरकार के समय कुछ। जब काशी में विश्वनाथ मंदिर के आसपास के पंच विनायक के प्राचीन मंदिर और पंचकोशी मार्ग के कुछ मंदिर और विग्रह ध्वस्त कर कूड़े में फेंक दिए गए तब किसी भी संघी और बीजेपी के मित्रों की आस्था आहत नहीं हुई। जब एनडीए सरकार ने सेतु समुद्रम योजना का बजट रखा और उस योजना को पास किया तब सारे नए रामभक्त चुप रहे। पर जैसे ही सन 2004 में सरकार बदली और यूपीए सरकार ने एनडीए की ही योजना पर काम किया, भुरभुरी आस्थाएं बिखरने लगीं। ऐसी भुरभुरी आस्था वाले भक्तगण अपने धर्म और ईश्वर का खुद ही उपहास कर देते हैं और इस मूर्खतापूर्ण आहत आस्था के कारण उनका पाखंड ही उजागर होता है।

भगवान श्री राम से नफरत का कांग्रेस का रहा हैं पुराना नाता? राम मंदिर का ताला खोलने को कांग्रेस नेता मानते रहें गलती

कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं की हिंदू धर्म, हिंदू देवी-देवताओं में कोई आस्था नहीं है। इसलिए भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण में हमेशा बाधा डालने की कोशिश की जाती रही है। एकबार फिर सितंबर 2022 में कांग्रेस नेताओं का हिन्दू धर्म और भगवान श्री राम विरोधी चेहरा उजागर हुआ , लिंगायत बने राहुल गांधी के खासमखास वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भगवान श्री राम के मंदिर को लेकर जो बयान दिया था, उससे पता चलता है कि कांग्रेस के नेता नहीं चाहते कि भगवान श्री राम भव्य मंदिर में विराजमान हों। वे हमेशा उन्हें कैद में रखना चाहते थे। इसलिए कांग्रेस नेता अयोध्या में ताला खोलने और भगवान श्री राम को आजाद करने को गलती मान रहे थे।दरअसल सोशल मीडिया पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश का एक वीडियो वायरल हो रहा था जिसमें वो वेबसाइट Satyahindi.com पर आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और पत्रकार आशुतोष से बातचीत करते नजर आ रहे हैं। इस बातचीत में जयराम रमेश ने कांग्रेस की भगवान श्री राम विरोधी मानसिकता को फिर जाहिर करते हुए कहा था कि गलतियां हमसे भी हुई हैं। ऐसा नहीं कि हमने गलतियां नहीं कीं। जो ताले खुलवाए गए अयोध्या में, 1986 में। इस पर फिर से चर्चा हो सकती है।
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कांग्रेस महासिचव जयराम रमेश का बयान शेयर करते हुए ट्वीट किया था उन्होंने लिखा कि “1986 में अयोध्या के ताले खुलवाना हमारी गलती थी – कांग्रेस की भगवान राम विरोधी मानसिकता एक बार फिर तुष्टिकरण के दोराहे पर खड़ी है। ये भारत जोड़ो यात्रा नहीं, हिंदुओं को अपमानित करो, जातियों में तोड़ो और देश विरोधी ताक़तों को जोड़ो मुहिम है।”

आइए जानते हैं राहुल गांधी और कांग्रेस कब-कब भगवान श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण में बाधाएं खड़ी कीं और हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित किया…

अयोध्या में राम भूमि पूजन को लेकर दुनिया भर में हिंदुओं के बीच उत्साह का माहौल था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करने वाले थे। यहां 4 और 5 अगस्त को भव्य दीपावली मनाने की तैयारी की थी। भूमि पूजन से पहले अयोध्या में जश्न का माहौल था, लेकिन कांग्रेस के खेमे में मायुसी थी। कांग्रेस के नेता मंदिर निर्माण के खिलाफ बयान दे रहे थे। यहां तक कि भूमि पूजन कार्यक्रम को टालने के लिए हथकंडे भी अपना रहे थे। साथ ही भगवान श्री राम के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर रहे थे।

कांग्रेसी सांसद केतकर ने राम को बताया था काल्पनिक

कांग्रेसा सांसद कुमार केतकर ने 2 अगस्त, 2021 को जी न्यूज पर एक चर्चा के दौरान भगवान श्रीराम को काल्पनिक बताया। केतकर ने कहा कि रामायण की वजह से राम का अस्तित्व है। हालांकि, इस निष्कर्ष पर पहुंचना अभी बाकी है कि राम इतिहास या साहित्य की रचना है या नहीं। वाल्मीकि ने एक महान महाकाव्य लिखा था और इसका प्रभाव भारत और विदेशों दोनों में महसूस किया गया था। लेकिन, मुझे नहीं पता कि वह इतिहास में मौजूद है या नहीं।

दिग्विजय ने भूमिपूजन के मुहूर्त पर उठाए थे सवाल

अयोध्या में श्रीराम मंदिर भूमिपूजन तय देख राहुल गांधी के करीबी कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह मुहूर्त पर सवाल उठाया था।दिग्विजिय ने ट्वीट किया था कि अयोध्या में भगवान राम मंदिर निर्माण के शिलान्यास के अशुभ मुहूर्त में कराये जाने पर हमारे हिंदू (सनातन) धर्म के द्वारका व जोशीमठ के सबसे वरिष्ठ शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज का संदेश व शास्त्रों के आधार पर प्रमाणित तथ्यों पर वक्तव्य अवश्य देखें। उन्होंने यह भी कहा था कि इस देश में 90 प्रतिशत से भी ज्यादा हिन्दू ऐसे होंगे जो मुहूर्त, ग्रह दशा, ज्योतिष, चौघड़िया आदि धार्मिक विज्ञान को मानते हैं। मैं तटस्थ हूं इस बात पर कि 5 अगस्त को शिलान्यास का कोई मुहूर्त नही है ये सीधे-सीधे धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं से खिलवाड़ है।

राम मंदिर भूमि पूजन के खिलाफ याचिका दायर

अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन पर रोक लगाने के लिए राहुल गांधी के करीबी और वकील साकेत गोखले ने पीआईएल याचिका दायर की थी। साकेत ने कोरोना संकट काल में जारी अनलॉक 2.0 के दिशानिर्देशों के तहत भूमिपूजन पर रोक लगाने की मांग की थी। गौरतलब है कि साकेत सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के खिलाफ फेक न्यूज फैलाते रहते हैं। फ्री प्रेस जर्नल के अनुसार साकेत बीजेपी के खिलाफ और कांग्रेस के पक्ष में अभियान चलाकर 22 लाख रुपये जुटाए थे।

जनेऊधारी पंडित राहुल गांधी ने साधी चुप्पी

राम मंदिर निर्माण पर सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा ने कुछ नहीं कहा। खुद को जनेऊधारी हिंदू बताने वाले और चुनाव के समय मंदिरों में चक्कर लगाने वाले राहुल गांधी भी कुछ नहीं कह रहे थे। जब राम मंदिर मामला सुप्रीम कोर्ट में था तो कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता ही राम मंदिर के विरोध में दलीलें देते रहते थे। यहां तक कि यूपीए शासन के दौरान इसी कांग्रेस पार्टी ने भगवान राम के अस्तिव पर भी सवाल उठा दिए थे।

चिदंबरम ने उठाए-अयोध्या पर अदालत के फैसले पर सवाल

09 नवंबर, 2021 को कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की किताब के विमोचन पर पहुंचे पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम अयोध्या के मसले पर उल्टी गंगा बहाते नजर आए थे वे राम मंदिर पर अदालत के फैसले पर ही सवाल उठाते नजर आए थे,उन्होंने कहा था कि इस फैसले का कानूनी आधार बहुत संकीर्ण है। बहुत पतली सी रेखा है लेकिन समय बीतने के साथ ही, दोनों पक्षों ने इसे स्वीकार किया। दोनों पक्षों ने स्वीकार किया, इसलिए यह सही फैसला है। ऐसा नहीं है कि यह सही फैसला था, इसलिए दोनों पक्षों ने स्वीकार किया।

देखिए किस तरह हिंदू आस्था का मजाक उड़ाने में अपनी शान समझते हैं राहुल गांधी?….

