“लाला का चेहरा, और जनता की चेतावनी”

“लाला का चेहरा, और जनता की चेतावनी”

 

ये वही लाला है –

जिसने जंगल की हरियाली को

फ़ाइलों में काला किया,

पेड़ काटे नहीं पूरी पीढ़ियाँ उजाड़ी हैं उसने।

 

ज़मीन छीनी नहीं, ज़मीर निचोड़ा है लाला ने,

मजदूर के हाथों की लकीरों में

अपने महल की नींव रख दी।

 

वो लाला – जो ‘विकास’ की खाल पहनकर

‘विनाश’ की चाल चलता है,

जिसकी रोटी खून की चाशनी में सनी होती है।

 

CSR के विज्ञापन छपवाकर

सच को दफ़न कर देता है,

और फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस में

नकली आँसू बहा कर मसीहा बन जाता है।

 

नेता उसकी जेब में,

अफ़सर उसकी जेब में,

कानून उसकी जेब में,

और जेब में ही दबी होती है जनता की चीख़।

 

भ्रष्ट लाला एक नहीं पूरा एक तंत्र है,

जहाँ समझौते बिकते हैं,

और विरोध कुचले जाते हैं।

 

पर अब लोग चुप नहीं अब हर खेत से आवाज़ उठेगी,

हर विस्थापित गाँव से सवाल निकलेगा,

हर जंगल की जड़ें हिलाएँगी उसकी नींव को।

 

अब कलम, पोस्टर, नारा, सड़क सब कहेंगे एक ही बात :

“तेरी लूट अब नहीं चलेगी लाला,

अब जनता तेरे चेहरे का नक़ाब नोच चुकी है।”

 

✍🏻 ऋषिकेश मिश्रा (स्वतंत्र पत्रकार)

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *