मां शीतला के दरबार में भक्तों का हुजूम देर रात्रि तक लाईन में खड़े होकर दर्शन लाभ लिया

गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। आस्था विश्वास समर्पण का महापर्व माता पहुंचनी जो आज भी सदियों से चली आ रही परम्परा जीवित हैं माता पहुंचनी मनाने की परम्परा अभी से नही पुरातन काल से चली आ रही है जिन्हें आज भी जीवित रखा है। नगर के आराध्य देवी मां शीतला के दरबार में प्रतिवर्ष की भांति चार जुलाई गुरूवार को पूरे आस्था विश्वास एवं धार्मिक वातावरण के बीच मां शीतला के दरबार में माता पहुंचनी का कार्यक्रम पूरे धार्मिक वातावरण के बीच बड़े ही हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। जैसे ही दोपहर हुआ भक्तों की अपार जनसमूह देखने को मिला सदियों से चली आ रही इस परम्परा के बारे में मंदिर के पुजारी होरी लाल धु्रव ने बताया यह परम्परा हमारे पुरखों की देन हैं गांव में किसी प्रकार के अनहोनी से बचने के लिए मां शीतला के दरबार में भक्तगण आते हैं माता पहुंचनी के दिन विशेष तैयारी की जाती है इस दिन नीम के पत्ते हल्दी व तेल को आपस में मिलकर भक्तों के सिर के ऊपर छिड़काव किया जाता है ऐसा करने से शरीर में किसी भी प्रकार के प्रकोपों से माता शीतला दूर रखते हैं माताएं भी अपने साथ घर से थाली में नारियल, हल्दी, तेल चांवल दाल आलू थोड़ी थोड़ी मात्रा में लेकर आती है और प्रसाद स्वरूप ठंडई के रूप में अपने घर ले जाकर परिवार के सभी सदस्यों के ऊपर छिड़काव करती है ऐसा करने से परिवार में सभी प्रकार से प्रकोपों से दूर रखती हैं। जो भी भक्तगण माता के दरबार में आते हैं उनके मनोकामना अवश्य पूर्ण होती हैं। एक मान्यता यह भी है पुराने समय में माता पहुंचनी के दिन भक गण बली प्रथा का प्रचलन था जो समय के साथ धीरे धीरे समाप्त हो गया अब माता के चरणों में नारियल चढ़ाई जाती है।आज भी सदियों से चली आ रही परंपरा को देखकर मन प्रफुल्लित हो जाते हैं। नगर के अनेक माता सेवा समितियों के द्वारा संगीत मय ढोल नगाड़ों मांदर की थाप पर भक्ति में डूबे माता सेवा गीत गाकर पूरे वातावरण को भक्तिमय बना कर पूरे समय भक्ति के रंगों से सराबोर दिखाई देते हैं जिसमें नगर के प्रमुख माता सेवा समिति टिकरापारा, मौलीपारा जागृति सेवा समिति प्रमुख है।

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