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राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराने वाले लक्ष्मीकांत दीक्षित पंचतत्व में विलीन

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट 

वाराणसी (गंगा प्रकाश)। अयोध्या राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में मुख्य पुजारी की भूमिका निभाने वाले पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित (82 वर्षीय) का आज निधन हो गया। भारतीय सनातन परंपरा के प्रकाण्ड विद्वान माने जाने वाले दीक्षित ने मंगलागौरी स्थित अपने आवास पर प्रातः सात बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन की सूचना मिलते ही काशी के लोगों में शोक की लहर दौड़ पड़ी। मणिकर्णिका घाट पर उनके पुत्र जयराम दीक्षित ने उन्हें मुखाग्नि दी। वर्ष 1942 में मधुबनी (शोलापुर) में पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित बाल्यावस्था में ही शुक्लयजुर्वेद शाखा और घनान्त अध्ययन के लिए काशी आये थे। उन्होंने बाल्यकाल में ही युक्त काशी मे रहने का निश्चय कर लिया था। वे वाराणसी के मीरघाट स्थित सांगवेद महाविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य भी थे, जो इस विश्वविद्यालय की स्थापना काशी नरेश के सहयोग से की गई थी। आचार्य लक्ष्मीकांथ की गणना काशी में यजुर्वेद के बड़े शास्त्र में भी हुई थी। लक्ष्मीकांत राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा आयोजनों में पुजारियों की टीम शामिल थी, उन्होंने इस प्राणप्रतिष्ठा में 121 पुरोहितों का नेतृत्व किया था। ये प्राण प्रतिष्ठा के समय मंदिर के गर्भ गृह में उपस्थित पांच लोगो में से एक थे। प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया 16 जनवरी से शुरू हुई थी, यह प्रायश्चित और कर्मकूटि पूजन किया गया था। अगले दिन 17 जनवरी को मूर्ति के परिसर में प्रवेश, 18 जनवरी को तीर्थ पूजन, जल यात्रा, जलाधिवास और गंधाधिवास के साथ ही श्रीराम लला विग्रह को उनके स्थान पर विराजमान किया गया। वहीं 19 जनवरी को औषधिधिवास, केसराधिवास, घृतधिवास धान्याधिवास और 20 जनवरी को शर्कराधिवास, फलाधिवास, पुष्पाधिवास एवं 21 जनवरी को मध्याधिवास और शैय्याधिवास आयोजित किया गया। इसके बाद 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हुआ, इस सभी आयोजन में पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित ने मुख्य आचार्य की भूमिका निभाई थी।

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