“दादा जी की 35 वर्षों की समाज सेवा की अमिट परंपरा, बिटिया ने राजनीति में लिया कदम – गुरुनूर कुकरेजा का संकल्प: सेवा, शिक्षा और परिवार की प्रतिष्ठा को नई ऊंचाई देने के लिए!”

“दादा जी की 35 वर्षों की समाज सेवा की अमिट परंपरा, बिटिया ने राजनीति में लिया कदम – गुरुनूर कुकरेजा का संकल्प: सेवा, शिक्षा और परिवार की प्रतिष्ठा को नई ऊंचाई देने के लिए!”

 

गूरुनूर कुकरेजा की सेवाभाव से सजी राजनीतिक यात्रा” की शुरुआता

 

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। वार्ड नंबर 09 – राजनीति में एक नया चेहरा उभर रहा है, जो न केवल अपने दादा के नाम से जुड़ा है, बल्कि उनकी सेवाओं और संघर्षों को अपने खून में समेटे हुए है। गुरुनूर कुकरेजा – जिनके दादा, डॉ. गुरमुख सिंह कुकरेजा ने 35 साल पहले सात बार सरपंच रहकर समाज सेवा की मिसाल पेश की थी, आज वही बिटिया उनके पदचिन्हों पर चलने का संकल्प लेकर मैदान में हैं।

गुरुनूर कुकरेजा, पेशे से शिक्षिका और बच्चों के लिए आर्ट, डांस, पेंटिंग जैसी मुफ्त शैक्षिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली एक समर्पित महिला, अब कांग्रेस की प्रत्याशी के रूप में वार्ड नंबर 09 से चुनावी जंग में हैं। उनकी कार्यशैली और सेवाभाव ने उन्हें अपने दादा के नाम से जोड़ दिया है। लोग कहते हैं, “हमें गुरुनूर में दादा जी की छवि नजर आती है”।

 

दादा की छवि, बिटिया का संकल्प

 

गुरुनूर का कहना है, “मैं दादा जी की तरह काम करना चाहती हूं। आज भी लोग हमें दादा जी के नाम से पुकारते हैं। पापा बताते हैं कि लोग सुबह-सुबह घर पर आते थे, अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए। मेरा उद्देश्य भी वही है – लोगों की मदद करना, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में। मेरे दादा जी ने जिस सेवा की नींव रखी थी, मैं उसे आगे बढ़ाना चाहती हूं।”

गुरुनूर का यह आस्था और आत्मविश्वास वार्ड में उनके प्रति जनता के भरोसे को बढ़ा रहा है। डोर-टू-डोर कैंपेन में वह जहां भी जा रही हैं, लोग उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं और समर्थन दे रहे हैं। वह वार्ड के हर एक घर तक पहुंचकर लोगों की परेशानियां सुन रही हैं और उन्हें हल करने का आश्वासन दे रही हैं।

 

समाज सेवा और शिक्षा पर फोकस

 

गुरुनूर का प्राथमिक ध्यान महिलाओं और बच्चों की शिक्षा और समाज सेवा पर रहेगा। उनका कहना है, “समाज की सेवा मेरा पहला कर्तव्य है। मैं चाहती हूं कि हमारे वार्ड और शहर की हर महिला और बच्ची को बेहतर अवसर मिले।”

यह सिर्फ एक चुनावी यात्रा नहीं, बल्कि एक परिवार की सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प है। गुरुनूर कुकरेजा के इस अभियान में दादा जी की यादों और उनके योगदान को जीवित रखने का उद्देश्य भी समाहित है। अब देखना यह है कि लोग उनकी सेवाओं और समर्पण को किस तरह से सराहते हैं।

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