
मनोज सिंह ठाकुर/प्रकाश कुमार यादव
छुरा/गरियाबंद(गंगा प्रकाश)।चलो आज जानने का प्रयास करते हैं कि गोरख धंधा शब्द कहां से आया और उसका मतलब क्या होता है। अगर आप गजल सुनते होंगे तो आपने मशहूर कव्वाल नुसरत फतेह अली खान की मशहूर गजल ‘तुम एक गोरख धंधा हो’ जरूर सुनी होगी,लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि गोरख धंधे का मतलब क्या होता है? क्या गोरखपुर में होने वाले धंधे को गोरख धंधा कहा जाता है।अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आपको बता दें कि नहीं ऐसा नहीं है। क्या है फिर गोरख धंधाे के पीछे की कहानी?अगर आप समाचार पत्रों को पढ़ते होंगे, तो आपने कभी न कभी सुना होगा कि गोरख धंधा करते हुए पकड़े गए चार लोग,गोरख धंधे में फंसे यह चार अपराधी तो आप सोचते होंगे गोरख धंधा कोई बुरा कारोबार होता होगा?जो उसे करने वाले पकड़े जाते हैं, अपराधी कहलाते हैं?इसीलिए आज हम आपको बताते हैं कि गोरख धंधा शब्द कहां से आया और उसका क्या होता है उसका मतलब,चलिए जानते हैं इस खबर में गोरख धंधे का असली मतलब क्या होता है।
गोरख धंधा शब्द का मतलब आज के समय में धोखाधड़ी छल कपट, चोरी छुपे बुरे कामों के लिए किया जाता है।लेकिन गोरख धंधा शब्द का सबसे पहले जो उपयोग मिलता है वह जैनेंद्र कुमार की किताब निबंधों की दुनिया में मिलता है और ओशो की लिखी किताबों में मिलता है. उन किताबों में इस बात का जिक्र था कि जो साधु महात्मा थे।उन्होंने साधना के लिए सत्य को तलाशने के लिए इतनी व्यवस्थाएं देख ली कि वह इस चीज में भ्रमित हो गए कि क्या करें और क्या ना करें।उनकी इस मनोस्थिति को गोरख धंधा कहा जाने लगा।आसान शब्दों में कहें तो गैर कानूनी या अवैध कार्यों के लिए इसका इस्तेमाल किया करते हैं।ऐसा ही गोरख धंधा का मामला आदिवासी बहुल क्षेत्र छुरा से सामने आया हैं जहां चिकित्सा जैसे पवित्र पेसे के नाम पर ज्योति नारायण दुवे द्वारा विगत कई वर्षों से छुरा नगर में लक्ष्मी नारायणा हॉस्पिटल खोलकर आदिवासी क्षेत्र के भोले भाले लोगो को शासन द्वारा संचालित योजना आयुष्मान योजना से पैसे हड़पने का काम वर्षो से करते आया हैं।शासन द्वारा संचालित योजना के बाबजूद ऐ लोगो से इलाज के बदले नगद राशि भुगतान भी करवाता था और आयुष्मान कार्ड से पैसा निकालता था अब इसका लालच इतना बड़ गया था की ऐ पैसे की अपनी भूख मिटाने के लिए लोगो को बीमारी से मौत का भय दिखाकर ज्यादा पैसा ऐठने के चक्कर में उनका ऑपरेशन भी करवाने लगा जबकि चिकित्सा की हम बात करे तो प्राचीन काल से ही चिकित्सा को एक पेशे के रूप में सर्वोच्च स्थान दिया गया है, और जो लोग इसे अपनाते हैं, उन्हें एक पवित्र जिम्मेदारी का निर्वाह करने वाला माना जाता है। इसे केवल पुजारियों, कुलीन वर्ग और सबसे भरोसेमंद नागरिकों द्वारा ही अपनाया जाता था; यह एक बहुत बड़ा मूल्य-युक्त पेशा है। यह नैतिक आयाम आज भी जारी है। चिकित्सा का स्थान जीवन को समाप्त करने की ईश्वर की इच्छा और उसकी दया के बीच कहीं है, जिसमें मानव पीड़ा का इलाज या निवारण शामिल है। यह चिकित्सा पेशे का क्षेत्र है, जहाँ यह बीमारी और गिरावट से लड़ता है और कभी-कभी-ऊपरी हाथ हासिल करता है।