मोदी राज की मेहरबानी : अमीर डिफाल्टरों के 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक के हुए कर्ज माफ़ 

प्रकाश कुमार यादव

नई दिल्ली(गंगा प्रकाश)। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल चार सालों में 21 सरकारी बैंको ने 3 लाख 16 हज़ार करोड़ के लोन माफ़ किए हैं।यह भारत के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के कुल बजट का दोगुना है।सख़्त और ईमानदार होने का दावा करने वाली मोदी सरकार में तो लोन वसूली ज़्यादा होनी चाहिए थी, मगर हुआ उल्टा ही एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई। क्या वित्त मंत्री ने आपको बताया कि उनके राज में यानी अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच तीन लाख करोड़ रुपये के लोन माफ किए गए हैं?यही नहीं इस दौरान बैंकों को डूबने से बचाने के लिए सरकार ने अपनी तरफ से हज़ारों करोड़ रुपये बैंकों में डाले हैं, जिस पैसे का इस्तेमाल नौकरी देने में खर्च होता, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा देने में खर्च होता वो पैसा चंद उद्योगपतियों पर लुटा दिया गया।इंडियन एक्सप्रेस में अनिल ससी की यह ख़बर पहली ख़बर के रूप में छापी गई थीं।भारत का स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा का जो कुल बजट है उसका दोगुना लोन बैंकों ने माफ कर दिया।2018-19 में इन तीनों मद के लिए बजट में 1 लाख 38 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है अगर लोन वसूल कर ये पैसा स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर ख़र्च होता तो समाज पहले से कितना बेहतर होता लेकिन ऐसा नही हुआ।अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच बैंकों ने मात्र 44,900 करोड़ रुपये की वसूली की है।बाकी सब माफ,इसे अंग्रेज़ी में राइट ऑफ कहते हैं।ये आंकड़ा भारतीय रिज़र्व बैंक का है।जबकि भाजपा ने ट्वीट किया था कि 2016 में इन्सॉलवेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के कारण 4 लाख करोड़ रुपये लोन की वसूली की गई है।रिज़र्व बैंक का डेटा कहता है कि 44,900 करोड़ रुपये की वसूली हुई है।

उस वक्त भी पत्रकार सन्नी वर्मा ने अपनी रिपोर्ट में इस बोगस दावे का पर्दाफाश किया था।जबकि हकीकत यह है कि मोदी राज में जितनी वसूली हुई है उसका सात गुना तो माफ कर दिया गया।

गनीमत है कि इस तरह की खबरें हिन्दी के अखबारों में नहीं छापी जाती हैं इसलिए जनता का एक बड़ा हिस्सा इन अखबारों के ज़रिए बेवकूफ बन रहा है।तभी मैं कहता हूं कि हिन्दी के अखबार हिन्दी पाठकों की हत्या कर रहे हैं। उनके यहां बेहतरीन पत्रकारों की फौज है मगर ऐसी ख़बरें होती ही नहीं जिनमें सरकार की पोल खोली जाती हो।मोदी सरकार के मंत्री एनपीए के सवाल पर विस्तार से नहीं बताते हैं।बस इस पर ज़ोर देकर निकल जाते हैं कि ये लोन यूपीए के समय के हैं।जबकि वो भी साफ-साफ नहीं बताते कि 7 लाख करोड़ के एनपीए में से यूपीए के समय का कितना हिस्सा है और मोदी राज के समय का कितना हिस्सा है।

