
परिवारवाद की आलोचना करने वाली भाजपा में ही सबसे ज्यादा परिवारवाद अपने गिरेबां में क्यों नहीं झांकती भाजपा ?
भोपाल(गंगा प्रकाश):- मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 के लिए जहां भाजपा ने क़रीब 21 प्रतिशत टिकट स्थापित नेताओं के परिजनों को बांटे थे, वहीं कांग्रेस ने ऐसे 10 प्रतिशत उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे।राजनीति में वंशवाद या परिवारवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं।जो कांग्रेस के आला नेतृत्व पर गांधी परिवार की एकतरफा कमान से लेकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) पर मुलायम सिंह यादव के ख़ानदान और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लालू प्रसाद यादव के ख़ानदान तक फैली हुई हैं।गाहे-बगाहे परिवारवाद चुनावी मुद्दा भी बना रहता हैं।राजनीतिक दलों की तरफ से परिवारवाद को बढ़ावा न दिए जाने वाले झूठे दिलासे भी दिए जाते रहें हैं। लेकिन अब तक नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला हैं।
अगर बात करें परिवारवाद के विरोध की तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस मामले में शीर्ष पर रही है। कांग्रेस के परिवारवाद को मुद्दा बनाकर जहां वह केंद्र में सरकार बनाए बैठी है तो वहीं उत्तर प्रदेश में सपा के परिवारवाद को भी उसने विधानसभा चुनावों में ख़ूब भुनाया था।लेकिन उसी भाजपा ने 2018 के विधानसभा चुनावों के लिए मध्य प्रदेश में टिकट वितरण के मामले में परिवारवाद को बढ़ावा देने में कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। विधानसभा चुनावों के प्रत्याशियों की घोषणा करते वक़्त भाजपा ने करीब 21 प्रतिशत टिकट स्थापित नेताओं के परिजनों को बांटे थे कुछ 230 टिकट में से 48 टिकट पार्टी की ओर से विभिन्न नेताओं को परिजनों को दिए गए थे।ऐसा नहीं है कि कांग्रेस इस मामले में पीछे रही हो,उसने 10 प्रतिशत (23) प्रत्याशी मैदान में ऐसे उतारे हैं जो कि परिवारवाद की श्रेणी में आते थे इस तरह देखें तो प्रदेश के दोनों ही मुख्य दलों ने 230 सीटों पर 71 प्रत्याशी ऐसे उतारे हैं जो कि वंशवाद की बेल को आगे बढ़ा रहे हैं।भाजपा की ओर से नेताओं के परिजनों को मिले 48 टिकटों में से 34 पुत्र-पुत्रियों को तो 14 अन्य परिजनों को मिले थे तो वहीं कांग्रेस की ओर से दिए गए 23 टिकटों में से 14 पुत्र-पुत्रियों और नौ अन्य परिजनों को बांटे गए थे।मध्य प्रदेश को क्षेत्रवार बांटते हुए परिवारवाद का ज़िक्र करें तो मालवा-निमाड़ में सबसे ज़्यादा 26 टिकट, मध्य भारत में 17, बुंदेलखंड में 9, विंध्य में 8, ग्वालियर-चंबल में 6 और महाकौशल में 5 टिकट नेताओं के परिजनों को मिले थे।भाजपा ने मालवा-निमाड़ में सबसे ज़्यादा (20) तो कांग्रेस ने मध्य भारत और मालवा-निमाड़ में सबसे ज़्यादा (6-6) नेताओं के परिजनों को टिकट बांटे थे।ये 71 प्रत्याशी कुल 68 सीटों पर उतारे गए थे। छतरपुर, सिरमौर और लांजी सीटों पर मुकाबला वंशवाद बनाम वंशवाद उम्मीदवारों के बीच होना था। इस तरह प्रदेश की लगभग 30 प्रतिशत सीटों पर वंशवाद हावी रही।वंशवाद के चलते टिकट बांटने में भाजपा आगे है तो एक ही परिवार में कई टिकट बांटने के मामले में कांग्रेस ने बाजी मारी थी।गौरतलब है कि भाजपा ने टिकट वितरण से पहले घोषणा की थी कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिलेगा, टिकट बांटते समय पार्टी ने इसे ध्यान में रखा,इसलिए कैलाश विजयवर्गीय और शिवराज के मंत्री गौरीशंकर शेजवार जैसे दिग्गजों को अपने बेटों को टिकट दिलाने के एवज में अपना टिकट कुर्बान करना पड़ा था।भाजपा में केवल संजय शाह और विजय शाह दोनों भाई एक ही परिवार से टिकट पाने में कामयाब रहे। लेकिन कांग्रेस में ऐसी कोई नीति नहीं थी इसलिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने परिवार में तीन टिकट, पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के परिवार में दो टिकट, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद कांतिलाल भूरिया के परिवार में दो टिकट और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के परिवार में भी दो टिकट आवंटित किए गए।
भाजपा द्वारा पुत्र-पुत्रियों को बांटे गए टिकटों की सूची
