सड़क पर दौड़ रही ख़तरे की घंटी: संबंधित विभाग मौन क्यों?…

मालवाहक वाहनों में सवारी ढोने का खतरनाक खेल, पहले भी हो चुकी है कई बड़ी दुर्घटनाएं , शासन द्वारा भी जारी किया जा चुका है सख्त आदेश, स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता पर उठ रहे सवाल?….

रायगढ़ (गंगा प्रकाश)। मालवाहक वाहनों में सवारियां ढोने पर प्रतिबंध के बावजूद यह खतरनाक प्रथा थमने का नाम नहीं ले रही। पिकअप, छोटा हाथी जैसे मालवाहक वाहनों में सवारियों को जानवरों की तरह ठूंस-ठूंस कर भरना अब एक आम दृश्य बन चुका है। यह न केवल यातायात नियमों का उल्लंघन है, बल्कि गंभीर दुर्घटनाओं का न्यौता भी है।

संबंधित विभागों की उदासीनता के कारण वाहन चालकों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं। यातायात पुलिस और आरटीओ की निष्क्रियता से इन पर लगाम कसने की कोई ठोस कोशिश नहीं दिख रही। मार्ग पर तैनात पुलिसकर्मी भी इन वाहनों को रोकने की बजाय अनदेखा कर रहे हैं।

आवश्यकता और मजबूरी बनी जानलेवा सफर का कारण…
ग्रामीण क्षेत्रों में यात्री बसों और अन्य सवारी वाहनों की कमी के कारण लोग मजबूरी में इन जोखिम भरे वाहनों का सहारा ले रहे हैं।

सुविधाओं का अभाव: यात्री वाहन न होने के कारण लोग पिकअप और ट्रैक्टर जैसे मालवाहक वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं।
विवाह आयोजनों में उपयोग: ग्रामीण इलाकों में वैवाहिक सीजन के दौरान बारातियों को ले जाने के लिए इन वाहनों का अधिक उपयोग किया जाता है। इनमें पुरुष, महिलाएं, और बच्चे सभी शामिल होते हैं, जो अक्सर लापरवाह ड्राइविंग और ओवरलोडिंग के चलते दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं।

दुर्घटनाओं का बढ़ता ग्राफ: कौन है जिम्मेदार?…
मालवाहक वाहनों में सवारियां ढोने से पहले भी कई बड़े हादसे हो चुके हैं, जिनमें कई लोगों की जान गई है। इसके बावजूद न तो चालक कोई सबक ले रहे हैं और न ही प्रशासन कोई ठोस कदम उठा रहा है।

  1. वाहन चालकों की लापरवाही: ओवरलोडिंग और तेज गति से वाहन चलाना।
  2. यातायात पुलिस की अनदेखी: मार्ग पर तैनात होने के बावजूद कार्रवाई का अभाव।
  3. ग्रामीणों की मजबूरी: साधनों की कमी और कम खर्च के चलते जोखिम भरा सफर।

समस्याओं का समाधान और सुझाव , तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता….

  1. सख्त कार्रवाई का अभाव: यातायात पुलिस और आरटीओ को नियमित जांच अभियान चलाने चाहिए। ओवरलोडिंग और सवारियां ढोने वाले मालवाहक वाहनों पर भारी जुर्माना लगाया जाए।
  2. यातायात सुविधाओं का विस्तार: ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती और सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था की जाए। वैवाहिक आयोजनों के लिए यात्री वाहनों की आसान बुकिंग की सुविधा दी जाए।
  3. सामाजिक जागरूकता: लोगों को इस खतरे के प्रति जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं। स्थानीय प्रशासन द्वारा सवारी वाहन उपलब्ध कराने की वैकल्पिक व्यवस्था हो।

4.समस्या का समाधान: ग्रामीण इलाकों में बस सेवाओं का विस्तार किया जाए। सवारियां ढोने वाले वाहनों की निगरानी के लिए सीसीटीवी और डिजिटल साधनों का उपयोग हो।

बहरहाल मालवाहक वाहनों में सवारी ढोना न केवल यातायात नियमों का उल्लंघन है, बल्कि जानलेवा है। संबंधित विभागों की निष्क्रियता और ग्रामीणों की मजबूरी इस समस्या को और गंभीर बना रही है। अब समय आ गया है कि प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाए और जनता को सुरक्षित परिवहन का अधिकार दे।

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