
गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा से पितृपक्ष शुरू होता है। इसका समापन अश्विन कृश्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन हो जाता है। महाराज दिनेश शर्मा ने बताया कि इस वर्श भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर को सुबह 11 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 18 सितंबर को सुबह 8 बजकर 4 मिनट पर समाप्त हो रही है। श्राद्ध पक्ष का आरंभ 18 सितंबर को माना जाएगा। इस दिन उंगलियां में कुश फंसाए, हाथ में तिल और जौ लेकर लोगों अपने पितरों का तर्पण करेंगे। तर्पण के लिए कोई नदी तो कोई तालाब पहुंचेंगे। ज्यादातर लोगों घरों में तर्पण करते है। हिंदू धर्म अनुसार पितृपक्ष में शुभकार्य, शुभ खरीदी, विवाह संबंधी बातचीत, मकान शुभारंभ आदि कार्य एक पखवाड़ा तक पूर्णतः वर्जित माना गया है। तिथि अनुसार कई लोगों पितरों का श्राद्ध कौओं का हिस्सा निकालेंगे। श्राद्ध करने वालों पितरों के लिए तरह तरह के व्यंजन बनाए जायेंगे। छत्तीसगढ़ी परंपरा मानने वालों बरा, पुडी, खीर और तोराई के सब्जी का विशेश महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस पखवाड़े में पितरों के लिए निकाला गया हिस्सा उन्हें मिलता है। इसमें वे तृप्त होते है। पं. दिनेश शर्मा ने का कहना है कि देवलोक नागलोक आदि की तरह पितृ लोक होता है। वहीं मृत्यु को प्राप्त पितृ निवास करते है। पृथ्वीलोक से पितृपक्ष में उनके लिए परिवार के सदस्यों द्वारा निकाले गए हिस्से का उन्हें इंतजार रहता है। लोगों का मानना है कि कौओं के रूप में पितृ आते है और अपना हिस्सा ग्रहण कर तृप्त होते है। चंद वर्श गांव गांव में कौए दिखाई देते थे वहीं आज खोजने से भी एक कौआ नजर नहीं आता। वहीं पितृपक्ष में कई लोग बाल, दाढ़ी व कटिंग भी नहीं कराते। तर्पण करते समय जल से कुश के साथ चांवल, मूंगदाल, तिल, जौ और नया कपड़ा रखकर पांच बार जल से अर्पित करते है। वहीं घरों के द्वार पर गोबर से पुताई कर चौक चंदन बनाकर लोटे में पानी भरकर दातून रखें जाएंगे। उड़द दाल से बड़ा, पुडी, खीर, तोराई के सब्जी बनाकर आग में होम किया जाता है।