दिव्यराज सिंह: सिरमौर से टिकट मिला था पूर्व विधायक पुष्पराज सिंह के बेटे हैं।पुष्पराज सिंह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
शिवनारायण सिंह: बांधवगढ़ से टिकट मिला था शहडोल के सांसद ज्ञान सिंह के बेटे हैं।
विक्रम सिंह: रामपुर बघेलन से टिकट मिला था भाजपा की वर्तमान शिवराज सरकार में जल संसाधन मंत्री हर्ष सिंह के बेटे हैं। पिछले चुनाव में इस सीट पर हर्ष सिंह ने जीत दर्ज की थी। हर्ष सिंह प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के बेटे हैं। इस बार तीसरी पीढ़ी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही है।
देवेंद्र वर्मा: तत्कालीन विधायक खंडवा सीट से मैदान में थे पूर्व विधायक और मंत्री किशोरीलाल वर्मा के पुत्र हैं।किशोरीलाल की 2006 में हत्या कर दी गई थी वे 90 के दशक की भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे थे।
मंजू दादू: नेपानगर से चुनाव लड़ रही थी इसी सीट पर उनके पिता राजेंद्र दादू विधायक हुआ करते थे।जिनकी एक कार दुर्घटना में 2016 में मौत हो गई थी।बाद में उपचुनाव में भाजपा ने मंजू को मैदान में उतारा और वे जीतीं थी भाजपा ने फिर उन पर भरोसा जताया था।
अर्चना चिटनिस: बुरहानपुर से मैदान में उतारी गई थी शिवराज सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री थी इनके पिता बृजमोहन मिश्र भाजपा सरकार में विधानसभा अध्यक्ष और मंत्री भी रहे थे।
अनिल फिरोजिया: तराना से चुनाव लड़ें ये आगर सीट से पूर्व विधायक भूरेलाल फिरोजिया के पुत्र हैं।इनकी बहन रेखा रत्नाकर पिता के निधन के बाद आगर सीट से विधायक रह चुकी हैं।
राजेंद्र पांडे: मंदसौर से आठ बार सांसद रहे लक्ष्मीनारायण पांडे के बेटे हैं।जावरा सीट से चुनाव लड़ रहे थे।
राधेश्याम पाटीदार: सुवासरा सीट से लड़ रहे थे वे पूर्व विधायक नानालाल पाटीदार के पुत्र हैं। 2008 में जब पहली बार मैदान में उतरे तो वंशवाद को लेकर इनका विरोध भी हुआ था 2013 में वंशवाद के आरोप लगाकर पार्टी कार्यकर्ता इनके ख़िलाफ़ खड़े हो गए थे।नतीजतन इनकी हार हुई थी लेकिन फिर मैदान में इन्हें उतारा गया था।
यशपाल सिंह सिसौदिया: मंदसौर से मैदान में थे और पूर्व विधायक किशोर सिंह सिसोदिया के बेटे हैं।
माधव मारू: मनासा सीट से चुनाव लड़ें वे भाजपा नेता रामेश्वर मारू के पुत्र हैं। रामेश्वर मारू संघ के क़रीबी माने जाते थे लेकिन भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रहे सुंदरलाल पटवा से मतभिन्नता के चलते टिकट नहीं पा सके थे,लेकिन भाजपा ने अब उनके पुत्र पर भरोसा जताया था।
जितेंद्र पंड्या: बड़नगर से टिकट मिला था उनके पिता उदय सिंह पंड्या तीन बार विधायक रहे थे।
ओमप्रकाश सकलेचा: जावद से चुनावी मैदान में थे पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा के पुत्र हैं।
दीपक जोशी: हाटपिपल्या से भाजपा उम्मीदवार थे पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे हैं।
आकाश विजयवर्गीय: सूची में सबसे चर्चित नामों में से एक हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री और अंबेडकर नगर से विधायक कद्दावर कैलाश विजयवर्गीय के बेटे हैं।कैलाश ने अपने बेटे की राजनीति चमकाने अपनी सीट कुर्बान की थी।आकाश इंदौर-1 से उम्मीदवार थे।
जितेंद्र गहलोत: आलोट से उम्मीदवार थे सांसद और केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के बेटे हैं।
मनोज पटेल: देपालपुर से मैदान में थे सुंदरलाल पटवा की सरकार में मंत्री रहे तीन बार के विधायक निर्भय सिंह पटेल के बेटे हैं।
अजीत बौरासी: कांग्रेस से सांसद रहे प्रेमचंद गुड्डू के बेटे हैं प्रेमचंद गुड्डू और अजीत बोरासी ने नामांकन के तीन रोज़ पहले ही कांग्रेस छोडकर भाजपा का दामन थामा था बदले में भाजपा ने प्रेमचंद के बेटे को घट्टिया से मैदान में उतारा था ।
राजेंद्र वर्मा: सोनकच्छ से मैदान में उतारे गए उनके पिता फूलचंद वर्मा इसी सीट से विधायक रहे हैं।
सुधीर यादव: सुरखी से चुनाव लड़ रहे थे सागर से सांसद लक्ष्मीनारायण यादव के बेटे हैं।
सुधीर यादव इस वजह से भी विवादों में रहे हैं कि वे अपने पिता की सांसदी का दुरुपयोग करते हैं और विभिन्न कार्यक्रमों में पिता की जगह स्वयं सांसद बनकर पहुंच जाते हैं।