भक्तों की टोली भी झुंड की तरह टूट पड़ती है कि एनपीए तो यूपीए की देन है।क्या हमारा आपका लोन माफ होता है? फिर इन उद्योगपतियों का लोन कैसे माफ हो जाता है?पांच साल से उद्योगपति चुप हैं। वे कुछ नहीं बोलते हैं।नोटबंदी के समय भी नहीं बोले, उद्योगपति चुप इसलिए कि उनके हज़ारों लाखों करोड़ के लोन माफ हुए हैं? तभी वे जब भी बोलते हैं, मोदी सरकार की तारीफ़ करते हैं।कायदे से मोदी राज में तो लोन वसूली ज्यादा होनी चाहिए थी।वो तो सख़्त और ईमानदार होने का दावा करती है।मगर हुआ उल्टा. एक तरफ एनपीए बढ़ता गया और दूसरी तरफ लोन वसूली घटती गई।21 सरकारी बैंकों ने संसद की स्थायी समिति को जो डेटा सौंपा है उसके अनुसार इनकी लोन रिकवरी रेट बहुत कम है, जितना लोन दिया है उसका मात्र 14.2 प्रतिशत लोन ही रिकवर यानी वसूल हो पाता है।अब आप देखिए, मोदी राज में एनपीए कैसे बढ़ रहा है. किस तेज़ी से बढ़ रहा है. 2014-15 में एनपीए 4.62 प्रतिशत था जो 2015-16 में बढ़कर 7.79 प्रतिशत हो गया।दिसंबर 2017 में एनपीए 10.41 प्रतिशत हो गया. यानी 7 लाख 70 हज़ार करोड़ रुपये,इस राशि का मात्र 1.75 लाख करोड़ रुपये नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में गया है।यह जून 2017 तक का हिसाब है. उसके बाद 90,000 करोड़ रुपये का एनपीए भी इस पंचाट में गया, यहां का खेल भी हम और आप साधारण लोग नहीं समझ पाएंगे।

इस ख़बर में बैंक के किसी अधिकारी ने कहा है कि लोन को माफ करने का फैसला बिजनेस के तहत लिया गया होता है।भाई तो यही फैसला किसानों के लोन के बारे में क्यों नहीं करते हैं?

जिनकी नौकरी जाती है, उनके हाउस लोन माफ करने के लिए क्यों नहीं करते हो? ज़ाहिर है लोन माफ करने में सरकारी बैंक यह चुनाव ख़ुद से तो नहीं करते होंगे एनपीए का यह खेल समझना होगा, निजीकरण की वकालत करने वाली ये प्राइवेट कंपनियां प्राइवेट बैंकों से लोन क्यों नहीं लेती हैं? सरकारी बैंकों को क्या लूट का खजाना समझती हैं?क्या आप जानते हैं कि करीब 8 लाख करोड़ रुपये का एनपीए कितने उद्योगपतियों या बिजनेस घरानों का है? गिनती के सौ भी नहीं होंगे।तो इतने कम लोगों के हाथ में 3 लाख करोड़ रुपये जब जाएगा तो अमीर और अमीर होंगे कि नहीं।जनता का पैसा अगर जनता में बंटता तो जनता अमीर होती। मगर जनता को हिंदू-मुस्लिम और पाकिस्तान दे दो और अपने यार बिजनेसमैन को हज़ारों करोड़।यह खेल आप तब तक नहीं समझ पाएंगे जब तक खुद को भक्त मुद्रा में रखेंगे, मोदी राज के चार साल में 3 लाख 16 हज़ार करोड़ रुपये का लोन माफ हुआ है।यह लोन माफी जनता की नहीं हुई है।एनपीए के मामले में मोदी सरकार बनाम यूपीए सरकार खेलने से पहले एक बात और सोच लीजिएगा।इस खेल में आप उन्हें तो नहीं बचा रहे हैं जिन्हें 3 लाख करोड़ रुपये मिला है? ये समझ लेंगे तो गेम समझ लेंगे।

मोदी ने सात सालों में उद्योगपतियों के तीन गुना कर्ज माफ किया

क्या आप यकीन कर सकते हैं कि पिछले तीन साल 9 महीनो में मोदी सरकार ने मित्र उद्योगपतियों का लगभग साढ़े सात लाख करोड़ रुपये राइट ऑफ (कर्ज माफी)  कर दिया है । जबकि मनमोहन सरकार के पूरे 10 सालो में राइट ऑफ की जाने वाली रकम कुल मिलाकर मात्र 2 लाख 20 हजार करोड़ ही थी यानी कहाँ लगभग

साढ़े तीन साल ओर कहा 10 साल।दस साल की तुलना में तीन गुनी से भी कही ज्यादा रकम मोदी सरकार ने राइट ऑफ की है

जी हाँ ! कल यह जानकारी वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में दी है कि इस वित्त वर्ष के पिछले 9 महीने में कमर्शियल बैंकों ने 1.15 लाख करोड़ के बैड लोन को राइट ऑफ किया है।रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक कमर्शियल बैंकों ने साल 2017-18 में 1.62 लाख करोड़,  2018-19 में 2.36 लाख करो रुपए, साल 2019-20 में 2.34 लाख करोड़ रुपए और साल 2020-21 के पहले 9 महीनों में 1.15 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है।कुल मिलाकर यह रकम लगभग साढ़े सात लाख करोड़ रुपये है ।आपको याद होगा कि राहुल गांधी ने पिछले साल इसी मार्च के मध्य में सदन में नरेंद्र मोदी के मित्र उद्योगपतियों के लोन माफ कर देने का सवाल उठाया था। उस वक्त उनका मजाक उड़ाया गया।लेकिन बाद में आरटीआई में हकीकत सामने आई कि मेहुल चोकसी और विजय माल्या की कंपनियों सहित जानबूझकर बैंकों का कर्ज नहीं चुकाने वाली शीर्ष 50 कंपनियों का 68,607 करोड़ रुपये का बकाया कर्ज तकनीकी तौर पर 30 सितंबर 2019 तक बट्टे खाते में डाला जा चुका है।अब आप यह भी जान लीजिए कि यह सब सिर्फ कोरे फिगर नही है आपके हमारे ऊपर इन फिगर्स का सीधा असर होता है राइट ऑफ की गई रकम की भरपाई के लिए बैंक अपने बाकी कमाई के जरियों पर निर्भर रहता है।जैसे कि बाकी लोन्स पर आ रहा ब्याज, सेविंग वगैरह पर दिया जा रहा ब्याज कम करना आदि। इसलिए ही आप देखेंगे कि बैंको द्वारा लगातार सेविंग्स की ब्याज दरों को कम किया जा रहा है ताकि पैसा बचे ओर इस घाटे की पूर्ति की जा सके। मिनिमम बेलेंस चार्ज ओर अन्य बैंकिंग चार्ज बढ़ा कर इस रकम की पूर्ति की जाती है।इसके अलावा भी सरकार , आरबीआई या सरकारी वित्तीय संस्थाएं सरकारी बैंकों को मदद के लिए जो रकम देती हैं,वह भी दरअसल आपकी जेब से ही जाता है।यानी आप सोचिए कि आपका पैसा लेकर विजय माल्या, नीरव मोदी और ‘हमारे मेहुल भाई’ जैसे लोग भाग जाएं। बैंक और सरकार उस नुकसान की पूर्ति के लिए आपसे ही इस रकम की वसूली करें ,क्योकि तेल तो तिलों से ही निकलता है और वो तिल हम ओर आप ही है  मतलब सरकार हमारा ही तेल निकाल रही है।

एक कंपनी के लोन को किया जा चुका है एनपीए घोषित

मउद्योगपति अनिल अंबानी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेहरबान है । गौरतलब है कि विजया बैंक ने अनिल अंबानी समूह के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग के 9000 करोड़ लोन (कर्ज) को मार्च तिमाही से गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) घोषित किया है, जो कानूनी दायरे में रहते हुए लोन माफ करने की चाल मानी जा रही है। इस कंपनी पर आर्थिक तंगी से जूझ रहे आईडीबीआई की अगुवाई वाले दो दर्जन से अधिक बैंकों का करीब 9,000 करोड़ रुपए का लोन है। ज्ञात हो कि इससे पहले भी अनिल अंबानी की एक फ्लैगशिप कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन (आरकॉम) के लोन को एनपीए घोषित किया जा चुका है।

