अभिशाप नहीं बल्कि व्यक्तित्व विकास में सहायक है दिव्यांगता – अरविंद तिवारी

दुनियाँ भर में प्रतिवर्ष तीन दिसंबर को दिव्यांगों के प्रति लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरुक कर देश की मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से “अन्तर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस” मनाया जाता है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि हर साल इस दिवस को मनाने के लिये अलग – अलग थीम निर्धारित की जाती है। वर्ष 2024 के अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस का विषय है “समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिये विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना।” यह समावेशी समाज को आकार देने में विकलांग व्यक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है। यह थीम विकलांग व्यक्तियों को नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिये सशक्त बनाने के महत्व को पहचानती है , जिससे समानता की दिशा में प्रगति हो सके। थीम का उद्देश्य यह भी सुनिश्चित करना है कि उनके जीवन को प्रभावित करने वाली निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी आवाज़ केंद्रीय हो। इस दिन दिव्यांगों के विकास , उनके कल्याण के लिये योजनाओं , समाज में उन्हें बराबरी के अवसर मुहैया कराने , उनके स्वास्थ्य व सामाजिक – आर्थिक स्थिति में सुधार लाने हेतु कार्यक्रम आयोजित कर गहन विचार विमर्श किया जाता है। विकलांगों के प्रति सामाजिक कलंक को मिटाने और उनके जीवन के तौर-तरीकों को और बेहतर बनाने के लिये उनके वास्तविक जीवन में बहुत सारी सहायता को लागू करने के द्वारा तथा उनको बढ़ावा देने के लिये साथ ही विकलांग लोगों के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देने के लिये इस दिन को खास महत्व दिया जाता है। वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा “विकलांगजनों के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष” के रूप में वर्ष 1981 को घोषित किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय , राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर दिव्यांगजनों के लिये पुनरुद्धार , रोकथाम , प्रचार और बराबरी के मौकों पर जोर देने हेतु इस योजना को जन्म दिया गया। फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1983 से वर्ष 1992 को दिव्यांगों के लिये संयुक्त राष्ट्र के दशक की घोषणा की थी ताकि वो सरकार और संगठनों को विश्व कार्यक्रम में अनुशंसित गतिविधियों को लागू करने के लिये एक लक्ष्य प्रदान कर सकें। दिव्यांगों के बारे में लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिये , अक्टूबर 1992 में , 47 वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 03 दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस के रूप में नामित करने का प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद 03 दिसंबर को दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति करुणा और दिव्यांगता के मुद्दों की स्वीकृति को बढ़ावा देने और उन्हें आत्म-सम्मान , अधिकार और विकलांग व्यक्तियों के बेहतर जीवन के लिये समर्थन प्रदान करने हेतु एक उद्देश्य के साथ विश्व दिव्यांग दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन को मुख्य रूप से दिव्याँगोंं के प्रति लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने के लिये मनाया जाता है। गौरतलब है कि 27 दिसम्बर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने “मन की बात” में विकलांगों को दिव्यांग कहने की अपील करते हुये कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के पास एक “दिव्य क्षमता” है और उनके लिये “विकलांग” शब्द की जगह “दिव्यांग” शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिये। जिसके पीछे उनका तर्क था कि शरीर के किसी अंग से लाचार व्यक्तियों में ईश्वर प्रदत्त कुछ खास विशेषतायें होती हैं , विकलांग शब्द उन्हे हतोत्साहित करता है। यहां बताना लाजिमी होगा कि आंखों की रोशनी ना होने के बाद भी अपनी खूबसूरती आवाज के लिये प्रख्यात संगीतकार और गायक रविन्द्र जैन , नृत्यांगना सोनल मान सिंह , एक पैर से दिव्यांग नृत्यांगना सुधाचन्द्रन , ऐवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली दिव्यांग महिला अरूणिमा सिन्हा , देखने और सुनने में असमर्थ – अमेरिका की शीर्ष लेखिका और शिक्षिका के साथ-साथ दुनियां की पहली दिव्यांग स्नातक हेलेन केलर , मानसिक रूप से कमजोर दुनियां के सबसे महान बैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे अनेकों जानी मानी हस्तियों का नाम आज भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है। ये सभी अपनी कमियों के लिये नहीं बल्कि दिव्यांग होकर भी अपने प्रतिभा के लिये जाने जाते हैं।

 

दिव्यांगों के प्रति पत्रकार की व्यथा

 