हरवंश राठौर: बंडा से टिकट मिला था प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हरनाम सिंह राठौर के बेटे हैं। हरनाम के निधन के बाद बंडा सीट पर 2013 से उनकी विरासत हरवंश संभाल रहे हैं।
राजेश प्रजापति: चंदला से वर्तमान विधायक आरडी प्रजापति के बेटे हैं पार्टी ने पिता का टिकट बेटे को दिया था।
प्रणय पांडे: पूर्व विधायक प्रभात पांडे के बेटे हैं बहोरीबंद सीट से मैदान में थे 2014 में पिता की मौत के बाद भाजपा ने उपचुनाव में उन पर भरोसा जताया था,तब वे हार गए थे।
संजय पाठक: विजयराघवगढ़ से मैदान में थे प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे सत्येंद्र पाठक के बेटे हैं 2008 से विधायक रहें हैं 2014 तक कांग्रेस में थे।
यशोधरा राजे: इन्हें शिवपुरी से टिकट दिया गया था वे भाजपा की संस्थापक रहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया की पुत्री हैं, तो वहीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की बहन और मध्य प्रदेश सरकार में शहरी विकास मंत्री माया सिंह की भांजी हैं।कांग्रेसी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की वे बुआ हैं।
मुदित शेजवार: सांची से विधायक और शिवराज कैबिनेट के मंत्री गौरीशंकर शेजवार के बेटे हैं।पिता की सीट पर इस बार उन्हें मौका मिला था।
हेमंत खंडेलवाल: बैतूल विधायक हैं फिर से मैदान में रहे उनके पिता विजय खंडेलवाल बैतूल से सांसद थे 2007 में निधन हो गया तो उपचुनाव में पिता की सीट पर भाजपा ने बेटे को उतार दिया था। सांसदी उन्हें रास न आई तो विधायकी लड़ ली।
महेंद्र सिंह चौहान: भेंसदेही से चुनाव लड़ें इनके पिता केशर सिंह चौहान भी इसी सीट से विधायक रहे थे,महेंद्र तीन बार के विधायक हैं।
आशीष शर्मा: खातेगांव सीट से प्रत्याशी थे इनके पिता भी इसी सीट से विधायक रहे हैं।
कुंवर कोठार: सारंगपुर से पांच बार विधायक रहे अमरसिंह कोठार के बेटे हैं पिता की सीट 2013 में विरासत में मिली थी।
विश्वास सारंग: शिवराज सरकार में मंत्री थे भोपाल के नरेला से विधायक हैं इनके पिता कैलाश नारायण सारंग सांसद रहे हैं।
फ़ातिमा रसूल सिद्दीक़ी: भोपाल उत्तर से भाजपा की एकमात्र मुस्लिम उम्मीदवार थी उनके पिता रसूल अहमद सिद्दीक़ी कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे थे।इसी सीट से वे विधायक रहे थे फातिमा ने नामांकन की तारीख़ से दो दिन पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था।
अशोक रोहाणी: पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी के बेटे जबलपुर कैंट सीट से चुनाव लड़ रहे थे इसी सीट पर उनके पिता ईश्वरदास भी लड़ा करते थे।
रमेश भटेरे: लांजी से टिकट मिला था।उनके पिता दिलीप भटेरे इसी सीट से चार बार विधायक रहे थे और निधन से पहले उमा भारती सरकार में मंत्री भी रहे।
भाजपा द्वारा बांटे गए अन्य परिजनों को टिकटों की सूची
गायत्री राजे: पूर्व मंत्री तुकोजीराव पवार की पत्नी हैं देवास विधायक तुकोजीराव का निधन 2015 में हो गया था जिसके बाद भाजपा ने उपचुनाव में उनकी पत्नी गायत्री राजे को उतारा और वे भारी बहुमत से जीत गईं थी देवास से पुनः पार्टी ने उन पर भरोसा जताया था।
मालिनी गौड़: इंदौर-4 से मैदान में उतारी गई थी वे इंदौर की महापौर थी प्रदेश सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मण सिंह गौर की पत्नी हैं।2008 में एक कार दुर्घटना में लक्ष्मण की मौत के बाद पार्टी ने मालिनी को उनकी सीट इंदौर-4 से मैदान में उतारा था।वे 2015 तक विधायक रहीं और 2015 में इंदौर की महापौर का चुनाव जीता था।
विजय शाह: शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री थे हरसूद से चुनाव मैदान में थे टिमरनी विधायक संजय शाह के भाई हैं।
अर्चना सिंह: छतरपुर से उम्मीदवार थी छतरपुर जिलाध्यक्ष पुष्पेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी हैं।
उमाकांत शर्मा: व्यापमं घोटाले में फंसे शिवराज सरकार के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के भाई हैं। सिरोंज सीट से भाजपा का टिकट मिला था।
राजश्री सिंह: शमशाबाद से टिकट मिला था वे कांग्रेस से पूर्व विधायक रहे रुद्रप्रताप सिंह की पत्नी हैं।स्वयं कांग्रेस पार्टी में रहते हुए ज़िला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं।