हिंदू आस्था से खिलवाड़
मध्य प्रदेश में चुनाव अभियान के दौरान जबलपुर में कांग्रेस पार्टी ने राहुल के शिव भक्त की तरह है नर्मदा भक्त होने का जमकर प्रचार किया था। राहुल गांधी के लिए मां नर्मदा की आरती का भी आयोजन किया गया था पर यहां अपनी राजनीतिक चमकाने के लिए राहुल गांधी ने हिंदू आस्था का अपमान किया था और मां नर्मदा की शाम को होने वाली आरती दोपहर में ही कर दी थी,दरअसल, राहुल गांधी को सिर्फ हिंदुओं को प्रभावित करने के लिए आरती का नाटक करना था, असर में तो उन्हें रोड शो करना था।

राहुल गांधी क्यों हैं ‘फर्जी’ हिंदू , जानिये हकीकत

सोशल मीडिया पर राहुल गांधी का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें भोपाल में कार्यकर्ता संवाद के दौरान कांग्रेस प्रवक्ता शोभा ओझा सवाल करती हैं कि कार्यकर्ता आपके कैलास मानसरोवर यात्रा के संस्मरण जानना चाहते हैं। ये सुनते ही राहुल गांधी कुछ बोल ही नहीं पाए। ऐसा लगा जैसे वे कैलास यात्रा के बारे में कुछ जानते ही न हों। थोड़ी देर तो बगल में खड़े मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अवाक रह गए और एक दूसरे का मुंह देखने लगे। राहुल को चुप देख कर उन्होंने कुछ समझाने की भी कोशिश की, लेकिन इसी बीच कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने मोदी जिंदाबाद के नारे लगाने भी शुरू कर दिए थे।
काफी सोचने के बाद राहुल ने जो जवाब दिया वह भी काफी चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि‘’जो एक बार कैलास पर्वत और मानसरोवर चला जाता है वापस आने पर सब-कुछ बदल जाता है। सोच बदल जाती है और गहराई आ जाती है।जाहिर है राहुल के जवाब में उनका ‘झूठ’ छिपा हुआ है क्योंकि यात्रा वे यात्रा के संस्मरण बता ही नहीं पाए।आपको बता दें कि राहुल गांधी ने दावा किया था कि वे 31 अगस्त से 9 सितंबर के बीच कैलास मानसरोवर यात्रा पर गए थे। यात्रा शुरू करने से पहले नेपाल में सूअर और चिकेन कुरकुरे खाने को लेकर भी काफी विवाद हो चुका है। इतना ही नहीं लोग यह भी जानना चाहते हैं कि जिस कैलास मानसरोवर की यात्रा में कम से कम 21 दिन लगते हैं, कांग्रेस अध्यक्ष ने 9 दिनों में ही अपनी यात्रा कैसे पूरी कर ली?
दरअसल खुद को हिंदू साबित करने वाले राहुल न तो सनातन धर्म के बारे में जानते हैं और पूजा का विधि-विधान जानते हैं। मां सोनिया गांधी ईसाई हैं, इतना ही नहीं उनके दादा का नाम भी फिरोज खान गांधी है। जाहिर है वे न तो धर्म से, न संस्कार से और न ही जन्म के आधार पर हिंदू हैं? ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वे बार-बार खुद को हिंदू साबित करने में क्यों लगे रहते हैं?

इसलिए ‘ढोंगी’ हिंदू हैं राहुल गांधी?

मार्च 2017
काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा के दौरान नमाज की मुद्रा बना ली

नवंबर, 2017
सोमनाथ मंदिर के एंट्री रजिस्टर में अपने नाम के आगे ‘M’ लिखा

जुलाई, 2018
मुस्लिम बुद्धिजीवियों से राहुल ने कहा था कि‘’कांग्रेस एक मुस्लिम पार्टी’’

फरवरी, 2018
कर्नाटक में हंपी के विरुपाक्ष शिव मंदिर में जाने से किया इनकार

अगस्त, 2014
मंदिर दर्शन को जाने वाले हिंदुओं को लड़कियां छेड़ने वाला बताया

जुलाई, 2009
विकिलीक्स को बताया कि अलकायदा-लश्कर से खतरनाक हैं हिंदू

कांग्रेस नेता किस हद तक हिंदू धर्म के विरोधी हैं, एक नजर डालते हैं…

जम्मू कश्मीर में छपने वाले उर्दू दैनिक अखबार “इंकलाब” ने 12 जुलाई, 2018 को बहुत बड़ा खुलासा किया था फ्रंट पेज पर खबर छापी कि 11 जुलाई को राहुल गांधी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ ‘सीक्रेट मीटिंग’ में कहा था कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। इसके साथ यह खबर भी छपी है कि राहुल ने कहा था कि उनका और उनकी मां का कमिटमेंट है कि मुसलमानों को उनका हक मिलना चाहिए और इससे वो कोई समझौता नहीं कर सकते।

गुजरात में मंदिर दर्शन के लिए राहुल ने मांगी माफी

12 तुगलक लेन स्थित अपने निवास पर राहुल गांधी ने लगभग 2 घंटे तक मुस्लिमों से बातचीत की। इस दौरान मुस्लिम नेताओं ने राहुल से आपत्त्ति दर्ज कराई और कहा कि आप तो सिर्फ मंदिर जा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने तो मुसलमानों को भुला ही दिया है। मुस्लिम नेताओं की बात सुनकर राहुल गांधी ने कहा कि मैं कर्नाटक में कई मस्जिदों में भी गया हूं। अब मस्जिदों में लगातार जा रहा हूं। खबर ये भी है कि उन्होंने कहा कि गुजरात में मंदिरों में गया था उसके लिए माफी मांगता हूं।

शरिया अदालत लागू करने का राहुल ने किया वादा

सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मांगें भी मान ली थी। बताया गया कि उस समय राहुल गांधी ने ये वादा किया कि अगर वे 2019 में देश के प्रधानमंत्री बने तो देश के हर जिले में शरिया अदालत बनाने की मांग पूरी कर देंगे।

राहुल के आदेश से हिंदुओं को ‘गाली’ देते हैं कांग्रेसी?

पिछले दिनों कांग्रेस नेता शशि थरूर ने हिंदुओं को कट्टरपंथी बताते हुए ‘हिंदू पाकिस्तान’ की बात कही थी इसके बाद दिग्विजय सिंह ने हिंदुओं को कट्टरपंथी कहा था और भारत के पाकिस्तान बन जाने की बात कही थी खबर है कि यह सब राहुल गाधी के आदेश से किया जा रहा है। गौरतलब है कि 11 जुलाई को ही राहुल गांधी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात की थी और मुलाकात से पहले और बाद वह यही संदेश देना चाहते हैं कि मुस्लिमों की असल हितैषी कांग्रेस है।

कांग्रेस के डीएनए में है हिंदू विरोध?

हिंदू विरोध की भावना कांग्रेस के डीएनए में है। 17 दिसंबर, 2010… विकीलीक्स ने राहुल गांधी की अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर से 20 जुलाई, 2009 को हुई बातचीत का एक ब्योरा दिया। राहुल ने अमेरिकी राजदूत से कहा था, ‘भारत विरोधी मुस्लिम आतंकवादियों और वामपंथी आतंकवादियों से बड़ा खतरा देश के हिन्दू हैं।’ अमेरिकी राजदूत के सामने दिया गया उनका ये बयान कांग्रेस की बुनियादी सोच को ही दर्शाता है। ये कहा जा सकता है कि कांग्रेस हमेशा ही देश की 20 करोड़ की आबादी को खुश करने के लिए 100 करोड़ हिंदुओं की भावनाओं से खिलवाड़ करती रही है।

मणिशंकर अय्यर ने भगवान राम के अस्तित्व पर उठाए सवाल

कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं की हिंदू धर्म, हिंदू देवी-देवताओं में कोई आस्था नहीं है। हिंदू धर्म में आस्था और जनेऊधारी हिंदू बनने का ढोंग करने वाले राहुल गांधी के खासमखास वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने हाल ही में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाया था। दिल्ली में राष्ट्र विरोधी संगठन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित ‘एक शाम बाबरी मस्जिद के नाम’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने भगवान राम, अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि स्थल सभी को कठघरे में खड़ा कर दिया। मस्जिद और मुसलमानों के प्रेम में डूबे अय्यर ने कहा कि राजा दशरथ एक बहुत बड़े राजा थे, उनके महल में 10 हजार कमरे थे, लेकिन भगवान राम किस कमरे में पैदा हुए ये बताना बड़ा ही मुश्किल है। इसलिए ये दावा करना कि राम वहीं पैदा हुए थे, यह ठीक नहीं है।
अब तक राहुल गांधी के खानदान का इतिहास हिंदुओं के खिलाफ ही रहा है। चलिए गिनते हैं राहुल गांधी के खानदान की ‘हिंदू विरोधी’ साजिशों के सबूत।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 1

