नगरीय एवं पंचायत निकायों में उम्मीदवार फायनल करने के आसार विधायक एवं पूर्व विधायक पर उम्मीदवार दोनों ही जनप्रतिनिधियों के दरवाजे टेक रहे मत्था

गरियाबंद/छुरा/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव की तारीखों का एलान होने के बाद पिछले दो दिनों से उम्मीदवार बनने लोगों में होड़ चल रही है। इन चुनाव में उम्मीदवारी का सारा दामोदार विधायक रोहित साहू एवं पूर्व विधायक अमितेश शुक्ल के इर्द-गिर्द माना जा रहा है। यही कारण है कि दोनों नेता फूंक फूंक कर कदम रख रहे है। राजिम विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा ने अब तक अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा नहीं की है। टिकट के लाइन में खड़े सारे नेता इन दिनों इनके चक्कर लगाते देखे जा रहे है। ऐसे नेताओं को न भूख लग रही न खाना सुहा रहा और न ही नींद आ रही है। भाजपा में चुनाव लड़ने वाले नेता, विधायक रोहित साहू की ओर टकटकी लगाए हुए है। राजिम स्थित उनके निवास में रोज मेला लग रहा है और यह मेला टिकटार्थियों की है। शहरीय नेताओं के साथ साथ पूरे विधानसभा क्षेत्र के लोग यहां डेरा डाले हुए है। कोई जिला पंचायत में, सदस्य बनने तो कोई जनपद में, तो अधिकांश नेता सरपंच बनने के लिए लालायित है। वे विधायक का एक ईशारा चाह रहे है। परंतु ईशारा किसी को नहीं मिल रहा है। चाहे वह कितनों ही करीब का नेता ही क्यों न हो। जिला, जनपद और ग्राम पंचायत का चुनाव हालांकि दलीय आधार पर नहीं होता और न ही पार्टी का सिम्बाल मिलता है। केवल प्रत्याशी चिन्हित कर दिए जाते है और उसके हिसाब से दोनों दल कांग्रेस-भाजपा अपने-अपने केंडिडेट को सपोर्ट करते है। एक तरफ विधायक रोहित साहू है तो दूसरी ओर पूर्व विधायक अमितेश शुक्ल। सारा दारामदार अपने अपने पार्टी में इन्ही के उपर है। यह चुनाव दोनों के लिए काफी प्रतिष्ठा पूर्ण बन गया है। लोकसभा और विधानसभा में इस क्षेत्र से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है और अब सामने नगरीय निकाय तथा पंचायत चुनाव खड़ा हुआ है। बहुत ही ताज्जुब की बात है कि 22 जनवरी से नामांकन भरने का दौर शुरू हो जाएगा परंतु अब तक दोनों ही दलों में प्रत्याशी कौन होंगे ? ये पता नहीं खुल सका है। जाहिर है जब पता खुलेगा तो हड़कंप मचेगा। क्योंकि टिकट एक है और मांगने वाले अनेक। शहर के चप्पे चप्पे में अटकलो का बाजार गर्म है। कोई दावे के साथ यह कहने की स्थिति में नहीं है कि टिकट उसे हर हाल में मिलने जा रहा है। बता दें कि दोनो पार्टी अंदरूनी तौर पर सर्वे करा रही है। सर्वे में जिनका नाम विनिंग केंडिडेट के रूप में सामने आएगा टिकट उन्हें ही दी जाएगी ऐसा सूत्र बता रहे है। लगता है दोनों पार्टी अपने भावी प्रत्याशियां को लेकर कश्मकस की स्थिति में है। आम जनता के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि टिकट से वंचित नेता क्या पार्टी के खिलाफ जाकर निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। ऐसे में पार्टी नेतृत्व के लिए सही और सामंजस्यपूर्ण निर्णय लेना चुनौतीपूर्ण होगा। अब देखना यह है कि इस राजनीतिक दौड़ में कौन कौन अपनी दावेदारी को पुख्ता कर टिकट हासिल करता है और कौन मायूस होकर लौटता है।