सरला रावत: सबलगढ़ विधायक मेहरबान सिंह रावत की पत्नी हैं।पति की सीट वे ताल ठोक रही थी।
राकेश चौधरी: भिंड से उम्मीदवार बनाए गए थे विधायक मुकेश चौधरी के भाई हैं 2013 चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे,समझौते के तहत अपने भाई को मेहगांव से टिकट दिलाने में सफल रहे थे स्वयं मैदान में थे।
नीना वर्मा: धार से चुनाव मैदान में थे केंद्र और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे विक्रम वर्मा की पत्नी हैं।
अनूप मिश्रा: भितरवार से टिकट मिला था पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे हैं।
जालम सिंह पटेल: नरसिंहपुर से मैदान में थे शिवराज सरकार में मंत्री भी थे दमोह के सांसद प्रहलाद पटेल के भाई हैं।
संजय शाह: टिमरनी से उम्मीदवार थे हरसूद से विधायक और मंत्री विजय शाह के भाई हैं।
सुरेंद्र पटवा: भोजपुर से मैदान में थे पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के भतीजे हैं शिवराज सरकार में मंत्री भी रहे हैं।
कृष्णा गौर: पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू हैं बाबूलाल गौर की गोविंदपुरा सीट पर उनकी विरासत आगे बढ़ा रही वे भोपाल की महापौर भी रही हैं।
कांग्रेस द्वारा पुत्र-पुत्रियों और अन्य परिजनों को बांटे गए टिकटों की सूची
कमलेश्वर पटेल: सिंहावल से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे इनके पिता इंद्रजीत पटेल प्रदेश की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे थे।2013 में पिता की सीट विरासत में मिली।
सुंदरलाल तिवारी: गुढ़ से मैदान में थे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के बेटे हैं।
अरुणा तिवारी: श्रीनिवास तिवारी की नातिन बहू और सुंदरलाल तिवारी की भतीजा बहू हैं इनके पति विवेक तिवारी पिछली बार इसी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार पत्नी को मैदान में उतारा था इस तरह तिवारी परिवार में दो टिकट गए।
अजय सिंह: चुरहट से चुनाव लड़ रहे थे अजय प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे हैं।लगातार इस सीट पर विधायक रहें हैं।
विक्रांत भूरिया: विक्रांत को झाबुआ सीट से मैदान में उतारा था वह सांसद और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया के बेटे हैं।
कलावती भूरिया: सांसद कांतिलाल भूरिया की भतीजी हैं और जोबट से चुनाव मैदान में थी इस तरह कांतिलाल भूरिया अपने परिवार में बेटे और भतीजी को दो टिकट दिलाने में सफल रहे हैं।
राजेंद्र भारती: उज्जैन उत्तर से टिकट मिला था इनके पिता भी विधायक रहे हैं।
राजेंद्र वशिष्ठ: उज्जैन दक्षिण से मैदान में उतरे थे इनके पिता महावीर प्रसाद वशिष्ठ यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं।
सचिन यादव: पूर्व कांग्रेस दिग्गज सुभाष यादव के बेटे हैं कसरावद से मैदान में थे उनके भाई अरुण यादव बुदनी से चुनाव लड़ रहे थे।
अरुण यादव: पूर्व सांसद और पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बुदनी से शिवराज सिंह चौहान के सामने चुनावी मैदान में थे सुभाष यादव के बेटे हैं और सचिन यादव के भाई हैं।परिवार में इस तरह दो टिकट गए थे।
उमंग सिंघार: पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुनादेवी के भतीजे गंधवानी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार थे।
आलोक चतुर्वेदी: सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी के भाई हैं छतरपुर से मैदान में थे।
रणवीर सिंह जाटव: पूर्व विधायक माखन जाटव के पुत्र हैं गोहद से प्रत्याशी बनाए गए थे इनके पिता माखन जाटव की 2009 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान हत्या कर दी गई थी बाद में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने रणवीर को आजमाया था और वे जीते थे।
हेमंत कटारे: कांग्रेस के मध्य प्रदेश सदन में पूर्व नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के बेटे हैं 2016 में सत्यदेव के निधन के बाद इस सीट की विरासत पार्टी ने उनके बेटे हेमंत को सौंप दी थी।
जयवर्द्धन सिंह: पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे हैं इनके चाचा लक्ष्मण सिंह भी चाचौड़ा से कांग्रेस उम्मीदवार थे।