आज़ादी के बाद से ही नेहरू गांधी ख़ानदान ने हिंदुओं को नीचा दिखाने और उनका मनोबल तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसकी शुरुआत आज़ादी के बाद से ही हो गई थी। लेकिन जब नेहरू के हिंदू विरोधी काम पर अंकुश लगाने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल नहीं रहे तो नेहरू पूरी बेशर्मी से इस काम में जुट गए।इंग्लिश अखबार ‘द हिंदू’ के मौजूदा संपादक एन. राम के पिता कस्तूरी ने तब ‘द हिंदू’ का संपादक रहते हुए लेख छापा था। मौजूदा तेलंगाना के सिकंदराबाद के के. सुब्रह्मण्यम के इस लेख में आजाद भारत में हिंदू और उनकी आस्था से हो रहे खिलवाड़ और सरकार की अल्पसंख्यकपरस्त नीतियों का खुलासा किया गया था।के. सुब्रह्मण्यम हिंदू आस्थाओं का मजाक उड़ते देखकर ही परेशान नहीं हुए। उन्होंने ये भी देखा की नेहरू सरकार बेशर्मी से दूसरे धर्मों को हिंदू धर्म से श्रेष्ठ बताने की कोशिश कर रही है। के. सुब्रह्मण्यम ने अंबेडकर की तुलना में अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, बीएन राव जैसे दूसरे हिंदू संविधान निर्माताओं को कम महत्व देने के लिए नेहरू को जिम्मेदार माना था। के. सुब्रह्मण्यम इस बात से भी दुखी थे कि वेद और हिंदू धर्मग्रन्थों का अनुवाद करने वाले अग्रेज मैक्सम्यूलर का भी सरकार गुणगान करती है। जबकि वो इनके जरिए हिंदुओं को पिछड़ा और ईसाई धर्म की सर्वोच्चता स्थापित करना चाहते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सरकार हिंदुओं का अहित और अल्पसंख्यकों को बढ़ावा दे रही है। अंग्रेज तो चले गए लेकिन हमारी सरकार अब भी उनकी नीतियों पर ही चल रही है।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 2

7 फरवरी, 1916 को मोतीलाल नेहरू ने अपने बेटे जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू की शादी के तीन कार्ड छपवाए गए थे। तीनों कार्ड अंग्रेजी के अलावा सिर्फ अरबी लिपि और फारसी भाषा में छपे थे। तीनों ही कार्ड में किसी भी हिन्दू देवी देवता का नाम नहीं लिखा गया था। न ही उन कार्ड पर हिन्दू धर्म से जुड़ा कोई श्लोक लिखा था। हिन्दू संस्कृति या फिर संस्कृत भाषा का कार्ड में कोई नामोनिशान तक नहीं था।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 3

आजादी के बाद जब बल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के दोबारा निर्माण की कोशिश शुरू की तो महात्मा गांधी ने इसका स्वागत किया, लेकिन जवाहर लाल नेहरू इसका लगातार विरोध करते रहे। जब तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर गए तो नेहरू ने न केवल उन्हें जाने से मना किया और विरोध भी दर्ज कराया।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 4

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दू शब्द रखने पर जवाहर लाल नेहरू को घोर आपत्ति थी, उन्होंने इस शब्द को हटाने के लिए कहा था। पंडित मदन मोहन मालवीय पर भी नेहरू ने यूनिवर्सिटी से हिंदू शब्द हटाने के लिये दबाव डाला था। हालांकि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुस्लिम शब्द रखने पर कभी आपत्ति नहीं जताई।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 5

वंदे मातरम को राष्ट्रगीत बनाने पर जवाहर लाल नेहरू ने आपत्ति जताई थी। उन्हीं की आपत्ति के बाद मुस्लिमों का मनोबल बढ़ा, जिससे आज तक मुस्लिम वंदे मातरम गाने का विरोध करते हैं।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 6

7 नवंबर, 1966 को दिल्ली में हजारों नागा साधु इकट्ठा होकर ये मांग कर रहे थे कि – गाय की हत्या बंद होनी चाहिए, इंदिरा गांधी किसी भी कीमत पर गौ हत्या बंद करने के मूड में नहीं थी। फिर क्या था, दिल्ली में ही इंदिरा गांधी ने जालियांवाला कांड दोहराया और जनरल डायर की तरह हजारों नागा साधुओं के ऊपर गोलियां चलवा दीं। इस गोलीबारी में 6 साधु की मौत हो गई, यही नहीं उस समय गौभक्त माने जाने वाले गुलजारी लाल नंदा को इंदिरा ने गृहमंत्री पद से हटा दिया। इस घटना के बाद इंदिरा गांधी कई राज्यों में चुनाव हार गई थीं।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 7

साधु- संतो पर गोली चलाने से चुनाव हार चुकी इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी की शादी में हिन्दी में कार्ड तो छपवाया… लेकिन कार्ड में कहीं भी हिन्दू देवी देवता के नाम से परहेज किया गया। इसमें भगवान गणेश का भी नाम नहीं था ।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 8

