विषमताओं के बीच ज्ञान का प्रकाश जलाता- दिव्यांग युवा टेकराम सलामे

एक दिव्यांग शिक्षक ऐसा भी जिसकी महज 300 रुपये मासिक पेंशन से चलता है गुजारा

 राजनांदगांव(गंगा प्रकाश):शिक्षक स्वयं अंधकार में रहकर दूसरों को प्रकाशवान बनाता है। यह कहावतें अक्सर आपने किताबों में पढ़े होंगे। लेकिन यह सिर्फ किताबों में ही नही बल्कि हकीकत में भी है। हम बात कर रहें हैं छुरिया ब्लाक मुख्यालय से सटे ग्राम पंचायत घोघरे के रहने वाले दिव्यांग युवा टेकराम सलामे जो कि शरीर से 85% दिव्यांग होने के बावजूद भी गाँव मे बच्चों को पिछले छः सालों से निःशुल्क शिक्षा दे रहे हैं। यहीं नही कोरोना महामारी के दौरान सब कुछ बंद हो गया था लेकिन  इन्होंने बच्चों को शिक्षा देते रहें। जब शिक्षक और पूरे राज्य के अधिकारी- कर्मचारी  अपने मांगो को लेकर सड़क पर उतरे थे  उस समय भी बिना किसी संकोच के टेकराम बच्चों को शिक्षा देते हैं। जीवन के कठिन दौर से गुजरकर  मात्र 300 रुपये की दिव्यांगता पेंशन से अपने एक महीना का खर्चा चलाने वाले टेकराम वास्तव में जितनी तारीफ किया जाय उतना ही कम है। एक तरफ शिक्षकों को हर महीने हजारों की तनख्वाह मिलने के बावजूद भी कम पड़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ टेकराम जैसे कई युवाओं की जिंदगी मात्र 300 में चल रही है। वास्तव में टेकराम जैसे निःस्वार्थी शिक्षक बहुत कम देखने को मिलता है। 

विषमताओं के बीच ज्ञान का प्रकाश जलाता- दिव्यांग युवा टेकराम सलामे

 छुरिया ब्लॉक से लगे ग्राम पंचायत घोघरे के शिक्षा मित्र  दिव्यांग युवा टेक राम सलामे की बात कर रहे है।जो शारीरिक रूप से 85 प्रतिशत दिव्यांग है जो अपने पैरो से न तो ढंग से चल  सकता है और न ही अपने हाथों से लिख नही सकता है फिर भी यह शासकीय रानी सूर्यमुखी देवी महाविद्यालय छुरिया में दूसरों के लेखन कार्य के भरोसे एम.ए.(हिंदी) की पढ़ाई पुरा कर चुका है।अभी आपने ग्राम पंचायत घोघरे मे बच्चों को विगत 6 वर्षो से निशुल्क शिक्षा प्रदान कर रहा है। स्कूली शिक्षा के अलावा आपने ग्राम के बच्चों को खेल, योगा, वृक्ष रोपण,पल्स पोलियों अभियान , कोविड-19 जैसे मुहिमो को लेकर काम कर रहा है। बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहा है। आज के दौर में टेकराम जिस कार्य बेड़ा उठाया है। शायद हो ऐसा कोई करे। कभी कभी  उन्हें कई यातनाएं भी झेलनी पड़ती है।लेकिन इन सभी दर्द को भुलाकर कुछ कर गुजरने की चाहत रख कर शिक्षा का प्रचार – प्रसार कर रहा है। जो काबिले  तारीफ है। वास्तव में टेकराम सलामे के जिन्दगी बहुत ही कष्टदायी है स्वयं जीवन की संघर्षो से लड़कर दूसरों को निःशुल्क सेवा दे रहें ऐसे दिव्यांग युवा से हमे बहुत कुछ सीखने और कुछ करने का प्रेरणा मिलता है।

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