यूपीए की मनमोहन सरकार की “वित्तीय धोखाधड़ी” का नुकसान उठा रहें हैं आज के उपभोक्ता?

पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का ठीकरा कांग्रेस सरकार पर फोड़ते हुए प्रधानमंत्री मोदी ये सच क्यों नहीं बताते?

मोदी सरकार ने यूपीए जमाने के तेल बांड के लिए कितना भुगतान किया?

नई दिल्ली(गंगा प्रकाश):-सूत्रों के मुताबिक, डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने तेल कंपनियों को सब्सिडी देने के बदले बॉन्ड जारी किए थे, जिनका भुगतान आज मोदी सरकार को करना पड़ रहा है।देश में पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों को लेकर कांग्रेस  समेत सभी विरोधी पार्टियां केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। कांग्रेस सीधा-सीधा दावा कर रही है कि UPA यानी डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के समय कच्चे तेल के दाम ऊंचे होने के बाद भी देश में पेट्रोल-डीजल के दाम कंट्रोल में थे, जबकि आज कच्चे तेल के दाम कम हैं तो भी पेट्रोल-डीजल महंगा है। अब इसी को लेकर एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि आज की केंद्र सरकार को कांग्रेस सरकार के समय के बॉन्ड का भुगतान करना पड़ रहा है।

सरकारी सूत्रों के मुताबिक, मनमोहन सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को सब्सिडी देने के बदले बॉन्ड जारी किए थे, जिनका भुगतान आज मोदी सरकार को करना पड़ रहा है।कांग्रेस सरकार के समय कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को कंट्रोल में करने और पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में वृद्धि न करने के लिए तेल कंपनियों को बॉन्ड जारी किए गए थे, जिसका मतलब ये होता है कि ‘हम आपको सब्सिडी नहीं दे सकते, लेकिन फिर भी आप तेल की कीमतें मत बढ़ाओ, इसके लिए हम आपको बॉन्ड जारी कर रहे हैं जो हम धीरे-धीरे करके चुका देंगे।UPA सरकार की तरफ से तेल कंपनियों को जारी किए गए इन्हीं बॉन्ड के 1.30 लाख करोड़ रुपये का भुगतान आज मोदी सरकार कर रही है, वह भी एक ऐसे समय में जब महामारी के चलते केंद्र सरकार खर्च के दबाव का सामना कर रही है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार ने पिछला मूल भुगतान  मार्च 2015 में 3,500 करोड़ रुपये का किया था। कुल वर्तमान बकाया लगभग 1.30 लाख करोड़ रुपये है।यानी अब इस साल से 1,30,701 करोड़ रुपये मूल्य के ऐसे बॉन्ड का भुगतान करना पड़ेगा, जिन पर देय ब्याज भी 10,000 करोड़ रुपये है।सूत्रों के अनुसार, अगले पांच सालों तक यानी 2026 तक भुगतान करना जारी रहेगा।

पिछले 8 सालों में बॉन्डों के ब्याज भुगतान पर खर्च किए गए 70,000 करोड़ रुपये से अधिक

सामान्य परिस्थितियों में, सब्सिडी को राजस्व व्यय के रूप में माना जाता है और इस तरह ये सरकार के ही बजट का एक हिस्सा बनता है।सूत्रों ने कहा कि इस तरह उस समय की UPA कि मनमोहन सरकार ने बॉन्ड के भुगतान की ये जिम्मेदारी आगे आने वाली केंद्र की सरकार पर डाल दी थी जो राशि आज केंद्र सरकार को चुकानी पड़ रही है, वह काफी बड़ी है, जिसका असर आज की केंद्र सरकार के अन्य कार्यक्रमों पर पड़ेगा,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के पिछले आठ सालों में, इन बॉन्डों पर केवल ब्याज भुगतान पर ही 70,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए गए हैं।

UPA सरकार की ‘वित्तीय धोखाधड़ी’ का नुकसान उठा रहे आज के उपभोक्ता

सरकार ने आरोप लगाया है कि यूपीए सरकार (2004-2014) की तरफ से तेल बॉन्ड के साधन का इस्तेमाल कर ‘वित्तीय धोखाधड़ी’ की गई थी, जिसका नुकसान आज देश के उपभोक्ताओं को उठाना पड़ रहा है।वहीं, इस रिपोर्ट को लेकर बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने कहा कि पेट्रोल और डीजल की बढ़ी हुई कीमतें यूपीए सरकार के कुप्रबंधन की देन हैं।हम उन तेल बॉन्डों की कीमत चुका रहे हैं जो वित्त वर्ष 2021 से 26 तक भुगतान के लिए आएंगे, जो कि यूपीए सरकार की तरफ से तेल कंपनियों को खुदरा कीमतों में वृद्धि न करने के लिए जारी किए गए थे! खराब अर्थशास्त्र, खराब राजनीति,

हालांकि, कांग्रेस ने इन दावों को खारिज किया है।

फैक्ट चेक: मोदी सरकार ने यूपीए जमाने के तेल बांड के लिए कितना भुगतान किया?

