
रिपोर्ट:मनोज सिंह ठाकुर
गरियाबंद(गंगा प्रकाश)। धर्म और आध्यात्मिकता ने हमेशा ही व्यक्ति के जीवन और स्वास्थ्य मामलों में एक प्रमुख और हस्तक्षेपकारी भूमिका निभाई है। रोगी की स्वायत्तता और आत्मनिर्णय के अधिकार के प्रभावशाली विकास के साथ, रोगी की धार्मिक संबद्धता चिकित्सा निर्णय लेने में एक महत्वपूर्ण घटक बन गई है। यह जीवन के अंत से जुड़े मुद्दों जैसे कि उपचार वापस लेना और रोकना, चिकित्सा निरर्थकता, पोषण संबंधी भोजन और पुनर्जीवित न करने के आदेश से जुड़े मुद्दों में विशेष रूप से प्रासंगिक है। ये मुद्दे न केवल रोगी के मूल्यों और विश्वासों को प्रभावित करते हैं, बल्कि परिवार इकाई और चिकित्सा पेशे के सदस्यों को भी प्रभावित करते हैं। कानून जीवन की पवित्रता और जीवन की गुणवत्ता के बीच संघर्षों को हल करने में एक हस्तक्षेपकारी भूमिका निभाता है जो स्वास्थ्य सेवा के इस पहलू में बहुत स्पष्ट है। इस प्रकार, अंतर्निहित नैतिक और कानूनी दुविधाओं से निपटने में चिकित्सा पेशे को न केवल रोगियों की बदलती धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है, बल्कि विकासशील कानूनी और नैतिक मानकों के प्रति भी। कठिन जीवन के अंत के निर्णयों को संभालने से पहले चिकित्सा पेशे को नैतिक दायित्वों, कानूनी मांगों और धार्मिक अपेक्षाओं पर मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। कानूनी मानकों के विकास के साथ-साथ व्यापक नैतिक संहिताओं का विकास, चिकित्सा पेशे को सही चिकित्सा निर्णय लेने में स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।किंतु आज के युग चिकित्सा एक गोरख धंधा के रूप में विकसित हो रही हैं निजी हॉस्पिटल कुकर मुत्ते की तरह फैल गय हैं।इसका श्रेय सरकार को भी दिया जा सकता हैं क्यों सरकार द्वारा संचालित कि आयुष्मान कार्ड के पैसे को लूटने की निजी हॉस्पिटल में होड़ सी लगी हुई हैं।बताना लाजमी होगा कि आयुष्मान योजना में पंजीकृत निजी अस्पताल प्रबंधन की मनमानी और फर्जीवाड़े पर विष्णु देव सरकार सख्त कदम उठा रही है। विष्णु के सुशासन में अब मेडिकल माफियाओं की खैर नही है। जन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने विष्णु सरकार के निर्देशानुसार स्वास्थ्य विभाग अस्पतालों पर कार्यवाही में लग गया है। आयुष्मान भारत मे अस्पतालो कि शिकायत रहती है कि पेमेंट सही समय और उच्ची अप्रोच पर ही हो पाता था, विष्णुदेव सरकार के निर्देशानुसार अब फीफा के माध्यम से फर्स्ट कम फर्स्ट आउट के आधार पर पेमेंट किया जा रहा। अब अस्पतालो को पेमेंट के लिए कोई जुगाड़ लगाना नही पड़ेगा। स्वास्थ्य विभाग द्वारा 30 से अधिक पंजीकृत अस्पतालों पर स्वास्थ्य विभाग ने कार्यवाही की है और लाखों रुपये का जुर्माना लगाया है। संचालक स्वास्थ्य सेवाएं सह मुख्य कार्यपालन अधिकारी, राज्य नोडल एजेंसी ऋतुराज रघुवंशी ने प्राप्त हो रही शिकायतों पर जिला स्तर पर जिला शिकायत निवारण समिति ;क्ळत्ब्द्ध तथा राज्य स्तर पर राज्य शिकायत निवारण समिति ;ैळत्ब्द्ध में निराकरण कर रहे है और शिकायत सही पाए जाने पर जुर्माना और ब्लैक लिस्टिंग की कार्यवाही की जा रही है। शिकायतों पर राज्य एवं जिला स्तरीय निरीक्षण टीम के द्वारा नियमित रूप से योजना की समीक्षा की जाती है। इसी क्रम में फिंगेश्वर विकासखंड में राजिम स्थित मॉ यशोदा अस्पताल के विरूद्ध कार्यवाही की गई है। आयुष्मान योजना के द्वारा ईलाज हेतु भर्ती मरीजों से 104 आरोग्य सेवा के द्वारा फीडबैक भी ली जा रही है। जिसमें मरीजों से अतिरिक्त राशि लिए जाने, उपचार में कोई शिकायत, अस्पताल में साफ सफाई के साथ साथ चिकित्सक तथा स्टाफ के व्यवहार संबंधी जानकारी है। ऐसे अस्पताल जिनके द्वारा अतिरिक्त राशि लेने की पुष्टि हुई है उसके विरुद्ध अर्थदंड की