जानिए वसंत पंचमी को सरस्वती पूजा क्यों होती है – प्रकाश कुमार यादव


हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है और इस दिन पूरे विधि-विधान के साथ ज्ञान की देवी मां सरस्वती का पूजन किया जाता है। कई जगहों पर इसे श्री पंचमी या सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। वसंत पंचमी, जो पूरे भारतवर्ष में हिंदुओं, जैन , बौद्ध और सिखों द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वसंत पंचमी का धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से अपार महत्व है। पुराणों के अनुसार, इसी दिन माता सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। भगवान ब्रह्मा ने जब संसार में नीरवता अनुभव की, तो अपने कमंडल से जल छिड़ककर माँ सरस्वती को प्रकट किया। देवी सरस्वती ने वीणा बजाकर संसार को वाणी, संगीत और ज्ञान का उपहार दिया। इसलिए इस दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है, विशेष रूप से विद्यार्थियों, कलाकारों और संगीतज्ञों द्वारा किया जाता है।
सरस्वती पूजा एक अत्यंत रंगीन और उल्लासपूर्ण पर्व है। इसे हिंदी में बसंत पंचमी भी कहा जाता है। ‘वसंत’ शब्द का अर्थ है वसंत ऋतु और ‘पंचमी’ का तात्पर्य पाँचवे दिन से है। अतः यह पर्व वसंत ऋतु के पाँचवे दिन मनाया जाता है। यह पर्व ज्ञान, विद्या और कला की देवी माँ सरस्वती के साथ-साथ कामदेव और उनकी पत्नी रति को समर्पित होता है। इस दिन को श्री पंचमी और सरस्वती पूजा के रूप में भी जाना जाता है। साथ ही, यह ऋतुराज वसंत के आगमन का प्रतीक भी है, जब प्रकृति में एक नई ऊर्जा और उमंग का संचार होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वसंत पंचमी माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पाँचवे दिन आती है, जो हर साल जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में होती है। इस दिन का समय पूर्वाह्न काल के प्रचलन के आधार पर निर्धारित किया जाता है, अर्थात सूर्योदय और मध्य दिन के बीच की अवधि। जब पंचमी तिथि पूर्वाह्न काल में प्रबल होती है, तभी वसंत पंचमी का उत्सव आरंभ होता है।
वसंत पंचमी से जुड़ी एक और प्रसिद्ध कथा भगवान कामदेव और उनकी पत्नी रति की है। कथा के अनुसार, भगवान शिव ने भगवान कामदेव को उनके अनर्थक कार्यों के कारण भस्म कर दिया था। रति को अपने पति को पुनः जीवन में लाने के लिए 40 दिनों की कठोर तपस्या करनी पड़ी। वसंत पंचमी के दिन भगवान शिव ने रति की प्रार्थना स्वीकार की और भगवान कामदेव को पुनः जीवन दे दिया। तभी से वसंत पंचमी को प्रेम के देवता कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा का महत्व भी जुड़ गया।
यह पर्व विशेष रूप से भारत के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भागों में धूमधाम से मनाया जाता है, साथ ही नेपाल में भी हिंदू इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं। यह दिन किसानों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसलों के पकने और खेतों में नई हरियाली का प्रतीक है।
बसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती के अवतरण दिवस में रूप में मनाया जाता है। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी संसार के भ्रमण पर निकले हुए थे। उन्होंने जब सारा ब्रह्माण्ड देखे तो उन्हें सब मूक नजर आया। यानी हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। इसे देखने के बाद उन्हें लगा कि संसार की रचना में कुछ कमी रह गई है।
इसके बाद ब्रह्माजी एक जगह पर ठहर गए और उन्होंने अपने कमंडल से थोड़ा जल निकालकर छिड़क दिया। तो एक महान ज्योतिपुंज में से एक देवी प्रकट हुई। जिनके हाथों में वीणा थी और चेहरे पर बहुत ज्यादा तेज। यह देवी थी सरस्वती, उन्होंने ब्रह्माजी को प्रणाम किया। मां सरस्वती के अवतरण दिवस के रूप में बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। ब्रह्माजी ने सरस्वती से कहा कि इस संसार में सभी लोग मूक है। ये सभी लोग बस चल रहे हैं इनमें आपसी संवाद नहीं है। ये लोग आपस में बातचीत नहीं कर पाते हैं। इसपर देवी सरस्वती ने पूछा की प्रभु मेरे लिए क्या आज्ञा है? ब्रह्माजी ने कहा देवी आपको अपनी वीणा की मदद की इन्हें ध्वनि प्रदान करो। ताकि ये लोग आपस में बातचीत कर सकें। एक दूसरे की तकलीफ को समझ सकें। इसके बाद मां सरस्वती ने सभी जीवों को आवाज प्रदान किया।
वसंत पंचमी का यह दिन होली और होलिका दहन की तैयारी का भी संकेत है, जो इस दिन से लगभग 40 दिन बाद मनाए जाते हैं। हिंदू ज्योतिष में वसंत पंचमी को अभिषेक और शुभ कार्यों के प्रारंभ के रूप में माना जाता है। इस दिन कई परंपराएँ प्रचलित हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में निभाई जाती हैं। अधिकांश भक्त इस दिन माँ सरस्वती को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। मंदिरों में जाकर सरस्वती वंदना करते हैं, संगीत बजाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। यह दिन रचनात्मक ऊर्जा के प्रवाह का प्रतीक है, इसलिए इसे पूजा करने से ज्ञान और सृजनात्मकता में वृद्धि होती है।
इसी दिन लोग पीला रंग पहनते हैं, क्योंकि यह माँ सरस्वती का प्रिय रंग है। इसके अतिरिक्त, इस दिन पीले रंग के पकवान, जैसे केसर से पके चावल, खीर, बूंदी आदि बनाए जाते हैं। अनेक स्थानों पर लोग अपने बच्चों को अक्षराभ्यास के लिए प्रेरित करते हैं, जिसे अक्षराभ्यासम या विद्यारंभम कहा जाता है। शिक्षण संस्थानों में भी सरस्वती पूजा का आयोजन होता है, जहां शिक्षक और छात्र मिलकर सरस्वती स्तोत्र का पाठ करते हैं। प्रेम का भी पर्व होने के कारण कुछ क्षेत्रों में इस दिन लोग भगवा और गुलाबी रंग के कपड़े पहनते हैं, प्रेम और भावनाओं के गीत गाते हैं और ढोल की थाप पर नाचते हैं। कच्छ जैसे स्थानों पर लोग आम के पत्तों की माला एक-दूसरे को भेंट करते हैं, जो प्रेम और स्नेह का प्रतीक मानी जाती है।
वसंत पंचमी केवल देवी सरस्वती की आराधना का पर्व ही नहीं, बल्कि यह ऋतु परिवर्तन, ज्ञान, संगीत, कला और उल्लास का उत्सव है। इस दिन पीले वस्त्र पहनने, मीठे भोजन का सेवन करने और ज्ञान की देवी से आशीर्वाद मांगने की परंपरा हमें जीवन में सकारात्मकता और उल्लास से भर देती है। यह पर्व हमें प्रकृति और संस्कृति से जोड़ता है, साथ ही ज्ञान और रचनात्मकता को बढ़ावा देने की प्रेरणा देता है।