और स्वास्थ्य के लिए संघर्ष से पहले और उसके दौरान, चिकित्सक द्वारा कुशलता और कौशल के साथ ज्ञान अर्जित किया जाता है और उसे प्रसारित किया जाता है और साथ ही ज्ञान, नैतिकता और विश्वास के उपायों के साथ मिश्रित किया जाता है। इन बाद के गुणों को मरीज़ एक कुशल डॉक्टर के उपचारात्मक स्पर्श के रूप में देखते हैं।किंतु लक्ष्मी नारायणा हॉस्पिटल छुरा के संचालक द्वारा सिर्फ पैसे कमाने के उद्देश्य से संचालित हॉस्पिटल एक गोरख धंधा में तब्दील हो गया था।इसका राज खुला तब शासन प्रशासन भी पूरी तरह सकते में तब आ गया जब इन्होंने 35 वर्षीय आदिवासी महिला की बच्चा दानी में कैंसर होना बताकर बच्चा दानी निकाल दिया और तीन बार महिला का पेट चीर फाड़ कर दिया और मामला बिगड़ता देख रिफर रिफर का खेल खेलकर महिला को मौत के घाट उतार दिया।बताते चले की आज प्रशासन ने छुरा का लक्ष्मी नारायणा हॉस्पिटल को सिल कर दिया हैं।मृतिका गैंदी बाई के परिजनों के शिकायत के बाद स्वास्थ्य विभाग ने कार्यवाही शुरू कर दिया हैं आरंभिक जांच रिपोर्ट में कई चौकाने वाले खुलासे भी सामने आए हैं मृतका गेंदू बाई गर्भवती भी थी,ऑपरेशन करने वाला सर्जन महासमुंद मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर पदस्थ है।स्वास्थ्य विभाग ने आज छुरा के विवादित अस्पताल लक्ष्मी नारायण को सील कर दिया है।मामले की जांच के लिए बनाए गए नोडल अधिकारी डा जीएस ध्रुव, डॉ.ए. के. हुमने, डा हरीश चौहान समेत छुरा बीएमओ व स्थानीय राजस्व पुलिस विभाग के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में उक्त कार्यवाही की गई है।इस अस्पताल में लम्बे समय से इलाज कराने के बाद हालत बिगड़ने से गैंदी बाई की मौत 10 मई को रायपुर के अस्पताल में हो गई थी।22 मई को कुल्हाड़ी घाट निवासी मृतका के पति व परिजन ने मामले की उच्च स्तरीय जांच के लिए कलेक्टर के समक्ष ज्ञापन सौपा था,जिसमे कई बिंदुओं पर अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया गया था।कलेक्टर दीपक अग्रवाल के निर्देश पर सीएमएचओ गार्गी यदु ने जांच टीम गठित कर कार्यवाही शुरू कर दिया था।मृतका के इलाज समेत से जुड़ी जरूरी दस्तावेज जब्त किया गया था।साथ 23 मइ को अस्पताल प्रबंधन को नोटिस भी थमा दिया गया था।जवाब संतोष प्रद नही होने के कारण प्रशासन ने आज अस्पताल को सील कर मामले की गहनता से जांच शुरू कर दिया है।


मृतका गर्भवती थी,बगैर जरूरी टेस्ट के किया ऑपरेशन
जप्त दस्तावेज में जांच टीम को हिस्टापैथी की जांच रिपोर्ट मिली जिसमें 29 वर्षीय गैंदी बाई के गर्भवती (एक्स्ट्रा यू ट्राईज प्रेगनेन्सी ) होने की पुष्टि की गई है। कैंसर के आरंभिक लक्षण के आधार पर बच्चा दानी का ऑपरेशन करने के बाद अंदर मिले मांस के टुकड़े को अस्पताल प्रबंधन ने जांच के लिए भेजा था।जांच में पाया गया कि प्रबंधन ने बगैर एक्सपर्ट ओपिनियन के ही ऑपरेशन कर दिया।एक नही दो बार पेट में चीरा लगाने की भी पुष्टि हुई है।ऑपरेशन से पहले ना तो गाइनिको लोजिस्ट से ना ही प्रेगनेसी यूरिन टेस्ट कराया गया था।



ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक की वैधता पर भी जांच
बताया जाता है की उक्त ऑपरेशन करने वाला सिविल सर्जन महासमुंद मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर है।जांच टीम उक्त चिकित्सक द्वारा फ्री लॉस कार्य करने हेतु बनाए नियमों का पालन किया गया है या नही,ऑपरेशन अवधि में कार्य स्थल किस जगह बताया गया,इन तमाम बिंदुओं पर जांच करेगी।