लक्ष्मण सिंह: पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई चाचौड़ा से उम्मीदवार थे भतीजे जयवर्द्धन राघोगढ़ से मैदान में थे।
प्रियव्रत सिंह: खिलचीपुर से मैदान थे और ये भी पार्टी में दिग्विजय सिंह के कुनबे से हैं।उनके भतीजे हैं।
ओमप्रकाश रघुवंशी: सिवनी मालवा से मैदान में थे पांच बार के विधायक, पूर्व मंत्री और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष हजारीलाल रघुवंशी के बेटे हैं।
सतपाल पालिया: सोहागपुर से लड़ रहे थे और पूर्व विधायक अर्जुन पालिया के रिश्तेदार हैं।
अभय मिश्रा: भाजपा के टिकट पर 2008 में सेमरिया से विधायक रहे वर्तमान में उनकी पत्नी नीलम मिश्रा सेमरिया से रही हैं अभय ने कांग्रेस का दामन थामा था और अब रीवा से शिवराज कैबिनेट के दिग्गज मंत्री राजेंद्र शुक्ला के ख़िलाफ़ ताल ठोक रहे थे।
हिना कावरे: कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे लिखीराम कावरे की बेटी हैं लिखीराम की नक्सलियों ने मंत्री रहने के दौरान ही हत्या कर दी थी इस सीट पर लिखीराम की पत्नी पुष्पलता भी चुनाव लड़ चुकी हैं।
रजनीश सिंह: केवलारी से मैदान में थे दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे हरवंश सिंह के पुत्र हैं।
संजय सिंह मसानी: प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के रिश्ते में साले लगते हैं।लंबे समय तक भाजपा से जुड़े रहे नामांकन की अंतिम तारीख़ से ठीक तीन रोज़ पहले कांग्रेस का दामन थाम लिया था और वारासिवनी से टिकट भी मिल गया।
परिवारवाद का ढोल पीटने वाली भाजपा में कई नेताओं की प्रतिष्ठा थी दांव पर,उमा की बहू,विजय शाह के बेटे और केंद्रीय मंत्री का भांजा थे चुनावी मैदान में
कांग्रेस पर परिवारवाद के बहाने हमला करने वाली बीजेपी की सारी बातें मध्यप्रदेश के निकाय चुनावों में खोखली साबित हुईं। मंत्रियों, विधायकों ने अपने परिजन को उपकृत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी,ज्यादातर सफल हुए तो कुछ हार भी गये। ये हालात तब थे, जब चुनाव से पहले पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भोपाल में आकर पत्रकारों को परिवारवाद की परिभाषा समझा कर गए थे।लेकिन शायद उनकी अपनी पार्टी ने इसे नज़रअंदाज कर दिया।जेपी नड्डा ने कहा था कि इसको पार्टी ने पकड़ा है, कि पिता के बाद बेटा आये इसे रोका जाए,मध्यप्रदेश में ये निकाय चुनाव में लागू होता है, आपके यहां 2-3 चुनाव आये हम जीत सकते थे, ये कहते रहे कि सीट दिक्कत में पड़ जाएगी, नीति है भैय्या कई बार ऑपरेशन करना पड़ता है।उन्होंने कहा कि पार्टी की इंटरनेल डेमोक्रोसी को बरकरार रखना है या नहीं? हिमाचल में जीती सीट हार गए लेकिन कार्यकर्ताओं को टिकट दिया।जिनके बच्चे लंबे समय से काम कर रहे हैं पार्टी के लिये काम करें, जहां तक रिप्रेंजेटेशन का सवाल है पॉलिसी वाइज कार्यकर्ता को आगे बढ़ाएंगे। पीड़ा होती है लेकिन पार्टी की इंटरनल डेमोक्रेसी को मजबूत रखना है नहीं तो कल को कौन कार्यकर्ता आएगा।गौरतलब हो कि हमेशा से बीजेपी को परिवारवाद का विरोध करते देखा गया है, लेकिन मध्य प्रदेश पंचायत चुनाव में बीजेपी के कई बड़े नेताओं के बेटे-बहू और रिश्तेदार मैदान में थे जिस कारण इस चुनाव में कई नेताओं के लिए प्रतिष्ठा दांव पर थी।मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव हो चुके हैं। चुनाव में 7655 ग्राम पंचायतों में 1 करोड़ 31 लाख 44 हजार 27 मतदाताओं ने वोट डाला था इसके इतर देखें तो ये पंचायत चुनाव काफी मायनों में खास रहा इसबार के चुनाव को खास इसलिए कहा जा रहा था कि हमेशा से बीजेपी को परिवारवाद का विरोध करते देखा गया है, लेकिन इस चुनाव में बीजेपी के कई बड़े नेताओं के बेटे-बहू और रिश्तेदार मैदान में थे।कांग्रेस के भी कई दिग्गज नेताओं के सगे संबंधी चुनाव लड़ रहे थे इस कारण इस चुनाव में नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी हालांकि पहले चरण में कई दिग्गज नेताओं के रिश्तेदारों को हार का सामना करना पड़ा था।लिहाजा, नेता अब अपनों के लिए राजनीतिक समीकरण बैठाने में लगे रहें।प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भतीजे और खरगापुर से बीजेपी विधायक राहुल सिंह लोधी की पत्नी उमीता सिंह ने जिला पंचायत के वार्ड नंबर 8 से नामांकन दाखिल किया था।गुना जिले के चाचौड़ा से पूर्व विधायक ममता मीणा और उनके रिटायर्ड आईपीएस पति रघुवीर सिंह मीणा जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रहे थे।मध्यप्रदेश के राज्यपाल रहे रामनरेश यादव की पौत्रवधु रोशनी यादव निवाड़ी जिले के वार्ड छह से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रही थी।वो फिलहाल बीजेपी की