पेट्रोलियम मंत्री सहित कई भाजपा नेताओं के हवाले से कहा गया कि मौजूदा सरकार ने पिछली यूपीए सरकार के दौरान जारी किए गए 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक के तेल बांड का भुगतान किया। सच क्या है?पेट्रोलियम मंत्री सहित कई भाजपा नेताओं के हवाले से कहा गया कि मौजूदा सरकार ने पिछली यूपीए सरकार के दौरान जारी किए गए 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक के तेल बांड का भुगतान किया। भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने एक इन्फोग्राफिक डाला जिसमें दावा किया गया कि मौजूदा सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये के ब्याज के साथ 1.3 करोड़ रुपये के लंबित तेल बांड चुकाए हैं।तो मौजूदा सरकार ने यूपीए के दौरान जारी किए गए तेल बांडों के लिए कितना भुगतान किया? क्या यह एकमात्र सरकार है जिसने तेल बांड पर ब्याज का भुगतान किया है? क्या तेल बांड केवल यूपीए के दौरान जारी किए गए थे? यहां एक फैक्ट चेक है।

तेल बांड क्या हैं और ये सभी बांड किसने जारी किए हैं?

तेल बांड सरकारों द्वारा उन दिनों जारी किए गए थे जब पेट्रोल/डीजल की कीमतों को विनियमित किया गया था। पेट्रोल/डीजल और अन्य तेल उत्पादों पर दी जाने वाली सब्सिडी के लिए तेल विपणन कंपनियों (OMCs) को भुगतान करने के बजाय, सरकारें इन कंपनियों को मुआवजे के रूप में तेल बांड जारी करती थीं जो सरकारी प्रतिभूतियों की तरह हैं । ये प्रतिभूतियां आमतौर पर 10-20 साल की लंबी दिनांकित प्रतिभूतियां होती हैं। उदाहरण के लिए, यूपीए के दौरान जारी किए गए तेल बांड की इस अधिसूचना को देखें।पिछली सभी सरकारों द्वारा 2010 तक तेल बांड जारी किए गए थे जब पेट्रोल की कीमत को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया था। यहां तक ​​कि वाजपेयी के नेतृत्व वाली पिछली एनडीए सरकार ने भी तेल बांड जारी किए थे। 2002-03 के बजट के अपने बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने उल्लेख किया कि सरकार तेल बांड जारी करेगी।

लंबित तेल बांडों का मूल्य क्या है?

सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध बजट दस्तावेज लंबित तेल बांडों की जानकारी और इन तेल बांडों पर भुगतान की जाने वाली ब्याज की राशि का खुलासा करते हैं। प्राप्ति बजट 2014-15 के अनुलग्नक 6ई के अनुसार , ‘नकद सब्सिडी के बदले तेल विपणन कंपनियों को जारी विशेष प्रतिभूतियां’ शीर्षक से, 2013-14 के अंत तक लंबित तेल बांडों का कुल मूल्य 1,34,423 करोड़ रुपये था। यह तब हुआ जब एनडीए सरकार ने सत्ता संभाली। इस दस्तावेज़ के अनुसार, तेल बांडों से संबंधित बकाया देनदारियां 1,34,423 करोड़ रुपये थीं। 2014-19 की अवधि (मोदी सरकार के कार्यकाल) के दौरान परिपक्वता के लिए देय बांडों का एकमात्र सेट बांड के दो सेट थे जो 2015 में परिपक्व हुए, कुल 3500 करोड़ रुपये। (नोट: यह सबसे पहले बूम लाइव द्वारा हाइलाइट किया गया था )हमने इसे 2018-19 के प्राप्ति बजट के अनुलग्नक 2ई के साथ क्रॉस चेक किया जिसमें लंबित देनदारियों का एक ही सेट दिखाया गया था। दूसरे शब्दों में, जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली तो बकाया देनदारियां 1,34,423 करोड़ रुपये थीं और 2018-19 तक देनदारियां 1,30,923 करोड़ रुपये थीं। असल में, मोदी सरकार ने केवल 3,500 करोड़ रुपये के तेल बांडों का भुगतान किया जो वर्ष 2015 में परिपक्व हो गए थे।  अपडेट: पेट्रोलियम मंत्रालय के तहत पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल (पीपीएसी) ने भी पुष्टि की है कि वर्तमान सरकार ने केवल तेल बांडों का भुगतान किया है। 3,500 करोड़ रु.

