फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन कर नुकसान से बचें, खेती में लागत घटाएं

फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन कर नुकसान से बचें, खेती में लागत घटाएं

 

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। सिकासेर जलाशय से रबी फसल हेतु फिंगेश्वर तक पानी दिए जाने की घोषणा के बाद किसानों से खरीफ उत्पादन के अवशेषों को जलाने के लिए अपने खेतों में आग लगाकर पलारी को जला दिया था क्योंकि पिछले वर्ष भी रबी फसल के लिए फिंगेश्वर तक सिकसेर जलाशय से पानी दिया गया था।इसलिए कृषकों ने इस बार भी फिंगेश्वर तक पानी दिए जाने की घोषणा पर फिंगेश्वर तक के किसानों ने पूरी तैयारी कर ली परंतु अभी फरवरी में पानी देना शुरू किया गया जिससे बेलर के आगे फिंगेश्वर तक पानी आने में विलंब होने से रबी फसल बोने का समय निकल जाने के कारण बेलर के आगे फिंगेश्वर तक किसानों ने नहर पानी के सहारे रबी फसल नहीं ली इससे बेलर के बाद के किसानो की रबी फसल लेने की तैयारी धरी की धरी रह गई इधर खेतों में पलारी जलाने से कृषकों को खेती संबंधी काफी नुकसान होने की चर्चा अंचल के किसान कर रहे हैं पलारी जलाने से किसानों को होने वाले नुकसान के बारे में चर्चा करते हुए कृषकों ने कहा कि प्रायः कटाई के बाद फसलों के ठूंठध्पराली या अवशेष को किसान खेत में ही जला देते हैं। इससे आर्थिक नुकसान के साथ जमीन और पर्यावरण को भी हानि पहुंचती है। पर्यावरण प्रदूषित होने का सीधा दुष्प्रभाव मानव व पशु स्वास्थ्य, मृदा स्वास्थ्य व मृदा गुणवत्ता पर पड़ता है। इसका उचित प्रबंधन कर इन नुकसान से बचने के सथ खेती में लागत भी घटा सकते हैं।

फसल अवशेष जलाने के दुष्प्रभाव

मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। अनुमानतः 1 टन धान पैराध्पुआल को जलाने से ’5-6 किग्रा नत्रजन, 2.5-3 किग्रा स्फूर, 20-25 किग्रा पोटाश एवं 1-2 किग्रा गंधक नष्ट हो जाती है।सामान्य तौर पर भी फसल अवशेषों में कुल फसल का 70ः नत्रजन, 20ः स्फुर, 25ः पोटाश एवं 40ः गंधक होता है। इससे मिट्टी की उर्वरता कम होती है। फसल अवशेष जलाने से उस पर आश्रित मित्र कीट मर जाते हैं। इससे मित्र कीट और शत्रु कीट का आनुपातिक संतुलन बिगड़ जाता है। फलस्वरूप पौधों को कीट-व्याधि प्रक्रोप से बचाने के लिए जहरीले तथा महंगे कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। फसल अवशेष जलाने से मृदा में उपस्थित एवं सर्वाधिक सक्रिय 15 से.मी. की परत में सभी लाभदायक दीर्घ एवं सूक्ष्म जीवांश मरने से मृदा की उत्पादक क्षमता में भारी गिरावट आ जाती है। मिट्टी में पाए जाने वाले केंचुए व अन्य जीव भी नष्ट हो जाते हैं। मृदा का तापमान बढ़ जाता है, जिससे मृदा की संरचना बिगड़ जाती है। इससे भूमि बंजर होने लगती है।

फसल अवशेष प्रबंधन

पहला-पैरा-भूसा आदि को गहरी जुताई कर पानी भरने से फसल अवशेष कम्पोस्ट में बदल जाएंगे, जिससे अगली फसल को पोषक तत्व प्राप्त होंगे। दूसरा- घास-फूस, पत्तियां एवं पौधों के ठूंठ आदि को सड़ने के लिए फसल काटने के बाद 50 कि.ग्रा. यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में छिड़क कर कल्टीवेटर या रोटावेटर से भूमि में मिला दें। इससे पौधों के अवशेष खेत में विघटित होकर ह्यूमस की मात्रा बढ़ाते हैं और अगली फसलों को पोषण देते हैं। तीसरा- फसल अवशेष एकत्र कर नाडेप खाद या वर्मी कम्पोस्ट टांके में डालकर कम्पोस्ट या केंचुआ खाद जैसे कार्बनिक खाद के लिए उपयोग किया जा सकता है। चौथा – अवशेषों को खेत में पड़े रखकर ही मल्चर चलाकर बीजों की बोवनी जीरो सीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल, हैप्पी सीडर इत्यादि यंत्र का उपयोग करें, जिससे बीज का प्रतिस्थापन उपयुक्त नमी स्तर पर होगा। ऊपर बिछे हुए फसल अवशेष नमी संरक्षण, खरपतवार व मृदा तापमान नियंत्रण एवं बीज के सही अंकुरण के लिए मल्चिंग (पलवार) का कार्य करेंगे। पांचवां-फसल अवशेषों को सड़ाने के लिए अपशिष्ट अपघट (वेस्ट डिकम्पोजर, ट्राईकोडर्मा प्रजातीय कवक) का घोल 100 ली. प्रति एकड़ की दर से सिंचाई (ड्रिप, नाली या बहाव पद्धति) अथवा फुहार (स्प्रे) के माध्यम से किया जा सकता है। इससे फसल अवशेष 21 दिन में सड़ जाते हैं यही कारण है की प्रशासन भी लगातार खेतों मे अवशेष न जलाने कृषको को हिदायत देता रहता है

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