जिला उपाध्यक्ष हैं।राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री विजय शाह के बेटे दिव्यादित्य भी चुनाव लड़ रहे थे।दिव्यादित्य खंडवा जिला पंचायत के वार्ड 14 से चुनाव लड़ रहे थे। मंडला जनपद पंचायत के वार्ड एक से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के भांजे प्रदीप पट्टा चुनाव मैदान में थे।वहीं बड़वानी से वार्ड 2 से मंत्री प्रेम सिंह के बेटे बलवंत लड़ रहे थे।यहीं से पूर्व मंत्री अंतर सिंह आर्य की बहू कविता विकास आर्य मैदान में थे।
डिंडोरी में पूर्व मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे की पत्नी ज्योति कुमार धुर्वे जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ रही थी।भिंड में पूर्व विधायक नरेंद्र कुशवाह की पत्नी मिथलेश जिपं सदस्य के लिए मैदान में थे। बुरहानपुर में विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा की पत्नी जयश्री सिंह जिला पंचायत सदस्य के लिए लड़ रही थी।हालांकि उनकी बेटी लयश्री और बहू अभिलाषा ठाकुर पहले चरण में हार चुकी थी।इसी के ही साथ पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया की बहू ममता रानी दमोह जिले में सरपंच का चुनाव लड़ रही थी। बीजेपी के पूर्व सांसद चंद्रभान सोलंकी की पत्नी जानकी, बेटी नीतू, बहू काजल कृष्णा सिंह भी जिपं सदस्य के लिए मैदान में थे।
राजनीति में परिवारवाद पर मोदी का प्रहार भाजपा के लिए साबित होगा मास्टर स्ट्रोक?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय राजनीति को परिवारवाद के संक्रमण से मुक्त कराने के लिए एक बड़ा दांव चल दिया था। कुछ माह पूर्व जयपुर में भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि परिवारवादी पार्टियां देश को पीछे ले जाने पर तुली हुई हैं और भाजपा को इन परिवारवादी पार्टियों से निरंतर मुकाबला करना है। अगर लोकतंत्र बचाना है, लोकतंत्र को सामर्थ्यवान और मूल्यनिष्ठ बनाना है, तो हमें वंशवाद, परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ अविरत संघर्ष करना ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद की राजनीति को देश के लिए बड़ा खतरा बताते है। वह कहते हैं कि परिवारवाद लोकतंत्र का सबसे बड़ा शत्रु है। इससे राजनीति में सक्रिय प्रतिभाशाली लोगों को कठिनाई आती है और गंभीर समझौते करने पड़ते हैं।
अगर स्वतंत्र भारत के राजनीतिक इतिहास को देखा जाए तो परिवारवाद देश की राजनीति में हावी रहा है। आज देश की राजनीति में एक व्यक्ति और परिवार पर केंद्रित पार्टियों की भरमार है। राजनीति में भाई-भतीजावाद के चलते परिवारवाद को बढ़ाने वाली पर्टियां असल में एक परिवार की प्रापर्टी होती हैं। परिवार से ही आने वाले व्यक्ति ही पार्टी का आजीवन राष्ट्रीय अध्यक्ष होते हैं। ऐसे दल असल में लोकतंत्र के लिए खतरा हैं।पिछले दिनों भोपाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने परिवारवाद के मायने को समझाते हुए कहा था कि पिता अध्यक्ष, बेटा जनरल सेक्रेटरी, संसदीय बोर्ड में चाचा-ताउ यह राजनीतिक परिवारवाद है। उन्होंने जम्मू कश्मीर में पीडीपी, हरियाणा में लोकदल, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, पश्चिम बंगाल में टीएमसी, डीएमके, शिवसेना, एनसीपी, जेएमएम परिवारवाद का उदाहरण बताया। वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक कहते हैं कि राजनीति में परिवारवाद से सारा देश तंज है। जितनी भी क्षेत्रिएं पार्टियां है उसके एक-दो को छोड़ दें तो सभी परिवारवाद में ही विश्वास करती है। कांग्रेस सहित लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह है और यह पर्टियां मां-बेटा, भाई-बहन, चाचा-भतीजा,बुआ-भतीजा तक सीमित है। ऐसे में आज परिवारवाद देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