पीएम मोदी के आह्वान पर देश के लोगो ने विकलांगों को दिव्यांग कहना तो शुरू कर दिया लेकिन इससे कोई खास अंतर नहीं पड़ रहा। दिव्यांगों के प्रति लोगों का नजरिया आज भी नही बदल पाया है , हमारे दिमाग के अंदर की मानसिकता बदलनी चाहिये। आज भी समाज के लोगों द्वारा दिव्यांगों को दयनीय दृष्टि से ही देखा जाता है। भले ही देश में अनेकों दिव्यांगों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया हो मगर लोगों का उनके प्रति वही पुराना नजरिया अब भी बरकरार है। अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस दरअसल संयुक्त राष्ट्र संघ की एक मुहिम का हिस्सा है जिसका उद्देश्य दिव्यांगजनों को मानसिक रुप से सबल बनाना तथा अन्य लोगों में उनके प्रति सहयोग की भावना का विकास करना है। मगर आज के समय में भी अधिकतर लोगों को तो इस बात का भी पता नहीं होता है कि हमारे घर के आस-पास कितने दिव्यांग रहतें हैं ? उन्हे समाज में बराबरी का अधिकार मिल रहा है कि नहीं , किसी को इस बात की कोई फिक्र नहीं हैं। यह एक कड़वी सच्चाई है कि भारत में दिव्यांग आज भी अपनी मूलभूत जरूरतों के लिये दूसरों पर आश्रित है। दिव्यांगता से ग्रस्त लोगों का मजाक बनाना एक सामाजिक रूप से एक गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है। दिव्यांगता अभिशाप नहीं है क्योंकि शारीरिक अभावों को यदि प्रेरणा बना लिया जाये तो दिव्यांगता व्यक्तित्व विकास में सहायक हो जाती है। यदि सोच सही रखी जाये तो अभाव भी विशेषता बन जाते हैं। दिव्यांगता से ग्रस्त लोगों का मजाक बनाना , उन्हें कमजोर समझना और उनको दूसरों पर आश्रित समझना एक भूल और सामाजिक रूप से एक गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है। जो लोग किसी दुर्घटना या प्राकृतिक आपदा का शिकार हो जाते है अथवा जो जन्म से ही दिव्यांग होते है। आज हम इस बात को समझें कि उनका जीवन भी हमारी तरह है और वे अपनी कमजोरियों के साथ उठ सकते है। हमारे आसपास कई ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने अपनी दिव्यांगता के बाद भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। दुनियाँ में अनेकों ऐसे उदाहरण मिलेंगे जो बताते है कि सही राह मिल जाये तो अभाव एक विशेषता बनकर सबको चमत्कृत कर देती है। यदि दिव्यांग व्यक्तियों को समान अवसर तथा प्रभावी पुनर्वास की सुविधा मिले तो वे बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकते हैं। भारत में दिव्यांगो की मदद के लिये बहुत सी सरकारी योजनायें संचालित हो रही हैं। लेकिन उनको समुचित और भरपूर लाभ नही मिल पाना दिव्यांगो के लिये सरकारी सुविधायें हासिल करना महज मजाक बनकर रह गया हैं। उन्हें सरकारी नौकरियों, अस्पताल , रेल , बस सभी जगह आरक्षण प्राप्त है , लेकिन ये सभी सरकारी योजनायें उन दिव्यांगो के लिये महज एक मजाक बनकर रह गयी हैं। जब इनके पास इन सुविधाओं को हासिल करने के लिये दिव्यांगता का प्रमाण पत्र ही नहीं है। आमतौर पर हमारे देश में दिव्यांगों के प्रति दो तरह की धारणायें देखने को मिलती हैं। पहला यह कि जरूर इसने पिछले जन्म में कोई पाप किया होगा , इसलिये उन्हें ऐसी सजा मिली है और दूसरा कि उनका जन्म ही कठिनाइयों को सहने के लिये हुआ है , इसलिये उन पर दया दिखानी चाहिये। हालांकि ये दोनों ही धारणायें पूरी तरह बेबुनियाद और तर्कहीन हैं। बावजूद इसके , दिव्यांगों पर लोग जाने-अनजाने छींटाकशी करने से बाज नहीं आते। वे इतना भी नहीं समझ पाते हैं कि क्षणिक मनोरंजन की खातिर दिव्यांगों का उपहास उड़ाने से भुक्तभोगी की मनोदशा किस हाल में होगी ? तरस आता है ऐसे लोगों की मानसिकता पर जो दर्द बांटने की बजाए बढ़ाने पर तुले होते हैं। एक निःशक्त व्यक्ति की जिंदगी काफी दुख भरी होती है। घर-परिवार वाले अगर मानसिक सहयोग ना दें तो व्यक्ति अंदर से टूट जाता है। वास्तव में लोगों के तिरस्कार की वजह से दिव्यांग स्व-केंद्रित जीवनशैली व्यतीत करने को विवश हो जाते हैं। दिव्यांगों का इस तरह बिखराव उनके मन में जीवन के प्रति अरुचिकर भावना को जन्म देता है। अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस का उद्देश्य आधुनिक समाज में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करना है। आज का दिन ऐसे लोगों को सलाम करने का एक अवसर है , जिन्होंने खुद अपनी विकलांगता को नकार कर दुनियां के सामने कुछ अलग मिशाल कायम की है। अंत में हमारा कहना यही है कि किसी भी अशक्त दिव्यांग लोगों के साथ भेदभाव ना करें और यथासंभव उनकी मदद करें , उन्हें काबिल बनायें ताकि वे अपने आपको समर्थ महसूस कर सकें। अगर दिव्यांगों में कुछ विशेष क्षमता है तो हर स्तर फर उसे विकसित करने का प्रयास किया जाये , उनका मजाक उड़ाकर उन्हें हतोत्साहित तो कदापि ना करें।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *