छुरा तहसील क्षेत्र के अंचलों में आवास स्वीकृति की आड़ में अवैध ईंट भट्ठों का संचालन, शासन के नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां

छुरा(गंगा प्रकाश)। गरियाबंद जिले के छुरा तहसील क्षेत्र अंतर्गत कई गांवों में आवास स्वीकृति की आड़ में अवैध रूप से ईंट भट्ठों का संचालन किया जा रहा है। यह न केवल शासन की योजनाओं का दुरुपयोग है, बल्कि पर्यावरणीय और राजस्व नियमों का भी खुला उल्लंघन है।
ग्रामों में तेजी से फैल रहा अवैध कारोबार

जानकारी के अनुसार, छुरा राजस्व क्षेत्र के ग्राम पिपराही, टेंगनाही, खरखरा, पंडरीपानी, करकरा सहित आसपास के अंचलों में अवैध ईंट भट्ठों का संचालन धड़ल्ले से किया जा रहा है। यहां आवास निर्माण के नाम पर भूमि का उपयोग भट्ठा निर्माण और संचालन के लिए किया जा रहा है, जो पूरी तरह से अवैध है।
वन भूमि पर कब्जा और कटाई का आरोप
स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ स्थानों पर तो वन अधिकार पट्टों की आड़ में जंगलों की कटाई कर ईंट भट्ठा लगाया गया है। इससे वन क्षेत्र को नुकसान हो रहा है और पर्यावरणीय संतुलन भी प्रभावित हो रहा है।
वन परिक्षेत्र अधिकारी का जवाब – मामला राजस्व विभाग का
जब इस संदर्भ में वन परिक्षेत्र अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “यह क्षेत्र राजस्व विभाग के अंतर्गत आता है, आप इस विषय में पटवारी या तहसीलदार से संपर्क करें। फिलहाल मैं अपनी फॉरेस्ट टीम को मौके पर भेज रहा हूं ताकि स्थिति का जायजा लिया जा सके।”
पटवारी ने कॉल नहीं उठाया – प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
जब इस संदर्भ में हमारे मीडिया प्रतिनिधि ने संबंधित राजस्व पटवारी से संपर्क करने का प्रयास किया, तो उन्होंने फोन कॉल रिसीव नहीं किया। इससे क्षेत्र में प्रशासन की निष्क्रियता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
ग्रामीणों का सवाल – अगर आवास मिला है तो भट्ठा क्यों?
आम जनता का कहना है कि यदि किसी हितग्राही को आवास की स्वीकृति मिली है, तो उसे निर्माण के लिए ईंट और अन्य सामग्री बाज़ार से खरीदनी चाहिए। फिर वह खुद ईंट भट्ठा कैसे चला सकता है? इससे स्पष्ट है कि यह योजना के नाम पर शासन को गुमराह करने का मामला है।
प्रशासन की निष्क्रियता सवालों के घेरे में
ग्रामीणों का आरोप है कि कई बार शिकायत के बावजूद प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इससे संदेह होता है कि कहीं इस अवैध कार्य को कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों का संरक्षण तो प्राप्त नहीं है।
निष्कर्ष
यह मामला केवल एक अवैध भट्ठे का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है। यदि समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो शासन की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रहेंगी और पर्यावरण को भारी नुकसान होगा।