दावा: मोदी सरकार ने ऑयल बॉन्ड के लंबित बिलों का भुगतान किया

तथ्य: मोदी सरकार ने केवल 3,500 करोड़ रुपये के तेल बांड का भुगतान किया जो 2015 में परिपक्व हो गया और 1.3 लाख करोड़ रुपये के तेल बांड अभी भी लंबित हैं। इसलिए यह दावा FALSE है ।

तेल बांड पर ब्याज के बारे में क्या? भारत सरकार के ब्याज भुगतानों को ‘ब्याज भुगतान’

शीर्षक वाले दस्तावेज़ में दर्ज किया जाता है ।व्यय बजट के तहत वित्त मंत्रालय के अनुदान की मांग में। सरकार द्वारा किए गए सभी ब्याज भुगतान इस दस्तावेज़ में दिए गए हैं, जिसमें तेल कंपनियों को विशेष बांड पर ब्याज भी शामिल है। पिछले 20 वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न सरकारें (यूपीए और एनडीए दोनों) तेल बांड पर ब्याज दे रही हैं। कई तेल बांड जारी करने के कारण यूपीए -1 के दौरान ब्याज देयता में काफी वृद्धि हुई। यूपीए-2 ने 2009-10 और 2013-14 के बीच 5 साल की अवधि में तेल बांड के लिए ब्याज में कुल 53,163 करोड़ रुपये का भुगतान किया। दूसरी ओर, मौजूदा एनडीए सरकार ने 2014-15 और 2017-18 के बीच 4 साल की अवधि में कुल 40,225 करोड़ रुपये का भुगतान किया। उन्होंने 2018-19 में 9989.96 करोड़ रुपये के ब्याज भुगतान का भी बजट रखा है। 

पिछले 4 वर्षों के लिए ब्याज भुगतान भी स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि बकाया राशि में कोई बदलाव नहीं हुआ था, इसलिए 2015 को छोड़कर पिछले चार वर्षों में कोई भुगतान नहीं किया गया था। हालांकि यह सच है कि मोदी सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये से अधिक का ब्याज भुगतान किया। पिछले 4 वर्षों में, यूपीए -2 ने भी अपने कार्यकाल के दौरान अधिक ब्याज की राशि का भुगतान नहीं किया था।

दावा: मोदी सरकार ने तेल बांड पर 40,000 करोड़ रुपये का ब्याज दिया

तथ्य: मोदी सरकार ने तेल बांड के ब्याज पर 40,225 करोड़ रुपये का भुगतान किया। इसलिए यह दावा सही है । लेकिन यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पिछली यूपीए सरकार ने भी इस तरह के ब्याज का भुगतान किया था और वास्तव में वर्तमान सरकार की तुलना में अधिक राशि का भुगतान किया था। 

ये भुगतान पेट्रोल और डीजल पर बढ़े हुए उत्पाद शुल्क से कैसे मेल खाते हैं?

2014-15 और 2017-18 के बीच भारत सरकार द्वारा एकत्रित उत्पाद शुल्क

की कुल राशि 7,49,485 करोड़ रुपये है। इसी अवधि के दौरान, सरकार ने तेल बांड पर पुनर्भुगतान और ब्याज के लिए कुल 43,725 करोड़ रुपये का भुगतान किया। तेल बांड पर भुगतान पेट्रोल/डीजल पर एकत्रित कुल उत्पाद शुल्क के 6% से कम है। इसलिए यह कहना कि यह करों में वृद्धि का कारण था, उचित नहीं लगता।

पेट्रोल की बढ़ती कीमतों का ठीकरा कांग्रेस सरकार पर फोड़ते हुए प्रधानमंत्री मोदी ये सच क्यों नहीं बताते?