उत्तप्रदेश चुनाव में भाजपा ने परिवारवाद को नकारा था
पिछले दिनों पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ऐसे कई नेता-पुत्रों को टिकट नहीं दिया था जो परिवारवाद से ताल्लुक रखते थे। विधानसभा चुनाव की जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी सांसदों को सीधा संदेश देते हुए कहा था अगर किसी का टिकट काटा गया तो यह मेरी जिम्मेदारी है। सांसदों के बच्चों को टिकट न देना अगर पाप है तो मैंने पाप किया है। भाजपा में पारिवारिक राजनीति की अनुमति नहीं है।
भाई-भतीजावाद पर भाजपा की गाइडलाइन
परिवारवाद पर प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के मुखर होने के बाद भाजपा ने अब परिवारवाद को लेकर एक स्पष्ट नीति बना ली है जिसका खुलासा खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भोपाल में मीडिया के सामने किया। उन्होंने कहा कि पार्टी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देगी, चाहे चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़े। उन्होंने कहा था कि भाजपा ने देश की राजनीति में परिवारवाद की संस्कृति के खिलाफ आवाज उठाई है और हमारी कोशिश है कि पिता के बाद बेटा न आ जाए, इसको रोका जाए। परिवारवाद पर बोलते हुए जेपी नड्डा ने कहा था कि पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का बरकरार रखना है और इसलिए पार्टी में परिवारवाद की कोई जगह नहीं है। उन्होंने साफ कहा कि कल को कौन कार्यकर्ता आएगा अगर सब परिवार को चलाना है।
मध्यप्रदेश में लागू हुई गाइडलाइन
मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी का रोडमैप तय करने आए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने साफ कहा था कि उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में परिवार से आने वालों को टिकट नहीं दिए और यहीं नीति मध्यप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव और निकाय चुनाव दोनों में लागू होगी। नड्डा ने साफ कहा मध्यप्रदेश में पिछले दिनों उपचुनाव और हिमाचल प्रदेश में चुनाव के दौरान पार्टी को हार का सामना करना पड़ा लेकिन परिवारवाद को किनारा रखा गया। नेता पुत्रों के राजनीति में सक्रिय होने पर सवाल पर जेपी नड्डा ने कहा कि वह पार्टी के लिए काम करें अच्छी बात है लेकिन जहां तक प्रतिनिधित्व की बात है तो पार्टी कार्यकर्ता को ही आगे बढ़ाएगी।प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के परिवारवाद पर तगड़े प्रहार से भाजपा का युवा और जमीनी कार्यकर्ता काफी खुश नजर आ रहे थे। मध्यप्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष वैभव पंवार ने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी वह राजनीतिक दल है जिसने वंशवाद के बेड़ियों से भारत की राजनीति को मुक्त किया। भारतीय जनता पार्टी एकमात्र ऐसी पार्टी है जिममें बूथ का अध्यक्ष भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनता है।वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि राजनीति में परिवारवाद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सीधा प्रहार एक मास्टर स्ट्रोक है और यह भारतीय राजनीति की दिशा को बदलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद पर एक नई लाइन लेने से भाजपा के अंदर कार्यकर्ताओं का महत्व बढ़ेगा। भारतीय राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद का जो दौर चल रहा है वह धीमा पड़ेगा। अब अन्य दल परिवारवाद से आने वाले लोगों को टिकट देने में थोड़ा सा परहेज करेगी। राजनीतिक विश्लेषक राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि देश के अन्य सियासी दल चाहे वह कांग्रेस हो या समाजवादी पार्टी या अन्य जो परिवार के सहारे चल रही है और परिवार को ही आगे बढ़ा रही है उस पर एक नैतिक दबाव बनेगा। भाजपा के एक बड़ी राजनीतिक पार्टी है और उसके निर्णय का असर दूरगामी होगा। अब यह देखना होगा कि जनता इसको किस तरह से स्वीकार करती है। अगर जनता ने इसे हाथों-हाथ लिया तो दूसरी पार्टी पर भी दबाव बनेगा कि वह परिवारवाद को पीछे करे।
राजनीति में परिवारवाद आज से नहीं पुराना रोग, मध्य प्रदेश में पहले आए नेता मंत्री तक बने, जानिये किन-किन को मिला फायदा