कार्यवाही की जा रही है। कुछ अस्पताल हेल्थ पैकेज कोड के विपरीत क्लेम बुक किये है ऐसे क्लेम को निरस्त या आंशिक भुगतान की गई है। मरीज जिनका इलाज ओपीडी में की जा सकती है उन मरीजों को आई पी डी के रूप में भर्ती कराया जाता है ऐसे अस्पताल के विरुद्ध भी गाइडलाइन के अनुसार सख्ती से कार्यवाही निरंतर जारी है। जिले के सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारीयों को निर्देशित किया गया है कि जिला स्तर पर विशेषज्ञ चिकित्सक की टीम द्वारा औचक निरीक्षण किया जाए जिन अस्पताल में एक ही प्रकार के क्लेम की संख्या अधिक रिपोर्ट की जा रही हो वहां स्थल निरीक्षण भी की जा रही है और भर्ती मरीज से सीधे जानकारी ली जाकर कार्यवाही शामिल हैं। विभिन्न माध्यमों से प्राप्त शिकायतों के आधार पर गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखंड में राजिम स्थित मॉं यशोदा अस्पताल संचालकों को नोटिस जारी किए गए है। गरीब और जरूरतमंद लोगों को अच्छे एवं आधुनिक अस्पतालों में ईलाज की सुविधा आसानी से उपलब्ध कराने के उद्देश्य से आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना का संचालन किया जा रहा है। इस योजना में सामाजिक, आर्थिक एवं जातीय जनगणना अंतर्गत् चिन्हांकित श्रेणी के परिवार, अन्त्योदय एवं प्राथमिकता राशन कार्डधारी परिवारों को केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा, आयुष्मान कार्ड के जरिए हर वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रूपए तक निःशुल्क ईलाज प्रदान किया जा रहा है। इसके साथ ही राज्य के बाकी राशन कार्डधारी परिवारों को राज्य सरकार शहीद वीर नारायण सिंह स्वास्थ्य सहायता योजना के अंतर्गत प्रतिवर्ष प्रति परिवार 50 हजार रूपए तक ईलाज मुफ्त ईलाज की सुविधा दे रही है। छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना में फर्जीवाड़ा कर लाखों करोड़ों का घोटाला करने वाले 30 से अधिक अस्पतालों को महज जुर्माना लगा कर क्यों छोड़ा जा रहा है ? सोशल एंड आरटीआई एक्टविस्ट कुणाल शुक्ला ने कहा कि सवाल यह है कि पुलिस में एफआईआर क्यों दर्ज नहीं कराई जा रही है ? मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाले रसूखदारों पर एफआईआर नहीं करवाने के लिए किसका दबाव है ? क्या स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत है इसलिए पुलिसिया कार्यवाही से बचा जा रहा है ? मरीजों और सरकार के साथ फर्जीवाड़ा करने वाले 30 से अधिक रसूखदार अस्पतालों के संचालकों पर जुर्म दर्ज कर उनकी तत्काल गिरफ्तारी की जाए।

आयुष्मान योजना में निजी अस्पतालों की मनमानी, 995 लोगों ने की शिकायत, कार्रवाई सिर्फ 45 पर
छत्तीसगढ़ में आयुष्मान योजना में निजी अस्पताल प्रबंधन अपनी मनमानी कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग से आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत तीन वर्षों में मिली शिकायतों की जानकारी मांगी गई। राज्य नोडल एजेंसी की तरफ से वर्ष 2021-22, 2022-23 और 2023-24 में आयुष्मान योजना की कितनी शिकायतें मिलीं। इस पर राज्य नोडल एजेंसी की तरफ से 995 शिकायतों की जानकारी दी गईं हैं।
गरीबी रेखा में आने वाले लोगों को पांच लाख तक का इलाज निश:शुल्क
26 पर निलंबन, 25 पर जुर्माना और पांच का पंजीयन निरस्त कर दिया गया है। 45 अस्पतालों पर कार्यवाही की गई है। विभाग को ये शिकायत टोल फ्री नंबर और अन्य माध्यमों से शिकायत मिली है। आयुष्मान योजना के तहत गरीबी रेखा में आने वाले लोगों को पांच लाख तक का इलाज निश्शुल्क है। सामान्य लोगों के लिए 50 हजार का इलाज निश्शुल्क है, लेकिन आयुष्मान कार्ड से इलाज करने के दौरान अस्पताल प्रबंधन को मरीज से एक भी रुपये नहीं लेना है।
अधिकतर अस्पताल प्रबंधन आयुष्मान से इलाज करने के बावजूद मरीजों से भी बिल के पैसे वसूलते हैं जो नियम के खिलाफ है। इस योजना से इलाज कराने वाले मरीज का कितना भी पैसा खर्च हो उसे मरीज से लेने का प्रविधान नहीं है, नियम के खिलाफ जाकर अस्पताल प्रबंधन पैसे लेता है। शिकायत होने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की तरफ से अस्पतालों पर उचित कार्रवाई नहीं होती है, यही वजह से है कि प्रबंधन बिना किसी डर-भय के मरीजों के स्वजन से मोटी रकम वसूलते हैं।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
उक्त विषय पर डॉ. गार्गी यदु, जिला मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी गरियाबंद से चर्चा करने पर उन्होंने कहा कि जिले के फिंगेश्वर विकासखंड स्थित राजिम के मॉ यशोदा अस्पताल के संचालकों को आयुष्मान कार्ड से हुए इलाज में व्यापत अनियमियताओं की शिकायत पर छ.ग. शासन के स्वास्थ्य विभाग द्वारा कारण बताओं नोटिस जारी किया गया है।
क्या है आयुष्मान भारत योजना?
मोदी सरकार ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) की शुरुआत की है, जिसमें हर परिवार को प्रतिवर्ष 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा दिया जाता है। केन्द्र सरकार की यह स्कीम कैशलेस और पेपरलेस है, जिसमें 1,393 हेल्थ बेनिफिट पैकेज दिए जाते हैं। सरकार की इस स्कीम में देश के 19,000 से ज्यादा अस्पताल और हेल्थ केयर इंस्टीट्यूट्स हेल्थ पैकेज ऑफर करती हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस स्कीम के तहत करीब 10.74 करोड़ परिवारों (करीब 50 करोड़ लोगों) को इसका फायदा मिलेगा।
नेशनल हेल्थ ऑथिरिटी ने इस योजना का लाभ सबको मिल सके इसके लिए एंटी फ्रॉड यूनिट का भी गठन किया है। यह फॉरेंसिंक टीम नई टेक्नोलॉजी जैसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल करके लगातार अस्पतालों की निगरानी करती है। यह टीम देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में समय-समय पर मेडिकल ऑडिट करती है। यह टीम अब तक फर्जीवाड़े में शामिल सैकड़ों अस्पतालों को जांच के बाद शो कॉज नोटिस दे चुकी है।
पैसे कमाने की मशीन बन गए हैं अस्पताल: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं और यह सब मानव जीवन को संकट में डालकर हो रहा है। निजी अस्पतालों को छोटे आवासीय भवनों से संचालित करने की अनुमति देने के बजाय राज्य सरकारें बेहतर अस्पताल प्रदान कर सकती हैं।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम.आर. शाह की पीठ ने कहा कि अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं। हम उन्हें जीवन की कीमत पर समृद्ध नहीं होने दे सकते। बेहतर होगा ऐसे अस्पतालों को बंद कर दिया जाए। पीठ ने भवन उपयोग अनुमति के संबंध में अस्पतालों के लिए समय सीमा बढ़ाने के लिए गुजरात सरकार की खिंचाई की। दरअसल, शीर्ष अदालत गुजरात के अस्पतालों में आगजनी के मामले पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत ने भवन उपयोग अनुमति के संबंध में अस्पतालों के लिए समय सीमा जून, 2022 तक बढ़ाने को लेकर गुजरात सरकार की जमकर खिंचाई की थी। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से अस्पतालों को छूट देने वाली इस अधिसूचना को वापस लेने को कहा। पीठ ने कहा कि एक मरीज जो कोविड से ठीक हो गया था और उसे अगले दिन छुट्टी दी जानी थी, परंतु आग लगने से उसकी मौत हो गई और दो नर्सें भी जिंदा जल गईं। पीठ ने कहा था कि ये मानवीय त्रासदी हैं, जो हमारी आंखों के सामने हुआ। फिर भी हम इन अस्पतालों के लिए समय बढ़ाते हैं। पीठ ने कहा कि अस्पताल एक रियल एस्टेट उद्योग बन गए हैं और संकट में मरीजों को सहायता प्रदान करने के बजाय यह व्यापक रूप से महसूस किया गया कि वे पैसे कमाने की मशीन बन गए हैं।