ट्विटर पर ‘100 रुपए में पेट्रोल’ के मीम शेयर किए जा रहे हैं। सरकार समर्थक लोग इसे भी देश हित में बता रहे हैं। ऐसे में बीजेपी कह रही है कि अगर पिछली सरकारों ने ऑयल बॉन्ड का पैसा भरा होता, तो इतनी टेंशन न होती। उनका ये भी कहना है कि वो सारा पैसा चुकाने के चक्कर में ही तेल महंगा हो गया है. क्या यह बात सच है? ये ऑयल बॉन्ड क्या हैं, जिन पर इतनी मारामारी है।आइए ये सब जानते हैं तफ्सील से,देश में तेल की कीमतों के रिकॉर्ड पर पहुंचने के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने 17 फरवरी को कहा था कि अगर पिछली सरकारों ने भारत की ऊर्जा आयात पर निर्भरता को कम करने पर गौर किया होता तो आज मध्यम वर्ग पर इतना बोझ नहीं पड़ता।

तमिलनाडु में ऑयल एंड गैस प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन करने के लिए आयोजित एक ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा था कि क्या भारत जैसे एक विविध और सक्षम देश को एनर्जी इंपोर्ट पर निर्भर होना चाहिए? मैं किसी की आलोचना नहीं करना चाहता, लेकिन मैं चाहता हूं कि अगर हमने इस मसले पर पहले फोकस किया होता तो हमारे मध्यम वर्ग को बोझ नहीं सहना पड़ता हैं।

इससे पहले 10 फरवरी को बीजेपी के ट्विटर हैंडल से भी तेल के दाम बढ़ने के लिए मनमोहन सिंह सरकार को जिम्मेदार बताते हुए एक ट्वीट किया गया था, इसका मजमून कुछ ऐसा था”अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पेट्रोलियम की कीमत पर क्या कहा और किया था,उन्होंने कहा था कि पैसा पेड़ों पर नहीं उगता और 1.3 लाख करोड़ रुपए का ऑयल बॉन्ड का बिल बिना भरे ही चले गए,मोदी सरकार ने वो सारे बिल ब्याज के साथ भरे, हमें अपने बच्चों पर बोझ नहीं डालना है।

ये ऑयल बॉन्ड का क्या चक्कर है

इस ट्वीट में बाकी बातों के अलावा ऑयल बॉन्ड का भी जिक्र है। आखिर यह किसका बहीखाता है, जिसे मोदी जी को सेटेल करना पड़ा है।तो आइए पहले थोड़ा ऑयल बॉन्ड के बारे में भी जान लेते हैं।बॉन्ड का मतलब एक तय वक्त पर पैसा चुकता करने का भरोसा है। आप इसे एक किस्से से समझिए:-

धनंजय सिंह को अपने बेटे की शादी के लिए अपने दोस्त राकेश सिंह के यहां से सामान खरीदना है। धनंजय सिंह के पास पैसे हैं नहीं,लेकिन उनको लगता है कि कमाऊ पूत कमा कर अगले 5 साल में घर भर देगा,वह राकेश सिंह के पास जाते हैं और कहते हैं कि राकेश भाई 5 लाख रुपए का सामान दे दो,लेकिन उस सामान की मैं अभी नकद पेमेंट नहीं कर सकता,इसके बदले एक लेटर पर लिखकर दे देता हूं कि आपको 5 साल बाद 5.50 लाख रुपए दे दूंगा, इस बीच हर साल आप मेरी किराने की दुकान से 10 हजार का सामान भी मुफ्त में ले लेना,इस तरह से धनंजय सिंह ने दोस्त राकेश सिंह को 5 लाख रुपए का बॉन्ड 5 साल की अवधि के लिए दे दिया।

सरकार यही धनंजय सिंह हैः भारत सरकार ने भी साल 2005 में धनंजय सिंह वाला फंडा अपनाया,रिजर्व बैंक केनियमों 

के अनुसार सरकार कंपनियों को भी स्पेशल बॉन्ड इश्यू कर सकती है,मतलब अगर सरकार चाहे तो नकद पेमेंट की जगह पर किसी कंपनी को बॉन्ड में पेमेंट कर सकती है,इससे सरकार को फायदा यह होगा कि उसे अपनी जेब से कैश नहीं देना होगा,इससे राजकोषीय घाटा भी कंट्रोल रहेगा, मतलब सरकार की देनादारी और कमाई का रजिस्टर साफ-सुथरा दिखेगा, इसका एक राजनीतिक फायदा यह भी था, कि अभी काम चल रहा है, बाद में सरकार रहे न रहे,जो सरकार आएगी वो देखेगी, सरकार ने ऑयल बॉन्ड को साल 2005 में शुरू किया,उसने ऑयल मार्केट कंपनियों (OMC) को बॉन्ड के तौर पर भुगतान करना शुरू किया, इन बॉन्ड्स को एक निश्चित अवधि के लिए इश्यू किया गया था,ऑयल कंपनियों को इस बात की आजादी थी कि वे अवधि के बीच इन बॉन्ड्स के बैंक, इंश्योरेंश कंपनियों आदि को बेच सकती हैं। इससे जरूरत पड़ने पर वह भी अपनी आर्थिक परेशानी से निपट सकेंगी।ये वो वक्त था जब ऑयल पर सब्सिडी मिलती थी।मतलब इंटरनेशनल मार्केट में रेट कुछ भी हो सरकार अपने हिसाब से रेट कंट्रोल करती थी।तेल कंपनियों को जेब से कैश न देना पड़े, इसलिए ऑयल बॉन्ड की शुरुआत की गई।सरकार ने 2005 से लेकर 2009 के बीच 4 लाख करोड़ रुपए के ऐसे ही ऑयल बॉन्ड इश्यू किए,इस बीच 2008 में वैश्विक मंदी आ गई। ऑयल मार्केट कंपनियों की हालत भी खराब हो गई,कंपनियां सरकार के पास पहुंचीं और कहा कि हमारे पास कैश ही नहीं है, यही हाल रहा तो कंपनियां बंद हो जाएंगी,सरकार की खुद की ऑयल कंपनियां खतरे में आ गईं। ऐसे में सरकार ने 2010 में बॉन्ड से पेमेंट करने का सिस्टम बंद करके कैश पेमेंट का सिस्टम फिर शुरू कर दिया, जून 2010 में पेट्रोल के दामों को डिरेग्युलेट कर दिया गया,मतलब सरकार ने कहा कि जैसा मार्केट में कच्चे तेल का दाम होगा, उस हिसाब से ही दाम भारत में भी बढ़ेगा-घटेगा,अक्टूबर 2014 में डीजल पर भी यही व्यवस्था लागू कर दी गई, साल 2017 में वर्तमान में चलने वाले डायनामिक फ्यूल प्राइस सिस्टम को लाया गया,इसमें दुनियाभर की मार्केट के हिसाब से तेल की कीमतों में रोज उतार-चढ़ाव आने लगा।

मोदी सरकार की टेंशन क्या है?

जो बॉन्ड 2005 से 2009 के दौरान इश्यू किए गए थे, वो 2022 से 2026 के बीच मेच्योर हो रहे हैं। इनकी कीमत तकरीबन 1 लाख 30 हजार करोड़ रुपए है। मतलब अब धनंजय सिंह के पेमेंट करने का वक्त आ रहा है।इसमें से भी ज्यादातर बॉन्ड 2022 में ही मेच्योर हो रहे हैं।

बजट की रसीद में मोदी सरकार की ऑयल बॉन्ड के एवज में देनदारी साफ देखी जा सकती है।

अब तक मोदी सरकार ने कितना चुकाया?

मोदी सरकार को अपने पहले कार्यकाल, यानी मई 2014 से 2019 के बीच दो बार बॉन्ड की रकम भरने की नौबत आई है। ये दोनों ही सेट 2015 में मेच्योर हुए थे।इनकी कीमत थी 3500 करोड़ रुपए,यह बात सरकार ने राज्यसभा में बताई भी थी।इस देनदारी को 2019-20 की बजटरसीद में देखा भी जा सकता है।2018-19 में जब एनडीए यानी मोदी सरकार आई तब देनदारी 1,34,423 करोड़ रुपए थी, जो अब 1,30,923 रह गई है।इससे साफ पता चलता है कि एनडीए सरकार ने 3,500 करोड़ रुपए और ब्याज का भुगतान किया है।बजट डॉक्युमेंट 

के अनुसार 2019 से 2024 के बीच मोदी सरकार पर ऑयल बॉन्ड की 41,150 करोड़ रुपए की देनदारी बनती है।हालांकि इस देनदारी से जुड़ा कोई भी बॉन्ड अभी मेच्योर नहीं हुआ है. साल 2021 में मोदी सरकार पर 10 हजार करोड़ रुपए के 2 ऑयल बॉन्ड की देनदारी निकली थी।

इसके बाद अगला ऑयल बॉन्ड 10 नवंबर 2023 को मेच्योर होगा।इसके लिए सरकार को 22 हजार करोड़ रुपए और ब्याज भरना होगा।तो इस हिसाब से जिन 1.3 लाख करोड़ रुपए के बॉन्ड की देनदारी की बात हो रही है, वह सही है।लेकिन इसे मोदी सरकार ने भर दिया है, ये गलत है। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में सिर्फ 3500 करोड़ रुपए के बॉन्ड भरे हैं।कुल जमा बात बस इतनी सी है कि सरकारें अपने बहीखाते को साफ रखने के लिए आंकड़ों की बाजीगरी करती हैं।इस बाजीगरी का एक नमूना बॉन्ड भी हैं।ये ‘हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होए’ फंडे पर काम करते हैं।

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