किसी पूंजीपति के लोन के एनपीए घोषित करने पर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। माना जाता है कि इस तरह एनपीए घोषित होने से कानून दायरे में रहकर ही लोन को एक तरह से माफ कर दिया जाता है। वहीं इसके बाद कंपनी बंद कर कोई भी पूंजीपति अब नीरव मोदी की तरह बाहर निकल सकने के लायक हो सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि एनपीए घोषित होने के बाद पूंजीपति आसानी से एक कंपनी बंद कर दूसरी कंपनी खोल सकता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि अनिल अंबानी की दूसरी कंपनी के एनपीए घोषित होने के बाद उन्हें कितना फायदा हो सकता है।

साजिश से देश का नुकसान

किसी पूंजीपति के करोड़ों-अरबों रुपए के लोन के एनपीए घोषित होने के बाद देश को बहुत नुकसान होता है। इस तरह यह एक बड़ी साजिश मानी जा सकती है। आम जनता के खून-पसीने की कमाई की लूट से बैंकिंग व्यवस्था भी चरमरा जाती है।

एक कंपनी दिवालिया, तो दूसरी कंपनी से वसूली हो

जब अनिल अंबानी की एक कंपनी दिवालिया हो गई तो उनकी उनकी अन्य कंपनी तो ठीक-ठाक चल रही है। फिर अनिल द्वारा लिए गए लोन को एनपीए घोषित किए जाने के बदले उनकी अन्य कंपनियों से लोन वसूली क्यों नहीं की गई। अनिल अंबानी का रिलायंस इतना बड़ा समूह है कि उसकी कोई एक कंपनी से आसानी से लोन की वसूली की जा सकती है, लेकिन ऐसा नहीं कर उल्टे उन्हें राहत देकर एक तरह से 9000 करोड़ रुपए को डूबा देने की राह चुन ली गई। इससे मोदी सरकार की नीयत पर संदेह होता है।

लोन के सहारे मुनाफाखोरी

ज्ञात हो कि रिलायंस कम्युनिकेशन का मामला पहले से ही एनसीएलटी के पास है। वहीं आरकॉम के पास चीन विकास बैंक के अतिरिक्त 31 बैंकों का 45,000 करोड़ से ज्यादा का लोन है। सवाल यह उठता है कि क्या लोन लेने और उसे नहीं चुकाने से कंपनी को मुनाफाखोरी का मौका मिल जाता है? या कंपनी यह पहले ही तय कर लेती है कि केवल लोन लेना है और बाद में उसे चुकाना तो है ही नहीं। मार्च 2017 तक रिलायंस नेवल का बकाया उधार 8,753.19 करोड़ रुपए था। मार्च 2018 तिमाही में, पिछले 12 महीनों की अवधि में इसका कुल घाटा 139.92 करोड़ रुपए से तीन गुना बढ़कर 408.68 करोड़ रुपए हो गया। मार्च 2018 तक पूरे वर्ष के लिए, पिछले साल के 523.43 करोड़ रुपए से बढ़कर इसका कुल घाटा लगभग दोगुना होकर 956.09 करोड़ रुपए हो गया।

पासपोर्ट जब्त हो

लोन के एनपीए घोषित हो जाने के बाद सबसे पहले तो पूंजीपतियों के विदेश भाग जाने का संदेह उभरता है। इसलिए पूंजीपतियों के पासपोर्ट जब्त कर उनके विदेश जाने पर रोक लगाया जाना चाहिए। वहीं लोन की रकम की वसूली पूंजिपतियों की व्यक्तिगत संपत्ति से भी की जानी चाहिए। नीरव मोदी के फरार हो जाने के बाद मोदी सरकार हाथ मल रही है, तो उसे तुरंत अनिल अंबानी के विदेश जाने पर रोक लगानी चाहिए, नहीं तो वे फिर हाथ मलती दिखाई देगी।

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