नेहरू-गांधी परिवार ने कभी कोई हिन्दू त्योहार पारंपरिक रूप से नहीं मनाया। रमजान में गांधी परिवार हर साल इफ्तार पार्टी का आयोजन करता है, वैसा आयोजन आज तक कभी नवरात्रि में उनके घर पर नहीं हुआ। कभी कन्याओं को भोजन नहीं कराया गया। कभी किसी ने इनको दीपावली में दीये जलाते नहीं देखा।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 9

राहुल गांधी की उम्र 50 साल है, जबकि प्रियंका वाड्रा की 48 साल। कभी राहुल को प्रियंका वाड्रा से किसी ने राखी बंधवाते नहीं देखा। हिन्दुओं में भाई-बहन का रिश्ता बहुत ही पवित्र माना जाता है। कोई भी हिन्दू परिवार रक्षा बंधन से परहेज नहीं करता।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 10

राहुल गांधी सिर्फ मोदी को हराने के लिए हिन्दू बने हैं… वर्ना पूरे नेहरू परिवार का कभी भी हिन्दू धर्म से नाता नहीं रहा है। यहां तक कि हिन्दू पर्व- त्योहारों में बधाई देना भी अपमान माना जाता है। उदाहरण के लिए 2017 में साल पहली बार कांग्रेस दफ्तर में होली मनाई गई, इससे पहले अघोषित बैन था। राहुल गांधी ने पहली बार लोगों को 2017 में दिवाली की शुभकामनाएं दी।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 11

नेहरू गांधी परिवार कभी भी राम मंदिर निर्माण का समर्थन नहीं करता। बल्कि राम मंदिर के निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में भी कांग्रेसियों ने रोड़े अटकाने का काम किया। कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राम मंदिर की सुनवाई जुलाई 2019 तक टाल दी जाए, ताकि लोकसभा चुनाव हो सके। कांग्रेस चाहती थी कि 2019 तक वो हिन्दुओं को बरगला कर सत्ता में आ जाए और राम मंदिर का निर्माण हमेशा हमेशा के लिए बंद हो जाए।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 12

2007 में कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि राम, सीता, हनुमान और वाल्मिकी काल्पनिक किरदार हैं, इसलिए रामसेतु का कोई धार्मिक महत्व नहीं माना जा सकता है।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 13

कांग्रेस ने ही पहली बार मुस्लिमों को हज में सब्सिडी देने और अमरनाथ यात्रा पर टैक्स लगाने का पाप किया। दुनिया के किसी भी देश में हज में सब्सिडी नहीं दी जाती है, सिर्फ कांग्रेस सरकारों ने भारत में मुसलमानों के वोट के लिए ये खैरात बांटना शुरू किया। लेकिन मोदी सरकार ने इसे खत्म कर दिया।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 14

कांग्रेस ने ही सबसे पहले दुनिया भर में हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू आतंकवाद नाम का शब्द गढ़ा। एक ऐसा शब्द ताकि मुस्लिम आतंकवाद की तरफ से दुनिया का ध्यान भटकाकर हिन्दुओं को आतंकवादी सिद्ध किया जा सके।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 15

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बयान के जरिए देश की बहुसंख्यक आबादी को चौंका दिया, जब उन्होंने कहा कि मंदिर जाने वाले लोग लड़कियों को छेड़ते हैं। हिन्दू धर्म में मंदिर जाने वाले लोग लफंगे होते हैं।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 16

तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान राहुल गांधी के करीबी कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने इस्लामी कुरीति की तुलना राम से कर दी। जाहिर ये कांग्रेस आलाकमान के इशारे के बिना कपिल सिब्बल ये जुर्रत नहीं कर सकते थे।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 17

राहुल गांधी ने विदेश जाकर ये फैलाने की कोशिश की कि लश्कर से भी ज्यादा कट्टर आतंकी हिन्दू होते हैं। जबकि आज तक कभी ये सामने नहीं आया कि कोई हिन्दू आतंकी बना हो।

गांधी परिवार की हिंदू विरोधी साजिश- सबूत नंबर 18

राहुल गांधी ने जर्मनी जाकर फिर से हिन्दू धर्म को बदनाम करने का प्रयास किया। राहुल ने जर्मनी में कहा था कि भारत में महिलाओं के खिलाफ जो अत्याचार होते हैं, उसकी वजह भारतीय संस्कृति है।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *