“संस्कार मान बने , शोषण नही।”

क्यों सिर्फ संस्कार नारी को सिखाई जाए?

पुरुषो को क्यों नही?

नारी घर संभालती है तो क्या पुरुष नही?

कोई गैर स्त्री बुलाई,ये संस्कार नही,

फिर पुरूष उसके पास जाए,

तो उसके संस्कार किस राह गई ।

बर्दास्त नारी करे तो संस्कार में आए,

न करे तो संस्कार बेच खाई ,

कोई बताएं कि ऐसी नियम किसने बनाई ?

पुरुषो की बुद्धि किसने खाई ?

पति घर आए तो उनकी सेवा करो ,

पत्नी बीमार में काम न करे तो कुकर्म हो ।

शास्त्र – ग्रंथो में भी नारी को पूजा हैं,

फिर कुछ लोगो ने नारी को मस्तिष्क से लेकर शरीर तक को लुटा हैं।

जिस घर की नारी खिलखिलाती हैं,

उस घर में  ही लक्ष्मी आती है ।

ऋषि मुनियों ने भी यह माना है,

देव – देवताओं ने भी नारी से जग को जाना हैं।

लोक – लज्जा सिर्फ नारी ही क्यों लाएं,

क्या पुरुष सिर्फ गंदी नजर गढ़ाएं?

लोक – लज्जा नारी का ही गहना नही,

आज कल के पुरुषो की भी  संपत्ति हो जाए ।

जब – जब किसी स्त्री की लज्जा उतरे,

पुरुष की नजर में हवस नही, बल्कि शर्म से नजर झुक जाएं ।

संस्कार में स्त्रियों को बर्दास्त करना नही,

अपितु गलत में भी आवाज उठाएं ।

कुछ नियम और बदले जाएं ,

घर के काम से लेकर नौकरी तक 

स्त्री – पुरुष को बराबर सिखाएं ,

घर किसी एक से नही बनता ,

इनको आईना और एक दिखाएं,

पति अगर परमेश्वर है तो पत्नी को देवी का दर्जा दिलवाएं ।

बेटी को बर्दास्त करना नही स्वाभिमान से लड़ना सिखाए।

ससुराल ठीक न मिले किसी बेटी को

तो सम्मान से अपने घर ले आए ।

समाज भी तब सुधरेगा, जब हम 

खुद अपने में सुधार  लाए।

   कवियत्री – सोनू मंडल धरमजयगढ़ ,रायगढ़ (छ.ग.)

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