राजनीति में परिवारवाद आज से नहीं पुराना रोग है। मध्य प्रदेश में यह रोग कांग्रेस ही नहीं भाजपा में भी रहा है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सख्त फार्मूले के बाद आने वाली पीढ़ी के लिए राजनीति में काफी मुश्किल सफर होने वाला है। एमपी में इस परिवारवाद का लाभ जिन लोगों को मिला है उनकी लंबी सूची है जिसमें सिंधिया-कमलनाथ-दिग्विजय ही नहीं सुंदरलाल पटवा-कैलाश जोशी-वीरेंद्र कुमार सकलेचा तक के नाम शामिल हैं।
राजनीति में परिवार का रोग आज नहीं है बल्कि यह वह बीमारी है जो कभी भी जड़ से खत्म नहीं हुई है। गांधी-नेहरू परिवार के परिवारवाद को भाजपा कांग्रेस को घेरती रहती है लेकिन उसके नेता भी इसके घेरे में हैं। जनसंघ और भाजपा की संस्थापक विजयाराजे सिंधिया से शुरू करें तो उनके बेटे माधवराव सिंधिया सहित दोनों बेटियों वसुंधरा राजे, यशोधरा राजे राजनीति में उतरीं। माधवराव सिंधिया के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया और अब उनके बेटे महाआर्यमन भी राजनीति के द्वार पर खड़े होने वाले हैं। महाआर्यमन के राजनीति में आने पर सिंधिया परिवार की चौथी पीढ़ी होगी जो राजनीतिक जीवन को अपनाएंगे। यह परिवार अकेले जनसंघ या भाजपा नहीं कांग्रेस में भी रहा और माधवराव-ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों ने वहां केंद्रीय मंत्री पद पर भी काम किया।
ज्यादातर सीएम ने परिवार को राजनीतिक विरासत सौंपी
मध्य प्रदेश के ज्यादातर मुख्यमंत्रियों ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्रों या नजदीकी लोगों को सौंपने के लिए उन्हें राजनीति में लाए। इसकी शुरुआत पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल से ही शुरू हो गई थी। उनके दोनों पुत्र श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल ने अंतिम समय तक राजनीति को नहीं छोड़ा। द्वारिकाप्रसाद मिश्र की सरकार गिरने पर सीएम बने गोविंद नारायण सिंह के पुत्र ध्रुवनारायण सिंह भाजपा की ओर से एमएलए रहे और भोपाल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहे। इनके अलावा मुख्यमंत्री रहे कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी शिवराज सरकार में मंत्री बने तो पूर्व सीएम वीरेंद्र कुमार सकलेचा के बेटे ओमप्रकाश सकलेचा इस समय शिवराज सरकार के मंत्री हैं। सुंदरलाल पटवा परिवार के सुरेंद्र पटवा को शिवराज सरकार ने पूर्व कार्यकाल में मंत्री बनाया था। यहीं नहीं भाजपा सरकार में सीएम रहे बाबूलाल गौर की पुत्रवधु को राजनीति में उतरते ही महापौर बनने का मौका मिला तो गौर का टिकट कटने पर उन्हें एमएलए के लिए टिकट भी आसानी से मिल गया ता। वहीं, कांग्रेस सरकार में सीएम रहे अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह दिग्विजय सरकार में मंत्री रहे तो शिवराज की सरकार बनने पर वे नेता प्रतिपक्ष भी रहे। पूर्व सीएम मोतीलाल वोरा के पुत्र अरुण वोरा छत्तीसगढ़ में विधायक बने तो कमलनाथ सरकार में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्द्धन सिंह को मंत्री बनाया गया था।
परिवारवाद का इनको फायदा मिला
पंडित रविशंकर शुक्ल- श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल
गोविंद नारायण सिंह- ध्रुवनारायण सिंह
वीरेंद्र कुमार सकलेचा- ओमप्रकाश सकलेचा
कैलाश जोशी- दीपक जोशी
सुंदरलाल पटवा- सुरेंद्र पटवा
अर्जुन सिंह- अजय सिंह
दिग्विजय सिंह- जयवर्द्धन सिंह
कमलनाथ- नकुलनाथ
बाबूलाल गौर- कृष्णा गौर
सुभाष यादव- अरुण यादव, सचिन यादव
जमुनादेवी- उमंग सिंगार
कांतिलाल भूरिया- विक्रांत भूरिया
विक्रम वर्मा- नीना वर्मा
कैलाश विजयवर्गीय- आकाश विजयवर्गीय
सत्यदेव कटारे- हेमंत कटारे
श्रीनिवास तिवारी- सुंदरलाल तिवारी, बबला
बृजेंद्र सिंह राठौर- नृतेंद्र सिंह
दहलीज पर खड़े नेता पुत्र
शिवराज सिंह चौहान- कार्तिकेय सिंह
सुमित्रा महाजन- मंदार
नरेंद्र सिंह तोमर- देवेंद्र सिंह तोमर
नंदकुमार सिंह चौहान- हर्षर्द्धन सिंह
नरोत्तम मिश्रा- सुकर्ण मिश्रा
प्रभात झा- तुषमल
गोपाल भार्गव- अभिषेक
गौरीशंकर बिसेन- मौसम
गौरीशंकर शेजवार- मुदित
जयंत मलैया- सिद्धार्थ
डॉ. गोविंद सिंह- राहुल
सत्यव्रत चतुर्वेदी- नितिन चतुर्वेदी